Connect with us

Hi, what are you looking for?

इंटरव्यू

मुनव्वर राना बोले- ”आजम हैं मुसलमानों के आदित्यनाथ”

: हमारे विरोध का तरीका है पुरस्कार वापसी : हुकूमत का मतलब सिर्फ केंद्र से नहीं बल्कि राज्य से भी है : ‘’किसी के हिस्से में मकां आया तो किसी के हिस्से में दुकां आई मैं घर में सबसे छोटा था तो मेरे हिस्से में मां आई.’’ जी हां इन शब्दों और दमदार आवाज के साथ भारत के चर्चित शायर मुनव्वर राणा लोगों के दिलों में उतरते चले गए. किताबों से उनके शब्द उभरकर आंखों से आंसुओं का दरिया बहाने लगे. क्योंकि उनकी कलम ने कलाम लिखकर जहन के किसी खास कोने को छू लिया था. लेकिन साहित्य अकादमी पुरस्कार वापसी को लेकर मुनव्वर राणा अब कलामों से ज्यादा विवादों के तौर पर सुर्खियां बटोर रहे हैं. कभी नामर्द कहकर तो कभी कुत्तों को शाही टुकड़े हुकूमत के जरिए दिए जाने को लेकर. एक अच्छी खासी बहस का मुद्दा बने हुए हैं मुनव्वर साहब. इन्ही मुद्दों पर आपके आत्मीय ने मुनव्वर राणा साहब से बातचीत की. आईये जानते हैं कुछ अहम सवालों के जवाब.

: हमारे विरोध का तरीका है पुरस्कार वापसी : हुकूमत का मतलब सिर्फ केंद्र से नहीं बल्कि राज्य से भी है : ‘’किसी के हिस्से में मकां आया तो किसी के हिस्से में दुकां आई मैं घर में सबसे छोटा था तो मेरे हिस्से में मां आई.’’ जी हां इन शब्दों और दमदार आवाज के साथ भारत के चर्चित शायर मुनव्वर राणा लोगों के दिलों में उतरते चले गए. किताबों से उनके शब्द उभरकर आंखों से आंसुओं का दरिया बहाने लगे. क्योंकि उनकी कलम ने कलाम लिखकर जहन के किसी खास कोने को छू लिया था. लेकिन साहित्य अकादमी पुरस्कार वापसी को लेकर मुनव्वर राणा अब कलामों से ज्यादा विवादों के तौर पर सुर्खियां बटोर रहे हैं. कभी नामर्द कहकर तो कभी कुत्तों को शाही टुकड़े हुकूमत के जरिए दिए जाने को लेकर. एक अच्छी खासी बहस का मुद्दा बने हुए हैं मुनव्वर साहब. इन्ही मुद्दों पर आपके आत्मीय ने मुनव्वर राणा साहब से बातचीत की. आईये जानते हैं कुछ अहम सवालों के जवाब.

पहला सवाल- मुनव्वर साहब आपने मार्च फॉर इंडिया के बाद कहा ‘’हुकूमत ने कुत्तों के सामने शाही टुकड़ा डाला है.’’ तो हुकूमत का मतलब किससे है.
जवाब- दरअसल हुकूमत का मतलब भाजपा बिलकुल भी नहीं. क्योंकि ये शेर तो तब का है जब भाजपा का अस्तित्व ही नहीं था. हुकूमत का मतलब ये होता है कि जो सरकार इस जमाने में चल रही है. उसमें राज्य भी हो सकती है और केंद्र भी. बहरहाल हर हुकूमत चाहती है कि हर आदमी हमारे फेवर में लिखे. और शायर, कवि, लेखक, पत्रकार, साहित्यकार को अगर किसी सरकार के सपोर्ट में चला जाए तो कलम में नारा डालने का काम करता है. मेरा मानना है कि लेखक को, कवि को हिंदी विधवा की तरह जिंदगी गुजारनी चाहिए. और रही बात इस शेर की तो ये कोई बड़ा शेर नहीं माना जाएगा. जैसे कि गालिब ने कहा है कि ले तो लूं सोते में उसके पांव का बोसा, मगर ऐसे में वो काफिर बद्नुमा हो जाएगा……तो ये उनका बड़ा शेर नहीं माना जाएगा. बाकी रही बात हुकूमत कि तो ये कांग्रेस के दौरान का शेर है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

दूसरा सवाल- मुनव्वर साहब भले ही उस दौर में इस शेर को लिखा गया लेकिन इसे आपके द्वारा फिर से एक नए संदर्भ के साथ जोड़ने की कोशिश क्या मोदी सरकार पर हमला करने के उद्देश्य से नहीं है. और कुत्ते का आशय किससे है.
जवाब- ये तो शब्द है जो आ भी जाते हैं और पता भी नहीं चलता, लेकिन मैंने किसी व्यक्ति विशेष पर टिप्पणी नहीं की है. बहरहाल इस शेर के जरिए मैंने किसी एक सरकार को केंद्रित नहीं किया बल्कि ये सभी सरकारों के लिए है. कल मान लीजिए अगर अनुपम खेर की बीवी मंत्री बन जाती हैं तो लोगों के दिमाग में यही बात आएगी कि इस जुलूस की वजह से उन्हें मंत्रीमंडल में शामिल किया गया. या फिर अनुपम खेर को राज्यसभा में सदस्य बना दिए जाते हैं तो भी यही बात दोहराई जाएगी. सीधी सी बात ये है कि सत्ता में अगर आपको कुछ मिलता है तो कहीं न कहीं ये साबित होता है कि आप सरकारों के गलत फैसलों को सपोर्ट कर रहे हैं. हां अगर सही मामले में अगर सपोर्ट करते हैं तो बहुत अच्छी बात है. आप खुद ही समझ सकते हैं कि शत्रुघन सिन्हा जैसे लोगों को सरकार मंत्री थोड़े ही बनाएगी क्योंकि वो वकालत नहीं करते.

तीसरा सवाल- ‘सुन ले हुकूमत हम तुझे नामर्द कहते हैं’ क्या इसके जरिए आपने केंद्र सरकार को नीचा दिखाने का काम नहीं किया…..
जवाब- हां इस शेर को हुकूमत यानि की सरकार से जोड़ा है. लेकिन नामर्द का मतलब कमजोर और बुजदिल से था. एक एसपी, एक कॉन्स्टेबल, एक वजीर हर शख्स भी दोषी हैं क्योंकि अगर एक एसपी चाहे तो दंगे को रोका जा सकता है. लेकिन आपको पुलिस का हाल बताऊं जिन्हें शराब पीने वालों को सम्भालने के लिए लगाया जाता है वे खुद ही शराब पीकर अपना आपा खो देते हैं. रात में पुलिस की खाली गाड़ियां ही सायरन मारकर अपराधियों को डराया करती हैं जबकि वरिष्ठ अधिकारी ट्रक वालों से वसूली में मस्त रहते हैं. 

Advertisement. Scroll to continue reading.

चौथा सवाल- दादरी की घटना में आप किसे दोषी मानते हैं.
जवाब- राज्य सरकार सबसे बड़ी दोषी है क्योंकि इन्हें किसी नुयूमी यानि तांत्रिक ने बताया है कि दादरी जो भी जाता है, हुकूमत हार जाता है. अखिलेश मरने वालों के घर नहीं गए इन्होंने मरने वालों को अपने घर बुला लिया. ये इखलाक के परिवार के लिए सबसे बड़ी गाली है. आजम खां इखलाक के परिवारवालों के साथ फोटो खिंचवाने लगे. अगर तांत्रिक ने ये बताया कि दादरी जाने से हुकूमत हार जाती है तो अखिलेश और मुलायम न जाते. पर, आजम खां को भेज देते. अब आजम गाय का ड्रामा कर रहे हैं. समर्थक बने हुए हैं. गाय के समर्थक सिर्फ आजम नहीं बल्कि हर मुसलमान है.

पांचवा सवाल- …तो आप सांप्रदायिक माहौल के पीछे प्रधानमंत्री मोदी जी की ओर से कैसी प्रतिक्रिया की उम्मीद कर रहे थे..
जवाब- अगर प्रधानमंत्री ये कहते कि अगर इस सांप्रदायिक माहौल पर काबू नहीं पाया गया तो हम गवर्नर रूल लगा देंगे, इस राज्य की हुकूमत के साथ अन्य राज्य की हुकूमतें भी अलर्ट हो जातीं. क्योंकि उनके जहन में यह रहता कि मोदी कहीं भी गवर्नर रूल लगा देंगे. हालांकि एक बात और बताता चलूं कि

Advertisement. Scroll to continue reading.

‘’किसी भी शहर के कातिल बुरे नहीं होते, दुलार करके हुकूमतें बिगाड़ देती हैं.’’

कहीं न कहीं इस मुल्क में खराब काम के लिए सम्मान मिलने लगा है. आप एक तरफ आतंक को गाली देते हैं. कहते हैं आतंक बहुत बड़ा खतरा है लेकिन तब क्या करेंगे आप जब यही सब आतंकवादी हो जाएंगे, जैसे कि हिंदू सेना. शिवसेना एक बहुत बड़ी पार्टी है लेकिन हुकूमत इससे डरती है. ये आहट है किसी बड़े खतरे की.

Advertisement. Scroll to continue reading.

छठा सवाल- बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लोग लगभग भूल चुके हैं लेकिन इनका राग कभी-कभी जिंदा हो उठता है आप इसमें किसकी भूमिका मानते हैं…
जवाब- न हिंदू कहता है कि हमें राम जन्मभूमि हमको बना के दीजिए, न मुसलमान कहता है कि हमें बाबरी मस्जिद तैयार करके दीजिए. दोनों ही कहते हैं कि इलेक्शन जीतने के लिए सोची समझी साजिश थी. अभी भाजपा को जो रोल कामयाब नहीं हो पाता उसके पीछे लोगों की समस्याएं हैं. जब तक मैं घर न लौटूं तब तक मेरी मां सजदे में रहती है. क्योंकि उसे फिक्र रहती है. जिसका कारण है हिंदू मुसलमान के बीच बोया गया कांटा है. आज इतनी हुकूमतें हो गई हैं वो कांग्रेस की नालायकी है.

सातवां सवाल- “बिछड़ना उनकी ख्वाहिश थी न मेरी आरजू  लेकिन जरा सी बात ने आंगन में बटवारा कराया है.” इन पंक्तियों के सहारे आप किसको बटवारे की वजह बताना चाह रहे थे.
जवाब- दरअसल ये पाकिस्तान पर शेर है. ये जो पाकिस्तान बना तो जिन्नाह भी नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान बने. पंडित नेहरू को कई सारे लोग समझा रहे थे कि जिन्नाह को लंग कैंसर है डेढ़ दो साल उम्र बची है. वहीं जिन्नाह ने नेहरू से बातचीत के दौरान कहा कि अगर आप प्रधानमंत्री हमें नहीं बनाते तो हिंदू ही प्रधानमंत्री बनते रहेंगे. नेहरू और उनके समर्थकों ने सरदार पटेल और गांधी को इस बात की जानकारी ही नहीं दी. सिर्फ इसलिए क्योंकि नेहरू चाहते थे कि वे प्रधानमंत्री बने. साथ ही बटवारे की राजनीति शुरू हो गई. इन सबके इतर भी जिन्नाह चाहते थे कि बटवारा न हो तो वे नेहरू और गांधी से बात करना चाहते थे. तब लियाकत अली और उनके समर्थकों ने जिन्नाह को नजरबंद कर दिया. बटवारे पर राहत इंदौरी का एक शेर है कि

Advertisement. Scroll to continue reading.

“मेरे ख्वाहिश है कि आंगन में न दीवार उठे, मेरे भाई मेरे हिस्से की जमीं तू रख ले.”

आठवां सवाल- आपके मुताबिक क्या बदलाव आए हैं इस मुल्क में……
जवाब- एक घटना का जिक्र करूंगा कि तीन ट्रेनें लड़ गई थी और उस समय शास्त्री जी रेल मंत्री थे. उन्होंने तुरंत इस्तीफा दे दिया. फिर जब वे घर आए तो उन्होंने अनिल शास्त्री की मां से कहा कि ललिता कल से आधा लीटर दूध लेना, अब हम सरकार में नहीं हैं. और अब तो सरकार के पैसे से क्या होता है वो सब जानते हैं. सब ऊपर की कमाई पर टिके हुए हैं. जब हर चीज हराम की कमाई से मुहैया कराई जाने लगेगी तो कहां से किसी का चरित्र ऊपर उठेगा.

Advertisement. Scroll to continue reading.

नौवां सवाल- साहित्य अकादमी पुरस्कार आपने लौटा दिया लेकिन आपके इस कदम से सरकार झुके न झुके लेकिन सम्मान की कीमत नजरों से जरूर घट जाएगी. क्या मानना है आपका.
जवाब- जमाना बदल गया है. कवि हो या फिर साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता मजबूरी उसके सामने भी है. भ्रष्टाचार इतना चरम पर है कि नामचीन हस्तियों को जो भारत मां का मान बढ़ा रहे हैं उन्हें भी कभी कभी ट्रेनों में पखाने के पास बैठकर सफर तय करना पड़ता है. साथ में उसके पुरस्कार भी होता है तब क्या भारत मां और सम्मान का मान नहीं घटता. अगर टीटी को कुछ पैसे पकड़ा दीजिए तब तो ठीक है वरना झेलो समस्याएं. रही बात साहित्य अकादमी पुरस्कार को वापस करना तो ये तरीका है हमारे विरोध करने का. पेरिस में ही देख लीजिए लोग मोमबत्तियां जलाकर विरोध जता रहे हैं आतंकियों के खिलाफ. अगर उन सभी के हाथों में ऐके-47 होती तो विरोध का तरीका भी कुछ अलग ही होता पेरिस में जो लोग मोमबत्तियां जला रहे हैं. 

आखिरी सवाल- आजम खान मुसलमानों का खुद को हिमायती बताकर बार-बार विवादित बयान देते रहते हैं, आप उन्हें किस नजर से देखते हैं
जवाब- हिंदुस्तान शेर है. वो आजम खान की इन छोटी छोटी छूरियों से नहीं डरने वाला. रही बात एक बार मैं फिर से बता दूं कि आजम खान मुसलमानों के आदित्यनाथ हैं, जो बकबक करते रहते हैं. यही इनकी दुकान है, यही इनका तरीका है.

Advertisement. Scroll to continue reading.

आपका हिमांशु तिवारी ‘आत्मीय’
08858250015

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement