Nadim S. Akhter : एक गंभीर बात. बार्क की तरफ से 29वें हफ्ते की टीआरपी के जो आंकड़े जारी किए गए हैं, वो इस प्रकार हैं. गौर से देखिए इनको और जरा अंदाजा लगाए कि कौन चैनल -सफलता- के किस पायदान पर खड़ा है. फिर आगे की बात करूंगा.
Aaj Tak 17.7 dn 0.7
India TV 17.3 up 0.4
India News 12.5 dn 0.8
ABP News 12.0 same
News Nation 11.3 dn 0.5
Zee News 8.9 dn 0.1
News 24 8.2 up 1.2
IBN 7 5.5 up 0.1
NDTV India 2.6 up 0.1
Tez 2.6 up 0.1
DD News 1.4 up 0.2
अब देखिए, जिसे भाई लोग सबसे विश्वसनीय चैनल मानते हैं यानी एनडीटीवी इंडिया, वह महज 2.6 की टीआरपी के साथ सबसे नीचे यानी नौवें स्थान पर है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि भैया ये चैनल चल कैसे रहा है. पैसा कितना और कहां से आ रहा है क्योंकि जब विज्ञापन से कमाई का पैमाना टीआरपी है और -जितनी हाई टीआरपी उतने महंगे विज्ञापनों के रेट- वाला फॉर्म्युला है, तब एनडीटीवी इंडिया के लिए तो बहुत दिक्कत वाली बात है. माना कि ग्रुप बड़ा है और उनके पास कमाई के और भी जरिए होंगे लेकिन इतनी कम टीआरपी के साथ कौन चैनल मार्केट में लंबे समय तक सर्वाइव कैसे करेगा/कैसे कर सकता है?
सुना है कि एबीपी न्यूज ने भी अब टीआरपी की रेस में कमर कस ली है और इसके लिए जरूरी जतन किए जा रहे हैं/किए गए हैं. चैनल के कंटेंट और उसकी पैकेजिंग में भी मुझे बदलाव दिखा है लेकिन अगर चैनल टीआरपी पर फोकस करेगा तो ये देखना दिलचस्प होगा कि उसके कंटेंट का स्तर गिरता है या नहीं.
दरअसल टीआरपी वो अबूझ पहेली है, जिसे बड़े-बड़े मीडिया सम्पादक और दिग्गज अभी तक बूझ नहीं पाए हैं. पहले TAM था और उसे लेकर जबरदस्त विवाद था, सो थोड़ी पारदर्शिता लाने के लिए BARC को सामने लाया गया. फिर भी टीआरपी एक रहस्य है, एक पहेली है. अच्छे-अच्छे पत्रकार ये नहीं बता पाए-पाते कि अमुक प्रोग्राम को ज्यादा टीआरपी क्यों मिली और फलां की क्यों नहीं मिली ??!! हां, एक रूल टीवी न्यूज रूम (अब न्यूज वेबसाइट डेस्क पर भी) में सर्वमान्य है कि अगर पब्लिक को डराओगे, सनसनी फैलाओगे, रहस्य-रोमांच में बांधोगे और सबसे बढ़कर मनोरंजन परोसोगे, तो जनता आपके चैनल पर टिकेगी और अगर जनता टिकेगी, तो टीआरपी मिलेगी.
सो इसी फंडे को लेकर टीवी न्यूजरूम के ज्यादातर प्रोड्यूसर दौड़ते-भागते रहते हैं. कंटेंट पर बहुत कम बात होती है. बस टीवी न्यूज रूम की भाषा में कह देते हैं- खेल जाओ या तान दो- मतलब कि ये खबर एक आइटम नंबर है, सो इसे जितना भुनाना है, भुना लो. मैंने महसूस किया है कि टीवी न्यूज रूम में इस बात पर बहुत कम जोर दिया जाता है कि खबर के मार्फत जनता को जागरूक करना है, उसे इन्फार्म करना है. बस कहते हैं- ‘शो’ बना दो और जब ‘शो’ बनेगा तो वह सनीमा की तरह ही बनेगा ना !! वैसे कुछ-कुछ गंभीर किस्म के प्रोड्यूसर भी हैं लेकिन उनका आइडिया या तो न्यूज मीटिंग में ड्रॉप कर दिया जाता है या फिर उन्हें क्लर्की वाला कोई काम देकर साइडलाइन कर दिया जाता है.
टीवी के सम्पादक को नंबर चाहिए क्योंकि उसे अपनी कुर्सी भी बचानी है और आखिर में बात यहीं पर आकर रूकती है कि भइया, नौकरी कर रहे हैं, करने दो. नौकरी गई तो फिर सम्पादकी वाली दूसरी नौकरी मिलना बहुत मुश्किल है. सो भांड में गया Journalism ethics, पत्रकारिता का मिशन-जज्बा और दुनिया भर का ज्ञान. चैनल चलाना है, कुर्सी बचानी है तो मालिक-मैनेजमेंट को टीआरपी लाके देनी होगी. किसी भी कीमत पर और यहीं से शुरू होता है कंटेंट में गिरावट का सिलसिला. न्यूज रूम की भाषा में जो माल बिकेगा यानी जिसे देखकर दर्शक आपके चैनल पर रुकेगा, उसका अंदाजा लगाकर भाई लोग पेलमपेल स्क्रिप्टिंग कर डालते हैं, ड्रामा क्रिएट कर देते हैं और इटरटेनमेंट केे अंदाज वाला एक टीवी न्यूज शो बना डालते हैं. और अगर डिबेट करानी है तो पैनल में वैसे लोगों को बुलाओ जो खूब बोलते हों और अगर जरूरत पड़ी तो जानबूझकर एक-दूसरे से भिड़ जाएं.
माने टीवी का पूरा शो महज एक ड्रामा बनाकर रख दिया जाता है. यही काम टाइम्स नाऊ वाले अर्नब गोस्वामी अरसे से करते आए हैं और इसी का नतीजा रहा कि बाजार में बहुत देर से आया ये चैनल टीआरपी के आंकड़े में अपने सभी अंग्रेजी प्रतिद्वंद्वी चैनलों से काफी आगे निकल गया. कुछ हिंदी वाले एंकरों ने भी अरनब की देखादेखी उनके इसी स्टाइल को कॉपी करना शुरु किया और कुछ इसमें सफल भी रहे.
आप बीबीसी या अलजजीरा ट्यून करें. एंकर सधे अंदाज में आपको खबर बताता है. ड्रामा-शो क्रिएट नहीं करता. और कुछ चैनलों को छोड़कर (NDTV-दूरदर्शन जैसे चैेनल) बाकी के अधिकांश चैनल प्राइम टाइम में टीआरपी रोमांस की ही कोशिश करते हैं और ये सिलसिला लगातार चला जा रहा है. जो नए पत्रकार वहां जाते हैं, माहौल को देखकर वो भी यही सीख लेते हैं और पूरी टीआरपी-बाज टीम तैयार होती रहती है. उस पे तुर्रा ये कि सम्पादक सारा दोष जनता पर मढ़ देता है कि —जी, हम क्या करें, पब्लिक तो यही देखना चाहती है. अरे भाई, जरा बताइएगा कि आपने कौन से प्रोग्राम को चलाने से पहले जनता की रायशुमारी की थी, फिर दोष पब्लिक के मत्थे क्यों?? जब आपका टीआरपी मीटर वाला सिस्टम ठीक नहीं है, तो इसे ठीक करवाइए ना. मासूम जनता के सिर पर ठीकरा क्यों फोड़ रहे हैं?
कुछ थोड़े और सयाने होते हैं, सो वे ये कहकर बच निकलने की कोशिश करते हैं कि भारत में टीवी न्यूज अभी नया माध्यम है और ये संक्रमणकाल से गुजर रहा है. सो धीरे-धीरे इसमें मैच्युरिटी आ जाएगी. अरे भाई !!! टीवी न्यूज को भारत में आए कई साल हो गए और इतने सालों में तो बच्चा जवान होकर उम्रदराज हो जाता है. वैसे मुझे लगता है कि आने वाले कुछ वर्षों तक ये सब यूं ही चलता रहेगा क्योंकि बार्क जैसी संस्थाओं में सुधार लाने की ज्यादा बात नहीं होती और लोग इसके लिए इच्छुक भी नहीं दिखाई देते. लेकिन सोशल मीडिया ने जिस तरह से मेन स्ट्रीम मीडिया संस्थानों की पोलपट्टी खोलनी शुरु की है, वह अभूतपूर्व है. अब जनता खुद पत्रकार बन गई है और सबकी खबर दे रही है व सबकी खबर ले भी रही है. ये एक शुभ संकेत है. मीडिया के भटकाव पर लगाम लगाने में सोशल मीडिया एक अघोषित Moral policing का काम कर रहा है, जो हमारे लोकतंत्र और मीडिया के स्वनियमन के लिए किसी वरदान से कम नहीं!!. अब लिखूंगा तो ज्यादा लम्बा हो जाएगा. सो आगे फिर कभी. जय हो!
पत्रकार, संपादक, शिक्षक और मीडिया विश्लेषक नदीम एस. अख्तर की एफबी वॉल से.
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Archit
July 29, 2016 at 1:22 pm
NDTV और सबसे विश्वसनीय?
अच्छा मज़ाक है भाई।
सिवाय कुछ सिकुलर लोगों और भड़ास के मुखिया के अलावा इस चैनल को देखता ही कौन है?
और तो और DEN Cable पर तो अब ये चैनल आता भी नही।
M.C.Joshi
July 31, 2016 at 8:57 am
aaj Tak me ek news ke liye do add dekhna aur har do sentence ke baad ‘break’ jhelna bas ki baat nahin hai. Kabhi bhule-bhatke channel laga bhi liya to kuch minton me switch karana padta hai.