नासिर जी आपकी पोस्ट देखर मैं बहुत विचलित हुआ, आहत भी. विचलित इसलिए क्योंकि आपने ज़ी मीडिया छोड़ने का जिसे आधार बनाया है, वो दूसरों को बरगलाने जैसा है. आप ना सिर्फ जामिया के छात्रों को बरगला रहे हैं बल्कि आप इस्लाम के नाम पर झूठ भी बोल रहे हैं. इस्लाम में तो ऐसा कतई नहीं है.
नासिर जी, हर कोई अपनी बेहतरी के लिए किसी भी संस्थान को छोड़ने के लिए स्वतंत्र होता है. लेकिन सवाल यहां बेहतरी की नहीं, बल्कि मौका देखकर खुद को शहीद दिखाने का था . CAA,जेएनयू जैसे मुद्दों का सहारा लेकर आपने उस संस्थान गलत ठहराने की कोशिश की, जहां सालों से आपकी रोजी रोटी चलती रही. जहां से आप लाखों की तनख्वाह उठाते रहे . आपने अपनी लंबी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि ज़ी मीडिया को आपने जामिया के छात्रों के आंदोलन के लिए बाय-बाय बोल दिया. लेकिन इसके पीछे सच्चाई क्या है, मैं बताता हूं.
सच्चाई यही है कि आपने खुद से मोरल ग्राउंड पर ज़ी मीडिया नहीं छोड़ा, बल्कि आपको वहां से रुखसत होने का लेटर मिला था. आपको ज़ी मीडिया ने 4 दिसंबर को एक महीने का नोटिस जारी किया था, जिसमें साफ-साफ जिक्र है कि आप PIP में थे.
PIP मतलब परफॉर्मेंस इम्प्रूवमेंट प्लान. संस्थान किसी भी नानपरफॉर्मर को अपना परफॉर्मेंस सुधारने के लिए 1 महीने का वक्त देता है और अगर तब भी कोई सुधार नहीं हुआ तो राम-राम.
आपको पता था कि 4 जनवरी को आपको वहां से रुखसत कर दिया जाएगा. इसलिए मौके पर चौका जड़ने में आपने जरा भी देर नहीं लगाई. जामिया के छात्रों और अपने लोगों के बीच खुद को हीरो बनाने के लिए लंबी चौड़ी पोस्ट लिख डाली.
इस पोस्ट के साथ लेटर भी अटैच है, सच्चाई ये भी आपको बताना चाहिए था ना?
उम्मीद नहीं थी कि जिस संस्थान ने आपको 10 सालों से भी ज्यादा वक्त तक आसरा दिया, जहां की बदौलत आपकी दाल-रोटी चलती रही, वहां से रुखसत होते समय झूठी जमीर को आगे कर दीजिएगा. अपनी पोस्ट में तो जेएनयू, एएमयू, कन्हैया कुमार और जामिया का सहारा लिया है, कि इससे दुखी होकर आपने कदम उठाया. तब आपकी जमीर क्यों नहीं जगी थी जब जेएनयू हुआ था, एएमयू हुआ था और जब जामिया की घटना हुई.
अब जबकि आपको अहसास हो चुका था कि ज्यादा दिन तक ज़ी मीडिया में ठहरने वाले नहीं, तब आप जामिया के छात्रों और दूसरे लोगों को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया!
आपसे सवाल पूछने वाले पूछ क्यों नहीं रहे कि इतने दिनों तक वहां क्या करते रहे आप? आपकी जमीर के मुताबिक 2016 में ही ज़ी मीडिया को बाय बाय बोल देना था.., लेकिन कौन छोड़ता है मोटी तनख्वाह को, वो भी लाखो की तनख्वाह को. लेकिन यहां तो जमीर का मसला था ही नहीं, आपने तो जमीर के नाम पर दूसरों को बेवकूफ बनाना शुरू कर दिया…
आपकी सच में जमीर है तो खुद से सोचिएगा जरूर. CAA और NRC के बारे में अफवाह फैलाने वालों में आप भी शामिल हैं…
आपको सच्चाई मालूम है, इसलिए PIP का ये लेटर उनके लिए अटैच कर रहा हूं, जो आपके बारे में जानते नहीं हैं.
लेखक अमित कुमार सिंह जी मीडिया से संबद्ध हैं.
मूल खबर-
Raj Narayan
December 26, 2019 at 12:01 pm
PIP yaani poor in performance letter to ramesh chandra ko bhe diya gaya tha par aaj wo output editor hain, is se ye kaise sabit hota hai ki aap naukri lene wale the… Ye letter sirf safai hai
Ayush Sinha
December 31, 2019 at 1:22 am
हां भइया, लगता है कि मीडिया इंडस्ट्री के बारे में ठीक से आपको पता नहीं, अगर पता होता तो शायद आप रमेश चंद्रा की तुलना एक HABBITUAL Non-performers के साथ नहीं करते। अगर मीडिया की थोड़ी सी भी जानकारी होती तो ये जानते होते कि रमेश चंद्रा ज़ी एमपी से लेकर ज़ी बिहार, ज़ी राजस्थान तक जैसे चैनलों को 6% से 60 % तक पहुंचा चुके हैं। और यही कारण था कि दुनिया के पहले मल्टीलैंग्वेज चैनल ज़ी हिन्दुस्तान की जिम्मेदारी मिली और सफलतापूर्वक वही चला रहे हैं। आप दीया लेकर ढूंढेगा तो भी कोई नहीं मिलेगा इस इंडस्ट्री में।