रंगनाथ सिंह-
नेहा सिंह राठौर भाजपा-विरोधी प्रचार तंत्र का हिस्सा हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है लेकिन क्या भाजपा-विरोधी प्रचार अब अपराध होगा? नेहा पर कार्रवाई योगी सरकार की असुरक्षा दिखाती है। चुनावी मौसम में ऐसे दर्जनों गाने बनेंगे। गाने का जवाब गाने से दिया जाना चाहिए, पुलिस थाने से नहीं।
मेरे ख्याल से इसके पीछे जड़ें कमजोर होने के बजाय मजबूत होने से उपजा अतिआत्मविश्वास है। अगर जड़ें कमजोर होतीं तो यूपी में लगातार चार चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत न मिलता। नेहा राठौर ने पिछले चुनाव में भी बहुत गाने बनाए थे।
वीरेंद्र यादव-
लोकगायिका नेहा सिंह राठौर पर यू. पी. पुलिस ने यह आरोप लगाया है कि उसके ‘यू.पी. का बा ‘ गीत से ‘समाज में वैमनस्य और तनाव की स्थिति उत्पन्न हुई है’ और तीन दिन के भीतर नेहा का स्पष्टीकरण मांगते हुए उन पर वैधानिक कार्यवाही की चेतावनी दी है. लगता है सत्ता ने अपना ‘लोक’ चुन लिया है. यह लोक के विरुद्ध सत्ता का मद है.
कहना न होगा कि अपनी जनगायिकी से नेहा ने अल्पावधि में लोकप्रियता का जो मुकाम अर्जित किया है, वह बेमिसाल है. इस लोकप्रियता की शक्ति मौजूदा सत्ता संरचना का वह सहज क्रिटिक है, जिसने जनमन में अपनी गहरी पैठ बनाई है. रचनात्मक लोक अभिव्यक्ति पर सत्ता की यह निगहबानी और पहरेदारी लोकतंत्र के गहराते संकट का द्योतक है. सभी संस्कृतिकर्मी और लेखकों को नेहा सिंह राठौर की अभिव्यक्ति के अधिकार के पक्ष में एकजुट होना चाहिए.
लखनऊ : योगी सरकार द्वारा भोजपुरी लोक गायिका नेहा सिंह राठौर को दी गई नोटिस की ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने प्रस्ताव लेकर कड़ी निंदा की है.
आइपीएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एस. आर. दारापुरी ने प्रस्ताव के बारे में प्रेस को जारी बयान में कहा कि नेहा सिंह राठौर का उत्तर प्रदेश के बुलडोजर राज बारे में गाया गया गाना यूट्यूब पर मौजूद है और उसे सभी लोगों ने देखा है. उस गाने में समाज में वैमनस्य फैलाने जैसी कोई भी बात नहीं है.
यह योगी सरकार के बुलडोजर राज की आलोचना है जिसे सरकार बर्दाश्त नहीं कर पा रही है. सरकार दरअसल संविधान में दी गई बोलने की आजादी पर ही प्रतिबंध लगाना चाहती है जो लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है.
इसलिए लोकतंत्र के हित में सरकार को नोटिस तत्काल प्रभाव से वापस लेनी चाहिए और कानपुर देहात के प्रशासन को कहना चाहिए कि वह नेहा सिंह राठौर के दमन से बाज आए.