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सुख-दुख

इस बड़े नौकरशाह ने रिटायर होने के बाद मोदी और उनकी सरकार के बारे में ये क्या लिख दिया!

संजय कुमार सिंह-

बर्बादी की दास्तान क्रमवार 25 चरण… पूर्व संस्कृति सचिव और प्रसार भारती के पूर्व सीईओ जवाहर सिरकर रिटायर नौकरशाह हैं। अपनी एक पोस्ट में उन्होंने लिखा है, राष्ट्रीय सरकारी प्रसारणकर्ता के प्रमुख के रूप में नरेन्द्र मोदी सरकार के काम-काज को देखने समझने का मुझे अनूठा मौका मिला था। इस समय हम जो तबाही देख रहे हैं वह शासन के साधनों के नष्ट होने से आती ही है और मैंने इसे करीब से देखा है। मैंने अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था क्योंकि मैं और ज्यादा झेल नहीं पाया। श्री सिरकर ने जो लिखा है वह देश की बर्बादी का क्रमवार विवरण है मैंने पूरी पोस्ट को अनुवाद करने की बजाय दास्तान का क्रमवार उल्लेख किया है जो सबको पता है।

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  1. अवधारणा के स्तर पर समस्या तब शुरू हुई जब मौजूदा ब्रिटिश प्रेरित कैबिनेट प्रणाली में अमेरिकी राष्ट्रपति व्यवस्था को जबरन ठूंस दिया गया। इसमें बेहद व्यैक्तिक कार्यशैली जायज होती है।
  2. भारत जैसे विशाल और असंभव से विविधतापूर्ण देश के लिए एक संघीय संतुलन जरूरी है। इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा बुद्धिमान होने की जरूरत नहीं है।
  3. दूसरी व्यवस्थाएं सत्ता / जिम्मेदारी साझा करने के लिए सोच समझ कर बनाए गए मॉडल को नष्ट करती हैं बगैर किसी विकल्प के।
  4. शुरू में लोगों को लगा था कि सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद मोदी सब कुछ खुद करने और अधिकारों को केंद्रित करने की अपनी चाहत को छोड़ेंगे।
  5. ऐसे लोग जल्दी ही निराश हुए क्योंकि मोदी सचिवों को सीधे बुलाने लगे और यह पर्याप्त असामान्य था क्योंकि इस माइक्रो स्तर पर काम करने की कोशिश किसी अन्य पीएम ने नहीं की थी।
  6. इसके बाद उन्होंने पसंदीदा लोगों के जरिए काम करने की शुरुआत कर दी। इससे दूसरे समान और ज्यादा प्रतिभाशाली लोग हतोत्साहित हुए। ये वो लोग थे जिन्हें सत्ता से एकीकृत होने के लिए रेंगना पसंद नहीं था।
  7. अचानक तबादले आम हो गए तथा वरिष्ठ पदो पर हरेक नियुक्ति पीएमओ से नियंत्रित हो गई। यहां तक कि बोर्ड और समितियों में भी।
  8. इसके लिए आरएसएस, खुफिया ब्यूरो और जासूस प्रमुख एनएसए से मिली जानकारी का महत्व ज्यादा होता था।
  9. नियुक्ति में वर्षों लग गए, बिना मुखिया के संस्थानों का नुकसान होना ही था।
  10. बाबुओं ने काम कराना सीख लिया और संघियों को पटाने तथा उनके प्रति निष्ठा प्रदर्शन में लग गए।
  11. कोई भी सरकार चुने हुए चीयरलीडर्स से नहीं चल सकती है। दूसरी ओर अनुभवी नौकरशाहों ने जीवनभर के अपने अनुभव साझा करना छोड़ दिया।
  12. मंत्रिमंडल व्यवस्था जब बैठ गई तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रदर्शन खराब होने लगा। साल दर साल।
  13. आंकड़े गायब करना और उससे खेल करने की शुरुआत हुई। अधिकारियों को समझ आ गया कि सिर्फ स्टाइल का मतलब है काम का नहीं।
  14. दिखावे के काम खूब हुए, योजनाओं के नाम बदले गए और प्रधानमंत्री अक्षरों से खेलकर खुश होते रहे। नोटबंदी जैसे फैसलों के लिए कोई तैयार नहीं था। इसका निर्णय बगैर किसी चर्चा के गोपनीय ढंग से हुआ।
  15. नेता नाटकीय घोषणाओं से देश को भौंचक्क करके खुश था।
  16. इसलिए, गए साल जब कोविड-19 की शुरुआत हुई तो ईवेंट मैनेजमेंट टॉप पर था। जरूरी काम और तैयारियों को कम ग्लैमरस माना गया।
  17. सब कुछ एक हाथ में होने का असर यह हुआ कि पीपीई किट, मास्क जैसी चीजें खरीदने और बांटने का निर्णय भी रायसिना हिल्स से हुआ।
  18. मार्च 2020 में अचानक लॉकडाउन जरूरी नहीं था पर उससे ‘पावर’ का प्रदर्शन हुआ।
  19. इससे पहले से खराब अर्थव्यवस्था की रीढ़ टूट गई। सारे निर्णय स्वास्थ्य मंत्रालय ने नहीं, लाठी भांजने वाले गृहमंत्रालय ने किए क्योंकि गृहमंत्री भरोसेमंद हैं। भारतीय प्रशासन में राहत अभिन्न रहा है पर दोनों नेताओं ने चुप्पी साधे रखी और इतनी बड़ी मानवीय त्रासदी में कोई राहत शिविर नहीं चली।
  20. सभी समझदार देशों ने योजना बनाई, टीकों और ऑक्सीजन के आयात और वितरण की व्यवस्था की। भारत इस मामले में कुछ महीने पहले जागा।
  21. आपूर्ति और जरूरत (मांग) के सामान्य गणित को भी बमुश्किल समझा गया, सलाहकारों की सलाह को कोई प्राथमिकता नहीं मिली और सत्ता ने अपना बचाव करने वालों को पूरी तरह निराश किया।
  22. मोदी ने कोरोना पर विजय की घोषणा कर दी और एलान कर दिया कि दुनिया भर को दवा (फार्मैसी ऑफ द वर्ल्ड) हम ही मुहैया करा रहे हैं।
  23. दवाइयों और ऑक्सीजन का निर्यात तथा कुम्भ मेले का आयोजन करके भगवान की नाराजगी मोल ली गई। दूसरी लहर बुलाई गई और जब आ गई तो मोदी-शाह चुनाव रैलियों में व्यस्त रहे। पूरी तरह केंद्रीयकृत उनकी सत्ता आखिरकार बैठ गई। और जो सबसे जिम्मेदार था वह भाग निकला।
  24. मोदी अंतरराष्ट्रीय मीडिया की आलोचना के शिकार हुए और त्रासदी की तमाम तस्वीरें आचोलना के लिए पर्याप्त रहीं। इस तरह दुनिया ने भावी विश्व गुरू की निर्मम धुलाई कर दी।
  25. इस समय बचाव के उपायों और दूरदर्शी कार्रवाई की जरूरत है न कि प्रतिशोध की।

(जवाहर का मूल आर्टकिल अंग्रेजी में है। उस लेख से उपरोक्त points बनाए गए हैं)

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