लखनऊ : समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन को लेकर बसपा में भले ही सुगबुगाहट नहीं हो रही हो, लेकिन समाजवादी पार्टी में इस गठबंधन को लेकर विरोध के स्वर सुनाई पड़ने लगे हैं। आजम खान का नाम इसमें सबसे ऊपर है तो अपर्णा यादव भी गठबंधन को लेकर ज्यादा उत्साहित नजर नहीं आ रही हैं। सबसे बड़ा सवाल मुलायम सिंह का है, गठबंधन को लेकर जिनके विचार अभी तक सामने नहीं आए हैं। जब से सपा-बसपा के बीच गठबंधन हुआ है तब से मुलायम किसी सार्वजनिक मंच पर नजर नहीं आए हैं। इसके चलते विरोधी अखिलेश को निशाने पर लिए हुए हैं।
कई तरह के सवालों के बीच एक सवाल यह भी है कि बसपा से हाथ मिलाकर क्या अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री की कुर्सी की रेस से मुलायम सिंह को अलग कर दिया है। माया से गठबंधन के बाद अब किसी मंच पर अखिलेश यह कहते नहीं दिखते हैं कि उनकी पार्टी की तरफ से नेताजी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। इसी प्रकार सपा-बसपा गठबंधन के बाद सवाल यह भी पूछा जा रहा है कि क्या अखिलेश यादव 1993 के स्टेट गेस्ट हाउस कांड के लिये मांफी मांगेंगे, जिसमें आरोप उनके पिता पर लगे थे और आरोप लगाने वाली बसपा सुप्रीमों मायावती ही थीं। स्टेट गेस्ट हाउस कांड की फाइलें अभी भी बंद नहीं हुई हैं।
हालात यह है कि मुलायम सिंह यादव जो कभी तमाम प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने का स्वयं फैसला लेते थे, आज बदले हालात में वह(मुलायम) चुनाव लड़ेेंगे या नहीं और लड़ेंगे तो कहां से ? इसके बारे में भी अखिलेश नहीं उनके करीबी बयान देते हुए कह रहे हैं कि बसपा प्रमुख मायावती व पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव जहां से चाहेंगे, वहीं से पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। 17 जनवरी को जिला भदोही के पार्टी कार्यालय पहुंचे सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम ने पत्रकारों से वार्ता के दौरान ये बात कही। अखिलेश यादव ने समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने के बाद अपने चाचा शिवपाल यादव की जगह नरेश उत्तम पटेल को समाजवादी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था।
नरेश उत्तम साल 1989 में सबसे पहले जनता दल प्रत्याशी के रूप में जहानाबाद से विधायक चुने गए थे. 1989 से 1991 के बीच मुलायम सिंह की पहली सरकार में वे मंत्री थे। 1993 में मुलायम के दूसरे कार्यकाल में दौरान नरेश उत्तम को यूपी पिछड़ा आयोग का सदस्य बनाया गया और मंत्री पद दिया गया। 2006 और 2012 में भी नरेश मुलायम की मेहरबानी से विधान परिषद के रहे थे, जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश सपा के अध्यक्ष थे तो उत्तम उनके डिप्टी थे, लेकिन शिवपाल के पद संभालने के बाद उन्हें हटा दिया गया था. खास बात यह है कि नरेश उत्तम सपा के संस्थापक मंडली के सदस्य भी और मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते हैं,लेकिन सियासत का यही रंग है। यहां सिर्फ उगते सूरज की ही पूजा की जाती है। जो अखिलेश कर रहे हैं,वहीं नरेश भी। अगर नरेश यही कह देते कि नेताजी कहां से चुनाव लडेंगे यह अखिलेश यादव तय करेंगे तब भी बुरा नहीं लगता है,लेकिन उन्होंने अखिलेश के साथ-साथ मायावती का भी नाम लेकर पुराने समाजवादियों ओर मुलायम के वफादारों के दिल को काफी ठेस पहुंचायी है।
बहरहाल, पार्टी के भीतर क्या चल रहा है, यह अलग बात है, लेकिन कम से कम नेताजी की उम्र का सम्मान रखते हुए ही अखिलेश अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के बयान का खंडन करते हुए औपचारिक रूप से ही सही यह कह देते कि मुलायम सिंह जहां से चाहें चुनाव लड़ सकते हैं,उनके लिए कोई रोकटोक नहीं है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। यह दर्शाता है कि आज मुलायम की समाजवादी पार्टी में क्या हैसियत रह गई है। इसी मौके पर सीटों के बंटवारे व कार्यकर्ताओं की नाराजगी के बाबत पूछने पर नरेश उत्तम ने कहा, बसपा व सपा के लोगों का एक मात्र लक्ष्य भाजपा को सत्ता से बेदखल करना है, जिसमें सभी जीजान से जुट गए हैं।
उधर, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने सपा मुखिया अखिलेश यादव व बसपा सुप्रीमो मायावती को धोखेबाज बताया। नई दिल्ली एक कार्यक्रम में शिरकत करने आये शिवपाल ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि सपा-बसपा गठबंधन बेमेल है। अखिलेश और माया दोनों ने सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव को धोखा दिया है। शिवपाल का कहना था कि बसपा ने 1993 में सपा के साथ मिलकर सरकार बनाने के 17 माह बाद ही मुलायम को धोखा दे दिया था। उन्होंने कहा कि वह नहीं चाहते थे कि सपा में विघटन हो लेकिन चुगलखोरों व चापलूसों ने विघटन करा दिया।
बड़े भाई रामगोपाल यादव पर सपा को बर्बाद करने का आरोप लगाते हुए शिवपाल ने कहा कि रामगोपाल यादव के कारण ही सपा की लोकसभा व विधानसभा चुनाव में बुरी स्थिति हुई है। इससे पहले शिवपाल सिंह यादव ने कहा था कि उनकी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी- लोहिया आगामी लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार है।
उन्होंने कहा यह गठजोड़ एक ठगबंधन है और पैसे के लिए है। यह संभव है कि गठबंधन बनाने से पहले पैसा लिया गया हो। हालांकि, उन्होंने कहा कि कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाने के संबंध में अभी तक कोई बातचीत नहीं हुई है, लेकिन जितने भी सेक्युलर दल हैं, कांग्रेस भी है, अगर कांग्रेस हमसे संपर्क करेगी, हमसे बात करेगी, तो मैं बिल्कुल तैयार हूं।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.
Dr. Ashok Kumar Sharma
January 21, 2019 at 2:11 pm
अजय जी की लेखनी अजेय और उनका विश्लेषण निसंदेह अकाट्य। बहुत अच्छा आकलन।
यादव जी
January 21, 2019 at 4:38 pm
अमा मियां, सावन के अंधे हो क्या?
आजम खान के दो साल पुराने वीडियो और प्रतीक गुप्ता की पत्नी अपर्णा बिष्ट (जो दिल दिमाग से भाजपाई है) के आधार पर कुछ भी लिखोगे?