-शिशिर सोनी-
अर्णब गोस्वामी को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भिंगा भिंगा के जूते मारे हैं। पत्रकारिता के नाम पर सुशांत केस में जिस तरह अर्णब और उसके चैनेल ने नंगई की है वो इतिहास के काले पन्ने में दर्ज होगा।
आत्महत्या को हत्या ठहराने पर उतारू होने के कारण अर्णब ने रिया चक्रबर्ती को हत्यारा बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वो भी तब जब जाँच चल रही थी। रिया अब रिहा हैं।
कोर्ट ने नेशनल ब्रॉडकास्टर फेडरेशन से भी सवाल किया कि आपने ऐसी मीडिया ट्रायल पर स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लिया?
अर्णब टाइप अतिशयोक्ति पूर्ण पत्रकारिता करने वाले चाहे इधर के हों या उधर के, उन्हें सुधरना ही होगा। वर्ना अभी तो कोर्ट लानत मलानत कर रही है, वो दिन दूर नहीं जब आम जनता हर चौक चौराहे पर मलानत कम लानत ज्यादा करेगी। लातें मार मार कर।
-संजय कुमार सिंह-
मुंबई हाईकोर्ट में सुशांत सिंह राजपूत से संबंधित मामले में मीडिया ट्रायल की कई याचिकाओं की सुनवाई चल रही है। रिपबलिक टीवी की तरफ से रिपोर्टिंग की आवश्यकता और वैधता का दावा किया गया पर अदालत ने रिपोर्टिंग के तरीके पर नामंजूरी जताई और कहा, “आत्महत्या की रिपोर्टिंग से संबंधित कुछ दिशा निर्देश हैं। लाइव लॉ की दूसरी और बाद की एक खबर का शीर्षक है, अगर आप जांचकर्ता, अभियोजक और जज बन जाएंगी तो हम यहां किसलिए हैं? शाम साढ़े पांच बजे के बाद की इस खबर के अनुसार अदालत ने मीडिया ट्रायल पर चिन्ता जताई।
अर्नब गोस्वामी के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में चल रहे मामलों में सरकारी वकील कपिल सिब्बल हैं और यह वैसे ही है जैसे जज लोया की मौत की जांच की मांग करने वाली अपील का विरोध करने के लिए उस समय के मुख्यमंत्री फडनविस के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने हरीश साल्वे को अपना वकील बनाया था।
हरीश साल्वे ने अदालत में कहा था कि जज लोया की हत्या का शक बांबे हाईकोर्ट और कुछ जिला जजों पर जताया जा रहा है (हालांकि मामला ऐसा है नहीं पर बहुत उदारता से देखें तो ऐसा कहा जा सकता है और माहौल बनाने के लिए उपयोग करना बहुत ही शानदार प्रतिभा का काम है) और अगर ऐसा है तो न्यायिक समीक्षा और ऐक्टिविटिज्म का कोई मतलब नहीं है। बेशक यह तर्क दमदार है लेकिन यह सवाल अपनी जगह बना हुआ है कि महाराष्ट्र सरकार को जांच से परहेज क्यों था और इतने महंगे वकील की जरूरत क्यों पड़ी?
जवाब अब कपिल सिब्बल को महाराष्ट्र सरकार का वकील बनाए जाने में देखा जा सकता है। टीआरपी छेड़छाड़ से संबंधित मामला सीबीआई को दिए जाने की संभावना के मद्देनजर महाराष्ट्र सरकार ने आज सीबीआई की राज्य में जांच के लिए मिली आम सहमति आज खत्म कर दी।