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साहित्य

विख्यात साहित्यकार बाबा नागार्जुन ने सात साल की बच्ची का किया था यौन शोषण!

कुछ रोज़ पहले की बात है। एक दोस्त को मैं Neruda की कविता सुना रही थी। कविता के जवाब में दोस्त भी कविता सुनाने लगा। उसने सुंदर सी कविता पढ़ी। वो कविता पिता के मन में बसी ममता को दर्शाती थी। सरल और सहज थी। ख़त्म होते ही मेरा दोस्त बोला- कविता नागार्जुन की है।

नागार्जुन का नाम सुनकर मैं फिर से डर गई थी। जहाँ बैठी थी वहीं बैठे रह गई।

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कितनी बार नागार्जुन… कभी उनका जन्मदिन, मरण दिन, नए साल पर। कभी चर्चाओं में कभी किताबों में। और हाँ, फ़ेसबुक पर तो रोज़ ही चले आते हैं हमारे देश के नागार्जुन बाबा। जब भी मैं ये नाम सुनती हूँ तो मेरी सारी इंद्रियां जैसे सुप्त अवस्था में चली जाती हैं। मेरे भीतर सिर्फ़ क्रोध रह जाता है।

लोग कहते हैं कि बच्चों के साथ दुष्कर्म करने वाले लोग बीमार होते हैं मानसिक रूप से। सवाल आज ये है क्या हमारे देश के इतने बड़े कवि नागार्जुन भी बीमार थे? मुझे नहीं लगता कि वो बीमार थे। मेरी समझ से अगर कोई पूछे तो वो तो बहुत शातिर थे।

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बाबा को मेरे पापा घर ले आए थे। पापा उन्हें बहोत प्यार और समान देते और मेरी मम्मी उनके नक़ली अनुशासन का पूरी गंभीरता से पालन करती रहीं। इस व्यक्ति ने हमारे घर में कर्फ्यू लगा दिया था। गलती मेरे माँ पापा की थी जो ऐसे मुफ़्तख़ोर को अपने घर में रखकर उसकी सेवा करते रहे।

वो बड़े आदमी थे पर क्या इंसान बड़ा आदमी ऐसे ही बनता है? रेप करने वाले लोग तो शायद बहुत मामूली होते हैं और देखिए बड़े लोग आप ही के घर में घुसकर आप ही का खाकर आप ही पर रोब जमाकर आप ही की बेटियों को खा जाते हैं ।

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मैं पैंतीस की हो गयी हूँ। वो जब हमारे घर आए तब शायद सात साल की थी। पर आज भी मैं अच्छे से वर्णन कर सकती हूँ उस घटना का। मुझे उस दिन और उन क्षणों का भय याद है और ये भी बहुत अच्छे से याद है किस सौम्य भाव से बाबा अपना काम कर रहे थे, चेहरे पर एक तटस्थ भाव लिए हुए।

बलात्कार दुष्कर्म तो हमारे देश में आम बात है जिन्होंने निर्भया को मार डाला या हैदराबाद की वेटनरी डॉक्टर को जला डाला। क्या वो सब नागार्जुन थे? शायद वो अनपढ़ और अशिक्षित थे ना?

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पर नागार्जुन आप सबके प्रिय बाबा तो बहुत बड़े आदमी थे। देश के इतने बड़े कवि भी इस तरीक़े से गर्त में गिर सकते हैं? एक ऐसा व्यक्ति है जिसके साथ जुड़ने के लिए शायद भारत देश की कई महिलाएँ सहर्ष राज़ी होती जाती। महिलाओं के साथ उनके संबंध कैसे थे मुझे नहीं मालूम मैं जानना भी नहीं जाती। परंतु वो मेरे साथ क्या कर रहे थे?

7 साल की बच्ची के साथ? वह बहुत बड़े आदमी थे। शायद इंसान ऐसे ही बनता है बडा। वरना मामूली लोग रेप करते हैं पकड़े जाते हैं मार दिए जाते हैं। बड़े लोग आपके ही घर में घुसकर आप की ही रोटियां खाकर आपकी ही बेटियों को खा जाते हैं। मेरे मां पिता दोनों ने भरोसा किया था और ये बड़ा आदमी उन्हीं की बच्ची को ज़िंदगी भर का डर भेंट में देकर चला गया।

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डर मेरे जीवन का एक बड़ा भाव है न जाने में किन किन चीज़ों से डरती हूँ ना जाने कौन कौन लोग मुझे डरा जाते हैं शायद कोई सुनना पसंद नहीं करेगा और न ही कोई पूछना पसंद करेगा कि ये डर कैसा है ।मैं रोज़ इस डर से झगड़ती हूँ ,कब कब और कैसे कैसे बेवजह डर जाती हूँ इसका मेरे पास हिसाब भी नहीं।

डर के चलते मैंने कितने पुरुषों के साथ रिश्ते ख़राब किए है इसकी गिनती भी नहीं, भीतर जो काला धुआँ पसरा रहता है वो बाहर का बहुत कुछ निगल जाता है।

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जिससे प्रेम करने लगती हूँ उसे कह सकूं ये संभव ही नहीं। इतना परखती रहती हूँ पुरुषों को न जाने कितने लोगों का धैर्य का बाँध टूट चुका है। भरोसा किसी पुरुष पर आज भी शायद ही करती हूं।

कोई भी एक सीमा को लाँघ कर भीतर के प्रवेश द्वार तक नहीं पहुँच पाया। महिला मित्र ज़रूर एक स्पेशल status लिए हैं मेरे जीवन में। मुझे बड़ा नहीं बनना ओर हर बड़े से मुझे बू आती है।

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I wonder if anyone reaches any heights without any committing any crime, little or big that is out of question. Our heroes have feet of clay.

इस फेसबुक पोस्ट की लेखिका का नाम नहीं दिया जा रहा है क्योंकि यौन शोषित महिला और उनके परिजनों का नाम पहचान का खुलासा करना कानूनी रूप से गलत है। इसीलिए तदनुसार उपरोक्त पोस्ट में भी संशोधन किया गया है। हालांकि खुद लेखिका ने फेसबुक पर अपने, अपने माँ पिता के नाम पहचान के साथ ये पोस्ट पब्लिश की है।

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0 Comments

  1. आलोक शुक्ला

    January 9, 2020 at 10:28 pm

    हद होती है किसी बात की, मौत के बाद इतने कालजयी कवि का चरित्रहनन करना किसी अपराध से कम नहीं … यह महज पब्लिसिटी स्टंट है, और अगर ऐसा था तो इतने सालों बाद बोलने का क्या तुक है ?

  2. पुष्पराज

    January 14, 2020 at 4:39 pm

    जिस बात की कोई प्रामाणिकता नहीं,उसे आप खबर बनाते हैं तो आपकी अपनी विश्वसनीयता भी प्रभावित होती है।जिस फेशबुक को सत्य मानकर आपने खबर बना दिया।वह पोस्ट किसी कानूनी कार्रवाई के बिना गायब हो चुका है। पत्रकारिता तो सत्य की पड़ताल की शर्त से शुरू होती है।एक फेशबुक पोस्ट आया और गायब हो गया तो बचा गया।गुब्बारे की हवा निकल गई ,गुब्बारा फूट गया तो आभासी दुनियाँ में बच क्या गया।भड़ांस में खबर अब तक कायम है।भारतीय उपमहाद्वीप के एक महान कवि की मृत्यु के दशकों बाद इस तरह उनके चरित्रहनन की साजिश से भारत राष्ट्र महान गौरव प्राप्त कर रहा है।पत्रकारिता मानवता के पक्ष में ना हो तो भड़ांस के क्या मायने?

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