शशि सिंह-
बहुत सालों से मैं एक ट्रेंड फ़ॉलो कर रहा हूँ। ट्रेंड यह है कि मीडिया कंपनी वाले जब दूसरे धंधे में हाथ डालते हैं तो थोड़ी बहुत संभावना होती है कि धंधा चल भी जाए मगर दूसरे धंधे वाले मीडिया के धंधे में हाथ लगाते हैं तो हाथ पक्का जलता है। मीडिया में आते ही पुराने धंधे के गढ़े मुर्दे उखड़ने लगते हैं। मीडिया का धंधा उन्हीं को सुहाता हैं जिन्होंने शुरू से मीडिया का ही धंधा किया है। दूसरे धंधे वालों के लिए मीडिया का धंधा पनौती है। अच्छे भले पुराने धंधे की बाट लगनी शुरू है। अपवाद हो सकते हैं मगर ट्रेंड तो यही है कि मीडिया शनि की साढ़ेसाती है।
असरार ख़ान-
NDTV को खरीदना रास नहीं आया …! अडानी ने NDTV को जब खरीदा था तो वह एक तरह की अति थी …उन्होंने भारत में बचे खुची पत्रकारिता और लोकतंत्र को बेज्जत करने और उसे रौंद देने के लिए खरीदा था लेकिन आज खुद ऐसी पहिया के नीचे आ गए हैं कि वही अवाम इनके ऊपर तरस खा रही है ….
कबीर दास ने 500 साल पहले आगाह किया था ..
दुर्बल को न सताइए जाकी मोटी हाय !
मुई खाल की स्वास से लौह भसम होए जाए !!
अडानी की कंपनियों के शेयरों का आज भी बड़ा बुरा हाल रहा …NDTV के शेयरों में भी लोवर सर्किट लगा … यही हाल रहा तो टॉप 50 में जगह बना पाना भी मुश्किल हो जाएगा …
यह अलग बात है कि कुछ बड़े पैसे वाले इनके शेयरों को थोड़ा ऊपर नीचे करके जुवा खेल रहे हैं कमा भी रहे हैं लेकिन छोटे निवेशक तो आंख बंद करके निकल रहे हैं …