Daya Sagar : आप अब भी मोदी को खलनायक मान सकते हैं। लेकिन देश में वंशवाद और जातिवाद की घृणित राजनीति खत्म करने के लिए आपको इस आदमी का अहसानमंद होना पड़ेगा। यूपी बिहार के नतीजे इसके गवाह हैं। याद रखिए ये चुनाव ऐतिहासिक है। इस चुनाव ने जात, पात वोट बैंक, क्षेत्रवाद के तानेबाने को ध्वस्त कर दिया। जाति की राजनीति करने वाले बसपा और सपा जैसे दलों के अब अंत का समय आ गया है।
2014 के नतीजों से ही ये साफ हो गया जब बसपा को यूपी में एक भी सीट नहीं मिली थी और सपा चुनाव लड़कर भी 5 सीटों में निपट गई थी। 2019 के चुनाव में दोनों जाति आधारित दल गठबंधन के बावजूद पूर्वांचल की कुछ सीटों को छोड़कर कोई चमत्कार नहीं दिखा सके। बिहार में यही हुआ। कर्नाटक में यही हुआ। तो क्या जातिवादी क्षेत्रीय दलों का युग खत्म हो रहा है?
इसका एक कारण है। नई पीढी ने जातिवाद को खारिज कर दिया है। उन्हें समझ में आ गया है कि मायावती हो या लालू-मुलायम सिंह यादव परिवार। सबने जातिवादी राजनीति के बहाने केवल अपना घर भरा। ये भी तीस साल पहले उनकी तरह गरीब घर से ऊपर उठे थे और उन्हीं के वोटों की राजनीति ने उन्हें अरबपति बना दिया। लोकतंत्र में आप किसी को हमेशा बेवकूफ नहीं बना सकते।
ये गलत है कि हिंदू कार्ड ने मोदी को ये अप्रत्याशित सफलता दी। ये चुनाव धर्म पर नहीं लड़ा गया जैसा कि ओबैसी और दूसरे अतिवादी कह रहे हैं। मोदी अब समझ गए कि ये नया हिन्दुस्तान है यहां अब हिंदू कार्ड ज्यादा दिन तक नहीं चलेगा। इसीलिए चुनाव के काफी पहले संघ के तमाम दबावों के बावजूद मोदी ने राम मंदिर निर्माण का अध्यादेश लाने से साफ इंकार कर दिया था। चुनाव के दौरान वे अयोध्या नहीं गए। राम मंदिर का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट ही सुलटाएगा। पार्टी ने ये लाइन पहले ही साफ कर दी थी। चुनाव का मुख्य नारा- सबका साथ-सबका विकास था। पर विपक्ष इस पर बात करने को तैयार नहीं था। विपक्ष आरोप लगाता रहा मोदी जवाब देते रहे।
मोदी का हर जवाब विपक्ष पर भारी रहा। राहुल ने कहा चौकीदार चोर है तो मोदी ने कहा जनता चौकीदार हैं। तो क्या जनता भी चोर है? राहुल ने कहा-मोदी ने राफेल में चोरी की। लेकिन पिछले पांच साल में निजी सम्पत्ति राहुल और वाड्र की दोगुनी हुई। जनता सब समझती है। पूरे नतीजे आने दीजिए आप पाएंगे पढ़े लिखे मुसलमानों के एक बड़े तबके ने मोदी को वोट दिया। खासतौर से तीन तलाक पर कानून से खुश मुस्लिम औरतों ने। क्योंकि बिना मुस्लिम वोट के यूपी में पिछले तीन चुनावों में 2014, 2017 के विधानसभा चुनाव और अब 2019 लगातार इतनी बड़ी जीत संभव नहीं। गरीबों ने मोदी को वोट दिया वे चाहे हिन्दू हो या मुसलमान। देश की जनता ने मोदी पर भरोसा किया। ये उनके विश्वास की जीत है।
हां, भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को टिकट देकर गलत किया। संदेश गया कि भाजपा ने कट्टर हिंदूवाद का कार्ड खेला। लेकिन गलती का आभास भी भाजपा को जल्द हो गया। मोदी ने कहा वे गोडसे के बयान के लिए प्रज्ञा को कभी माफ नहीं करेंगे। मुझे उम्मीद है “हुआ सो हुआ” कह कर मोदी इस मामले को यही खत्म नहीं करेंगे। सांसद बन भी गईं तो क्या, साध्वी को इसकी कीमत चुकानी होगी। उनका राजनीतिक करियर बहुत आगे नहीं जाने वाला।
Mazhar Farooqui What are you talking about Daya? Modi won because of the Hindutva card . He projected himself as a messiah for Hindus who could fix Muslims not only at home but also across the border. The masses fell for it.
Dayanand Pandey : अपनी शानदार सरकार चुनने के लिए देश की जनता को बहुत बधाई ! मुझे इस बात का भी हर्ष है कि मेरे सारे आकलन पूरी तरह सही साबित हुए हैं। ख़ास कर जब मैं निरंतर लिख रहा था , विभिन्न टी वी चैनलों पर कह रहा था कि 2014 के आम चुनाव में मुस्लिम वोट बैंक का नशा टूटा था और इस 2019 में जातीय वोट बैंक का नशा टूट जाएगा। संयोग से अब यह जातीय नशा भी टूट गया है। गठबंधन का जातीय गुरुर टूट कर चकनाचूर हो गया है। हां , एक बहुत खतरनाक बात ज़रूर हो गई है इस चुनाव में कि मुस्लिम समाज से भी ज़्यादा कट्टर यादव समाज ने अपने को बना लिया है। यह देश और समाज के लिए शुभ नहीं है। यादव समाज के लिए उन की यह कट्टरता कैंसर बन जाएगी , अगर यादव समाज अपने को दुरुस्त नहीं करता। कट्टरता किसी भी देश और समाज के लिए किसी सूरत हितकर नहीं है।
अपने कुंठित, बीमार और जहरीले दोस्तों के लिए अब क्या कहूं , समझ नहीं आता। मेरे निष्पक्ष आकलन को देखते हुए वह आंख मूंद लेते थे और अपनी जहरीली जुबान में मुझे अपमानित करने के लिए भाजपाई होने का सर्टिफिकेट सौंपते रहते थे।
दिक्कत यह भी है कि यह जहरीले , कुंठित और बीमार दोस्त अपना आकलन नहीं , अपनी इच्छा सब के ऊपर थोप कर खुश हो लेने की बीमारी से ग्रस्त हैं। जनता से, ज़मीन से पूरी तरह कटे हुए यह बीमार लोग अपने से असहमत लोगों से भी कभी बात नहीं करते , किसी से नहीं मिलते। अपने सीमित कुएं में कैद लोग अपने समानधर्मा बीमार समूह में ही मिलते-जुलते, अपनी इच्छा को ही देश का निर्णय बता कर खुश हो लेते हैं। तो यह देश का नहीं , इन लाइलाज लोगों का दुर्भाग्य है।
दुर्भाग्य यह भी है कि यह कुंठित, बीमार और जहरीले लोग खुद को लेखक, कवि, पत्रकार और कलाकार मानते हैं। मुझे अपने इन बीमार दोस्तों से पूरी तरह सहानुभूति है। प्रार्थना और कामना करता हूं कि यह अपने अंतर्विरोध से जल्दी फुर्सत लें। अपनी बीमारी से छुट्टी लें। अपनी जहरीली मानसिकता और जहरीली जुबान से मुक्त हों। अपनी असहमति के साथ ही जनादेश का सम्मान करना सीखें। जनता की भावनाओं को समझें। नरेंद्र मोदी से लड़ते-लड़ते देश से लड़ने लगे। देश से लड़ते-लड़ते जनता से लड़ने लगे। यह ठीक बात नहीं है। ज़रूरत है कि ऐसे बीमार लोग पहले ख़ुद से लड़ें और अपनी असहमति के साथ जनता को, देश को समझने की कोशिश करें। उन की बीमारी में लाभ मिलेगा, नुकसान नहीं। नरेंद्र मोदी और भाजपा से अपनी लड़ाई जारी रखिए। लेकिन जनता से मिल कर, ज़मीन पर उतर कर। इस लिए भी कि गगन विहारी और जहरीली बातों से आप की विश्वसनीयता पूरी समाप्त हो चुकी ही। आप का अस्तित्त्व खत्म हो चुका है। जनता के बीच उतर कर, अपने को जीवित कर सकिए तो बहुत बेहतर।
वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर शुक्ल सागर और दयानंद पांडेय की एफबी वॉल से.
Anil chaudhary
May 25, 2019 at 10:56 am
bjp ने वंशवाद को खारिज़ किया लेकिन काबिल दोस्त भूल रहे है कि शिवसेना की नींव क्या वंशवाद पर नही है। फिर अकाली क्या हैं। मेनका हों या राजनाथ ये किसका उदाहरण है । दिक्कत यही है कि हम अलग अलग चश्मे से जब बौद्धिक छोंक लगते है तो स्याह पक्ष को भूल जाते हैं। हालांकि मैं वंशवाद का कतई समर्थक नही लेकिन राजनीति में ये चलता है और चलता रहेगा। इतिहास इस बात का गवाह है। अगर आप इतिहास को ही झुठलाने और पलटने के तर्क गढ़ रहे हों तो कुछ भी कहना सही नही होगा।