वाह मोदी जी… वाह! क्या खूब तमाशा किया… जनता से मांगे 50 दिन और 20वें दिन ही काले कुबेरों की खोल दी लॉटरी…
मोदीजी, देश की जनता के साथ मैंने भी आपको सलाम ठोंका था… 8 नवम्बर को आपने देश की जनता को संबोधित करते हुए यह दृढ़ घोषणा की थी कि रात 12 बजे के बाद काले कुबेरों का कालाधन कागज यानि रद्दी हो जाएगा। आपने देश की ईमानदार जनता को कहा कि वे घबराए नहीं और अपना सफेद धन जो हजार और पांच सौ के नोट में है उसे 30 दिसम्बर तक बैंकों में जमा कर दें। आजाद भारत में नोटबंदी का यह अब तक का सबसे कठोर कदम आपने उठाया, जिसका जनता ने तमाम परेशानियों के बावजूद स्वागत ही किया और इस मामले में विपक्ष भी एक्सपोज हो गया। इसके अगले ही दिन गाजीपुर की सभा में आपने भावुक होते हुए नोटबंदी से परेशान हो रहे आम आदमी की पीड़ा को जाहिर करते हुए 50 दिन मांगे और उसके बाद एक साफ-सुथरा देश देने का वायदा भी किया।
मगर ये अब आपने क्या किया और 20वें दिन ही काले कुबेरों की लॉटरी खोल डाली… जिस कालेधन को आपने कागज की रद्दी बताया और उसे नदियों में बहाने की बात भी चिल्ला-चिल्लाकर कही उसी कालेधन में 50-50 प्रतिशत की भागीदारी कर ली। जब आपने आय घोषणा योजना में ही कालेधन वालों को मौका दे दिया था कि वे 45 प्रतिशत टैक्स जमा कर अपना चाहे जितना भी कालाधन हो उसे घोषित कर दें। 1 जून से शुरू हुई यह योजना 30 सितम्बर को समाप्त हो गई, जिसमें 65 हजार करोड़ का कालाधन उजागर हुआ। बावजूद इसके कई गुना अधिक कालाधन मौजूद रहा, जिसके चलते आपने नोटबंदी का ऐतिहासिक कदम उठाया और उसकी घोषणा में भी आपने स्पष्ट कहा कि पहले मौके दे दिए गए और उसमें भी काले कुबेर नहीं सुधरे तो अब उन्हें छोड़ूंगा नहीं और उनका पूरा कालाधन मिट्टी हो जाएगा और आजादी के बाद से जरूरत पड़ी तो खातों की जांच कराऊँगा, मगर आपने तो 20वें दिन में ही पलटी मार दी और मिट्टी हो रहे कालेधन को फिर सोना बना डाला।
20 दिनों से आम आदमी अपने सफेद धन को पाने के लिए कतार में लगा है और शादी-ब्याह से लेकर तमाम परेशानियों को इसीलिए भोग रहा है, ताकि काले कुबेरों को सबक मिल सके, लेकिन आपने तो काले कुबेरों की लॉटरी निकालकर उस आम जनता के साथ विश्वासघात किया, जो आप पर भरोसा कर अपना काम-धंधा दाव पर लगाकर कतार में खड़ी रही। अभी कई आपके भक्त नई दलील देने लगे कि इससे सरकार को 50 प्रतिशत राशि मिलेगी, जो गरीबों के कल्याण पर खर्च होगी, लेकिन अगर आप ये 50 प्रतिशत कालाधन भी सफेद नहीं करते तो सरकार को 100 प्रतिशत ही फायदा हो जाता, क्योंकि रिजर्व बैंक को उतने कालेधन की देनदारी नहीं चुकाना पड़ती। जितने कालेधन के नोट 30 दिसम्बर तक जमा नहीं होते, उतना शत-प्रतिशत मुनाफा आपकी सरकार को ही होता, जिसका पूरा उपयोग गरीबों के हित में हो सकता था, मगर अब तो इस राशि में से आधा पैसा फिर काले कुबेरों के पास पहुंच गया। भले ही यह पैसा 25-25 प्रतिशत की दो किश्तों में पहुंचे, मगर कागज होने, नदियों में बहने या जलने से तो बच ही गया। यानि देश को लूटते रहो और बार-बार माफी योजना का लाभ लेते रहो… काले कुबेरों के साथ 50-50 प्रतिशत की भागीदारी कर मोदी सरकार ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है, क्योंकि विपक्ष इस मुद्दे को उठाएगा जरूर।
हालांकि यह भी सच है कि कालेधन के इस कारोबार में सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष भी शामिल रहा है, क्योंकि चुनाव में तमाम राजनीतिक दल जो करोड़ों-अरबों खर्च करते आए हैं वह कालाधन ही रहता है। लिहाजा नेताओं के साथ-साथ तमाम कारोबारी, ठेकेदार और मीडिया मुगल भी मोदी जी के इस फैसले के साथ रहेंगे, क्योंकि सभी को अपना कालाधन 30 दिसम्बर तक बचाना है और इसकी जुगाड़ में वे लगे रहे और अब तो सरकार ने ही उन्हें आधा कालाधन सफेद करने की योजना दे दी। दरअसल नोटबंदी का पूरा फैसला ही गलत साबित हो गया। इसकी न तो तैयारी की गई और न ही इसे रोकने के पुख्ता उपाय किए गए। मोदी जी भले ही सभाओं में चिल्ला-चिल्लाकर ये कहें कि मैंने कालाधन रखने वालों को 72 घंटे भी नहीं दिए, जबकि हकीकत यह रही कि उन्होंने पहले 51 दिन दिए और उसके बाद 20वें दिन में ही आयकर कानूनों में संशोधन ले आए, जिसके चलते कालाधन उजागर करने वालों को 50 प्रतिशत टैक्स लेकर उसका बचा 50 प्रतिशत कालाधन सफेद दो किश्तों में कर दिया जाएगा।
अभी कई बीजेपी समर्थक और साथ-साथ चार्टर्ड अकाउंटेंट ये दलील दे रहे हैं कि इसमें 25 प्रतिशत राशि ही अभी सफेद होगी और शेष 25 प्रतिशत राशि 4 साल के बाद मिलेगी। लिहाजा ब्याज-बट्टे का नुकसान चार साल तक उठाना पड़ेगा, लेकिन यह दलील इसलिए बोगस है, क्योंकि भले ही चार साल बाद 25 प्रतिशत राशि मिले, कम से कम मूल पूंजी तो उतनी सुरक्षित रहेगी। अभी तो शत-प्रतिशत यानि 100 फीसदी कालाधन ही कागज होने जा रहा था। रहा सवाल ब्याज-बट्टे का तो बोरों में भरा कालाधन, घरों, दफ्तरों, गोदामों या लॉकरों में छुपाया कालाधन जो कि कैश के रूप में है उसे ही सरकार ने 500 और 1000 रुपए के नोट के रूप में बंद किया है। यह कालाधन बैंकिंग सिस्टम से बाहर है इसलिए इस पर वैसे भी ब्याज नहीं मिलता और इस कालेधन का उपयोग लोगों ने हुंडी-चिट्ठी पर कर रखा था और बदले में ढाई-तीन सैंकड़े का ब्याज कमाते रहे, लेकिन यह ब्याज भी कालेधन के रूप में ही ऊपर से मिलता है। इतना ही नहीं अभी कालेधन पर रोक की घोषणा के साथ ही ताबड़तोड़ लोगों ने सोना लगभग दो गुने मूल्य पर खरीद लिया।
सोने की खरीदी भी इसीलिए की गई कि कागज होने से बेहतर है कि सोना ले लिया जाए, जो भविष्य में काम ही आएगा। प्रॉपर्टी के साथ-साथ सोने या अन्य कारोबार में निवेश ही कालाधन इसीलिए किया जाता है ताकि भविष्य में काम आ सके। ऐसे में 25 प्रतिशत राशि अगर 4 साल बाद मिलती है तो भी कोई नुकसान नहीं है। कालेधन पर रोक के साथ यह दलील भी दी गई थी कि इससे जाली नोट के अवैध धंधे पर चोंट पहुंचेगी और नक्सलवादियों से लेकर आतंकवादियों के जाली नोट जहां खत्म होंगे, वहीं उनके पास जमा कालाधन भी कागज हो जाएगा, लेकिन अब 50 प्रतिशत टैक्स देकर नक्सलवादियों और आतंकवादियों का भी कालाधन आधा तो सफेद हो ही जाएगा, क्योंकि उन्हें जिस नेटवर्क के जरिए ये धन मिलता है वह नेटवर्क बड़ी आसानी से इस योजना का लाभ लेकर अपना आधा कालाधन सफेद करवा लेगा। जब नोटबंदी लागू की गई थी तब रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह बताया था कि देश में लगभग साढ़े 14 लाख करोड़ मूल्य के 500 और 1000 रुपए के नोट हैं, जिन्हें चलन से बाहर किया गया है।
मोदी सरकार को ये अनुमान था कि इसमें से कम से कम 5 लाख करोड़ रुपए ऐसे होंगे जो वापस बैंकों में जमा नहीं होंगे। यानि यह कालाधन पूरी तरह से नष्ट हो जाता, मगर अब इसमें से आधा धन फिर सफेद किया जा रहा है। अभी 20 दिनों में ही बैंकों में साढ़े 8 लाख करोड़ रुपए मूल्य के पुराने नोट जमा हो चुके हैं। दरअसल यह राशि लोगों ने कई तरह की जुगाड़ आजमाकर बैंकों में जमा कर दी है। इनमें बचत खातों के अलावा करोड़ों जन धन खातों का भी इस्तेमाल किया गया। मोदी सरकार ने गरीबों के लिए देशभर में जन धन खाते बैंकों से जीरो बैलेंस पर खुलवाए थे। ऐसे 25 करोड़ खाते खोले गए ताकि आधार कार्ड से इन खातों को जोड़कर सरकारी सब्सिडी और अन्य योजनाओं का लाभ गरीबों को दिया जा सके, लेकिन नोटबंदी के चलते 8 करोड़ से अधिक जन धन खातों में 21 हजार करोड़ से ज्यादा का कालाधन जमा हो गया। इससे सरकार के होश उड़ गए, क्योंकि इतने खातों की जांच कराना संभव नहीं है और अगर नोटिस भी जारी होते हैं तो बचत खाताधारकों से लेकर जन-धन खातों के गरीब परिवार भड़क जाएंगे, क्योंकि इन खातों के एवज में उन्हें भी 20 से 25 प्रतिशत पैसा कालाधन जमा कराने वाला दे रहा है। ऐसे में इन खातों की जांच मोदी सरकार के लिए बूमरेंग साबित होगी और तमाम गरीब भड़क जाएंगे। कुल मिलाकर नोटबंदी की यह योजना पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई है। बदले में जनता को कतारों में लगना पड़ा और देशभर का कारोबार अलग ठप पड़ गया और दूसरी तरफ मोदी सरकार काले कुबेरों को फायदा पहुंचाने में जुट गई।
मोदी जी, नोटबंदी जैसे साहसिक कदम के लिए बधाई के साथ उस भावुकता को भी सलाम जो देश की 125 करोड़ जनता के लिए नजर आई। नोटबंदी के अगले दिन ही आपने चिल्ला-चिल्लाकर देश की जनता से 50 दिन मांगे। ये 50 दिन आखिर आपने किससे मांगे? क्या भ्रष्टाचारियों से या आतंकवादियों से अथवा काले बाजारी या काले कुबेरों से? ये 50 दिन आपने देश की आम जनता से मांगे, जिनमें गरीब, मजदूर, किसान से लेकर फुटपाथ पर छोटा-मोटा रोजगार कर पेट पालने वाले भी शामिल हैं। नोटबंदी का सबसे ज्यादा शिकार यह तबका ही इसलिए हुआ, क्योंकि उसकी दिनचर्या नकदी में ही चलती है। बैंक और एटीएम के सामने लगी कतारों में कोई भ्रष्ट, अफसर, नेता या बड़ा मीडियाकर्मी नजर नहीं आया। कतार में वे छोटे लोग ही लगे, जिन्हें अपने खून-पसीने के सफेद धन को नए नोटों के रूप में हासिल करना था।
यह कतार अभी भी खत्म नहीं हुई है। आपने अपने भाषणों में जो भावुकता दिखाई वह समाज के इसी तबके के लिए थी, जो मेरे साथ देश की आम जनता ने बखूबी महसूस कर ली, सिवाय आपके भक्तों के। उन्हें तो आपकी इसी भावुकता के आधार पर आम जनता की परेशानी का जिक्र करना भी रास नहीं आ रहा है। वे तो देशविरोधी और कालेधन समर्थन का तकियाकलाम अलापने के साथ एक से बढ़कर एक बेतुकी कॉपी-पेस्ट पोस्ट डालते नजर आते हैं… मोदी जी अपनी भावुकता का अहसास इन भक्तों को भी करा दीजिए, ताकि इन्हें पता चल सके कि आपकी भावुकता का मतलब कालेधन का समर्थन करना नहीं है।
आप देशहित में जिस मुद्दे पर भावुक हो सकते हैं, वही मुद्दे देशविरोधी या कालेधन समर्थक कैसे कहला सकते हैं? आपने विपक्ष पर हमला बोलते हुए यह भी कहा कि उन्हें अगर 72 घंटे मिल जाते तो वे इतना शोर-शराबा नहीं मचाते। यानि आपका इशारा कालेधन को ठिकाना लगाने की बात से जुड़ा है। मेरे साथ ही देश ही जनता को मायावती, ममता, केजरीवाल या राहुल सहित अन्य विपक्षीय नेताओं के इस शोर-शराबे से कोई मतलब नहीं है, मगर हकीकत यह है कि कालाधन ठिकाने लगाने वालों को 72 घंटे नहीं, बल्कि पूरे 51 दिन मिले हैं। यही कारण है कि गरीबों के जन-धन खातों तक यह कालाधन पहुंच गया। आपने नोटबंदी की घोषणा के साथ यह भी कहा था कि रात 12 बजे के बाद भ्रष्टाचार से कमाए बड़े नोट अब कागज के टुकड़े हो जाएंगे और बाद में यह भी कहा कि वे नदियों में बहते दिखेंगे।
यानि आप 100 प्रतिशत कालाधन समाप्त करना चाहते हैं, मगर यह आश्चर्य का विषय है कि आपकी ही केबिनेट अब यह प्रस्ताव रख रही है, जिसके मुताबिक आयकर अधिनियम में संशोधन करते हुए 50 प्रतिशत टैक्स देकर शेष 50 प्रतिशत कालाधन सफेद कर दिया जाएगा। इसमें 25 प्रतिशत राशि अभी शेष 25 प्रतिशत 4 साल बाद मिलेगी। अब जिस व्यक्ति का 100 प्रतिशत कालाधन कागज होने जा रहा हो उसके लिए तो 50 प्रतिशत सफेद का ये ऑफर चोखा ही रहेगा। यानि देश को लूटो और 50 प्रतिशत हिस्सा सरकार को देकर छूट जाओ… वैसे भी अभी 33 प्रतिशत तो आयकर लगता ही है, अब उसके साथ 17 प्रतिशत ही और देना होगा।
अभी कालाधन खपाने वाले 25 से 30 प्रतिशत कमीशन वैसे भी दे रहे हैं और लगभग दोगुने मूल्य पर सोने के अलावा प्रॉपर्टियां भी खरीदते रहे हैं। उनके लिए तो यह योजना लॉटरी लगने जैसी है, जबकि भ्रष्टों का शत-प्रतिशत कालाधन कागज होना चाहिए, ताकि नक्सलवादी और आतंकवादियों को भी कड़ा सबक मिल सके। आपकी 50 प्रतिशत की फेयर एंड लवली स्कीम पार्ट-2 से तो इन आतंकवादियों और भ्रष्टों को एक और अवसर मिल जाएगा। भ्रष्टों का कालाधन तो अब जलना, बहना और सडऩा ही चाहिए और उन्हें किसी तरह की छूट कतई न मिले… तभी कतार में खड़े आम आदमी की यह कुर्बानी जाया नहीं होगी और देश बदल रहा है का नारा भी सटीक रहेगा…
-राजेश ज्वेल
9827020830
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loon karan chhajer
December 5, 2016 at 1:16 pm
very nice , really this is happening.