Ratan Bhushan : साथियों, अख़बार मालिकानों और मैनेजमेंट का नया खेल शुरू हो गया है। उन्होंने अब फैसले का समय नजदीक आते देख मजीठिया के केस से जुड़े कुछ अहम् लोगों से संपर्क करना शुरू कर दिया है।उनकी मंशा अब साफ है कि आंदोलनकारियों का हिसाब अगर कर दिया जाय, तो क्या वे टी ओ आई के लोगों की तरह अपना केस वापस ले लेंगे? अब हम बात यह है कि ऐसा क्यों किया जा रहा है? यह बात मैनेजमेंट के लोगों द्वारा की गई बातचीत से स्पष्ट होती है कि जैसे जैसे माननीय सुप्रीम कोर्ट से आर्डर के आने की तारीख नजदीक आ रही है, जिसकी जुलाई में किसी भी तारीख को आने की संभावना है, वैसे वैसे मालिकानों के हाथ पांव फूल रहे हैं।
बात करें दैनिक जागरण की, तो इनके कानपूर में बैठने वाले अहम लोगों ने अब हार मन ली है। जो लोग अभी तक जागरण के संपादक और सी इ ओ संजय गुप्ता को किनारे लगाए हुए थे और उसकी नहीं सुन रहे थे, अब उससे यह कह दिया है कि तुम इस समस्या का हल जैसे चाहो, वैसे निकालो। हम तुम्हारे साथ हैं। सूत्र यह भी बताते हैं कि मालिकानों द्वारा लिए गए इस निर्णय के बाद से मैनेजमेंट के लोगों ने कर्मचारियों में से कुछ लोगों से बात की और राय भी लिया। दूसरी ओर अख़बार की हर यूनिट के मेन लोगों को यह खबर फ़ैलाने के लिए कहा कि जो लोग अंदर हैं और काम कर रहे हैं, उन्हें चिंता करने की कोई बात नहीं। वे आर्डर के आने का इंतज़ार करें, उन्हें पैसा जरूर मिलेगा। वे लोग इसी मुगालते में जी रहे हैं और मालिकानों के चमचों की बात माने बैठे हैं, लेकिन होना कुछ और है।
दरअसल उनके ऐसा करने की वजह साफ है कि उनकी यूनिट में बवाल न हो और उनका अख़बार छपता रहे और मैनेजर, सीनियर्स की नौकरी बची रहे। वर्कर इसी मीठी गोली में मस्त रहें। दूसरी ओर इनका खेल चल रहा है कि आर्डर आने से पहले ही ये मालिकान वर्करों को उनका पैसा देकर राजीनामा ले लें और कोर्ट में उसे टी ओ आई की तरह पेश कर दें। ऐसा करने से वे सभी वर्कर को पैसे देने से बच जाएंगे।
याद रहे कि कोर्ट रूम में माननीय जज श्री रंजन गोगोई ने कई बार यह कहा है कि जिन्होंने केस नहीं किया है वे केस करें। इस बात से भी समझा जा सकता है कि आगे क्या हो सकता है। यहाँ उल्लेखनीय बात यह भी है कि जो दैनिक जागरण फैसला आने के बाद 8000 लोगों के बकाये का भुगतान करेगा, वह आर्डर आने से पहले मात्र 400 वर्करों से सेटलमेंट करके अपनी ढेर सारी राशि नहीं बचाना चाहेगा। अगर कंपनी इन 400 लोगों को मनचाही राशि भी देती है, तो भी उसे बहुत फायदा होगा। फिर जब केस ही ख़त्म हो जायेगा, तो अंदर बैठे कर्मचारी की देनदारी भी ख़त्म, क्योंकि उन्होंने केस ही नहीं किया है।अगर वे केस भी करेंगे, तो अब सुप्रीम कोर्ट में नहीं कर सकते, डी एल सी से शुरुआत करनी होगी और जो कर्मचारी अपनी बात अपने सीनियर के आगे नहीं रख सकता, वह मालिक से केस लड़ेगा, यह बात सोचनीय है।
सूत्र और एक जानकार का यह भी कहना है कि मालिक ऐसा करके ही अपनी जान बचा सकता है, वर्ना उसे कोई नहीं बचा सकता।अगर वह ऐसा नहीं करेगा, तो वर्कर को सारे पैसे तो देगा ही, तमाम वर्कर की ज़िन्दगी भर की देनदारी में फंसेगा सो अलग। तो कौन मालिक ऐसा काम करेगा? समझा जा सकता है।अंदर बैठे लोग मुगालते में जीते हैं, तो उन्हें ऐसा करने का हक़ है, वे शौक से करें।
सूत्र यह भी कहता है कि अगर मालिकान इस काम को जल्द से जल्द करें, उनके लिए यह उतना ही अच्छा होगा।दूसरी ओर लड़ाकू कर्मचारियों की बात है, तो उनके दोनों हाथ में लड्डू है। अगर मालिक सबको देता है, तो और अच्छा, अगर नहीं देता है तो यह उनकी किस्मत है, जो अंदर बैठे जगे में सपना देख रहे हैं। लड़ाकू साथियों को आज नहीं तो कल उनकी राशि मिलनी तय है वह भी सूद के साथ।
इन सब बातों के मद्देनजर ही मालिकानों ने अब वर्करों से बातचीत में रूचि लेनी शुरू की है और जल्द ही कुछ ऐसा हो जाये, इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। जागरण की बात करें तो मालिकानों के पास कंपनी का कोई दमदार बिचौलिया नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि वह अब बाहर से किसी व्यक्ति को लाना चाहता है और यही वजह है कि कानपूर एंड कंपनी ने अपना पाला अब संजय गुप्ता की गर्दन पर डाल दिया है कि अब तुम जो चाहो, करो, हम तुम्हारे साथ हैं।अब इस संजय की दिव्यदृष्टि कहाँ तक जाती है, यह देखने वाली बात होगी। याद दिला दें कि इसी संजय ने बातचीत में कहा था, नौकरी मैं देता हूँ, सुप्रीम कोर्ट नहीं….., सुप्रीम कोर्ट मेरा कुछ नहीं कर सकता, मैं उसकी बात नहीं मानूँगा…, मुझसे वेज बोर्ड कोई नहीं दिलवा सकता…..। उनकी बातें सुनने के बाद मैंने कहा था, फिर आपमें और आतंकवादी में फर्क क्या? संविधान को वे भी नहीं मानते और आप भी नहीं….। फिर मैं निशाने पर आ गया और आज मजे में हूँ। चैन उनकी छिन गई। वे बेकरार हैं….। दोस्तो, इसे ही वक़्त कहते हैं। अंत में…., चैन से सोना है तो जाग जाओ……
दैनिक जागरण के डिप्टी न्यूज एडिटर और मजीठिया क्रांतिकारी रतन भूषण की एफबी वॉल से.
Kriti Nath Jha
June 13, 2017 at 3:33 pm
One of the notorious newspaper management i.e The Statesman’ is not an exception and all along since the notification of ‘Majithia Wage Board’ and later validation by the Supreme Court on February 7, 2017 has been found to be scheming and harassing its employees especially the journalists. This newspaper management first of all had fudged in its balance-sheet to lower its grade that should it not have given more humongous amount in arrears that to guide and increase salaries of the employees journalists. The management also used transferring journalists to other states as a ploy to victimize them and also forcing them to abandon their job. But it didn’t muster courage to sack them. the poor and hapless chaps sitting in the management surely have Damocles’ sword over them and may be counting their days to meet their nemesis.
Prem
June 14, 2017 at 3:45 pm
खबर वैसे एक और है उन लोगो के लिए जो अंदर है।2 महीने का समय मिला है संपादकीय बिभाग में की या तो आप अपना परफॉरमेंस ठीक करे या फिर दुशरी नोकरी देख ले।बहुत से लोगो के पास मेल गया है।लेकिन कोई कुछ भी कहने से बच रहा है।अब बात करे मशीन बिभाग से तो उनको एक तय राशि दी जाएगी और कहा जायेगा कि आप रिजाइन कर दो और नया जॉइनिंग लेटर दिया जाएगा।एक नई कंपनी बन चुकी है उसका TIN no और VAT no अलग है।कंपनी कानपुर से रजिस्टर है।उसमें जोइनिंग दिखाया जाएगा सभी लोगो को।जो बाद में बगावत करेंगे उनको कानपुर जाकर केस लड़ना होगा।
अगर कोई नही मानता है तो फिर उनका तबादला भी किया जाएगा।
कंपनी का प्लानिंग खुलकर अभी सामने इसलिए नही आ रहा है कि मामला अभी माननीय कोर्ट में है ।जिस दिन मजीठिया का मामला हल हो गया उसके बाद जो लोग अंदर चैन से है वो सब बेचैन होना सुरु हो जाएंगे।
JD no वाले बाद में होंगे J जाओ D ढूंढो No नौकरी कही और