वैसे तो मोदी जी की विदेश यात्रायें आपका सुख चैन खबर बाखबर सब नियंत्रित कर लेती हैं, आप चाह कर भी मोदीमय होने से बच ही नहीं सकते। सारे चैनल उनका ही मुखड़ा दिखाते मिलते हैं और सारे अख़बार उन्हीं पर न्योछावर। सोशल मीडिया पर भी वही छाये रहते हैं पक्ष हो या विपक्ष! पर इस बार यह सब होते हुए भी कुछ और भी है जिसकी परदेदारी तो है पर वह परदे में समा नहीं रहा! इस बार लंदन में मोदी का भारी विरोध हुआ और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में और सोशल मीडिया में उसने खासी हलचल पैदा की।
यह तब हुआ जब डोमेस्टिक पिच पर वे बुरी तरह से बिहार हार कर लंदन पहुँचे थे तो यहाँ भी एक बड़ा समाज उनके विरोध की परदा फाड़ कर आती ख़बरों में रुचि दिखा रहा था।
मोदी जी के विरोध में इस बार सबसे बड़ी संख्या नेपालियों की है फिर सिक्ख मुसलमान वामपंथी लिबरल लोग हैं। नेपाल में ज़रूरी वस्तुओं के ब्लाकेड ने बड़ी बेचैनी पैदा कर रक्खी है। उसकी प्रतिध्वनि वहाँ सुनाई पड़ी। गार्डियन के नेतृत्व में लंदन में बसे साउथ एशियन इंटेल्कचुअल्स का बड़ा हिस्सा मोदी के २००२ में गुजरात दंगों को लेकर अनवरत आलोचक की भूमिका में है। इस बार उसे देश में लेखकों कलाकारों विज्ञानियों के पुरस्कार लौटाओ आन्दोलन की ऊष्मा भी मिल गई। नतीजे में करीब २५० लेखकों पत्रकारों कलाकारों सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक ख़त जारी कर विरोध को पंख दे दिये।
मोदी के पास ब्रिटिश सरकार को ललचवाने का काफ़ी कुछ था। रफायेल के मामले में फ़्रांस से पिछड़ गये ब्रिटिशर्स इस बार कोई चूक नहीं करने वाले थे। संयुक्त संसद में भाषण, रानी के साथ लंच और कैमरून के आउट हाउस में डिनर रख कर अंग्रेज़ पूरी बिसात बिछा चुके हैं।
स्मार्ट सिटीज के पैकेज के बड़े हिस्से को हड़पने को आतुर अंग्रेज़ डिफ़ेन्स में भी नज़र गाड़े हुए हैं जिसमें अमरीका इज़रायल और फ़्रांस बड़ा हाथ मार रहे हैं। लंदन विज़िट में टाटा ग्रुप मोदी का अगुआ रहा। जैगुआर कारख़ाने में मोदी का विज़िट तय है ही। टाटा ने इस डील में बहुत हाथ जलाया पर अब यह कंपनी चल पड़ी है। दोनों प्रधानों ने इसका नाम लिया।
“वेंबले”! फ़ुटबॉल के इस मैदान में खचाखच भीड़ को मेसमेराइज करने के कार्यक्रम से मोदी अपने लंदन भ्रमण का समापन करेंगे। हमारे चैनल कई दिनों से इस मैदान को इतने एंगल से दर्शकों को परोस चुके हैं कि चप्पा चप्पा लोगों को पता है।
इंग्लैंड के करीब १५ लाख भारतीयों के उस तबके के लिये यह एक अलग इवेंट है जो टूरिस्ट मोड में यू के में रहता है और अंग्रेज़ों के लिये कौतूहल जिनके नेताओं की ज़िन्दगी में इतनी बड़ी भीड़ एक जगह भाषण सुनने के लिये मिलना किसी अजूबे से कम नहीं।
लेखक शीतल पी. सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं. वे चौथी दुनिया की लांचिंग टीम के हिस्सा रहे हैं. अमर उजाला से पत्रकारीय करियर शुरू करने के बाद इंडिया टुडे में भी काम किया. इन दिनों वे बतौर सोशल मीडिया जर्नलिस्ट एक्टिव हैं. शीतल पी. सिंह से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
sanjib
November 14, 2015 at 9:53 am
Sheetal ji ne badhiya likha hai
jai jai
November 15, 2015 at 12:56 am
सबके अपने विश्लेषण अपने विचार |