Yashwant Singh : सिर्फ भारतीय रेल ही मोदीजी एन्ड टीम की कार्यकुशलता बताने / दिखाने के लिए काफी है। जिन्हें टाइम से रेल चलवा पाना नहीं आया, राम जानें वो देश क्या चला पा रहे होंगे।
हम भी एसी में सोए हुए हैं। सुबह मंज़िल पर न पहुंची ट्रेन तो क्या, शाम तक एसी का मज़ा लेते हुए पहुंचेंगे। एक किराया में डबल टाइम तक एसी में हिलते-झूलते-सोते चलने का सुख मिल ही रहा है।
वैसे भी हम भारतीय संतोषी जीव होते हैं। अपने फायदे का तर्क हर हाल में ढूंढ लेते हैं। खाना नाश्ता नमकीन बिस्किट पानी सब थोक के भाव लेकर चलता हूं क्योंकि रेलवे का खान पान लफंगों के हवाले है। और, ट्रेन में 10 घण्टे के सफर के लिए कितने दिन बैठना पड़ सकता है, इसका कोई अंदाज़ा नहीं। इसलिए साथ छोटी मोटी पैंट्री कार एक बड़े झोले में लेकर चलता हूँ। फ्रस्टेशन शुरू होते ही झोंक कर खाने में जुट जाओ। सब कुछ हरा भरा लगने लगता है।
साठ साल, कांग्रेस, लालू, मुलायम, मायावती आदि इत्यादि को दिन भर गरियाने वाले संघी लंठ / ट्रोल बता पाएंगे कि चार साल में भी रेल समय से क्यों नहीं चल पा रही? वैसे तो रेलवे के बंटाधार और रेल यात्रियों को बांस करने के वास्ते सारे काम / फैसले हो रहे हैं। रेल का निजीकरण, रेल किराया वृद्धि, रेल से पैंट्री कार खात्मा, रेल में खानपान प्राइवेट लपकों-उचक्कों के हवाले, रेल में अटेंडेंट तक की तैनाती ठेकेदारों के हवाले, मेंटेनेंस भी प्राइवेट हाथों में।
इस सबका नतीजा ये कि रेल बिल्कुल अजायब घर में तब्दील हो चुका है। नरेंद्र मोदीजी, पीयूष गोयल और मनोज सिन्हा जी, भारतीय रेल पर आप तीनों के बुद्धि स्तर का भरपूर छाप दिख रहा है। अब समझ में आ रहा है कि देश कैसे चल रहा है। तुम लोगों से न हो पाएगा। बस बकचोदी करा ले कोई। एक से एक लंतरानी पेलोगे। नारद पहला पत्रकार, सीता मइया टेस्ट ट्यूब बेबी… ब्ला ब्ला ब्ला…
और, हमारे मीडिया वाले मालिक संपादक लोग मोटा भाई से मोटा माल पेलकर हिंदू मुस्लिम करने बताने दिखाने पढ़ाने में लगे हैं। मीडिया को अब जनता की तकलीफों से कोई वास्ता नहीं। वह तो bjp के पब्लिसिटी डिवीजन के रूप में काम कर रहा है।
भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह की एफबी वॉल से.