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मुंबई के उत्तर भारतीयों के बीच जातिवाद का जहर घोल रहा एक हिंदी अखबार

मुंबई : जिस जातिवाद ने उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों को बीमारु राज्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अब वही जातिवाद मुंबई जैसे कॉस्मोपॉलिटन चेहरे वाले शहर में फैलाया जा रहा है। आश्चर्य कि बात यह है कि यह काम कोई राजनेता अथवा राजनीतिक दल नहीं बल्कि मुंबई से प्रकाशित दबंग दुनिया नामक अखबार कर रहा है। अच्छी संपादकीय टीम के अभाव में तमाम कोशिशों के बाद जब दबंग दुनिया अखबार को संतोषजनक पाठक नहीं मिले तो ऐन विधानसभा चुनाव के मौके पर अखबार मालिक ने संपादक बदल दिया। पीटीआई के वरिष्ठ पत्रकार रहे नीलकंठ पारटकर दंबग दुनिया मुंबई के संपादक थे।

<p>मुंबई : जिस जातिवाद ने उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों को बीमारु राज्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अब वही जातिवाद मुंबई जैसे कॉस्मोपॉलिटन चेहरे वाले शहर में फैलाया जा रहा है। आश्चर्य कि बात यह है कि यह काम कोई राजनेता अथवा राजनीतिक दल नहीं बल्कि मुंबई से प्रकाशित दबंग दुनिया नामक अखबार कर रहा है। अच्छी संपादकीय टीम के अभाव में तमाम कोशिशों के बाद जब दबंग दुनिया अखबार को संतोषजनक पाठक नहीं मिले तो ऐन विधानसभा चुनाव के मौके पर अखबार मालिक ने संपादक बदल दिया। पीटीआई के वरिष्ठ पत्रकार रहे नीलकंठ पारटकर दंबग दुनिया मुंबई के संपादक थे।</p>

मुंबई : जिस जातिवाद ने उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों को बीमारु राज्य बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अब वही जातिवाद मुंबई जैसे कॉस्मोपॉलिटन चेहरे वाले शहर में फैलाया जा रहा है। आश्चर्य कि बात यह है कि यह काम कोई राजनेता अथवा राजनीतिक दल नहीं बल्कि मुंबई से प्रकाशित दबंग दुनिया नामक अखबार कर रहा है। अच्छी संपादकीय टीम के अभाव में तमाम कोशिशों के बाद जब दबंग दुनिया अखबार को संतोषजनक पाठक नहीं मिले तो ऐन विधानसभा चुनाव के मौके पर अखबार मालिक ने संपादक बदल दिया। पीटीआई के वरिष्ठ पत्रकार रहे नीलकंठ पारटकर दंबग दुनिया मुंबई के संपादक थे।

पारटकर जब तक इस अखबार के संपादक रहे, इसका स्तर बनाए रखा। लेकिन पिछले दिनों पारटकर को हटा कर पिछले 25 सालों से खाली बैठे अभिलाष अवस्थी को संपादक बना दिया गया। अब पहले इन संपादक महोदय के बारे में जान लिजिए। अवस्थी साहब करीब 25 साल पहले धर्मयुग पत्रिका में काम करते थे। यहां से छुट्टी होने के बाद उन्होंने कांग्रेस विधायक कृपाशंकर सिंह की आर्थिक कृपा से प्रियंका गांधी की चापलूसी में वर्ल्ड आफ प्रियंका नाम की पत्रिका निकाली। इस पत्रिका में गांधी परिवार की जमकर चापलूसी की जाती थी। पर थोड़े दिनों बाद प्रियंका को इस कदर की मक्खनबाजी पसंद नहीं आई तो उनके एतराज के बाद यह पत्रिका भी बंद हो गई। पिछले दिनों अवस्थी जी जोड़ जुगाड़ से दबंग दुनिया (मुंबई) के संपादक बनने में सफल रहे।

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अखबार को बेचने और आने वाले दिनों में पेड न्यूज़ का जुगाड़ करने के लिए इन महाशय ने मुंबई के उत्तर भारतीयों के बीच जातिवाद का बीज बोना शुरू कर दिया। उत्तर भारतीय समाज को ठाकुर, ब्राह्मण, यादव, बनिया के बीच बांटने के लिए फर्जी खबरों की शुरुआत की गई। मुंबई में इस समय तीन ठाकुर विधायक हैं कृपाशंकर सिंह, राजहंस सिंह व रमेश ठाकुर। तीनों लंबे समय से कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं। पार्टी इनकी जाति देख कर नहीं बल्कि मुंबई के उत्तर भारतीयों का प्रतिनिधि मान कर इन्हें उम्मीदवारी दी और ये चुनाव जीतने में सफल भी रहे।

दरअसल मुंबई व आसपास के इलाकों में रहने वाले यूपी व बिहार वालों की एक ही जाति है भईया या उत्तर भारतीय (कम से कम स्तरीय समाचारपत्र यही शब्द इस्तेमाल करते हैं) पर इन दिनों दबंग दुनिया में उत्तर भारतीयों को ठाकुर, ब्राह्मण, वैश्य, यादव व दलित में बांटने में जुटा है। तीनों उत्तर भारतीय विधायकों का दोष यह है कि वे उत्तरभातीय होने के साथ-साथ जाति से ठाकुर हैं। इसलिए काल्पनिक संगठन ब्राह्मण, वैश्य, यादव व दलित एकता के नाम पर इन तीनों उत्तर भारतीय विधायकों के खिलाफ इस अखबार में अभियान चलाया जा रहा है। इसके लिए जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा। उससे समाज में वैमनस्य फैल सकता है।

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मंगलवार को देश के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े अखबार के पहले पन्ने की लीड खबर उपचुनावों में भाजपा की हार की थी। लेकिन दबंग दुनिया (मुंबई) की पहले पन्ने की लीड न्यूज़ थी, रमेश सिंह ठाकुर-राजहंस सिंह की जगह अनुराग त्रिपाठी व आनंद शुक्ला को टिकट दो। बेसिर पैर वाली इस खबर के माध्यम से जमकर जातिवाद का जहर बोया गया था। इन महाशय की सलाह पर कांग्रेस अपने सिटिंग विधायकों की जगह दो गैर राजनेता पत्रकारों को टिकट दे क्योंकि इस अखबार के संपादक की ऐसी हार्दिक इच्छा है।

जबसे अवस्थी ने दबंग दुनिया की कमान संभाली है, अखबार की हालत गली कूचों से निकलने वाले हफ्ताखोर साप्ताहिक अखबारों से भी गई गुजरी हो गई है। मुंबई के पत्रकारों के बीच चर्चा है कि विधानसभा चुनाव में पेड न्यूज से मोटी कमाई का वादा कर ये सज्जन दबंग दुनिया (मुंबई) के संपादक बने हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए जातिवाद का जहर घोल कर सिटिंग विधायकों को अभी से ब्लैकमेल किया जा रहा है।

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भड़ास को भेजे गए पत्र पर आधारित।

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0 Comments

  1. रवी पांडे

    September 20, 2014 at 8:58 am

    दोनो पेपर के मालिक M.P के है अैर कांर्गस से उनकी सेटिंग है ईसलिए संपादको की चांदी है

  2. s.k..tiwari

    September 20, 2014 at 9:40 am

    अब पत्रकारिता का स्तर ऐसे ही गिरता रहेगा..ऐसे लगों की वजह से…पहले तो..महज प्रिट में इत तरह के पेड न्यूज का कारभार चलता था…लेकिन अब..तो टीव्ही मिडीया में इस तरह के कारनामें हो रहे है…इन सब का रूकना अब निहायत ही मुश्किल है…हां एक रास्ता है…कि सरकार को सोचना होगा…कि अब अखबारों और बाकी मिडीया को मिलनेवाले लाइसेन्स किस बात को ध्यान में रखकर दिया जाये…. 😕

  3. rajni

    September 20, 2014 at 11:12 am

    अवस्थी और ओमप्रकाश जैसे कूड़ेदान में पड़े कूड़े से गन्दगी ही निकलेगी इनसे खुशबू की अपेक्षा करना बेकार है। पत्रकारिता क्या है यह न तो गुटखे वाला जानता है न स्पा वाला।

  4. ganesh thakur

    September 20, 2014 at 11:18 am

    मुंबई की पत्रकारिता और मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में जमीन आसमान का अंतर है। मुंबई भोपाल इंदौर से दस साल आगे है। यह एब्सलूट इंडिया और दबंग दुनिया के मालिक नहीं समझ प् रहे है। जो बात मध्य प्रदेश में संभव है यानि पेड़ न्यूज़ वह मुंबई में कोई नहीं करता यहाँ अशोक चव्हाण के मामले में बड़े बड़े अखबारों ने हाथ जला लिए है

  5. tygiji

    September 20, 2014 at 12:14 pm

    मुंबई में उत्तर भारतीय यानि सभी हिंदी बोलनेवाले लोग। इन्हे जातिवाद के आधार पैर बाँटना यानि परोक्ष रूप से महाराष्ट्र नव निर्माण सेना की मदद करना है। हिंदी के इन पेपरों को समज़ना होगा की आप अपने ही पाठको की को खतरे डाल रहे हो। ये पेपर गल्ला भरने के चक्कर में लोकहित भूल गए हैं ,ये पेपर नहीं टॉयलेट पेपर हैं।

  6. raghuveer Yadav

    September 20, 2014 at 12:17 pm

    महाराष्ट्र के वोटर प्रबुद्ध है वे जात पात कुनबे के आधार पर वोट नहीं डालते। यह संपादक अपने ही समाज को बुद्धू साबित करने पर तुले है। इसका एक ही इलाज़ है की इन अख़बारों पर बॉयकॉट डाला जाय। जब बांस ही नहीं रहेगा तो इनकी बेसुरी बांसुरी कौन सुनेगा ?

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