नई दिल्ली : देश अगले महीने होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले जोरदार राजनीतिक विवादों की चपेट में हैं, और इसी दौरान RTI कार्यकर्ता-लेखक संजॉय बसु, नीरज कुमार और शशि शेखर ने अपनी नई लॉन्च की गई किताब, ‘वादा-फरामोशी’ (फैक्ट्स, फिक्शन नहीं , RTI अधिनियम पर आधारित) को जनता के सामने प्रस्तुत किया है। पिछले 3 वर्षों में दायर वास्तविक आरटीआई के आधार पर यह पुस्तक मोदी सरकार की कई योजनाओं और वादों की वास्तविकता को दर्शाती है।
लेखकों का कहना है कि उन्होंने सरकार के दावों की सच्चाई को पाठकों के सामने लाने का एक ईमानदार प्रयास किया है क्योंकि लगभग 3 दशकों के बाद, 2014 में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार थी। इस सरकार का मंत्र था — न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन। शुरुआत से ही देश ने कई केंद्रीय योजनाओं के प्रचार पर भारी सरकारी खर्च देखा। इसलिए यह जानना महत्वपूर्ण था कि उन सभी घोषणाओं और योजनाओं का अंतिम परिणाम क्या रहा।
यह किताब पिछले पांच वर्षों में मोदी सरकार के कामकाज का एक दस्तावेज है। लेखकों का मानना है कि किसी भी मीडिया, एनजीओ, व्यक्ति या किसी अन्य संस्था ने समग्रता से ऐसा काम नहीं किया है। आरटीआई उत्तरों के माध्यम से प्राप्त ठोस जानकारी और साक्ष्य का उपयोग करते हुए यह पुस्तक केंद्र सरकार की सफलताओं का विश्लेषण करती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री और खुद आरटीआई कार्यकर्ता श्री अरविंद केजरीवाल ने इस पुस्तक को लॉन्च करते हुए कहा कि जब वह 2001 में अरुणा रॉय से मिले थे तब उन्होंने उन्हें समझाया कि आरटीआई क्या है। उन्होंने कहा कि वह अरुणा राय को अपना गुरु मानते हैं और उन्हें विश्वास है कि एक लोकतंत्र, या एक जनतंत्र में, आरटीआई राष्ट्र के लोगों की सेवा करता है क्योंकि लोग प्रधान होते हैं और सरकार उनके प्रति जवाबदेह होती है।
उन्होंने कहा कि देश की वर्तमान स्थिति डरावनी है क्योंकि जब कोई नागरिक सवाल पूछता है या सरकार के खिलाफ अपनी आवाज उठाता है, तो उसे “राष्ट्र-विरोधी” कहा जाता है। एक मुस्लिम परिवार के हालिया वायरल वीडियो में गुंडों द्वारा बेरहमी से पिटाई पर टिप्पणी करते हुए केजरीवाल ने कहा कि यह हिंदुत्व के नाम पर किया जा रहा है, हालांकि कहीं भी हिंदू धर्म में मुसलमानों को, या किसी को भी, प्रताड़ित करना नहीं लिखा हुआ है। जर्मनी में हिटलर के शासन के दौरान प्रचलित स्थिति की तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वहां लोगों को सार्वजनिक रूप से पीटा जाता था अगर कोई हिटलर के शासन के खिलाफ आवाज उठाता था। आज हम अपने देश में उन्हीं परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। अल्पसंख्यकों को पीटा जाता है अगर वे सरकार और उसके कार्यों के बारे में कोई प्रश्न पूछते हैं।
उन्होंने कहा कि वह आश्वस्त हैं कि अगर मोदी सरकार 2019 का चुनाव जीतती है तो ये आखिरी चुनाव होंगे और वे संविधान को बदल देंगे, जैसा कि साक्षी महाराज ने दावा किया है।
इस अवसर पर बोलते हुए, विशिष्ट अतिथि श्री वजाहत हबीबुल्ला, भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त, ने याद किया कि कैसे तत्कालीन प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह ने उन्हें मुख्य सूचना आयुक्त के पद को स्वीकार करने के लिए लिखा था, क्योंकि उन्हें एक विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया था। उन्होंने बताया सूचना आयुक्त के रूप में सरकार के पक्ष में कार्य करना उनके लिए कितना कठिन साबित हुआ था।
पुस्तक के लॉन्च के बाद हुई चर्चा में वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि अब हम सभी अपना मतदान अधिकार के रूप में करते हैं, लेकिन जब आजादी के बाद एक युवा राष्ट्र को इस सिद्धांत पर लॉन्च किया गया कि सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं, तो यह किसी अजूबे से कम नहीं था। उन्होंने कहा कि हमें अपने नेता का चयन करने का अधिकार मिला आज़ादी के साथ मिला लेकिन आरटीआई के माध्यम से सूचित हो कर वोट देने का अधिकार पाने में 60 साल लग गए।
आरटीआई कार्यकर्ता और सह-लेखकों में से एक, नीरज कुमार ने कहा कि उन्हें 2 साल और कई आरटीआई लगाने के बाद पुस्तक के लिए डाटा मिला क्योंकि सरकार से जानकारी निकालना मुश्किल था। उन्होंने कहा कि पुस्तक पाठकों को केंद्र सरकार के प्रचार में एक अंतर्दृष्टि देगी और उन्हें सरकार के द्वारा शुरू की गई योजनाओं का वास्तविक चेहरा दिखाएगी।
सह-लेखक संजोय बसु ने कहा कि शीर्षक के अलावा पूरी किताब एक आरटीआई-आधारित दस्तावेज है, जो लेखकों द्वारा प्राप्त आरटीआई उत्तरों के वास्तविक स्कैन के साथ है। सह-लेखक शशि शेखर ने कहा कि उन्होंने इस किताब में एक अखबार प्रकाशित किया है।
संजॉय बसु, नीरज कुमार, शशि शेखर कृत ‘वादा-फरामोशी’ के बारे में अगर एक लाइन में कहा जाए तो ये सरकारी दावों का सच क्या है, उसे पाठकों के सामने लाने की यह एक ईमानदार कोशिश है. यह किताब अमेजन पर उपलब्ध है. पुस्तक के 25 अध्यायों की झलक ये है :
- मां गंगा ने इसलिए तो नहीं बुलाया था…
- गाय हमारी माता है, घोषणा करने में क्या जाता है
- काहे का बन्धु, काहे का कल्याण, बदलता है बस योजनाओं का नाम
- एकलव्य का अंगूठा आज भी कट रहा है…
- सहायता चवन्नी, सहायता देने का खर्चा रुपैय्या
- नि:शक्त “महिला शक्ति केंद्र” से कैसे सशक्त होंगी महिलाएं
- बेरोजगारी राजनीति का सबसे बडा रोजगार है
- सौ एयरपोर्ट की सच्चाई…हवा-हवाई…हवा-हवाई
- बेपटरी हो गई पीएम ग्राम परिवहन योजना
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी: रेलवे स्टेशनों के विकास पर भारी
- ट्राइबल सब प्लान: आदिवासी विनाश का “शोक गान”
- किशोरी शक्ति योजना बन्द: बालिकाओं को सशक्त बनाने का वादा कहां गया?
- जल क्रांति की भ्रांति
- पीएमबीजेपी: न कमाई, न दवाई
- ग्राम उदय से भारत उदय ऊर्फ सरकारी प्रचार अभियान
- ‘विद्यांजलि’ को क्यों असमय देना पडा श्रद्धांजलि
- स्वदेश दर्शन का पीपीपी मॉडल फेल
- भारतीय रेल: वादे खोखले, दावे फेल
- महज प्रचार से न बेटी बचेगी, न बेटी पढेगी
- काश…हर घंटे 16 भारतीय सडक पर मरने से बचाए जा सकते
- मेक इन इंडिया के दौर में गांधी के नाम का क्या हुआ…
- एस्पायर का मकसद एक्सपायर हो गया
- निर्भया फंड से कितनी निर्भय हो सकीं बेटियां
- बढ़ता गया पैसा, केंद्रों की संख्या घटती गई
- प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना का पैसा कहां है?
प्रवेश चौहान
March 27, 2019 at 10:51 pm
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Dinesh Parkhi
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amit
April 7, 2019 at 3:52 pm
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Sanjay
April 15, 2019 at 11:59 pm
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Dr Pramod Bansod
April 27, 2019 at 11:54 pm
अरविन्द केजरीवाल, रायता वाल पर कोई मूर्ख ही विश्वास करेगा। मोदीजी जैसा नेता ना भूतो ना भविष्यते पैदा होगा। सारे मोदी विरोधी लोग बहुत पछताऐंगे, जब मोदी चले जाऐंगे।सब स्वार्थी, खुदगर्ज लोग मोदी का विरोध कर रहे हैं। 23 मे 2019 का इंतजार करिये।
Ashok Sharma
October 29, 2019 at 9:58 pm
Mera ghanta abhi kya kam puchta rahe hai matherchod marta bhi nahi hai
Dinesh Parkhi
April 28, 2019 at 10:08 am
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Dinesh Parkhi
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Badarul Hasan Ansari
November 27, 2019 at 11:41 pm
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