जब एनडीटीवी ने गिराया स्टिंग और किया एक भद्दा मजाक…बात 2006-2007 की होगी. उन दिनों एनडीटीवी इंडिया की कमान दिबांग के हाथ में थी. एक शाम दिबांग ने अपने केबिन में बुलाया और कहा कि नेहाल किदवई ने पुड्डुचेरी से स्टिंग ऑपरेशन भेजा है. तुम उस पर आधे घंटे का स्पेशल बना दो. अगले दिन “खबरों की खबर” की जगह यही स्पेशल जाएगा. “खास खबरों की खबर” के तौर पर. मैंने हामी भरी और नेहाल का स्टिंग ऑपरेशन देखने के लिए एडिट बे में चला गया. वह स्टिंग ऑपरेशन भयावह था. पुड्डुचेरी के दो होटलों पर उन्होंने स्टिंग किया था. वहां “स्ट्रिपटीज” होता था. एक किस्म का कामोत्तेजक डांस जिसमें लड़कियां नाचते हुए अपने कपड़े उतारती हैं.
इसी नाम से हॉलीवुड की मशहूर फिल्म भी है. वो फिल्म 1996 में रिलीज हुई थी और उसमें डेमी मूर लीड रोल में थीं. उन दिनों मैं कॉलेज में था और मैंने यह फिल्म दोस्तों के साथ दिल्ली के प्रिया सिनेमाहॉल में देखी थी. “स्ट्रिपटीज” फिल्म के बाद से मैं डेमी मूर का दीवाना बन गया था. उस फिल्म में उन्होंने गजब का डांस किया है. इंद्र के दरबार में उनके जैसे ही अप्सराएं होती होंगी. उन्हें आप उर्वशी, रंभा, तिलोत्तमा और मेनका समझिए. जो किसी भी विश्वामित्र की तपस्या भंग कर दें. उस फिल्म में स्ट्रिपर के जीवन का स्याह पक्ष भी है. लेकिन फिल्मकारों का मूल मकसद उस पर ज्यादा जोर न देकर एक ऐसी कामुक फिल्म बनाना था, जो बाजार में कामयाब हो सके. इसलिए डेमी मूर समेत सभी अभिनेत्रियों को उत्पाद के तौर पर पेश किया गया. ताकि लोग उनकी खूबसूरती, उनके जिस्म और उनके मूव्स को देखने के लिए सिनेमाहॉल पहुंचें. मैं और मेरे दोस्त भी इसीलिए यह फिल्म देखने पहुंचे थे.
लेकिन नेहाल के स्टिंग में ऐसा कुछ भी नहीं था. उस स्टिंग ऑपरेशन को देख कर रोमांच की जगह शर्मिंदगी, डर और आक्रोश का भाव पैदा होता था. जब जीवन और समाज की क्रूर सच्चाइयां अपनी पूरी नग्नता के साथ सामने आती हैं तो घबराहट होने लगती है. उनसे आंख मिलाने का साहस किसी में नहीं होता. न व्यक्ति में. न समाज में. भागने को जी करता है. उस स्टिंग में भी समाज की एक क्रूर और भयावह सच्चाई दर्ज थी. पूरी नग्नता के साथ. उसमें औरतों की सिसकियां, उनकी शिकायतें और उनकी बेबसी दर्ज थी. उनके जिस्म और आत्मा पर मर्दों के अत्याचार दर्ज थे. यातना देने के लिए उनके शरीर को सिगरेट से कई जगह दागा गया था. मर्दों की हैवानियत के साथ उसमें मर्दों की वासना भी दर्ज थी. वो भी अपने विभत्स और विकृत रूप में. वैसे वासना विभत्स और विकृत ही होती है. इसके आगे मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है. चेतना खत्म हो जाती है. मानवता दम तोड़ देती है.
नेहाल के स्टिंग में बहुत कुछ था. इतना कुछ था कि 12-13 साल बाद भी मैं उसे पूरी तरह नहीं भूल सका हूं. सारा विजुअल देखने सुनने और नोट करने के बाद मैंने नेहाल से लंबी बात की. उन्होंने बताया कि यह स्टिंग करना जान जोखिम में डालने के बराबर था. इस धंधे के तार बहुत ताकतवर सिंडिकेट से जुड़े थे. उस सिंडिकेट की कमान एक नेता के हाथ में थी. नेहाल ने यह भी बताया कि इससे जुड़े लोग इलाके के बड़े अपराधी हैं. बेहद क्रूर हैं. हल्का सा भी शक होने पर कत्ल कर देते हैं. फिर शरीर से पत्थर बांध कर बीच समुंदर में फेंक देते हैं. नेहाल से बातचीत के बाद मैंने स्पेशल बनाना शुरू किया. उसी बीच मुझे प्रोमो की कुछ लाइनें देनी थीं. जो सुबह से चलने वाली थी. मैं थोड़ा उलझा हुआ था. उन्हीं दिनों चैनल में कुछ महीने के लिए दीप उपाध्याय आए थे. उन्होंने कुछ टिप्स दिए और प्रोमो तैयार हुआ. उस प्रोमो की आखिरी लाइन थी कि “कौन है जिस्म का ये सफेदपोश सौदागर बताएंगे आज रात 9:30 बजे खास खबरों की खबर में.”
प्रोमो देने के बाद मैंने देर रात तक स्क्रिप्ट फाइनल की और प्रोड्यूशर को थमा कर घर चला गया. अगले दिन सुबह से प्रोमो चलने लगा. प्लेकार्ड दिखाया जाने लगा. अगली शाम भी मैं ड्यूटी पर था. रात 9:22-9:25 तक सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी. शो के सभी पैकेज रनडाउन में लगा दिए गए थे. स्लग, एस्टन और पैराडब सबकुछ तैयार हो गया था. एक दमदार और मार्मिक स्पेशल सामने था. तभी दिबांग ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और कहा कि स्पेशल गिराना है. मैं चौंक गया. अचानक कई सवाल जेहन में कौंधने लगे. सबकुछ तो कैमरे पर है, फिर क्यों गिराना है. अगर इसे गिराया गया तो चैनल की साख का क्या होगा? इसकी जगह चलेगा क्या? कुछ भी तैयार नहीं है. पुराना कुछ चलाने के लिए आधे घंटे का समय चाहिए होगा. यही सब सोचते हुए मैंने दिबांग से पूछा कि क्यों सर? क्या हुआ? कुछ गलत है क्या?
दिबांग – पुड्डुचेरी के उस नेता के वकील का नोटिस आया है.
मैं – वकील का नोटिस आया है तो क्या हुआ सर? सबकुछ तो कैमरे पर है हमारे पास. एक मुकदमा लड़ लिया जाएगा.
दिबांग – रॉएज (Roys यानी डॉ प्रणॉय रॉय और राधिका रॉय) नहीं मान रहे.
मैं – नोटिस कैसे भेजा है?
दिबांग- फैक्स से.
मैं – फैक्स मिल जाए जरूरी तो नहीं. कई बार प्रिंट भी साफ नहीं होता है. आप उनसे कहिए कि हम ये कह सकते हैं कि फैक्स पर नजर देर से पड़ी तब तक एक बार तो स्पेशल चल जाएगा. इज्जत बच जाएगी.
दिबांग – अच्छा रुको, एक बार और बात करके देखता हूं.
विकल्प खोजने के लिए मैं कमरे से बाहर निकला. दिमाग जितना तेज चल रहा था, समय उससे कहीं अधिक तेजी से गुजर रहा था. कुछ ही पलों में 9:30 बज गए और “खास खबरों की खबर” का बंपर हिट हो गया. उसके बाद स्पेशल का मोंटाज चलने लगा.
मैं दिबांग के केबिन की ओर मुड़ा. मैंने कहा कि सर स्पेशल शो ऑनएयर हो गया है. अब कुछ नहीं हो सकता.
दिबांग – केवीएल (NDTV के CEO KVL Narayan Rao) से बात हुई है. वो कह रहे हैं कि हम कोई लफड़ा नहीं चाहते. इसे गिरा दो. वो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हैं.
मैं – अब क्या किया जाए? जब तक कोई ब्रेकिंग न्यूज नहीं हो, इसे रोका नहीं जा सकता.
दिबांग – उस आदमी (सफेदपोश सौदागर) का जिक्र कहां हैं?
मैं – आखिरी सेगमेंट है.
दिबांग- उसे हटा सकते हैं?
मैं – लेकिन यह तो भद्दा मजाक होगा? आप केवीएल को क्यों नहीं कहते हैं कि एक मुकदमा लड़ लिया जाएगा. इतना बड़ा संस्थान चल रहा है… रिपोर्टर ने जान पर खेल कर स्टिंग किया है तो क्या हम अपनी स्टोरी डिफेंड नहीं कर सकते?
दिबांग ने मेरे सामने फिर बात की. लेकिन वो सुनने को तैयार नहीं थे. फोन कटा तो मैंने झुंझलाहट में दिबांग से कहा कि जब मान नहीं रहे हैं तो गिरा देते हैं.
दिबांग – तो फिर क्या चलाओगे?
मैं – मैनेज हो जाएगा.
और मैं कमरे से बाहर निकल गया…. (जारी)
(आगे है… दर्शकों से की गई इस “गुस्ताखी” के लिए एनडीटीवी ने कुछ अलग अंदाज में मांगी “माफी”)
एनडीटीवी में लंबे समय तक कार्यरत रहे वरिष्ठ पत्रकार समरेंद्र सिंह की एफबी वॉल से।
naseem
May 29, 2019 at 11:15 am
सच उधेड़ने की हिम्मत विरले ही करते हैं। शाबाश। उस नेता का नाम लेने की भी हिम्मत दिखाएं।
Jagdish verma
May 29, 2019 at 2:58 pm
Gajab….parde ke peechhe ka sach… Jo aaj online huaa….