Om Thanvi : छोड़िए। मैं मोदीजी पर कुछ नहीं बोल रहा। एनडीटीवी के संजीदा पत्रकार Umashankar Singh की एक अहम जानकारी वाली पोस्ट महज साझा कर रहा हूँ। इसका संपादित अंश जनसत्ता अखबार में प्रकाशित है। जनसत्ता अखबार के संपादक ओम थानवी के फेसबुक वॉल से.
Umashankar Singh : आपको एक बात बताता हूँ। कुछ विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक़ सरकार बनने के कुछ हफ्ते बाद ही मंत्रियों का एक छोटा सा दल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने गया। शुरुआती बातों के बाद मंत्रियों ने उनसे फ़रियाद की कि लोग महंगाई पर सवाल पूछ रहे हैं। हम महंगाई के मुद्दे पर चुनाव जीत कर आए हैं। लेकिन ये कम नहीं हो रही। लोगों को जवाब देना मुश्किल हो रहा है। मोदी जी मंत्रियों की बात ग़ौर से सुनते रहे। फिर कुछ इन शब्दों में बोले – देखिए महंगाई तो जो बढ़नी थी, बढ़ गई। अब ये कम होने से रही। और महंगाई को लेकर तो आप जानते हैं कि ये आगे और बढ़ सकती है। महंगाई विश्व आर्थिक व्यवस्था से जुड़ी चीज़ है। ये तो आप सब जानते ही हैं।
मोदी जी की बात सुनकर मंत्रियों ने आश्चर्य के साथ पूछा कि फिर हम पब्लिक को क्या मुंह दिखाएं? उन्हें कैसे समझाएं? आख़िर यही सारी दलील तो पिछली सरकार भी देती आई थी। फिर हम उनको क्या कहें? मोदी जी ने शांत चित्त भाव से कहा कि आप पब्लिक का आकर्षण दूसरी तरफ़ क्यों नहीं ले जाते। कहने का मतलब कि लोगों का ध्यान कुछ ऐसी तरफ़ ले जाएं कि वो महंगाई की बात भूल कर उसमें लग जाएं। मंत्रियों को बात समझ नहीं आयी। पर मोदी जी के सामने एक सीमा से आगे अपनी बात कहने का मतलब नहीं। मंत्री जी लोग बैरंग लौट गए।
इस जानकारी को पहले मैंने हल्क़े में लिया। फिर सरकार के क्रियाकलापों पर ग़ौर करना शुरू किया। मंत्रियों की तरफ से तो ऐसा कुछ नज़र नहीं आया जिससे पब्लिक का आकर्षण महंगाई से हट कर दूसरी तरफ जाए, सिवाए कुछ विवादों के। जैसे धारा 370 पर दिया गया जितेन्द्र सिंह का बयान हो या फिर डिग्री विवाद ठंडा पड़ जाने के बाद अचानक एक दिन स्मृति ईरानी का अपनी येल यूनिवर्सिटी की डिग्री को लेकर आगे आना। इन सब विवादों ने कुछ सुर्खियां बटोरीं पर आशातीत सफलता नहीं मिली।
फिर पाया कि मोदी जी ने इस मोर्चे की कमान ख़ुद ही संभाल ली है। ऐसे तमाम मौक़े आपके सामने हैं जहां मोदी जी के भाषण या उनके बयानों ने अलग ही सुर्खियां बटोरीं। इस बात में कोई शक नहीं कि वे बहुत ही सक्रिय प्रधानमंत्री हैं। हर चीज़ अपे तरीक़े से करना चाहते हैं। कुछ कानून के ज़रिय़े तो कुछ कानूनों को मिटा कर। वे अपनी उपस्थिति से हर मौक़े को वे एक इवेंट में बदल देते हैं।
चाहे श्रीहरिकोटा में वैज्ञानिकों की उपलब्धियों के मौक़े पर उपस्थित हो उनकी हौसलाअफ़ज़ाई की बात हो या फिर सार्क सैटेलाइट का ऐलान कर सुर्खियां बटोरने की बात। हर बार वो कुछ ऐसा नया कर देते हैं कि एक अलग ही सुर्खियां चल पड़तीं हैं। इसमें नकारत्मकता की कोई बात नहीं। अच्छी बात है। शायद उनकी दूरदर्शिता से जुड़ी भी।
लेकिन, ये भी सच है कि इन सबके बीच मूल मुद्दे पर से ध्यान हट जाता है। आप सिलसिलेवार ढंग से भूटान से लेकर उनकी नेपाल तक की यात्रा को देख लीजिए। या फिर जापान के दौरे से लेकर चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे तक। कैसे सबकुछ मोदी जी के बने बनाए प्रभामंडल के आसपास ही सिमटा रह गया। उन्होंने कुछ न कुछ ऐसा बोला, ऐसी उम्मीद जगाई, ऐसा भरोसा या आंकड़ा दिया कि असल मुद्दों से मीडिया हट उन बयानों पर न्योछावर होने लगा।
फिर लोगों का ध्यान भी उसी तरफ़ आकर्षित होने लगा। एक बड़ा उदाहरण जापान का है। जापान के पीएम शिंज़ो आबे पहले ट्विटर पर जिन सिर्फ़ तीन लोगों को फॉलो करते थे मोदी उनमें से एक हैं। (अब वे चौथे के तौर पर राजनाथ सिंह को भी फॉलो करने लगे हैं) इस लिहाज़ से जापान का दौरा मोदी के लिए पर्सनल केमिस्ट्री के लिहाज़ से अहम था। जापान और भारत के बीच परमाणु करार अभी तक नहीं हुआ है। इसे अगर पिछली सरकार की कमी मान लें तो ‘विश्वनेता बनने को अग्रसर’ मोदी जी पर ये ज़िम्मेदारी थी कि वो इसे फलीभूत करते। ये नहीं हुआ। कुछ अख़बारों में इस बाबत ख़बर भी छपी। लेकिन जैसे ही उन्होंने ढ़ोल बजाया, मीडिया दीवाना हो गया। एक अलग ही चर्चा बटोर ली।
दूसरा उदाहरण, अपने कश्मीर में बाढ़ में फंसे लोगों को अभी निकाला भी नहीं गया था, पूरी तरह से उनतक मदद भी नहीं पहुंची थी कि पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर को मदद की बात ने पब्लिक का ध्यान दूसरी तरफ खींच लिया। फिर नवाज़ शरीफ़ के साथ चले खतो किताबात भी कई दिनों तक सुर्खियों में रहा। कश्मीर में लोग सरकारी मदद से अब भी महरूम हैं। हालांकि इसका दारोमदार राज्य सरकार पर है पर वो ख़ुद को पंगु क़रार दे चुकी है।
ऐसे में भारत की एकता, राष्ट्रवादिता आदि आदि की बात करने वाली पार्टी की सरकार आंखे मूंद कर क्यों बैठी है। अगर राज्य सरकार कुछ नहीं कर पा रही तो केन्द्र की ज़िम्मेदारी नहीं बनती कि वो वैकल्पिक उपाय करे। ये बात इस लिए लिख रहा हूं क्योंकि कश्मीर कवरेज़ के दौरान लोगों के गुस्से को देखा है। उनकी इस मांग को भी सुना है कि सीधे केन्द्र दख़ल दे तो हमें मदद की उम्मीद नहीं नहीं तो नहीं। ख़ैर कश्मीर के बाढ़ पीड़ित अब सुर्खियों में नहीं हैं। असम के बाढ़ पीड़ितों की पीड़ा सामने आयी ही नहीं क्योंकि मीडिया दूसरे आकर्षणों में फंसा है।
फिर आयी मंगलयान की बारी। इस बड़ी उपलब्धि पर प्रधानमंत्री की मौजूदगी बेहद ही उत्साहवर्धक रही। लेकिन सात रुपये प्रति किलोमीटर से भी कम खर्च पर मंगल पर पहुंचने की क़ामयाबी पर हमने जमकर जश्न मनाया। मनाना भी चाहिए क्योंकि उपलब्धि ही इतनी बड़ी है। लेकिन इस बीच हमें अहसास ही नहीं हुआ कि हमारे रसोई के ईंधन की क़ीमत बढ़ गई। बिना सब्सिडी वाला सिलिंडर महंगा हो गया। सब्सिडी वाले सिलिंडर पर पहले छह फिर नौ और फिर 12 का कैप लगाने के पिछली सरकार के फैसले पर हायतौबा मचाने वाली बीजेपी अब अपनी सरकार के दौरान इसे 12 से 13 भी नहीं कर पाई है। ये सोचने की अलग बात है।
हम यहां बात कर रहे हैं पब्लिक के आकर्षण को दूसरी तरफ ले जाने की। अमेरिका दौरा हर भारतीय प्रधानमंत्री का बड़ा और अहम दौरा होता है। पीएम मोदी का भी रहा। उन्होंने वहां सबकुछ नए तेवर और कलेवर के साथ किया। इसमें कोई दो राय नहीं कि मनमोहन सिंह की तुलना में मोदी का दौरा ज़्यादा भव्यता और सक्रियता समेटे रहा। ये दौरे की भव्यता और सक्रियता का ही नतीजा है कि पुरानी सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाने वाले उनके कई ऐलान को भी मीडिया ने ऐसे परोसा और लोगों ने ऐसे लिया मानों ये सब नई सरकार के सौ दिन का ही कमाल हो।
मोदी के अमेरिका दौरे से हासिल उपलब्धियों की विवेचना अख़बारों में जगह पाती इससे पहले ही मोदी जी ने 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत के अभियान का ऐलान कर दिया। हाथ में झाड़ू पकड़ने की जानकारी ने ऐसा रंग जमाया कि आम आदमी पार्टी की दिल्ली विधानसभा चुनाव में हुई जीत के जश्न में हाथ में लेकर लहराए गए सैंकड़ों झाड़ुओं की असरदार तस्वीर भी धुंधली पड़ गई।
उदाहरण कई हैं। कुछ मुझे याद हैं कुछ आपको याद होगें।
लेकिन इन सब के बीच हम लोग जो भूल गए हैं वो ये कि सब्ज़ियों के दाम अब भी हमारी जेब काट रहे हैं। आलू प्याज़ अब भी 35-40 रुपये किलो बिक रहा है। टमाटर की क़ीमत टीवी पर नहीं आ रही इसलिए लगता है लोग भी भूल गए हैं। वो 45-50 रुपये किलो बिक रहा है। चाहे दाल की क़ीमत हो या फिर खाने पीने की दूसरी चीज़ों की, ऐसा नहीं है कि सब चुनावी वादे के हिसाब से ज़मीन पर आ गए हों। बल्कि अभी भी ये अपनी तेज़ी में हैं।
घर का ईएमआई अभी भी कम नहीं हुआ है। रेल किराया में पहले 14 फीसदी बढ़ोतरी के बाद अब फिर तत्काल टिकटों के किराए में बढ़ोतरी होने वाली है। हां पेट्रोल की क़ीमत में कुछ गिरावट ज़रूर हुई है, लेकिन क्योंकि पेट्रोल की प्राइसिंग पर सरकार का नियंत्रण नहीं। इसलिए बढ़ने का दोष उनको नहीं दिया जा सकता तो घटने का क्रेडिट क्यों।
अंत में कहना चाहता हूं कि मोदी जी, लोकतांत्रिक तरीक़े से चुने हुए प्रधानमंत्री के तौर पर आप देश को जिस दिशा में, जिस गति से और जितनी भी ऊंचाई पर ले जाना चाहते हों, हम आपके साथ हैं। मैं तो बस इतना कह रहा हूं कि दरअसल महंगाई अब हमारे लिए मुद्दा नहीं क्योंकि ‘पब्लिक का आकर्षण’ दूसरी तरफ ले जाने में आप क़ामयाब रहे हैं। जनता घर की खाली रसोई की भी सफ़ाई में जुट गई है। उम्मीद है आपके मंत्रियों को भी आपका ये मंत्र अब समझ में आ गया होगा।
एनडीटीवी से जुड़े पत्रकार उमाशंकर सिंह के फेसबुक वॉल से.
Himanshu
October 24, 2014 at 2:57 am
Om Thanvi ji , Umashankar Singh ne jis prakar ka lekh likha hai agar use aap vicharsheelta kahte hain to aapki buddhimatta sadhuvaad ki patra hai. Jis vyakti ko economy ki e bhi samajhmein na aaye, jiske liye mahngai ka matlub aaloo pyaz, lpg ki delhi mein badhe hue keematein ho. Pichhle panch salon ki sabse kam mahngai dar jise na dikhai de vaise vykti ko vicharvan kahna kya baat hai thanvi ji. sadhuvad