आज के जमाने में लाभ पाने के लिए ना जाने कौन कौन से खेल किए जाते हैं. इस समय भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सिक्का चल रहा है. तो जाहिर है कि लाभ उनके नाम पर ही मिल सकता है. एक पूर्व पत्रकार हैं सुदेश वर्मा. उनका खुद का पब्लिशिंग हाउस भी है. भाजपा के दुर्दिन के दौर में वे इस पार्टी के आलोचक भी रहे हैं, लेकिन संभावनाएं सूंघने में माहिर झारखंड निवासी सुदेश वर्मा ने मोदी पर एक किताब लिख डाली – नरेंद्र मोदी- द गेम चेंजर.
मोदी पर लिखी किताब का तीसरी बार विमोचन करते केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली एवं प्रकाश जावड़ेकर
खैर, किताब लिखना बड़ा सवाल नहीं है. बड़ा सवाल यह है कि इसी एक किताब का इन्होंने तीन पर विमोचन करा डाला. दो बार तो ऐसे ही तीसरी बार किताब का कवर भी चेंज कर दिया गया. पहली बार इस किताब का विमोचन फरवरी 2014 में भाजपा नेता इंद्रेश कुमार के हाथों कराया. इसके बाद 11 मई को ट्विटर पर लिखा कि उनकी यह किताब बेस्ट सेलर बन गई है. इसके बाद इसी कवर के साथ किताब को विमोचन 20 मई 2014 को आस्ट्रेलिया में कराया.
इतने से भी सुदेश कुमार का मन नहीं भरा तो उन्होंने बीते 29 अगस्त 2014 को दिल्ली के ताज होटल में फिर से इसी किताब की लांचिंग रखी. इस बार लांचिंग के लिए मेहमान के तौर बुलाए गए भाजपा के वरिष्ठ नेता तथा केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली एवं प्रकाश जावडेकर. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि यह सारी मेहनत यूं ही नहीं की जा रही है, बल्कि इसके पीछे का खेल आईआईएमसी तक का पहुंचने की है. वैसे असलियत चाहे जो हो लेकिन एक ही किताब का कवर बदलकर तीन बार विमोचन लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है.
नीचे सुदेश वर्मा के बारे उनके द्वारा उपलब्ध कराई कई जानकारी….
About Sudesh Verma
I joined journalism by choice, left it midway to do something more creative, but did not know that fate had willed differently. Meandered through social activism and politics and became a part-time writer on Indian society and politics. Destiny had something else in store for me and destiny pulled me back. One fine day of January 2013, I found myself in the thick of news once again. Yes, I took up the challenge of becoming the news editor of NewsX Television Channel.
I was a senior political analyst with the British High Commission for three years 2005-2008. The fat salary, intelligent colleagues and a flexible job failed to retain me there for long. I realized I was becoming a part of their bureaucracy. My existence there was in stark contrast to the world outside. I always dream of doing something to elevate my existence and make life more meaningful for myself and the country.
Influenced by the ideal of becoming a factor for change, I became a social-political activist and led Youth 4 Democracy movement till May 2012. The influence of Anna movement and his plain speak had an immense impact. My life in activism interspersed with my tenure as Managing Director of Vitasta Publishing Private Ltd.
इंसान
February 14, 2015 at 3:07 pm
सेवानिवृति के बहुत पहले मैं लगभग पैंतालीस वर्ष पुस्तकालय एवं सूचना प्रबंधन में कार्यरत रहा हूँ| यह सुख-दुःख वार्ता निस्संदेह पुस्तक समीक्षा नहीं है क्योंकि यहाँ पुस्तक की विषय-वस्तु पर कोई विश्लेषणात्मक जानकारी नहीं है| हाँ, सुदेश वर्मा को बीच चौराहे सड़क पर खड़ा कर उनसे पंजा लड़ा मन की भड़ास अवश्य निकाली जा रही है|