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JNU : शिक्षा का अधिकार फंसा है ‘गुरु’, कैसे बनोगे विश्वगुरु?

JNU फीस वृद्धि का मामला इन दिनों सुखियों में है. JNU के कैंपस से उठी आवाज़ देश के हर घर तक पहुंच चुकी है. लेकिन क्या आपको नहीं लगता है कि फीस वृद्धि का मुद्दा सिर्फ JNU नहीं बल्कि पूरे देश की समस्या है. क्या आपको नहीं लगता है कि JNU से उठी इस चिंगारी को पूरे देश में आग की तरह फैल जाना चाहिए. क्या आपको नहीं लगता है कि अपने बच्चे की फीस जमा करते समय आप भी इसका शिकार हुए हैं.

मसलन JNU में जिस फीस वृद्धि का मसला इन दिनों देश के अखबारों की सुर्खियां बन रहा है. वो लखनऊ विश्वविद्यालय. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी. BHU. यूपी कॉलेज. MCU. BU. DAVV. पटना यूनिवर्सिटी. KU. AMU जैसे विश्वविद्यालयों या डिग्री कॉलेजों में फीस वृद्धि को लेकर क्यों नहीं बनता ? इस बार लखनऊ विश्विद्यालय में (GEN) कैटेगरी की फॉर्म फीस 1 हजार रुपए थी. यहां आपको BA भी करना हो तो कम से कम 13 हजार रुपए देने होते हैं. जबकि सेल्फ फाइनेंस की फीस करीब 36 हजार रुपए है.

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बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी यानि B.Tech की फीस 2 लाख 20 हजार है. कुछ इसी तरह का हाल दूसरे विश्वविद्यालयों का भी है. मसलन पटना यूनिवर्सिटी में MSC की फीसद 54 हजार 700 प्रति वर्ष है. माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में BSC की फीस करीब 60 हजार है. यहां मास्टर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन [MJMC] की फीस 34 हजार 110 रुपए है.

मुझे आज भी याद है कि जब हम यहां से बैचलर ऑफ मास कम्यूनिकेशन (BMC) कर रहे थे. तब हर 6 महीने में 2 किश्तें जमा होती थीं. एक 3450 और एक 4450 रुपए की. ये 3450 और 4450 रु. भरने में जान निकल जाती थी. किसी से उधार लेना पड़ता था. किसी की बात सुननी पड़ती थी. कभी घर से पैसा मिलता था. कभी नहीं मिलता था और 1 दिन भी लेट हो जाएं तो लेट फीस अलग से. करीब 35 से 40 हजार रुपए भरकर हम अपना ग्रेजुएशन पूरा कर पाए थे.

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तब अपनी तकलीफ किसी से कम नहीं थी लेकिन दूसरों का दर्द देखकर अपना गम कम लगता था. आज भी मैं वो वाकया भूल नहीं पाया हूं. जब मेरे मित्र अनिल पांडेय प्रतापगढ़ से लखनऊ यूनिवर्सिटी BA करने आए थे और पिता ने मना कर दिया था कि हालात ऐसे नहीं हैं कि फीस भरी जा सके. तो अनिल पांडेय ने गेंहू की बोरी बेचकर अपनी फीस जमा की थी. आज वो भारतीय सेना का हिस्सा हैं. कुछ इसी तरह का हाल DAVV का है. यहां भी MA की फीस 18 हजार रुपए है. मैं यहां उन डिग्रियों की बात कर रहा हूं. जिनकी फीस सबसे कम है. यानि यहां सामान्य परिवार से आने वाले छात्र को कम से कम इतने पैसे तो खर्च करने ही होंगे.

अब अगर बी.ई. (Bachelor of Engineering) करेंगे तो यहां की फीस करीब 2 लाख 50 हजार है. फिल्म एंड टेलीवीज़न इंटीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) की एंट्रेंस एग्जाम फीस 4 हजार रुपए है. मौजूदा दौर में यही हालात हैं देश के विश्विद्यालयों के. अब बताइए कहां है आपका शिक्षा का अधिकार ? अब ज़रा ये सोचिए कि जिस देश की प्रति व्यक्ति आय करीब 1 लाख 25 हजार हो. वो 2-2 लाख फीस कहां से भरेगा?

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जबकि हमारे प्राचीन भारत में गुरुकुल होता था. जहां फीस की कोई परंपरा ही नहीं थी. गुरु शिक्षा दान में देते थे और समय आने पर शिष्य अपने गुरु को गुरु दक्षिणा देते थे. लेकिन कुछ लोगों ने इसे दुनिया का सबसे बड़ा कारोबार बना डाला. जिस देश में गुरु ही चेले को चपत लगा रहा हो वो देश विश्व गुरु कैसे बनेगा?

मैं JNU का छात्र नहीं हूं ना कभी रहा हूं लेकिन फीस वृद्धि की समस्या को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. JNU गरीब छात्रों की लॉटरी है लेकिन इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि JNU के मुद्दे सिर्फ JNU के कैंपस तक ही सीमित रह जाते हैं. जबकि मौजूदा दौर में जरूरत है कि JNU से निकली इस चिंगारी को देशभर में आग की तरह फैला दिया जाए. कोई नहीं भूल सकता है कि CPM के पूर्व महासचिव प्रकाश करात यहीं से पढ़े हैं. देश की मौजूदा केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण यहीं से पढ़ी हैं.

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पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी यहीं से पढ़ी हैं. दिल्ली उत्तर पश्चिम से पूर्व बीजेपी सांसद उदित राज यहीं से पढ़े हैं. केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर यहीं पढ़े हैं और तो और इस बार अर्थशास्त्र में नोबेल सम्मान पाने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी भी JNU से हैं फिर भी हमें JNU की प्रतिभा पर शक है. जो नहीं होना चाहिए लेकिन मेरा मानना है कि JNU के गौरवशाली इतिहास को अगर और स्वर्णिम बनाना है तो JNU के छात्रों को दूसरे विश्विद्यालयों के छात्रों के साथ मिलकर फीस वृद्धि के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत करनी चाहिए.

याद कीजिए दुनिया का पहला विश्विद्यालय तक्षशिला भारत में ही था. अखंड भारत की धरोहर आचार्य चाणक्य और पाणिनी की कर्म भूमि तक्षशिला ही थी. जिसे विश्व का प्रथम विश्वविद्यालय माना जाता है. एशिया में शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र यही हुआ करता था. एक अनुमान के मुताबिक इसकी स्थापना 6वीं से 7वीं ईसा पूर्व के मध्य हुई थी. यहां पर भारत के साथ-साथ चीन. सीरिया. ग्रीस और बेबिलोनिया के छात्र भी पढ़ते थे.

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326 ईसा पूर्व में तक्षशिला के राजा ने सिकंदर के सामने घुटने टेक दिए थे. तब तक्षशिला के छात्रों ने सिकंदर से डटकर मुकाबला किया था. क्यों कि तब सिकंदर तक्षशिला को तबाह कर रहा था. ये वही समय था जब सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध हुआ था. आज JNU के छात्रों को फीस वृद्धि जैसे सिकंदर से डटकर मुकाबला करना है लेकिन सिर्फ JNU के अंदर ही नहीं बाहर भी. नहीं तो आप सिर्फ मगध के राजा घनानंद बनकर रह जाएंगे. जो ये सोचते रह गए थे कि जब हम पर गुज़रेगी तो देखेंगे.

अनुराग सिंह
पत्रकार
दिल्ली
9415638052
[email protected]

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2 Comments

2 Comments

  1. Sonu

    November 17, 2019 at 9:35 pm

    Jo aaj abhivakti ki aajadi zee news ke saath hua uska kya.
    @

  2. samarjeet

    November 19, 2019 at 12:09 am

    जे एन यु को बुढे स्टूडेंट को सब सी डि मिलना चाहिए ताकि वो आगे चलकर अफजल और याकुब मेनन बन सके।

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