मोदी सरकार कुछ ही दिनों के भीतर लेबर रिफॉर्म यानी श्रम कानून में सुधार के नाम पर 44 श्रम कानूनों को चार व्यापक संहिताओं में बदलना चाहती है. मजदूर संगठनों का मानना है कि मोदी सरकार ईज ऑफ डुइंग बिजनेस और श्रम सुधार के नाम पर श्रमिकों को उनके दशकों पुराने कई मूलभूत अधिकारों से वंचित करने का दरवाजा खोल रही है. नये कानून हायर एंड फायर की नीति को ध्यान में रखकर बनाए जा रहे हैं.
हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल २०१९ में मीडिया की क्या स्थिति है, इस पर कहा जा रहा है कि सरकार के नये कोड बिल में समाचार चैनलों के रिपोर्टर और कैमरामैन भी होंगे कवर… बिना वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट से छेड़छाड़ किये मीडियाकर्मियों को अतिरिक्त लाभ मिलेगा…
केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल २०१९ में श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और अन्य प्रावधान) अधिनियम १९५५ के साथ साथ श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम १९५८ को भी शामिल किया गया है. इस पर कई लोगों ने संदेह जताया है कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के इस बिल में शामिल होने पर पत्रकारों के अधिकार सुरक्षित नहीं रहेंगे. इस मसले पर पत्रकारों के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के एक वकील क्या कहते हैं, आइए जानें.
मैंने सरकार द्वारा मंजूर किए गए हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल २०१९ के ड्राफ्ट का अध्ययन किया. इस बिल में पत्रकारों के लिये बने श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचार पत्र कर्मचारी (सेवा शर्तें और अन्य प्रावधान) अधिनियम १९५५ के साथ साथ श्रमजीवी पत्रकार (निर्धारित वेतन दर) अधिनियम १९५८ शामिल किया जा रहा है जिससे किसी प्रकार के डरने की कोई जरुरत मीडियाकर्मियों को नहीं है। कुछ चीजों को भी नये बिल में शामिल किया जा रहा है जिसमें आडियो वीडियो के क्षेत्र भी हैं. इससे सिनेमा कामगारों के साथ साथ न्यूज चैनलों में काम करने वाले कैमरामैन और रिपोर्टरों की ड्यूटी टाईम भी तय होगी तथा एक तरीके से सरकार उन्हें भी इस बिल में कवर कर रही है जो अब तक वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में अछुते थे. इससे उन्हे कई लाभ मिलेंगे.
अब तक वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट में ड्युटी के दौरान दुर्घटना होने पर घायल होने या मीडियाकर्मियों की मृत्यु होने की दशा में उनके परिजन को मुआवजा का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशन कोड बिल २०१९ में उसे भी शामिल किया गया है. इस बिल में कुछ चीजों को और शामिल किया गया है. इस बिल के कानून बन जाने के बाद कंपनियों को अपने कर्मचारियों का सालाना हेल्थ चेकअप करना अनिवार्य होगा. कंपनियों को अपने कर्मचारियों के लिए कैंटीन व उनके बच्चों के लिए झूलाघर (क्रेच) की सुविधा देनी होगी.
इस बिल में देश की सभी कंपनियों के कर्मचारियों को अब अप्वाइंटमेंट लेटर देना जरूरी किया गया है. साथ ही उन्हें वेतन देने का एक निश्चित दिन तय करना पड़ेगा. महिलाओं के लिए वर्किंग आवर ६ बजे सुबह से ७ बजे शाम के बीच ही रहेगा. ७ बजे शाम के बाद अगर वर्किंग आवर तय किया जाता है तो सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की होगी. ये सब नए प्वाईंट हैं और बिना वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट से छेड़छाड़ किये मीडियाकर्मियों को ये सुविधायें दी जार ही हैं जो अच्छी बात है.
जहां तक समाचार पत्र कर्मियों की बात है तो बिल से इन मीडिया कर्मियों को अतिरिक्त लाभ मिलेगा. वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट को इसमें एड किया गया है. उसमें से कोई भी धारा चाहे वह १७ हो या कुछ और, उसे हटाया या अलग नहीं किया जा रहा है. इसलिए बिल से डरने की कोई बात नहीं है. इस बिल से कोई पूर्व कानून शिथिल नहीं हो रहा है.
शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५
Amarnath Kosuri
July 25, 2019 at 10:13 pm
The addition of electronic media journalists in the definition of Working Journalists is vague and half hearted. They just mentioned electronic media along with radio and others but mentioned the designations of print media only.
Instead of including ot in labour code have retained Working Journalists Act and include the electronic and online media in it.
It is not of much use for electronic media journalists.