Priyabhanshu Ranjan : पिछले दिनों प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल ने ‘आरोप’ लगाया था कि गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने सहारा और बिडला ग्रुप से करोडों रूपए की कथित रिश्वत ली। प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर मामले की एसआईटी जांच कराने की मांग भी की थी। आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका दाखिल करने वाले को पहले पर्याप्त सबूत लाने होंगे, तभी एसआईटी जांच के आदेश दिए जाएंगे। अगर याचिकाकर्ता को ही सबूत लाना है जज साहब, तो एसआईटी जांच के आदेश क्यों दीजिएगा आप? फिर सीधा फैसला ही सुना दीजिएगा तो अच्छा रहेगा। क्यों?
मनमोहन सरकार पर घोटाले के आरोप लगते थे तो अखबार और चैनल वाले सारे आरोपों को अकाट्य सत्य मानकर खबरें चलाते थे। पब्लिक भी मान बैठी थी कि पूरी की पूरी यूपीए सरकार ही घोटालेबाज है। जबकि हकीकत ये है कि आज तक यूपीए सरकार का कोई घोटाला अदालत में साबित नहीं हुआ। अब तक न तो ए राजा दोषी साबित हुए, न दयानिधि मारन को सजा हुई। लेकिन मोदी सरकार पर घोटाले के आरोप लगते हैं तो मीडिया में चुपचाप खबरें दबा दी जाती हैं। पब्लिक भी एक-दो दिन में सब भूल जाती है। जैसे कुछ हुआ ही न हो। तभी तो मोदी जी रैलियों में सीना ठोंक कर दावा करते हैं कि मेरी सरकार में भ्रष्टाचार का एक भी मामला सामने नहीं आया। भोली-भाली पब्लिक भी ललित मोदी, विजय माल्या, व्यापम, भाजपा के जमीन खरीद घोटाले, पनामा पेपर्स लीक और किरण रिजिजू के घोटाले भूलकर मोदी जी की बातें आंख मूंद कर मानती है!
Sanjaya Kumar Singh : 1993 के जैन डायरी कांड, जो बाद में हवाला घोटाले के नाम से मशहूर हुआ और जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर देश के 115 राजनीतिज्ञों और अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट हुई थी, जिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि उन पर दबाव है, के बारे में जानने वाले और इस विषय पर इन किताबों तथा विनीत नारायण (www.vineetnarain.net) को पढ़ चुके तथा कानून की जानकारी रखने वाले लोग जो विनीत नारायण बनाम भारत सरकार के मुकदमों से परिचित हैं (सुना है, बतौर उदाहरण इन मामलों को कानून के छात्रों को पढ़ाया भी जाता है) नहीं कहेंगे कि आयकर छापे में बरामद डायरी के पन्नों में नाम लिखा होना साधारण बात है और इसमें दम नहीं है।
अदालत में टिका तो हवाला मामला भी नहीं था पर मुख्य न्यायाधीश को मानना पड़ा था कि उन पर दबाव है। और, अभी अरविन्द केजरीवाल यही कह रहे हैं कि सबूत अदालत में अपर्याप्त हैं तो जांच क्यों नहीं होने दी जा रही है। पर्याप्त सबूत तो ईमानदार जांच से ही मिलेंगे। और, इसके लिए कायदे से आरोपी को नैतिक तौर पर इस्तीफा दे देना चाहिए ताकि निषप्क्ष जांच हो सके। पर अब वो जमाना नहीं रहा। इसलिए, जांच नहीं होना बड़ी बात नहीं है पर इससे यह नहीं माना जा सकता कि अपराध नहीं हुआ है या आरोप में दम नहीं है। विनीत नारायण और उनके संघर्ष को अच्छी तरह जानने के बाद मैं भी यही कहूंगा कि इसमें सच की तलाश बहुत मुश्किल है। राजनीतक लाभ लेना हो तो अलग बात है वरना अपना काम-धाम छोड़कर सच साबित करने का कोई मतलब नहीं है। बाकी तो जो है सो हईये है।
पत्रकार द्वय प्रियभांशु रंजन और संजय कुमार सिंह की एफबी वॉल से.
Arshad, Delhi
December 15, 2016 at 3:42 am
No doubt Sahara is a good company but some of their senior most officials are working like treacherous. They know who is damaging the company but not taking any strong action against bad element of company. Many sahara workers involved in stopping the edition of newspapers doing hartal. Recently we came to know one of reporter of Patna bureau wrote the news about Sahara -Birla dairy maintionig enquiry through chief minister and that fellow very much enjoying the duty. Company should enquire the episode how such sahara worker dare to write such a news item and what sufficient action taken against the worker. Although the news item edited in eleventh hour. So so many anty element in company.
Aakash
December 15, 2016 at 9:39 am
सुनने में आया है राष्ट्रीय सहारा के एक रिपोर्टर ने सहारा-बिरला डायरी को प्रकाशित करने का भरपूर कोशिश किया. सहारा-बिरला डायरी का जिक्र करते हुए खबर लिखा और अपनने वरिष्ठ सहराकर्मी की मिलीभगत कर प्रकाशित करने के लिए डेस्क पर भेजवा भी दिया. खबर छपी की नहीं यह मुद्दा नहीं है , आखिर इस तरह की खबर लिखी क्यों गयी और किसने खबर को पास कर डेस्क पर भेजवाया. क्या हत्या करने पर ही सजा दी जाएगी या जो हत्या की कोशिश करेगा उसके लिए भी सजा का प्रावधान होगा. यह भी जानकारी मिली है कि पटना से जुड़े संलिप्त रिपोर्टर की दस हजार वेतन वृद्धि कर डी गयी है. ऐसे में सहारा का कौन भला करेगा. हरे राम हरे राम.