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सुख-दुख

एक अदद राज्यमंत्री का पद हासिल करने को कोई कितना गिर सकता है, एमजे अकबर इसकी मिसाल हैं

 अनिल जैन

अनिल जैन

दोयम दर्जे का एक अदद राज्यमंत्री का पद हासिल करने के लिए कोई व्यक्ति किस हद तक अपने आत्म सम्मान से समझौता कर सकता है, जाने-माने पत्रकार और संपादक एमजे अकबर इसकी मिसाल हैं। वर्षों तक पत्रकारिता में रहते हुए जो कुछ प्रतिष्ठा और पुण्याई अर्जित की थी वह तो दांव पर लगाई ही, साथ ही जिस शख्स को उन्होंने एक समय कांग्रेस में रहते हुए मौत का सौदागर कहा था, उसी की बल्कि उसके दूसरे कारिंदों की भी चापलूसी करनी पडी।

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 अनिल जैन

अनिल जैन

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दोयम दर्जे का एक अदद राज्यमंत्री का पद हासिल करने के लिए कोई व्यक्ति किस हद तक अपने आत्म सम्मान से समझौता कर सकता है, जाने-माने पत्रकार और संपादक एमजे अकबर इसकी मिसाल हैं। वर्षों तक पत्रकारिता में रहते हुए जो कुछ प्रतिष्ठा और पुण्याई अर्जित की थी वह तो दांव पर लगाई ही, साथ ही जिस शख्स को उन्होंने एक समय कांग्रेस में रहते हुए मौत का सौदागर कहा था, उसी की बल्कि उसके दूसरे कारिंदों की भी चापलूसी करनी पडी।

और, बदले में मिला क्या… सिर्फ विदेश राज्यमंत्री का भूमिका विहीन पद जो कि उसी मंत्रालय में पहले से ही एक मूर्ख पूर्व सेनाध्यक्ष के पास भी है।

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जब इस मंत्रालय की कैबिनेट मंत्री के पास ही करने को कुछ नहीं है तो उस मंत्रालय में अकबर साहब क्या कर लेंगे, सिवाय कुछेक मसलों पर बयान और संसद में प्रश्नों के लिखित उत्तर देने के? एमजे अकबर के साथ ही इस मंत्रिपरिषद में दो और भी मुस्लिम मंत्री है लेकिन उन्हें भी ऐसा कोई महत्वपूर्ण महकमा नहीं सौंपा गया है जिसका देश के आम आदमी से वास्ता हो।

कुल मिलाकर तीनों शो पीस है और तीनों की भूमिका भाजपाई धर्मनिरपेक्षता की मॉडलिंग करने तक ही सीमित है। तीनों की यह नियति इस बात को भी स्पष्ट करती है कि मौजूदा हुकूमत के मुखिया का देश के सबसे बडे अल्पसंख्यक तबके के प्रति क्या नजरिया है।

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वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. lalit

    July 7, 2016 at 8:58 am

    pahli bar aapka jaisa vidwan vyakti najar aaya hindustan main waah ,kaun se w kaha ke patrakar ho ?shayad chand se duniya ki monitoring karte ho? itni niji khundak bhi thik nahi

  2. डॉ राधे श्याम द्विवेदी

    July 8, 2016 at 1:15 am

    अनिल जी,
    आप भूत काल को पकड़ कर बैठे रहोगे तो बहुत पीछे रह जाओगे।मोदी जी के आज को भविष्य के संभावनाओं के परिप्रेक्ष्य में देखिये।सवा सौ करोड़ देशवासियों के प्रधानमंत्री मंत्री जो बहुत बदल कर विश्व में भारत को एक सम्मान की स्थिति में ला दिया है उसे काम करने देने को माहौल बनाने में यदि अकबर साहब को भूतकाल के पत्रकारिता के वसूलों की कुर्वानी भी देना पड़े तो मेरे समझ से इसमें कोई हर्ज नही है।देश के व्यापक हित में छोटी मोटी कुर्बानी नाजायज नहीं है।

  3. Ashu

    July 8, 2016 at 2:25 am

    😮 Anil ji, its so easy to comment for anyone

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