एक तरफ सांपनाथ तो दूसरी तरफ नागनाथ… सालों से जनता यह कहते हुए हर चुनाव में अल्टा-पल्टी के साथ कांग्रेस और भाजपा को जीताती या हराती आई है। दरअसल अभी तक देश की राजनीति में कोई सशक्त विकल्प जनता को मिला ही नहीं। कुछ राज्यों में सपा, बसपा या तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियों ने सरकारें तो बनाईं, मगर ये दल भी कांग्रेस और भाजपा की फोटो कॉपी कुछ ही अर्से में बन गए। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने देश में एक नई उम्मीद इसलिए जगाई है क्योंकि इसके नेता पेशेवर और घाघ राजनीतिज्ञ नहीं हैं। नई दिल्ली के चुनाव में जिस तरह केजरीवाल ने आम आदमी के सड़क, बिजली, पानी, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों को फोकस में रखकर चुनाव लड़ा और बखूबी जीता, उसने तथाकथित विकास पर नए सिरे से बहस की गुंजाइश भी शुरू की है। मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में जनता को किसी केजरीवाल की बड़ी बेसब्री से तलाश है, क्योंकि हरल्ली कांग्रेस से कोई उम्मीद इसलिए नहीं है क्योंकि वह जनता के मुद्दे उठाने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है, जिसके चलते लगातार चुनाव जीतने वाली भाजपा के मुगालते आसमान पर पहुंच गए हैं। यह बात अलग है कि नई दिल्ली में सरकार चला रहे अरविंद केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस और उससे अधिक भाजपा द्वारा नित नए षड्यंत्र भी रचे जा रहे हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास एक विजन है और साथ में अपने निर्णयों को पालन करवाने की दृढ़ता भी है। मगर अब उनके भाषणों में जरूरत से ज्यादा आत्ममुग्धता और अहंकार झलकने लगा है और उनकी सरकार गरीब और किसान विरोधी भी कहलाने लगी है। खासकर भूमि अधिग्रहण बिल के मामले में भाजपा सरकार की अच्छी खासी फजीहत हो चुकी है। यही स्थिति हमारे मध्यप्रदेश की भी है जहां शिवराज सरकार पिछले 12 सालों से काबिज है और लगभग सारे ही चुनाव जीतती भी रही है, जिसके चलते सरकार के साथ-साथ तमाम भाजपा के पदाधिकारियों के भी मुगालते आसमान पर पहुंच गए हैं और भ्रष्टाचार तो चरम पर है। मध्यप्रदेश में विपक्ष के रूप में कांग्रेस का आज तक अत्यंत ही दयनीय प्रदर्शन रहा है, जिसके चलते वह हर चुनाव में तो हारती ही रही, वहीं किसी भी सवाल पर अब भाजपा के मुख्यमंत्री से लेकर तमाम पदाधिकारी एक मात्र जवाब यही देते हैं कि जनता उन्हें लगातार जीता तो रही है।
अब बात करें अरविंद केजरीवाल की चुनावी रणनीति की, तो इसमें कोई शक नहीं कि यह देश का ऐसा पहला चुनाव है जिसमें आम आदमी की उन मूलभूत समस्याओं को फोकस किया गया, जिसके दावे सभी राजनीतिक दल आजादी के बाद से आज तक दूर करने के करते रहे, लेकिन बदले में उन्हें सुनहरे और आसमान से तारे तोड़ लाने वाले सपने दिखाते रहे जो कभी पूरे हो ही नहीं सकते। इसमें कोई शक नहीं कि देश के किसी भी शहर की तुलना में नई दिल्ली में जबरदस्त विकास हुआ है। बड़े-बड़े फ्लाई ओवर, चौड़ी सड़कें, हरियाली के अलावा कचरा प्रबंधन से लेकर मेट्रो ट्रेन नई दिल्ली में ही सबसे पहले सफलतापूर्व चली और आज नई दिल्ली का यह मेट्रो ट्रेन का मॉडल पूरे देश में अपनाया जा रहा है। इतना ही नहीं नई दिल्ली में देश का सबसे खूबसूरत अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट टर्मिनल – 3 का भी निर्माण किया गया और कॉमनवेल्थ गेम्स के चलते भी कई बड़े-बड़े विकास कार्य हुए। मगर इन विकास कार्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप भी कम नहीं लगे, जिसके चलते 15 साल तक दिल्ली पर राज करने वाली कांग्रेस की सरकार को आम आदमी पार्टी से ही पिछले चुनाव में हारना पड़ा और खुद मुख्यमंत्री रही श्रीमती शीला दीक्षित आप पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल से बुरी तरह पराजित हुई। अभी पिछले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने तथाकथित स्मार्ट सिटी, ग्लोबल सिटी या ऐसे तमाम हवाई विकास के दावे नहीं किए और ठेले, गुमटी, ऑटो रिक्शा, फुटपाथी से लेकर झोपड़ पट्टी के लोगों की उन मुलभूत समस्याओं को फोकस किया जिन पर किसी भी चुनाव में इतनी जबरदस्त बहस नहीं होती है।
सड़क, गटर, बिजली, पानी से लेकर महिलाओं की सुरक्षा को अरविंद केजरीवाल ने इस कदर दमदारी से उठाया कि राष्ट्रीय स्तर पर इन मुद्दों पर पहली बार बहस हुई। तमाम टीवी न्यूज चैनलों के स्टूडियो में बिजली और पानी तथा महिला सुरक्षा के मुद्दों पर ही अधिकांश बहसें होती रहीं जो अभी भी जारी है। किसी ने भी मेट्रो से लेकर हवाई बातें नहीं कीं। यहां तक कि 600 से अधिक जो अवैध कॉलोनियां नई दिल्ली में हैं उनके नागरिक किस तरह नारकीय जीवन जी रहे हैं और उनके पास शौचालय तक की सुविधा नहीं है और पानी भी दूर से अथवा खरीदकर पीना पड़ता है। 60 लाख से अधिक की आबादी इन अवैध कॉलोनियों या झोपड़ पट्टियों में रहती है, उनमें अरविंद केजरीवाल ने अपना इतना तगड़ा वोट बैंक बना लिया कि इंदौर से गए शिवराज सरकार के मंत्री इन झोपड़ पट्टियों के वोट किसी कीमत पर नहीं तोड़ पाए। यह पहला मौका है जब इन गरीबों ने अपने वोट शराब, कम्बल या राशन से लेकर नोटों में नहीं बेचे।
केजरीवाल को इस पूरे तबके का तो जबरदस्त समर्थन मिला ही, वहीं मध्यमवर्गीय से लेकर उच्चवर्गीय मतदाताओं ने भी पसंद किया, जिसका परिणाम है कि 70 में से 67 सीटों को जीतने का अकल्पनीय चमत्कार आप पार्टी ने कर दिखाया और कांग्रेस का तो खाता ही नहीं खुला और देशभर में धूम मचाने वाली भाजपा मात्र 3 सीटें ही जीत सकी। नई दिल्ली की इस जीत के बाद अब देशभर में विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी की ओर तमाम दलों से ठगाई जनता बड़ी आशाभरी निगाहों से देखने लगी, मगर इसके साथ ही आप पार्टी के खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो गए। पहले प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने केजरीवाल की पीठ में छुरा घोंपा और फिर केन्द्र की भाजपा सरकार ने उप राज्यपाल के जरिए चुनी हुई सरकार को हाशिए पर पटकने का खेल शुरू कर दिया, जिसके खिलाफ हर बार की तरह फिर केजरीवाल को संघर्ष करना पड़ रहा है। नई दिल्ली की जनता ने कांग्रेस-भाजपा के इस तगड़े प्रचार तंत्र के भ्रम को भी तोड़ डाला और मीडिया में भरपूर पैकेज व विज्ञापन देने के बावजूद भाजपा बुरी तरह चुनाव हारी। इससे यह भी साबित हो गया कि मीडिया ने जितना विरोध केजरीवाल का किया, जबकि हकीकत में दिल्ली की जनता ने उतना ही प्यार और समर्थन उसे दे दिया। अब अन्य राज्यों के साथ-साथ मध्यप्रदेश में भी अरविंद केजरीवाल जैसे विकल्प की मांग उठने लगी है।
मध्यप्रदेश में पिछले 12 साल से भाजपा की सरकार काबिज है। 10 साल तक कांग्रेस के दिग्गी राज से जनता ने मुक्ति पाने के लिए उमा भारती के नेत्तृत्व वाली भाजपा की सरकार को दो तिहाई से अधिक बहुमत देकर सत्ता में बैठाया। उसके बाद कुछ समय के लिए बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने और अब लगभग 10 सालों से लगातार शिवराजसिंह चौहान प्रदेश के मुखिया के रूप में काबिज हैं। पिछले दोनों विधानसभा के चुनाव भाजपा ने अपने बलबूते पर कम और कांग्रेस के निकम्मे और नकारापन के कारण ही जीते, क्योंकि घोटालों से लेकर जनता की समस्याओं को उठाने में कांग्रेसी फिसड्डी साबित हुए। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान हालांकि भले और संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने लाड़ली लक्ष्मी, कन्यादान से लेकर तीर्थ दर्शन व अन्य तमाम योजनाएं शुरू कीं, जिसका लाभ भी उन्हें भरपूर मिला। बावजूद इसके प्रदेश का जिस तरह विकास होना चाहिए था उसमें कमी रही। दरअसल शिवराजसिंह के पास विजन के साथ-साथ प्रशासनिक दृढ़ता का भी अभाव है और वे सख्त निर्णय लेने की घोषणा तो करते हैं, मगर ले नहीं पाते।
नई दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने जिन मुद्दों और समस्याओं पर चुनाव लड़ा वे देशभर में मौजूद है और इससे मध्यप्रदेश भी अछूता नहीं है। सड़क, गटर, बिजली, पानी के साथ-साथ महिला सुरक्षा के मामले में भी नई दिल्ली से रत्तीभर भी मध्यप्रदेश सहित अन्य तमाम प्रदेशों की स्थिति अलग नहीं है, बल्कि महिलाओं के बलात्कार और अत्याचार के मामलों में तो मध्यप्रदेश लगातार नंबर वन आता रहा है। जिस तरह नई दिल्ली की 600 से अधिक अवैध कॉलोनियों को हर चुनाव में वैध करने के वायदे राजनीतिक दलों द्वारा किए जाते हैं उसी तरह इंदौर सहित मध्यप्रदेश की भी अवैध कॉलोनियां ना तो कांग्रेस के राज में और ना अब भाजपा के राज में वैध हो सकी है। इंदौर की ही 600 से अधिक अवैध कॉलोनियों में नई दिल्ली की तरह ही लाखों परिवार नारकीय जीवन जी रहे हैं मगर कांग्रेसी कभी भी इसको दमदारी से चुनावी मुद्दा नई दिल्ली तरह नहीं बना पाए।
पानी की समस्या तो है ही वहीं जिस तरह नई दिल्ली में बिजली की समस्या है और उससे बढ़कर महंगी बिजली तथा इलेक्ट्रॉनिक मीटरों के चलते जो लोगों के बिजली के बिल अनाप-शनाप बढ़ गए लगभग उसी तरह की समस्या इंदौर सहित पूरे मध्यप्रदेश की है। यहां भी बिजली कम्पनियों की मनमानी, इलेक्ट्रॉनिक मीटरों के नाम पर ठगी और भारी-भरकम बिजली के बिलों का मामला है, जिसे कांग्रेस हल्के-फुल्के स्तर पर ही उठाती रही। मगर अरविंद केजरीवाल ने इन मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बना दिया। लिहाजा अन्य प्रदेशों में भी केजरीवाल राजनीति का विस्तार होना चाहिए और अभी होने वाले बिहार के चुनाव में भी टीम केजरीवाल सक्रियता दिखा सकती है।
सांध्य दैनिक अग्निबाण, इंदौर के विशेष संवाददाता राजेश ज्वेल से संपर्क : 9827020830
Prashant
May 29, 2015 at 12:19 pm
bhadas4media mai jab tak kisi party se sambandh rakhne wale journalists ke articles aate rahte hai, phir bolte to mai aap logo ko biased na bolu.
Ab yashwant ji the AAP ki membership liye hue the. Yogendra kand ke baad jo chhodi hai. Kaise maan lu ki unke pehle ke article bina bias ke likhe jate the?
Media ke against bhadash nikalne ke chakkar mai ye dekhke milta hai is site pe ki jouralism ki to aap sab logo mai koi respect nahi hai. Shame! 🙁