संजय कुमार सिंह-
गोदी वाले जो कहें, खबर तो यही है!
जहां तक, ‘जिन्दा लौट पाया’ का सवाल है, सात सौ से ज्यादा किसान नहीं लौट पाए जबकि आपने ‘तपस्या’ करने का दावा किया है। वो तो बाकायदा विरोध कर रहे थे और बता कर किया था।
फिर इस ‘पार्टिंग शॉट’ का कोई मतलब नहीं है।
फिर भी, आप तो आप हैं।
रैली में लोग ही नहीं थे तो कुछ बहाना चाहिए था। मुख्यमंत्री ने कहा है, सड़क मार्ग से जाना ही नहीं था …. और शांतिपूर्ण प्रदर्शन को सुरक्षा के लिए खतरे से जोड़ना गलत होगा।
अखबारों की खबरों के अनुसार मामला यह है कि प्रधानमंत्री को हेलीकॉप्टर से जाना था। अंतिम समय में फैसला बदला (क्योंकि रैली में लोग नहीं थे). दावा है कि पुलिस प्रमुख ने हरी झंडी दी और प्रधानमंत्री के नहीं पहुंचने पर दल बदल चुके अमरिन्दर सिंह ने रैली को संबोधित किया.
सवाल यह है कि पुलिस प्रमुख किसके लिए काम कर रहे थे? मुख्य मंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री? या तीनों? जब “सरकार” के तीन हिस्से होंगे तो ऐसा होने से कौन रोक सकता है? और क्यों नहीं माना जाए कि सबने मिलकर प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के लिए काम किया।
बाकी भारी तो प्रचारक ही रहेंगे। आज के अखबार देख लीजिए। और ना बाप बड़ा ना भैया सबसे बड़ा रुपैया (सत्ता) हो तो क्या कहने।
सवाल तो यह भी है कि रैली में जब लोग ही नहीं थे तो अमरिन्दर सिंह के साथ होने का क्या लाभ हुआ और रैली करने की जबरदस्ती क्यों थी। उसपर खर्चा देश का हुआ या पार्टी का? हालांकि पार्टी वाला भी देश का ही है। विदेशी तो आप लेने नहीं देते तो लेंगे क्यों?
हरेंद्र मोरल-
देश के प्रधानमंत्री को अपने देश में ही इतना डर लगता है की चंद प्रदर्शनकारियों के 15 मिनट रास्ता रोकने से ही उन्हे अपनी जान की चिंता सताने लगी। काहे के 56 इंची हैं बे…। प्रदर्शनकारियों को भी हक है अपने देश के प्रधानमंत्री क़ा रास्ता रोकने क़ा, अपनी बात रखने क़ा। बाकी प्रधानमंत्री क़ा बयान हमेशा की तरह आपदा में अवसर तलाशने वाला ही या यानि पब्लिसिटी स्टंट था। और हाँ सुरक्षा की दुहाई देने वाले ना भूलें साहेब कभी भी SPG क़ा प्रोटोकॉल तोड़कर भीड़ से हाथ मिलाने पहुंच जाते हैं।
ऋषिकेश राजोरिया-
मोदी ने एक और तमाशा खड़ा कर दिया.. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक और इवेंट कर दिया। पंजाब में फिरोजपुर की सभा रद्द करते हुए लौटे और एक अधिकारी को कह दिया कि मुख्यमंत्री चन्नी को संदेश दे देना कि मैं जिंदा लौट आया। मोदी फिरोजपुर जा रहे थे। तय रास्ता बदल दिया। सड़क मार्ग से जाते हुए हुसैनीवाला फ्लाईओवर पर 15-20 मिनट रुक गए और लौटने के बाद कह दिया कि मैं जिंदा लौट आया। अब राजनीति हो रही है। फिरोजपुर में मोदी की सभा थी। कुर्सियां खाली पड़ी थीं। लोगों में कोई उत्साह नहीं था। बठिंडा एयरपोर्ट से मोदी ने रास्ता बदला और हुसैनीवाला फ्लाईओवर पहुंच गए। वहां रास्ते पर किसानों ने रास्ता जाम कर रखा था।
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ, जब प्रधानमंत्री को इस तरह कहीं जाते समय रास्ते में रुकना पड़ा और लौटना पड़ा। नरेन्द्र मोदी देश के सोलहवें प्रधानमंत्री हैं। उनसे पहले 15 प्रधानमंत्री हो चुके हैं। किसी के साथ भी ऐसा नहीं हुआ। मोदी के साथ हुआ, क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद देश की तासीर के साथ नाता तोड़ लिया है। किसान आंदोलन को इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता, जो पंजाब से ही शुरू हुआ था। उस आंदोलन को कुचलने के लिए क्या-क्या हुआ, कौन भूल सकता है? पंजाब के किसानों ने रास्ता रोक दिया था।
अब राजनीति हो रही है। मोदी कहते हैं, मैं जिंदा लौट आया। कैसा भयानक बयान है। मोदी चाहते तो फ्लाईओवर पर रुकने के बाद रास्ता रोकने वालों के साथ बात कर सकते थे। वे मोदी को मारने के लिए नहीं आए थे। अगर मोदी ऐसा करते तो स्टार बन जाते। उन्हें फिरोजपुर की बजाय वहीं सभा कर लेनी थी। लेकिन डर। प्रधानमंत्री होने के बावजूद डर। फिर मुख्यमंत्री को संदेश पहुंचाया कि मैं जिंदा लौट आया। अगर आप इतना डरते हो तो प्रधानमंत्री क्यों बने हुए हो?
टीवी चैनल हंगामा मचाए हुए हैं कि प्रधानमंत्री का रास्ता रोक दिया। सुरक्षा में चूक हुई, वगैरह-वगैरह। वास्तविकता इससे बिलकुल अलग है। फिरोजपुर में प्रधानमंत्री को सुनने के लिए कोई उत्साह नहीं था। हजारों कुर्सियां खाली पड़ी थी। प्रधानमंत्री मोदी भी निर्धारित कार्यक्रम को बदलते हुए सड़क मार्ग से रवाना हुए थे। वे अपनी मर्जी से जा रहे थे और अपनी मर्जी से लौटे हैं। किसी ने जोर जबर्दस्ती नहीं की। प्रधानमंत्री के साथ कोई भी जोर-जबर्दस्ती नहीं कर सकता है।
इस घटना के बाद केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रेंस की। टीवी चैनलों पर भाजपा नेता तरह-तरह की बातें कर रहे हैं। पंजाब की कांग्रेस सरकार को निशाने पर लिया जा रहा है। यह लोकतंत्र में सबसे बड़ा मजाक है। प्रधानमंत्री मोदी को रास्ता रोकने वालों के साथ बातचीत करनी चाहिए थी। अगर उनमें इतना साहस नहीं है तो वे कैसे प्रधानमंत्री हैं? छप्पन इंची का सीना किस काम का? प्रधानमंत्री पूरे देश के होते हैं, किसी एक पार्टी के नहीं। अब इस मुद्दे पर जो भी हंगामा हो रहा है, वह फालतू है। प्रधानमंत्री को कोई खतरा नहीं था। वह चाहते तो पूरी सुरक्षा व्यवस्था के साथ रास्ता रोककर बैठे लोगों से बात कर सकते थे और आगे जा सकते थे।