Samarendra Singh : एनडीटीवी को जब डॉ प्रणॉय रॉय और राधिका रॉय ने स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट कराने का फैसला लिया तो इस कंपनी में बहुतेरे लोगों ने अपनी पूंजी लगाई. कंपनी के शेयर खरीदे. जनवरी 2008 में इस कंपनी के शेयरों के भाव 500 रुपये तक पहुंच गए थे. आज 35 रुपये से भी कम है. जिन रिटेल धारकों ने 2007-2008 में इस कंपनी के शेयर खरीदे होंगे और किन्हीं कारणों से बाहर नहीं निकल सके होंगे, वो तो बर्बाद ही हो गए होंगे. क्या उन रिटेल शेयरधारकों के प्रति डॉ रॉय और राधिका रॉय की जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं बनती है? बनती है. उसी को आधार बना कर सेबी ने अब कार्रवाई शुरू कर दी है.
सेबी के मुताबिक डॉ रॉय ने फ्रॉड किया है. अपने निवेशकों से सच छिपाया है. समय पर सारा सच सामने रखना चाहिए था. निवेशकों को यह जानने का अधिकार होता है. लेकिन मिस्टर एंड मिसेज रॉय ने ऐसा नहीं कर के फ्रॉड किया है. हिंदी में कहें तो घपला किया है. घोटाला किया है.
घोटाला तो इन्होंने पत्रकारिता के साथ भी किया है. लेकिन यहां बात इनके आर्थिक घोटाले की हो रही है. मिस्टर एंड मिसेज रॉय के इस घोटाले के शिकार वो निवेशक हुए हैं जिन्होंने इनके छद्म और इनके पाखंड पर भरोसा करके कंपनी में पूंजी निवेश की थी. कारोबार में सियासत जब जरूरत से ज्यादा हावी हो जाए तो यही होता है. न आदमी कारोबारी रहता है और ना ही सियासतदान बन पाता है. खैर, डॉ रॉय और राधिका रॉय को एनडीटीवी से बेदखल होना होगा या फिर इसे बेच कर बाहर जाना होगा. इसे कारोबार मत समझिए. ये सियासत है.
वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह की एफबी वॉल से.
मूल खबर-