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सियासत

पत्रकारिता की जड़ों पर मोदी सरकार के प्रहार

याकूब मेमन की फांसी पर कवरेज को लेकर तीन बड़े समाचार चैनलों को नोटिस जारी करने, और त्रिपुरा का राज्यपाल तथागत राय द्वारा याकूब के जनाजे में शामिल लोगों को आतंकवादी कहने के बाद केंद्र सरकार ने पत्रकारिता की जड़ों पर ही प्रहार करना शुरू कर दिया है। अब सरकार चाहती है कि आतंकवाद से जुड़े मुद्दे पर कैसी रिपोर्टिग करनी है, यह सरकार पढ़ाए और मीडिया संस्थान उसके आज्ञाकारी शिष्य बनकर सरकार के आदेश मानें।

<p>याकूब मेमन की फांसी पर कवरेज को लेकर तीन बड़े समाचार चैनलों को नोटिस जारी करने, और त्रिपुरा का राज्यपाल तथागत राय द्वारा याकूब के जनाजे में शामिल लोगों को आतंकवादी कहने के बाद केंद्र सरकार ने पत्रकारिता की जड़ों पर ही प्रहार करना शुरू कर दिया है। अब सरकार चाहती है कि आतंकवाद से जुड़े मुद्दे पर कैसी रिपोर्टिग करनी है, यह सरकार पढ़ाए और मीडिया संस्थान उसके आज्ञाकारी शिष्य बनकर सरकार के आदेश मानें।</p>

याकूब मेमन की फांसी पर कवरेज को लेकर तीन बड़े समाचार चैनलों को नोटिस जारी करने, और त्रिपुरा का राज्यपाल तथागत राय द्वारा याकूब के जनाजे में शामिल लोगों को आतंकवादी कहने के बाद केंद्र सरकार ने पत्रकारिता की जड़ों पर ही प्रहार करना शुरू कर दिया है। अब सरकार चाहती है कि आतंकवाद से जुड़े मुद्दे पर कैसी रिपोर्टिग करनी है, यह सरकार पढ़ाए और मीडिया संस्थान उसके आज्ञाकारी शिष्य बनकर सरकार के आदेश मानें।

प्रतिष्ठित समाचारपत्र देशबंधु के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित खबर के मुताबिक केंद्र सरकार चाहती है कि पत्रकार किसी भी तरह आतंकवाद से जुड़ी विचारधारा का पक्ष न लें। भावी पत्रकारों के लिए दिशा-निर्देश जारी कर अभी से घुट्टी पिलाई जा रही है। इस संबंध में यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों को आदेश जारी किया है। इसमें कहा गया है कि जनसंचार और पत्रकारिता विभाग के छात्र-छात्राओं को बताया जाए कि आतंकवाद से जुड़े मुद्दे पर कैसी रिपोर्टिग करनी है। गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलसचिव एच.एन. चौबे का कहना है कि यूजीसी का निर्देश मिला है। पत्रकारिता विभाग को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे देश व समाज में आतंकवाद के खिलाफ छात्रों का उचित मार्गदर्शन करें। ग्रांउड लेवल पर इसके लिए जो संभव हो व्यवस्था करेंगे।

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अब मोदी सरकार भावी पत्रकारों को सिखाएगी, आतंकवाद पर कैसी हो रिपोर्टिग- नमस्ते सदा वत्सलेयूजीसी ने पहली बार देश के सभी विश्वविद्यालयों को आतंकवाद के मामले में विशेष दिशा निर्देश जारी किया है। गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी व बिलासपुर यूनिवर्सिटी प्रशासन को मिले पत्र में कहा गया है कि जनसंचार एवं पत्रकारिता की शिक्षा देने वाली संस्थाएं ऐसे तत्वों से बचें, जो आतंकवाद के एजेंडे को आगे बढ़ा सकते हों।

यूजीसी की सिफारिश प्रशासनिक सुधार आयोग की आठवीं रिपोर्ट के अनुरूप है। यूजीसी ने एक अलग पत्र में देशभर के शिक्षण संस्थानों से कहा है कि वे अपने पाठ्यक्रमों में जनसंचार के साधन, निरस्त्रीकरण और रसायन शास्त्र के शांतिपूर्ण इस्तेमाल जैसे मुद्दों को पाठ्यक्रम में शामिल करें। स्टूडेंट महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय संधियों से अनभिज्ञ हैं। यूजीसी ग्राउंड लेवल पर आतंकवाद के मुद्दे पर एक समान सोच चाहता है। इसीलिए भविष्य के पत्रकारों को अभी से आतंकवाद पर पाठ पढ़ाने की तैयारी है।

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बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जी.डी. शर्मा के मुताबिक, प्रशासन संबद्ध कॉलेजों को भी इस बारे में दिशा निर्देश जारी करने जा रहा है। इससे कॉलेज पत्रकारिता के अलावा दूसरे पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों को इस मुद्दे से जोड़ा जा सके।

उन्होंने कहा, “आतंकवाद के एजेंडे पर यूजीसी ने विशेष दिशा-निर्देश दिया है। हालांकि हमारे यहां अभी पत्रकारिता विभाग संचालित नहीं है। फिर भी कॉलेजों को इसकी सूचना पहुंचा दी जाएंगी।”

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यूजीसी के फरमान का असर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग और कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय में देखने को मिलेगा। इससे आतंकवाद के एजेंडे को बढ़ावा देने वाली सामग्री से बचने का प्रयास किया जाएगा। इस फरमान को लेकर जानकारियां सार्वजनिक नहीं होने के चलते इस पर वरिष्ठ पत्रकारों की कोई प्रतिक्रिया अब तक सामने नहीं आई हैं।

एक शोध में कहा गया है कि सेक्स मैसेजिंग रूमानी रिश्तों में यौन संतुष्टि सुनिश्चित करने में कारगर सिद्ध हो रही है। सीएनएन में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक फिलेडेल्फिया के ड्रेक्सल विश्वविद्यालय के शोधकताओं के अनुसार, एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में पाया गया (American Psychological Association’s website.) कि 10 में से आठ व्यक्ति अपने साथियों या दोस्तों को वयस्क संदेश भेजते हैं। अध्ययन की मुख्य शोधकर्ता एमिली स्टैस्को के अनुसार, “यौन स्वास्थ्य पर इसके संभावित प्रभाव के कारण मौजूदा रूमानी और यौन रिश्तों में वयस्क संदेश द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका की जांच आवश्यक थी।” सर्वेक्षण के अनुसार, वयस्क संदेश से अधिक संतोष उन लोगों को मिला, जो किसी के साथ रिश्ते में थे। लेकिन सर्वेक्षण में शामिल जो लोग (26 प्रतिशत) किसी रिश्ते में नहीं थे, उनकी यौन संतुष्टि का स्तर काफी कम था। इस सर्वेक्षण में अमेरिका के 18 से 82 वर्ष की आयु वर्ग के 870 लोगों ने हिस्सा किया।

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हस्तक्षेप से साभार

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0 Comments

  1. Gopalji Journalist

    August 13, 2015 at 9:06 am

    देश आतंकवाद के ज़ख्मो के दर्द को आज भी झेल रहा है। हज़ारों लोग इसमें मारे जा चुके हैं, लाखों ज़ख़्मी हुए और अरबों रुपयों का नुक्सान झेला है, आज भी झेल रहा है। लेकिन बिकाऊ चैनल भड़काऊ भाषण देने वालों और देशद्रोहियों को खुला न्योता देते हैं, सूचना क्रान्ति का खुला दुरपयोग किया जाता है, देश की सुरक्षा को ताख पर रख अपनी टीआरपी को सर्वोपरी रखा जाता है। जिन परिवारों ने इसके दंश को झेला और आज भी उसकी असहनीय पीड़ा से कराह रहे हैं। याक़ूब देशद्रोही का खुला समर्थन किया गया, पूरे देश और दुनिया ने देखा। लेकिन आज भी तथाकथित लोग सैक्युलर के मुखौटे की आड़ में ज़हर उगल रहे हैं।
    फिर भी कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी इन चैनलों और अखबारों का समर्थन कर रहे हैं जो देश की सुरक्षा और विकास को खुली चुनौती है, हर भारतीय के मूह पर तमाचा है।
    वन्दे मातरम।

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