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राष्ट्रीय सेक्स सर्वे : कम उम्र में शारीरिक संबंध बनाने के मामले में लड़कियां लडक़ों से आगे

सुनील कुमार-

भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट बता रही है कि 18 साल की उम्र तक यौन संबंध बना लेने वाले लोगों में लड़कियों की संख्या लडक़ों से ज्यादा है। चूंकि यह भारत सरकार का किया हुआ सर्वे है, और आज की सरकार कमउम्र में सेक्स को बढ़ावा देने वाली तो है नहीं, इसलिए यह मानने की कोई वजह नहीं हो सकती कि यह सर्वे गलत होगा। दूसरी बात, इस सर्वे में ही यह लिखा गया है कि ये आंकड़े पूरी तरह से लोगों से बातचीत पर आधारित हैं, और भारत में महिलाएं और लड़कियां इस तरह के रिश्ते पर बात करने में हिचकिचाती हैं, इसलिए हो सकता है कि जितने आंकड़े बताए गए हैं, उनमें आधे छुपा लिए गए हों। रिपोर्ट यह भी कहती है कि गांव की लड़कियां शहर की लड़कियों के मुकाबले कमउम्र में सेक्स-संबंध बनाती हैं। यहां यह समझने की जरूरत है कि यह सर्वे शादीशुदा और बिना शादी वाली, सभी किस्म की लड़कियों और महिलाओं के बारे में हैं, और इसका एक तथ्य यह भी बताता है कि युवकों में 6 फीसदी ने सेक्स वर्कर से देह-संबंध की शुरुआत बताई है, लेकिन महिलाओं के एक हिस्से का कहना है कि उन्होंने अपने परिचितों के साथ सेक्स की शुरुआत की थी।

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यह राष्ट्रीय सर्वे कई किस्म के मकसद को लेकर किया गया है जिसमें सहमति से सेक्स की उम्र को घटाने की की जा रही मांग पर विचार करने के लिए भी एक जमीन तैयार होगी, और भी कई किस्म के कानूनों में इसके बाद सोचने-विचारने की जानकारी सामने आएगी। अभी माना जा रहा है कि परिवार की सोच, किशोरों और युवाओं के बदन की जरूरत, नौजवानों के आपसी रिश्ते, और कानून, इनके बीच कोई ठीक-ठाक तालमेल नहीं है। हो सकता है कि ऐसे सर्वे के बाद अगर इस पर कोई गंभीर विचार-विमर्श हो, तो कुछ कानून बदल सकते हैं जो कि नौजवान पीढ़ी की जिंदगी को कुछ आसान कर सकते हैं।

इसके साथ-साथ हम यह भी कहना चाहते हैं कि जब लडक़े-लड़कियों का एक पर्याप्त बड़ा हिस्सा 15 बरस की उम्र में सेक्स-संबंध बनाने की बात खुद होकर मंजूर कर रहा है, तो इस पीढ़ी की सेक्स की जानकारी में इजाफा करने, उन्हें वैज्ञानिक बातों को समझाने, और पहले सेक्स के पहले उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व बनाने की जरूरत दिख रही है। भारत के स्कूलों और कॉलेजों में देह-शिक्षा या सेक्स-शिक्षा की बात आधी सदी से चल रही है, लेकिन लोगों का एक हिस्सा ऐसा है जो इसे पश्चिमी संस्कृति बताता है, और इसका विरोध करने के लिए झंडे-डंडे लेकर टूट पड़ता है। इसे भारतीय संस्कृति के खिलाफ, हिन्दू धर्म के खिलाफ बता दिया जाता है, जबकि भारतीय संस्कृति में सैकड़ों बरस पहले से खजुराहो जैसे अनगिनत मंदिरों की दीवारों पर सेक्स की प्रतिमाएं बनी हुई हैं जो बताती हैं कि इस देश में मुगलों और अंग्रेजों के आने के सैकड़ों बरस पहले से सेक्स पर खुलकर चर्चा होती थी।

वात्सायन ने कामसूत्र जैसा विश्वविख्यात ग्रंथ तीसरी शताब्दी के बीच में किसी समय तैयार किया था जो कि सेक्स के आनंद के पहलू पर दुनिया का एक सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। इतिहास गवाह है कि हिन्दुस्तान ने अपने बेहतर वक्त में सेक्स को गंदा नहीं माना, और इसे जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना। हाल की सदियों में धर्म ने अपने पाखंड का प्रचार करते हुए सेक्स की भावना के लिए तरह-तरह के अपराधबोध वाले शब्द गढ़े, और लोगों के मन में इसके लिए वैराग्य और हिकारत पैदा करने की कोशिश की। ऐसे ही कुछ तथाकथित शुद्धतावादियों ने जिंदगी से सेक्स को बाहर करने की कोशिश की, और एक चर्चित तथाकथित आध्यात्मिक संगठन तो पति-पत्नी को भाई-बहन की तरह रहने को कहता है। जाहिर है कि ऐसे दाम्पत्य जीवन से पति-पत्नी कहीं न कहीं अलग-अलग सेक्स ढूंढने लगेंगे, और उससे समाज में बवाल बढ़ेगा ही, सेक्स कहीं कम नहीं होगा।

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कभी धर्म का नाम लेकर, कभी तथाकथित सांस्कृतिक मूल्यों का नाम लेकर हिन्दुस्तान में एक कट्टर तबका लोगों को, खासकर नौजवानों को सेक्स से दूर रहने की नसीहत देता है। नौजवान तन और मन अपनी जरूरतों को पूरा करने के रास्ते ठीक उसी तरह ढंूढ लेते हैं जिस तरह किसी पहाड़ी नदी का पानी अपने लिए रास्ता ढूंढ लेता है, इस रोक पाना मुमकिन नहीं होता, असल इंसानी जिंदगी में कांक्रीट के बांध तो बनाए नहीं जा सकते कि नौजवान तन-मन की जरूरतों को रोक दिया जाए। नतीजा यह होता है कि समाज नई पीढ़ी को सेक्स की जानकारी देना नहीं चाहता, और यह पीढ़ी बिना वैज्ञानिक समझ के, अपनी सामान्य समझबूझ से, या फिर हाल के दशकों में इंटरनेट की मेहरबानी से हासिल पोर्नोग्राफी को ही सेक्स-शिक्षा मानकर आगे बढ़ जाती है। नतीजा यह होता है कि बदन के प्राकृतिक और स्वाभाविक काम को यह पीढ़ी पोर्नोग्राफी के नजरिये से देखती है, और उसकी वजह से उसका बड़ा नुकसान भी होता है, उसमें एक अलग और अजीब किस्म की हिंसा भी आ जाती है, इस पीढ़ी को यह लगने लगता है कि पोर्नोग्राफी में दिखाए गए तरीके ही सेक्स के स्वाभाविक तरीके हैं।

भारत सरकार के इस ताजा सर्वे की जानकारी से यह बात साफ होती है कि लड़कियों को घर में दबाकर रखना, और लडक़ों को बिना किसी जानकारी और समझ के खुला छोड़ देना कामयाब नहीं हो पा रहा है। इससे सेक्स रूक नहीं रहा है, यह एक अलग बात है कि ऐसे अपरिपक्व उम्र और दिमाग के, और परिपक्व बदन के सेक्स में कोई सावधानी शायद न बरती जा रही हो। इसके बहुत किस्म के खतरे हैं, लड़कियों के गर्भवती हो जाने से लेकर दोनों ही जोड़ीदार के किसी सेक्स-बीमारी को पा लेने तक कई चीजें हो सकती हैं। आज जब अदालतों में यह बहस चल रही है कि सहमति से सेक्स की उम्र घटानी चाहिए, तो यह बात जाहिर है कि ऐसी घटी हुई उम्र के साथ सेक्स की जानकारी भी देनी चाहिए, उसकी समझ भी देनी चाहिए, और खतरों से बचने की नसीहत भी इसी के साथ दी जा सकती है। अपने आपको ऐसा पाखंडी बनाए रखना कि इस देश में शादी के पहले कोई सेक्स नहीं होता, एक झूठे सांस्कृतिक-अहंकार को तो सहला सकता है, लेकिन नई पीढ़ी को वह शर्तिया खतरे में धकेलता है। किसी भी जिम्मेदार और समझदार समाज को एक ऐसे इतिहास में जीने की कोशिश नहीं करना चाहिए जो कि कभी हुआ ही नहीं है। ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बिना सत्तारूढ़ राजनीतिक दल अपनी पहल से किसी सेक्स-शिक्षा को शुरू कभी नहीं करेंगे, उन्हें उन वोटरों की नाराजगी की आशंका होगी, जिन्हें खुद राजनीतिक दलों ने पाखंडी बना रखा है। इसलिए जरूरत पड़े तो कोई जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाना चाहिए, और बताना चाहिए कि वोटरों के मोहताज राजनीतिक दल कभी अपनी सरकार रहते यह काम नहीं करेंगे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ही वैज्ञानिक समझ रखने वाले मनोचिकित्सकों और शिक्षाशास्त्रियों की एक विशेषज्ञ कमेटी बनाकर देश में देह या सेक्स-शिक्षा लागू करे।

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