एक न्यूज चैनल द्वारा स्टिंग किए जाने के कारण मानहानि के मुकदमे को न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि मानहानि कानून का प्रेस-मीडिया का गला घोंटने, दबाने, चुप कराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि स्टिंग ऑपरेशन समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि वे गलत कृत्यों का खुलासा करने में मदद करते हैं. न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की पीठ ने इंडियन पोटेश लि. (आईपीएल) नामक कंपनी के एक मानहानि मुकदमे को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की है.
हाईकोर्ट ने कहा कि मानहानि कानून को प्रेस तथा मीडिया का गला घोंटने, उन्हें दबाने और चुप कराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. कंपनी यह साबित नहीं कर सकी कि उसकी मानहानि हुई है या उसे स्टिंग से नुकसान हुआ. सूचना के अधिकार कानून का हवाला देते हुये हाईकोर्ट ने कहा कि कहा कि यह सूचना के अधिकार का समय है. जो जानकारी पहले जनता को नहीं मिलती थी, अब वह उन्हें सुलभ है और इसका नतीजा गुड गवर्नेंस है.
हाईकोर्ट ने कहा कि हाल-फिलहाल में स्टिंग ऑपरेशन तकनीक के क्षेत्र में हुई वृद्धि का नतीजा है जो संबंधित व्यक्ति की जानकारी में आए बगैर वीडियो और ऑडियो रिकॉर्ड करने की अनुमति देता है. ऐसे स्टिंग ऑपरेशनों का अपना स्थान है और वे आज समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि यह भुलाया नहीं जा सकता कि मानहानि कानून में संविधान द्वारा प्रदत्त वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अनुचित प्रतिबंध लगाने की क्षमता है और यह सुनिश्चित करना अदालत का कर्तव्य है कि मानहानि कानून का दुरुपयोग ना किया जाए.
इंडियन पोटेश लि. केंद्र सरकार का उपक्रम है और उसने एक समाचार चैनल मीडिया कंटेंट्स एंड कम्युनिकेशन सर्विसेज (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य के मालिक तथा संपादक से 11 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति मांगी थी. याचिका के अनुसार समाचार चैनल पर 27-28 अप्रैल को एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ था जो कि एक स्टिंग ऑपरेशन था जिसमें दिखाया गया था कि कंपनी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कथित तौर पर मिलावटी या सिंथेटिक दूध बेच रही है.
हाईकोर्ट ने कहा कि कंपनी ने यह साबित नहीं किया कि उसकी मानहानि हुई या इससे नतीजे भुगतने पड़े, इसलिए कंपनी नुकसान के रूप में राशि वसूलने का हकदार नहीं है. हाईकोर्ट ने कहा कि गलत काम हमेशा अवैध रूप से चोरी-छिपे ही होते हैं और इसमें शामिल जटिलताओं के कारण ही शायद ही ये कभी साबित होते हैं या कि इनका कोई सबूत ही मिलता है. इनसे जुड़ा कोई व्यक्ति मीडिया और पत्रकारों के सामने इससे जुड़े होने को कभी स्वीकार नहीं करता. असली तस्वीर सामने लाने के लिए जाल बिछाना पड़ता है. हाईकोर्ट ने कहा कि इस तरह के मामलों को जनता के सामने लाने का एकमात्र तरीका इस तरह के स्टिंग ऑपरेशन हैं, जिनके चलते भले ही गलत करने वाले को सज़ा न मिले लेकिन ऐसे गलत काम थोड़े समय के लिए ही सही, रुक जाते हैं.