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दिल्‍ली जाएंगे आनंद पांडे, नईदुनिया इंदौर के नए संपादक बन सकते हैं सदगुरू शरण!

{jcomments off}: कानाफूसी : नईदुनिया इंदौर के संपादक आनंद पांडे को जल्‍द ही दिल्‍ली बुलाया जा रहा है. वे दिल्‍ली में प्रशांत मिश्र के साथ जागरण के पॉलीटिकल ब्‍यूरो में काम करेंगे. बदलाव के पीछे नईदुनिया इंदौर में मचे घमासान को बड़ी वजह माना जा रहा है. जागरण कानपुर को लंबे समय से आनंद की कार्यप्रणाली और लॉबिंग की शिकायत मिल रही थी. आनंद के साथ दैनिक भास्‍कर में काम रहे लोगों को नईदुनिया में ज्‍यादा पैसे और ज्‍यादा वेतन पर लाने के बाद विवाद शुरू हुए थे. सबसे बड़ा व निर्णायक विरोध इंदौर सिटी रिपोर्टर्स की तरफ से सामने आया था. सभी रिपोर्टर्स ने खुले तौर पर व्‍हाट़सएप पर अपने फोटो की जगह काला धब्‍बा लगाकर एक माह तक बगावत बुलंद की थी. कानपुर पहुंची शिकायतों के बाद शुरू हुई गोपनीय जांच में भी रिपोर्टर्स ने तर्क व प्रमाण के साथ अपनी बात रखी थी.

<p>{jcomments off}: कानाफूसी : नईदुनिया इंदौर के संपादक आनंद पांडे को जल्‍द ही दिल्‍ली बुलाया जा रहा है. वे दिल्‍ली में प्रशांत मिश्र के साथ जागरण के पॉलीटिकल ब्‍यूरो में काम करेंगे. बदलाव के पीछे नईदुनिया इंदौर में मचे घमासान को बड़ी वजह माना जा रहा है. जागरण कानपुर को लंबे समय से आनंद की कार्यप्रणाली और लॉबिंग की शिकायत मिल रही थी. आनंद के साथ दैनिक भास्‍कर में काम रहे लोगों को नईदुनिया में ज्‍यादा पैसे और ज्‍यादा वेतन पर लाने के बाद विवाद शुरू हुए थे. सबसे बड़ा व निर्णायक विरोध इंदौर सिटी रिपोर्टर्स की तरफ से सामने आया था. सभी रिपोर्टर्स ने खुले तौर पर व्‍हाट़सएप पर अपने फोटो की जगह काला धब्‍बा लगाकर एक माह तक बगावत बुलंद की थी. कानपुर पहुंची शिकायतों के बाद शुरू हुई गोपनीय जांच में भी रिपोर्टर्स ने तर्क व प्रमाण के साथ अपनी बात रखी थी.</p>

{jcomments off}: कानाफूसी : नईदुनिया इंदौर के संपादक आनंद पांडे को जल्‍द ही दिल्‍ली बुलाया जा रहा है. वे दिल्‍ली में प्रशांत मिश्र के साथ जागरण के पॉलीटिकल ब्‍यूरो में काम करेंगे. बदलाव के पीछे नईदुनिया इंदौर में मचे घमासान को बड़ी वजह माना जा रहा है. जागरण कानपुर को लंबे समय से आनंद की कार्यप्रणाली और लॉबिंग की शिकायत मिल रही थी. आनंद के साथ दैनिक भास्‍कर में काम रहे लोगों को नईदुनिया में ज्‍यादा पैसे और ज्‍यादा वेतन पर लाने के बाद विवाद शुरू हुए थे. सबसे बड़ा व निर्णायक विरोध इंदौर सिटी रिपोर्टर्स की तरफ से सामने आया था. सभी रिपोर्टर्स ने खुले तौर पर व्‍हाट़सएप पर अपने फोटो की जगह काला धब्‍बा लगाकर एक माह तक बगावत बुलंद की थी. कानपुर पहुंची शिकायतों के बाद शुरू हुई गोपनीय जांच में भी रिपोर्टर्स ने तर्क व प्रमाण के साथ अपनी बात रखी थी.

नईदुनिया में प्रभाव बढ़ाने के लिए जागरण प्रबंधन अब अपने भरोसे के लोगों को मध्‍यप्रदेश-छत्‍तीसगढ़ में भेजने के तैयारी कर रहा है. इस कड़ी बिहार में जागरण के कमान संभाल रहे सदगुरू शरण को इंदौर भेजने के तैयारी की जा रही है. सदगुरू को विष्‍णु त्रिपाठी का नजदीकी माना जाता है. बताया जा रहा है कि सदगुरू ने एक माह तक नईदुनिया की समीक्षा कर विस्‍तृत रिपोर्ट भी संजय गुप्‍ता को दी है.

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कानपुर जागरण ने शुरू की नई भर्तियों की जांच

जागरण प्रबंधन ने नईदुनिया में पिछले पांच माह में की गई भर्तियों की जांच शुरू कर दी है. कानपुर कार्यालय में बनी स्‍पेशल टीम ने इस संबंध में कई दस्‍तावेज तलब किए हैं. चर्चा में जो नाम सामने आए हैं उनमें सुनील शुक्‍ला, मनोज प्रियदर्शी, प्रमोद त्रिवेदी, रामकृष्‍ण गौतम व नितिन शर्मा प्रमुख हैं. बताया जा रहा है कि मई के अंत में इन्‍हें नोएडा बुलाया जा रहा है. इसके बाद इन्‍हें मध्‍यप्रदेश के बाहर भेजने की तैयारी है. 

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उपरोक्त खबर कानाफूसी कैटगरी की है. इसलिए तथ्यों पर भरोसा करने से पहले एक बार खुद के स्तर पर जांच करके पुष्टि जरूर कर लें.

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13 Comments

13 Comments

  1. kumar

    May 8, 2015 at 8:11 pm

    Ye kanafusi nihayat he ghatia level ki hai. Samajh nhi aata ki yashwant ji bina kisi padtal ke kaise aaplog is tarah ki betuki baton ko platform dete ho aur kisi ka tool bankar ache & kaam karne wale longon ki chavi kharab karte ho.apko apne is taur-tarike pe chintan karna chahea.

  2. save naidunia

    May 9, 2015 at 5:14 am

    नाक कटवा रहे हो और यशवंत भाई साहब को सीख दे रहे हो कुमार टाईप के बशर्मों नईदुनिया की मुहिम 500 दिन- 500 सवाल की मंगलवार रात भोपाल में जमकर भद पीट गई।
    इसमें एक मंच पर मुख्यमंत्री से प्रदेश की जनता सवाल करने वाली थी। सवाल के लिए कहा गया
    कि पैनल प्रदेश से 50 लोगों के चयन करेगा और वे लोग आमंत्रण पर भोपाल आकर सीएम से सीधी
    सवाल कर सकेंगे। लेकिन पहले तो सवाल तैयार करने में ही जमकर धांधली हुई। गैर जरूरी और
    बकवास टाइप के सवालों का चयन कर लिया गया। मामला यहीं खत्म नहीं हुआ, जिन लोगों को
    बुलाया गया ना तो उनके खाने और पानी की व्यवस्था की गई, ना ही सवाल पूछने का मौका
    दिया गया। मामला तब और बिगड़ गया जब सीएम ने महज 15-20 सवालों के जवाब दिए और
    जाने लगे। लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। नईदुनिया हाय-हाय का नारे लगने लगे। लोगों
    ने सीएम को घेर लिया और उनसे जवाब देने की मांग करने लगे। तब सीएम ने माइक से यहां तक
    कह डाला कि ये कार्यक्रम नईदुनिया और पाठकों के बीच का है। मुझे इसमें अतिथि के बतौर
    बुलाया गया है। जितने जवाब देना थे दे दिए, अब आप जो भी सवाल करना है नईदुनिया से
    कीजिये। इसके बाद तो काफी नारेबाजी हुई, नईदुनिया हाय-हाय से नारे गूंजने लगे। संपादक
    आनंद पांडे कोे भी जमकर गालियां पड़ी कि जब कार्यक्रम चलाने का माद्दा नहीं तो बुलाया
    ही क्यों।
    आखिरकार जैसे-तैसे सीएम को निकाला गया और लोगों का भूखा-प्यासा बिना किराया दिए
    रवाना कर दिया गया। खबर तो यह है कि सीएम ने अध्ािकारियों की भी खूब लू उतारी कि
    इस तरह के कार्यक्रम की रुपरेखा किसने बनाई और मुझे क्यों अंध्ोरे में रख़ा गया? अंत में तो
    हालात यहां तक आ गए कि आनंद पांडे ने जाते-जाते बात करना चाही तो सीएम उखड़ गए और
    इंकार कर चलते बने।
    इसके बाद भी भद पीटने का सिलसिला खतम नहीं हुआ। नईदुनिया में खबर का प्रस्तुतिकरण
    इतना लचर रहा कि पूरा अखबार बिखरा नजर आया। शीर्षक दिया गया कि अगले साल से
    शराब दुकानें जल्द बंद होंगी… अब जनाब पूरे कार्यक्रम में आपके एक भी सवाल में इतना दम
    नहीं था कि सीएम कोई ऐसी घोषणा करते कि तत्काल फायदा मिलता। उधर देर रात तक
    आमंत्रित सवाल कर्ता नईदुनिया कार्यलयों में फोन लगाकर किराया मांगते रहे और गालियां देते रहे।

  3. naidunia ko bachaao

    May 9, 2015 at 5:26 am

    नईदुनिया में छेद करने वाले चूहों ये लो एक और खबर नोएडा से आई जांच के चलते ही पिछले दिनों इंदौर में हुई दो दिवसीय संपादकीय मिटिंग से नितिन शर्मा को बाहर रखा गया. उधर, नईदुनिया ग्रुप के ब्रांच कंट्रोलर सलिल टंडन ने भी इस पूरे मामले की रिपोर्ट कानपुर भेजी है और वहां से मिले निर्देश के बाद पांडे को काफी लताड़ लगाई है. बताया जा रहा है कि पांडे ने लिखित रूप से नईदुनिया के स्‍थानीय प्रबंधन को भरोसा दिलाया है कि जुलाई के अंत तक हर हाल में नितिन शर्मा से इस्‍तीफा मांग लिया जाएगा. मूल रूप से हॉकर का काम करते रहे नितिन को तीन माह पूर्व ही सिटी डेस्‍क का प्रभारी बनाकर लाया गया. भास्‍कर में अनुकंपा नियुक्ति पर काम कर रहे नितिन वहां डाक डेस्‍क पर पुलआउट लगाने का काम करते थे. स्‍टाफ कम होने से उन्‍हें सिटी डेस्‍क पर धकेल दिया गया. इसके बाद अपनी हरिराम नाई की प्रतिभा के बल पर नितिन भास्‍कर इंदौर में काम करने के दौरान पांडे का खास पहरेदार बन गया. नईदुनिया इंदौर का संपादक बनते ही पांडे ने इसे डिप्‍टी न्‍यूज एडिटर बनाकर सिटी डेस्‍क का प्रभारी बना दिया. स्‍वाभाविक था प्रतिभाशाली संपादकीय साथी परेशान होने लगे. संजय गुप्‍ता जी अगर आपको अब भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा है तो आप अंधे हैं. यदि आपको लग रहा है ये सारा झूठ है तो कृपया एक काम कीजिए, अपने भरोसे की टीम बनाकर मोहम्‍मद रफीक, पीयूष भटट, लोकेश वाजपेयी इंदौर सिटी डेस्‍क के अन्‍य साथी या फिर हाल ही में नईदुनिया छोड़कर भास्‍कर गए सत्‍यपाल राजपूत से पूछ लीजिए. यदि आपको इसमें सच्‍चाई नहीं लग रही तो इस हरिराम नाई को नोएडा बुलाकर इसकी परीक्षा ले लीजिए. आदरणीय विश्‍वास तो कीजिए, दूध और पानी का अलगाव यदि आपको दर्द ना बढ़ा दे तो नईदुनिया में चल रहे इस पूरे अंतर्विरोध को झूठ मान लेना.

  4. jaago ab tho jaago

    May 9, 2015 at 5:50 am

    अकल के अंधे कुमार यशवंत भाई साहब ने खबर के साथ ये भी लिखा है- उपरोक्त खबर कानाफूसी कैटगरी की है. इसलिए तथ्यों पर भरोसा करने से पहले एक बार खुद के स्तर पर जांच करके पुष्टि जरूर कर लें। फिर भी ज्ञान पेल रहा है। अबे पांडे की चाटने और क्या करना चाहिये क्या नहीं की बक बक की बजाय काम में ध्यान देता ना तो आज पांडे नियुक्ति घोटाले का सामना नहीं कर रहा होता। ज्ञान पेलने की जगह अपने मालिक के साथ बैठ कर ये चर्चा कर की पांडे की सारी मुहिम एक के बाद एक क्यों फेल हुई? क्यों अखबार को सरकार और पाठक ने गंभीरता से लेना बंद कर दिया है? यह तो प्रबंधन ना समझ है यहां, नहीं तो तुम जैसों को लात मारते हुए जुलूस के रूप में घर छोड़कर आना चाहिये।

  5. g garg

    May 11, 2015 at 3:32 am

    आनंद जी ने अपने आगे-पीछे चापलूसों की फौज खडी कर ली. भोपाल में उन्होंने सुनील शुक्ला नामके दलाल को संपादक बना दिया, जिसकी तानाशाही के चलते भोपाल एडीशन के सभी कर्मचारी नाराज हो गए और एक साथ होकर मजीठिया का केस लगा दिया. नई भर्तियों में उन्होंने कई लोगों को बाहर से आयात किया, जिन्हें तीन गुना वेतन दिलाया और उन्हें काम कुछ नहीं आता है सुनील खुद दो गुना पर आए और अपवने को मालिक समझ लिया सुनील जी को काम क्या आता है इससे भोपाल की मीडिया भलीभांति परिचित है, चापलूसी में माहिर सुनील जी को काम तो आता नहीं हां अपनी चापलूसों की फोज बनाकर मौज करने में माहिर हैं यदि देखा जाए तो सुनील जी ने नवदुनिया में आने के बाद अपना विकास बडी तेजी से किया अपने को पूर्व मं़त्री और वर्तमान सांसद का भतीजा कहने वाला ये संपादक किसी काम का नहीं रहा ये यदि ज्यादा दिन तक टिक गया तो भोपाल एडीशन में ताला जरूर लगवा देगा

  6. नईदुनिया

    May 11, 2015 at 4:19 am

    यह हाल पूरे नईदुनिया का हो चुका है। वेबसाइट डिपार्टमेंट को ही देख लीजिए। वहां भी चापलूसों का जमावडा हो रहा है। खास लोगों को पारी बाहर प्रमोशन और मोटे इंक्रीमेंट से नवाजा गया है। जो लोग जी हुजूरी में जुटे हैं, उनकी मजे में कट रही है। इस विभाग के मुखिया भी प्रबंधन के बडे और खास लोगों की चापलूसी करने में जुटे हैं।

  7. अजनबी

    May 11, 2015 at 10:06 am

    आनंद पांड की औकात, ज्ञान, गहराई, बैकग्राउंड और महत्वाकांक्षा सिर्फ एक छोटे रिपोर्टर की है। भास्कर इंदौर का संपादक रहते तो वह ललित उपमन्यु का पट्ठा बन गया था। बाद में ललित को भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध होने पर हटाया गया था। आनंद को बड़े पद पर जहां भी बैठाया जाएगा, वह तालों की बिक्री बढ़वाएगा।

  8. pankaj tiwari

    May 12, 2015 at 8:09 pm

    Bhaskar ka employee 13 saal ki bachchi se karta tha dushkarm, report darj hote he bhaskar ne nikala————- dainik bhaskar indore N.I.N me kaam karne wale employee sachin shrivastava par 13 saal ki bachchi ke sath dushkarm karne ka gambhir aarope laga hai. Mamla samne aate he bhaskar ne usay terminate kar diya hai. Yah bachchi ranchi ki hai aur sachin ne usay padhane ka jhansa dekar usay indore laya tha. Lekin wo ussay jhadu-pocha aur bartan manjwata tha. Kaam nhi karne par marta-pitta bhi tha. Bachchi ke anushar sachin sharab pita tha aur usne kai dafe uske sath gandi harkat ki. Wah bachchi ko dhamki bhi deta tha ki agar uski patni ko bataya to jaan le lega. Bechari dari-sahmi bachchi sunday ko ro rhi thi to padosiyon ne child line ko phone kar diya aur fir mamle ka khulasa hua. Police ne sachin ke khilap dushkarm ka case darj kiya hai. Bachchi ka medical karaya gya hai. Fir darj hote he sachin shrivastava farar ho gya hai. Bata den ki indore ke daman par pahli baar kisi patrakar ke karan ye ghinauna daag laga hai. Sachin, jo kafi sahiteek pravirti ka mana jata tha, h ne bhi nhi socha tha ki wo is tarah ka ghinauna kartoot kar sakta hai. Wah sharab pine ka aadi tha aur aksar alag alag mahilaon ke sath dekha jata tha. Naidunia indore me Anand pandey ke khilap chal rhi muhim chalane walon me wo शीर्ष par raha hai. Usne naidunia se nikale gaye Arvind tiwari ke sath milkar yojnabadh tarike se farzi news plant ki aur uska sath naidunia se he bhaskar gaye ujjawal shukla aur vartaman me naidunia me karyarat gajendra sharma ne diya. Gajendra ne mafi mang li, jabki arvind tiwari, sachin, navin yadav, pankaj bharti aur kuch aur log ab bhi anand aur naidunia ke khilap farzi aur planted baten failane me lage hue hain. Isi bich sachin ka yah ghinauna kartoot samne aaya. Patrakarita se jude longon ka kahna hai ki sachin ki jisne संरक्षण diya tha, uske khilap bhi police पूछताछ karne ki taiyari me hai. Is samband me indore ke newspaper naidunia, dabang dunia me news bhi dekhi ja sakti hai. Bhaskar ne to news he nhi chapi. Bhopal se prakashit pradesh today ne sachin ki tasveer ke sath chapa hai.

  9. hey sanjay

    May 14, 2015 at 2:18 pm

    हे संजय!!!

    नईदुनिया के धृतराष्ट्र को समझाओ.

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    हे संजय!!!

    कैसे तुमने हस्तिनापुर में कौरवों और पांडवों के बीच का युद्ध देख लिया था और साफ-साफ बता
    दिया था अंधे राजा धृतराष्ट्र को। यहां तो राजा भी तुम्हीं हो, हस्तिनापुर भी तुम्हारा, कौरव भी तुम्हीं हो और पांडव भी तुम्हीं हो। फिर कहां चली गई तुम्हारी वह दिव्य दृष्टि कि कुछ भी नहीं देख पा रहे हो।

    नईदुनिया नामक हस्तिनापुर में जो महाभारत हो रहा है, वह तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा? यहां आनंद नाम का स्वयं-भू राजा तुम्हारा बाजा बजा रहा है और तुम आंख बंद किए बैठे हो? यह आनंद नामक धृतराष्ट्र एक-एक करके सभी भीष्म, कर्ण, द्रोण आदि को मौत के घाट उतारे जा रहा है और उसकी जगह कई-कई शकुनियों को पाल रहा है। मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के इस सुनहरे इतिहास की रक्षा करो संजय! इस द्रोपदी की लाज बचाओ संजय!

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    हे संजय! तुम जागरण दिल्ली के राजनीतिक पत्रकार प्रशांत मिश्र को जानते ही होंगे। उनकी बेटी की शादी थी। उस शादी में महंगा गिफ्ट लेकर पहुंचा था आनंद पांडे। उस गिफ्ट ने प्रशांत को इतना प्रसन्न् कर दिया कि उसने आनंद को नईदुनिया में “अमर संपादक” बने रहने का वचन दे दिया। लेकिन उस कीमती तोहफे के लिए जो तैयारी की गई, उसने इस पवित्र-पुरातन-पूजनीय नईदुनिया पर वो दाग लगा दिया जो कभी धोया नहीं जा सकेगा. बैतूल में पुलिस महकमे में टीआई स्तर से खुली वसूली हुई, भोपाल स्टेट ब्यूरो के एक मुंहलगे रिपोर्टर ने सचिवालय में खुलेआम भीख मांगी, ये भी तो पता लगवाइए कि कैसे भोपाल के एक सांध्य दैनिक के मालिक ने मोटी रकम के एवज में नवदुनिया में कितनी स्पेस गिरवी रखी और अब उसके इशारे पर नवदुनिया भोपाल समेत सागर, बैतूल, होशंगाबाद में क्या-क्या लिखा/बोला/छापा जा रहा है. मजे की बात यह भी है कि भोपाल के नए नवेले संपादक को भी इसमें शामिल कर लिया है। और वो शातिर भोपाल में बने रहने के लिए हर रोज सब कुछ दांव पर लगा रहा है। दो पैसे की कीमत रखने वाले छोटे-छोटे गली मोहल्‍ले के नेता एक दूसरे को निपटा रहे हैं। संजय, तुम्हारे जैसा दूरदृष्टि रखने वाला महामना इस षडयंत्र को नहीं पकड़ पा रहा है। अब तो जागो संजय! अरे भाई ज्‍यादा कुछ मत करो, केवल बताए गए शहरों के अखबार की दिखवा लो।

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

    तुम्हारी आंखों में तुम्हारे आसपास के ही लोगों ने परदा डाल रखा है, इसलिए कुछ दिखाई नहीं
    दे रहा है, वरना यह तो दिखता ही कि नईदुनिया में कदम रखते ही आनंद ने अखबार की ऐसी
    की तैसी करनी शुरू कर दी और अपने लोगों को आनंद बांटने लगा। काम करने वाले जो पुराने
    लोग थे, उन्हें नाकारा साबित कर नाकारा लोगों की फौज भरने लगा। संपादकीय सहयोगियों
    की ऐसी बेइज्जती करने लगा कि उज्जवल शुक्ला और मधुर जोशी जैसे लोग जो टेलीप्रिंटर की
    रीढ़ की हड्डी थे, प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अखबार दैनिक भास्कर चले गए। सचिन्द्र श्रीवास्तव और प्रशांत वर्मा ने खुलेआम बगावत क्यों की? सिटी डेस्क में समर्पित होकर काम करने वाला सत्यपाल राजपूत भी दैनिक भास्कर चला गया।

    जिन लोगों को इसने नाकारा माना वे आज भास्कर में बड़ी भूमिका का निर्वाह करने लगे। उल्टे जिन लोगों की भास्कर में कुत्ते जैसी स्थिति थी, वे नईदुनिया की बड़ी कुर्सी पर बैठ गए
    और अखबार की लुटिया डुबोने लगे।

    °°°°°°°°°°°°°°°°
    मनोज प्रियदर्शी नामक मूर्खों के राजा को टेलीप्रिंटर डेस्क लीड करने को दे दिया गया। इस बिहारी बाबू की योग्यता कुल इतनी है कि वो आनंद
    का पठ्ठा है, बाकी दस शब्दों का एक वाक्य लिखने में चार जगह लिंग और मात्राओं की गड़बड़ी
    ठोक देता है। मालवा में बिहार का तड़का मारता है। भास्कर 27 हजार रुपए भी नहीं देता
    था, यहां 40 हजार में ताजपोशी हो गई। और कुछ नहीं करवा सको तो इतना तो करो संजय कि दिल्ली बुलाकर इसका टेस्ट ही ले लो, जो जिम्मेदारी इसे दी गई है, वो उस योग्य है भी या नहीं? आंखें खोलो संजय!

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    एक और कृपापात्र हैं आनंद पांडे के श्रीमान प्रमोद त्रिवेदी। शिखाधारी। दिनभर उड़ान भरता
    रहता है। पूरे संपादकीय विभाग में घूम-घूमकर मोबाइल पर बात करते रहना ही एकमात्र
    योग्यता है। इसे आनंद पांडे का बहनोई कहा जाता है। रिश्तेदारी निभाने के लिए इसे यहां
    लाया गया। इसने भास्कर जबलपुर में काम किया है, जिसकी भास्कर ग्रुप में ही कोई औकात
    नहीं है। कई महीनों से खाली बैठा था। 22-23 हजार रुपए पाता था, अब 40 हजार रुपए में
    सीनियर एनई है। चार महीने में चार खबरें दे चुका है। खबरों के हिसाब से कीमत लगाई जाए
    तो एक खबर के 40 हजार। ये क्या हो रहा है संजय!

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    सिटी डेस्क पर नितिन शर्मा नामक प्राणी आए हैं। यह भी भास्कर में सिटी डेस्क में सब
    एडिटर था, यहां डीएनई बन गया है। तनख्वाह भी 27 हजार से 36 हजार हो गई है। किसी से भी पूछवा लीजिए इसकी योग्यता बस इतनी है कि जी-हुजूरी के साथ खुफियागिरी कैसे की जाए। भास्कर में इस हरिराम नाई के जाने से मिठाई बांटी गई थी. अब ये नईदुनिया के मत्‍थे आ गया।

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°
    अश्विन शुक्ला सहारा समय नामक ऐसे चैनल से बुलाए गए हैं, जहां चार महीने से तनख्वाह नहीं मिल रही थी। यहां प्रदेश कॉर्डिनटेर बनकर मलाई छान रहे हैं। आता न जाता भारत माता हैं। गुजारा भत्ता भी 45 हजार से ऊपर कूट रहे हैं।

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

    नए साहब महेंद्र श्रीवास्तव बुलाए गए हैं। आपके उत्तर प्रदेश से ही मालवा की धरती पर उतरे हैं। ये भी किसी टीवी चैनल में थे। कई महीनों से काम नहीं था तो यहां आकर संपादक वाली कुर्सी पर बैठ गए हैं। वेतन में लक्खा हैं। संपादक हैं कि नहीं, ये तो वह कुर्सी भी नहीं जानती जिस पर वे बैठे हैं। इनका इतिहास तो निकलवायिये, क्या से क्या हो गए, पाण्डेय के प्यार में.

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

    हे संजय! आनंद पांडे और उनके इन गुर्गों को जितनी तनख्वाह मिलती है, उतने में बाकी पूरे
    संपादकीय विभाग को बंट जाती है। इनके दुर्व्यवहार से लोग छोड़कर भाग रहे हैं। जिस
    नईदुनिया को लोग नौकरी करने के लिए स्वर्ग मानते थे, वहां नर्क से भी बदतर स्थिति है।
    नईदुनिया को बचाओ संजय! जिन-जिन के नाम आपको बताये गए हैं उनके मोबाइल पर फ़ोन लगवाकर पता तो लगवाओ संजय! अब इसके साथ जागरण की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, कुछ करो संजय! इसके पहले कि टाइटेनिक नाम का यह जहाज डूब जाए, इसके छेद में एमसील लगाओ संजय!

  10. hey sanjay

    May 14, 2015 at 2:18 pm

    हे संजय!!!

    नईदुनिया के धृतराष्ट्र को समझाओ.

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    हे संजय!!!

    कैसे तुमने हस्तिनापुर में कौरवों और पांडवों के बीच का युद्ध देख लिया था और साफ-साफ बता
    दिया था अंधे राजा धृतराष्ट्र को। यहां तो राजा भी तुम्हीं हो, हस्तिनापुर भी तुम्हारा, कौरव भी तुम्हीं हो और पांडव भी तुम्हीं हो। फिर कहां चली गई तुम्हारी वह दिव्य दृष्टि कि कुछ भी नहीं देख पा रहे हो।

    नईदुनिया नामक हस्तिनापुर में जो महाभारत हो रहा है, वह तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा? यहां आनंद नाम का स्वयं-भू राजा तुम्हारा बाजा बजा रहा है और तुम आंख बंद किए बैठे हो? यह आनंद नामक धृतराष्ट्र एक-एक करके सभी भीष्म, कर्ण, द्रोण आदि को मौत के घाट उतारे जा रहा है और उसकी जगह कई-कई शकुनियों को पाल रहा है। मध्यप्रदेश की पत्रकारिता के इस सुनहरे इतिहास की रक्षा करो संजय! इस द्रोपदी की लाज बचाओ संजय!

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    हे संजय! तुम जागरण दिल्ली के राजनीतिक पत्रकार प्रशांत मिश्र को जानते ही होंगे। उनकी बेटी की शादी थी। उस शादी में महंगा गिफ्ट लेकर पहुंचा था आनंद पांडे। उस गिफ्ट ने प्रशांत को इतना प्रसन्न् कर दिया कि उसने आनंद को नईदुनिया में “अमर संपादक” बने रहने का वचन दे दिया। लेकिन उस कीमती तोहफे के लिए जो तैयारी की गई, उसने इस पवित्र-पुरातन-पूजनीय नईदुनिया पर वो दाग लगा दिया जो कभी धोया नहीं जा सकेगा. बैतूल में पुलिस महकमे में टीआई स्तर से खुली वसूली हुई, भोपाल स्टेट ब्यूरो के एक मुंहलगे रिपोर्टर ने सचिवालय में खुलेआम भीख मांगी, ये भी तो पता लगवाइए कि कैसे भोपाल के एक सांध्य दैनिक के मालिक ने मोटी रकम के एवज में नवदुनिया में कितनी स्पेस गिरवी रखी और अब उसके इशारे पर नवदुनिया भोपाल समेत सागर, बैतूल, होशंगाबाद में क्या-क्या लिखा/बोला/छापा जा रहा है. मजे की बात यह भी है कि भोपाल के नए नवेले संपादक को भी इसमें शामिल कर लिया है। और वो शातिर भोपाल में बने रहने के लिए हर रोज सब कुछ दांव पर लगा रहा है। दो पैसे की कीमत रखने वाले छोटे-छोटे गली मोहल्‍ले के नेता एक दूसरे को निपटा रहे हैं। संजय, तुम्हारे जैसा दूरदृष्टि रखने वाला महामना इस षडयंत्र को नहीं पकड़ पा रहा है। अब तो जागो संजय! अरे भाई ज्‍यादा कुछ मत करो, केवल बताए गए शहरों के अखबार की दिखवा लो।

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    तुम्हारी आंखों में तुम्हारे आसपास के ही लोगों ने परदा डाल रखा है, इसलिए कुछ दिखाई नहीं
    दे रहा है, वरना यह तो दिखता ही कि नईदुनिया में कदम रखते ही आनंद ने अखबार की ऐसी
    की तैसी करनी शुरू कर दी और अपने लोगों को आनंद बांटने लगा। काम करने वाले जो पुराने
    लोग थे, उन्हें नाकारा साबित कर नाकारा लोगों की फौज भरने लगा। संपादकीय सहयोगियों
    की ऐसी बेइज्जती करने लगा कि उज्जवल शुक्ला और मधुर जोशी जैसे लोग जो टेलीप्रिंटर की
    रीढ़ की हड्डी थे, प्रमुख प्रतिद्वंद्वी अखबार दैनिक भास्कर चले गए। सचिन्द्र श्रीवास्तव और प्रशांत वर्मा ने खुलेआम बगावत क्यों की? सिटी डेस्क में समर्पित होकर काम करने वाला सत्यपाल राजपूत भी दैनिक भास्कर चला गया।

    जिन लोगों को इसने नाकारा माना वे आज भास्कर में बड़ी भूमिका का निर्वाह करने लगे। उल्टे जिन लोगों की भास्कर में कुत्ते जैसी स्थिति थी, वे नईदुनिया की बड़ी कुर्सी पर बैठ गए
    और अखबार की लुटिया डुबोने लगे।

    °°°°°°°°°°°°°°°°
    मनोज प्रियदर्शी नामक मूर्खों के राजा को टेलीप्रिंटर डेस्क लीड करने को दे दिया गया। इस बिहारी बाबू की योग्यता कुल इतनी है कि वो आनंद
    का पठ्ठा है, बाकी दस शब्दों का एक वाक्य लिखने में चार जगह लिंग और मात्राओं की गड़बड़ी
    ठोक देता है। मालवा में बिहार का तड़का मारता है। भास्कर 27 हजार रुपए भी नहीं देता
    था, यहां 40 हजार में ताजपोशी हो गई। और कुछ नहीं करवा सको तो इतना तो करो संजय कि दिल्ली बुलाकर इसका टेस्ट ही ले लो, जो जिम्मेदारी इसे दी गई है, वो उस योग्य है भी या नहीं? आंखें खोलो संजय!

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    एक और कृपापात्र हैं आनंद पांडे के श्रीमान प्रमोद त्रिवेदी। शिखाधारी। दिनभर उड़ान भरता
    रहता है। पूरे संपादकीय विभाग में घूम-घूमकर मोबाइल पर बात करते रहना ही एकमात्र
    योग्यता है। इसे आनंद पांडे का बहनोई कहा जाता है। रिश्तेदारी निभाने के लिए इसे यहां
    लाया गया। इसने भास्कर जबलपुर में काम किया है, जिसकी भास्कर ग्रुप में ही कोई औकात
    नहीं है। कई महीनों से खाली बैठा था। 22-23 हजार रुपए पाता था, अब 40 हजार रुपए में
    सीनियर एनई है। चार महीने में चार खबरें दे चुका है। खबरों के हिसाब से कीमत लगाई जाए
    तो एक खबर के 40 हजार। ये क्या हो रहा है संजय!

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
    सिटी डेस्क पर नितिन शर्मा नामक प्राणी आए हैं। यह भी भास्कर में सिटी डेस्क में सब
    एडिटर था, यहां डीएनई बन गया है। तनख्वाह भी 27 हजार से 36 हजार हो गई है। किसी से भी पूछवा लीजिए इसकी योग्यता बस इतनी है कि जी-हुजूरी के साथ खुफियागिरी कैसे की जाए। भास्कर में इस हरिराम नाई के जाने से मिठाई बांटी गई थी. अब ये नईदुनिया के मत्‍थे आ गया।

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°
    अश्विन शुक्ला सहारा समय नामक ऐसे चैनल से बुलाए गए हैं, जहां चार महीने से तनख्वाह नहीं मिल रही थी। यहां प्रदेश कॉर्डिनटेर बनकर मलाई छान रहे हैं। आता न जाता भारत माता हैं। गुजारा भत्ता भी 45 हजार से ऊपर कूट रहे हैं।

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    नए साहब महेंद्र श्रीवास्तव बुलाए गए हैं। आपके उत्तर प्रदेश से ही मालवा की धरती पर उतरे हैं। ये भी किसी टीवी चैनल में थे। कई महीनों से काम नहीं था तो यहां आकर संपादक वाली कुर्सी पर बैठ गए हैं। वेतन में लक्खा हैं। संपादक हैं कि नहीं, ये तो वह कुर्सी भी नहीं जानती जिस पर वे बैठे हैं। इनका इतिहास तो निकलवायिये, क्या से क्या हो गए, पाण्डेय के प्यार में.

    °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

    हे संजय! आनंद पांडे और उनके इन गुर्गों को जितनी तनख्वाह मिलती है, उतने में बाकी पूरे
    संपादकीय विभाग को बंट जाती है। इनके दुर्व्यवहार से लोग छोड़कर भाग रहे हैं। जिस
    नईदुनिया को लोग नौकरी करने के लिए स्वर्ग मानते थे, वहां नर्क से भी बदतर स्थिति है।
    नईदुनिया को बचाओ संजय! जिन-जिन के नाम आपको बताये गए हैं उनके मोबाइल पर फ़ोन लगवाकर पता तो लगवाओ संजय! अब इसके साथ जागरण की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, कुछ करो संजय! इसके पहले कि टाइटेनिक नाम का यह जहाज डूब जाए, इसके छेद में एमसील लगाओ संजय!

  11. rafeeq khan

    May 15, 2015 at 1:10 pm

    यशवंत को कुत्ते की तरह घसीटकर जागरण प्रबंधन ने जेल के सीखचों के पीछे पहुंचाया था। इसलिए कुछ नाजायज अवैध संतानों की भड़ास का साधन बन गया है भड़ास। हिजड़ों की फौज का नेतृत्व हमेशा यशवंत को भाता है। उसे यही करना चाहिऐगा और यही करियेगा। कभी न हिजड़े गढ़ चढ़े और कभी न जीती जंग और जब जब हिजड़े गढ़ चढ़े तो सौ सौ हिजड़े संग। यशवंत भाई अपनी खुंदश निकालना है तो जागरण समूह से निकालिए। केवल एक एडीशन के कामचोरों की करतूत का हिस्सा क्यों बनते हो। बैसे बता दें कि नईदुनिया में ऐसे लोग काम कर रहे हैं जिन्हें कोरिया के कानून की तर्ज पर तोप से उड़ा दिया जाएगा। उनमें एक राजेंद्र गुप्ता नाम का महाआलसी कामचोर भी है। यह कामचोर कुछ नहीं करता, केवल जासूसी और बैठक के दौरान सोता रहता है। इतना बेशर्म है कि इसके खर्राटों लेेने पर कोई भी लात मार कर जगा देता है। काम तो इतना घटिया है कि इसे इंक्रीमेंट के नाम पर तुकड़े फेंके गए जो इसने स्वीकार कर लिए। कहता है पेट पालने के लिए नौकरी से मत निकालो। लेकिन हरकतें करवाने में माहिर है। सुना है एक लिव इन में रहने वाली महिला रिपोर्टर के लिए अन्य इंतजाम भी करता है।

  12. save naidunia

    May 16, 2015 at 8:43 am

    हे संजय
    अब आपको हम नईदुनिया की द्रौपति की कथा सुनाते हैं। ये पंचाली लिव इन में रहती है। जितेन्द्र व्यास के बाद अब इसकी चूमा चाटी आशीष व्यास और महेंद्र श्रीवास्तव से चल रही है। पांचली श्रवन गर्ग के साथ भी रही है। भा
    स्कर से आयी इस पांचली का तवादला भोपाल हो रहा है नाम बूझों रूम

  13. नईदुनिया बचाओ

    May 17, 2015 at 8:52 am

    हे संजय
    दुष्कर्मियों की कथा सुनो। तीन दुष्कर्मियों को इंदौर में एक सहरमिल गया है। प्रमोद त्रिवेदी चोटीवाला है लेकिन पब के बिना शराब के खाना नहीं खाता’,दूसरा बिहारी मनोज प्रिदर्शि और तीसरा अश्विनी शुक्ला। इनका सहारा बन गया रफीक। चार दुष्कर्मी एक होकर पब में पार्टी करते है।इतने ओछे हैं की पांचवा शिकार नहीं मिलता तो इन्तजार करते है।जेब से 10 रूपया भी नहीं निकालते। आजकल एक बिल्डर इनके लिये शराब कबाब का इंतजाम करता है। शनिवार को पब में इनने खूब पीई और लुढकते रहे।

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