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सियासत

सच ये है कि मोदी अब एक ब्रैंड में बदल गए हैं : राणा यशवंत

उत्तर प्रदेश से जो जनादेश है उसका चाहे जितना पोस्टमार्टम कर लें, खुद बीजेपी के लिये भी ये समझ पाना मुश्किल है कि ऐसा हुआ कैसे! लेकिन सुनामी आई और इसने कई जकड़बंदियों, राजनीतिक रिवाजों, फरेब के हवाईकिलों और बेहूदगियों-बदज़ुबानियों को ध्वस्त कर दिया. सामाजिक न्याय के नाम पर जातियों को अपनी जागीर बनानेवाले नेताओं के लिये ये जनादेश एक सबक है. कानून-व्यवस्था और सड़क-बिजली जैसी बुनियादी जरुरतों की जगह एक्सप्रेस-वे और स्मार्ट फोन देने की राजनीति के लिये ये जनादेश एक सबक है.

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दलितों के नाम पर लगातार मालदार-महलदार होते जाने और हाशिए पर खड़े समाज के भविष्य को बाबा साहेब और हाथियों की मूर्तियों से जकड़ देने के खतरनाक खेल के लिये ये जनादेश एक सबक है. और यही सारे सबक मोदी या फिर यूपी की नई सरकार के लिये संदेश भी है. संदेश, विरोध की बेलगाम-बदजुुबान राजनीति करनेवाले लोगों और किसी पार्टी या विचारधारा (वैसे ये बस कहने के लिये है) की पट्टी बांधे पत्रकारों के लिये भी है.

सच ये है कि मोदी अब एक ब्रैंड में बदल गए हैं. बाजार में आप कोई उत खरीदते हैं और समान तरह के उत्पादों के बीच सबसे ज्यादा अगर किसी उत्पाद पर विश्वास करते हैं तो सिर्फ इसलिए कि आप इस्तेमाल करते करते, विज्ञापनों और लोगों की बातचीत के जरिए ये भरोसा कर लेते हैं कि यही उत्पाद सबसे विश्वसनीय है. फिर वो ब्रांड हो जाता है. मोदी एक ब्रांड हो गए हैं. लोगों को उनपर भरोसा हो चला है. इसीलिए अगर वो कहते हैं कि नोटबंदी मैंने सिर्फ इसलिए की कि ये जितने कालेधन वाले और हराम की कमाई कर कोठी-अटारी भरनेवालों को सबक सिखाऊं तो लोग तालियां बजाते हैं. साठ दिन तक हलकान रहने, लाइन में खड़ा होकर परेशान रहने के बावजूद उबाल नहीं पैदा होता.

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जन-धन खाते खुलवाने के पीछे गरीब से गरीब को सरकार की योजनाओं से जोड़ने और बीमा से लेकर मुआवजे तक से सीधे जोड़ने की बात मोदी कहते हैं तो लोगों को लगता है कि कुछ नया तो ये आदमी कर ही रहा है. श्मशान कब्रिस्तान की बात मोदी जब करते हैं और कहते हैं कि तुष्टिकरण की नीति नहीं चलनी चाहिए, सबके साथ बराबर का व्यवहार होना चाहिए तो सेक्लूयरिम के नाम पर बहुसंख्यकों को हाशिए पर डालने की राजनीति लोगों को समझ में आने लगती है. ऐसा नहीं कि कोई दूसरा नेता इन बातों को नहीं कहता है या फिर नही कहा है, लेकिन मोदी पर लोग भरोसा सिर्फ इसलिये कर रहे हैं कि उन्होंने खुद को एक ब्रैंड में बदल लिया है. ये एक प्रक्रिया है जो धीरे-धीरे चलती रहती है और लोगों के दिल-दिमाग में बदलाव आता रहता है.

परसेप्शन और ब्रैंडिग की फिलॉसोफी ही यही है. आप अपनी बात को किस तरह से रखते हैं, लोगों की जरुरत और उम्मीदों पर कितना खरा उतरते हैं और मुकाबले में चल रही संस्थाओं-मान्यताओं को कितना ध्वस्त करते हैं. मोदी तीनों मोर्चों पर लगातार काम करते रहे हैं. चाहे विदेशों में जाकर बड़े बड़े इवेंट खड़ा करना हो, म्यांमार में अंदर जाकर उग्रवादियों के ठिकानों को ध्वस्त करना हो, पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के कैंप खत्म करना हो, उज्ज्वला योजना के जरिए घर घर तक गैस सिलेंडर पहुंचाना हो, बिचौलियों का धंधा बंदकर हजारों करोड़ बचाने का एलान करना हो, जनता का पैसा लेकर बैठे नेताओं-पूजीपतियों को ना छोड़ने का शंखनाद करना हो, मैं आपका ऐसा प्रधानसेवक हूं जिसने आजतक आराम नहीं किया- ये याद दिलाना हो और ऐसी दर्जनों बातें आम, आदमी के दिमाम में मोदी के लिये एक अलग छवि तैयार करती रहीं. मोदी को फोकस कर नारे गढने और विज्ञापन तैयार करने की योजनाएं भी इस इमेज को मजबूत करती हैं. पिछले पौने तीन साल में मोदी और उनकी टीम ने नरेंद्र दामोदर दास मोदी की पूरी इमेज की जबरदस्त ब्रैंडिग कर दी.

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आप क्या कहते हैं ये समझना बड़ा जरुरी है और बारीकी से समझना होगा. मोदी जब कहते हैं कि मेरा मालिक कोई नहीं है, मुझे किसी को जवाब नहीं देना है- मेरे मालिक आप हैं, मैं आपको जवाब देने के लिये हूं तो लोग गदगद हो जाते हैं. बनारस में वे कहते हैं मैं आपके दर्शन करने आया हूं तो लोगों के दिल पसीजता है. रैलियों में मोदी याद दिलाते हैं कि मैं यहां तब आया था और उस समय इतनी भीड़ थी, आज इतना बदला है भाई- कुछ होनेवाला है. ऐसी बातें चर्चा में आती है कि देखो पीएम होने के बाद भी कितना ध्यान रहता है इस आदमी को. दरअसल यह काम टीम करती है और लोगों में ऐसी ही बातों की चर्चा चलवाने के लिये बनाती है ताकि ब्रैडिंग की प्रक्रिया चलती रहे.

लोगों की नेताओं, राजनीति औऱ शासन के बारे में राय बदलती रहे. इन तमाम मोर्चों पर देश के दूसरे नेता मोदी से कोसों दूर दिखते हैं. नतीजा ये है कि आज लालू- मुलायम की लाठी, लठैतों और जाति की जहरीली राजनीति लोगों को रास नहीं आ रही क्योंकि नौजवान ६५ फीसदी हैं और ये नए नजरिए की पीढी है. अखिलेश और राहुल नौजवान जरुर हैं लेकिन नौजवानों की पसंद-जरुरतों पर मोदी ज्यादा फिट बैठते हैं. वे साफ सुथरी राजनीति, करप्शन फ्री सिस्टम, बहाली और तरक्की की पारदर्शी व्यवस्था, जवाबदेह नौकरशाही और दुनिया में हिंदुस्तान की साख मजबूत करने की जो बात करते हैं- वह नौजवानों को रास आती है.

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यह पीढी हुल्लड़बाजों-लफंगो की भीड़ लेकर चलनेवाले और सनसनी पैदा करनेवाले काफिलों पर इतरानेवाले नेताओं को अब खारिज करने लगी है. अब डिलिवरी चाहिए, डेडिकेशन चाहिए और यही मोदी के लिये चुनौती है जिसका अंदाजा उन्हें बाकायदा है. मोदी के आसपास कोई नेता आज की तारीख में साख और सलीके के नजरिए से दिखता है तो वो नीतीश कुमार हैं लेकिन उनमें वो डायनामिज्म नहीं है जो मोदी में है. मोदी रिस्क लेते हैं और यह लोगों को पसंद आता है. बनारस में बीजेपी की हालत पतली थी. श्यामदेव राय चौधरी को टिकट नहीं देने का मामला जिले में बीजेपी नेतृत्व पर सवाल उठा रहा था. मोदी ने अपने गढ मे तीन दिन ताकत झोंक दी और नतीजा ये कि सभी सीटें निकाल गए. उत्तर प्रदेश में २१ रैलियों के जरिए मोदी १३२ सीटों तक पहुंचे और इनमें ९६ सीटें बीजेपी जीत ले गई.

मायावती लगातार कहती रहीं कि मुसलमान बीेएसपी को वोट दें और उन्होंने १०० मुसलमान उम्मीदवार उतारे भी. दूसरी तरफ अखिलेश ने कांग्रेस से हाथ ही इसलिए मिलाया कि मुस्लिम वोट को बीजेपी के खिलाफ लामबंद किया जा सके. लेकिन हुआ ये कि वैसी १३४ सीटें जिनपर मुस्लिम मतदाता २० फीसदी या फिर उससे ज्यादा है, बीजेपी करीब सौ सीटें जीत गई. कुछ लोगों की राय में मुस्लिम महिलाओं ने मोदी का साथ तीन तलाक पर सरकार के विरोध के चलते दिया. उनका करीब १५ फीसदी वोट बीजेपी को मिला. लेकिन वजह ये नहीं है. वजह ये है कि जहां मुस्लिम ज्यादा है, वहां मोदी और उनकी टीम ने तुष्टीकरण की नीति को हवा दी. लगे हाथ इस बात को भी मजबूती से रखा कि विरोधियों ने आजतक बहुसंख्यकों के आगे अल्पसंख्यकों को अहमियत दी. तुष्टीकरण, ऐसा हथियार है जिसको बीजेपी कथिक सेक्यूलरिज्म के खिलाफ इस्तेमाल कर बाकी दलों को बेनकाब करना चाहती है.

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दूसरी तरफ वो मोदी को सबका साथ-सबका विकास के नारे-वादे के साथ समूचे हिंदुस्तान के नायक के तौर पर स्थापित करना चाहती है. मोदी का विश्वनाथ से सोमनाथ की पूजा अर्चना और गंगा से लेकर गो रक्षा के जयघोष को कवरेज देने-दिलवाने का इंतजाम, एक खास तरह की लेकिन बहुत मजबूत धार्मिक भावना से मोदी को जोड़े रखने और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्दांत को सही ठहराने की बड़ी योजना का हिस्सा है. जब आप मोदी की डिलिवरी वाले गवर्नेंस और करप्शनलेस ट्रांसपैरेंसी वाले सिस्टम के आगे किसी को खड़ा करेंगे तो वो छोटा और फीका लगेगा. यहां केजरीवाल जैसे आंदोलनकारी नेता, उनका निगेटिव कैंपेन और हर बार रोने वाली राजनीति धीरे धीरे खारिज होने लगेगी.

आज मायावती की पूरी राजनीति के सामने अंधेरा है, अखिलेश के चमकने की उम्मीदें फिलहाल धूमिल हो चुकी हैं, राहुल गांधी ५ साल में २४ चुनाव हारकर समय से पहले की खंड-खंड खंडहर हो चुके हैं. फिर होगा ये कि मोदी के सामने कोई विरोधी नेता ही नहीं होगा. इसी लिहाज से ऊपर मैंने नीतीश कुमार का नाम लिया क्योंकि उनकी ही राजनीति कहीं ना कहीं मोदी से मेल खाती है. उमर अबदुल्ला अगर कहते हैं कि अब आप २०१९ नहीं २०२४ की तैयारी कीजिए तो ये बात बेमानी भी नहीं है.

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मोदी ने हिंदुस्तान में जिसतरह की राजनीति शुरु की वो परंपरागत राजनीति से अलग दिखने लगी, डिलिवरी और ट्रांसपैरेंसी के जोर से शासन की अलग इमेज खड़ा करनी शुरु की और स्वच्छता अभियान से लेकर उज्जवला योजना ने सरकार का सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना के एक नया चेहरा गढा, जैसा पहले नहीं दिखा. ये सब मोदी को एक क्रेडिबल ब्रैंड के तौर पर खड़ा करते जा रहे हैं. लेकिन इसी के साथ मोदी के सामने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की चुनौती भी बहुत बढ गई है. अगर मोदी खरा नहीं उतर पाए तो राजनीति की नई संस्कृति का मिसकैरिज ठीक वैसे ही हो जाएगा जैसा केजरीवाल के जरिए पैदा हुई विकल्प की राजनीति का हुआ।

इंडिया न्यूज चैनल के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. देशद्रोही

    March 15, 2017 at 9:54 am

    क्या चारण-गान है..!

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