‘TV मीडिया’ जिसने दिल दिमाग़ का दही कर दिया है और ‘मीडिया’ नाम पर जूतों का हार चढ़वा दिया है दरअसल मीडिया है भी और नहीं भी है पर इसने ज़बरन “प्रिंट” से सरेंडर करा लिया है ।
ये ‘ओपन पेड न्यूज़’ का सिनेमाघर है जिसे आसाराम एम डी एच रामदेव टाइप कोई भी न सिर्फ अपने अल्लम गल्लम प्रोडक्ट के लिये बल्कि अपने ख़ुद के लिये/अपने अमूल्य सुविचारों/कुविचारों के लिये खुली भंड़ैती के साथ सर पीटते समाज पर लेप सकता है ।
प्रिंट का एक हिस्सा अपने विकास के अन्त में यह सब शुरू कर चुका था पर उसका ढाँचा ऐसा था कि हर हाल में 60% से ज़्यादा उसे समाचारों को जगह देनी पड़ती थी । यहाँ एकदम उलट । २४x७x३६५ आपको अल्प शिक्षित ‘क्वैक’ से मेडिकल साइंस, फिलासफी, अर्थशास्त्र, धर्म, संस्कृति और इतिहास पर अल्लम गल्लम झेलना पड़ेगा और स्क्रोल करने से कोई मुक्ति नहीं , उनका पैकेज हर चैनल(एक को छोड़ ) पर तय है ।
जब जब इनके गडबडझाले पर आवाज़ उठी इन्होंने तुरंत “मीडिया” वाली वर्दी टाँग ली और लोकतंत्र पर ख़तरे के कालम में छिप गये और बला टलते ही फिर चूरन (न्यूज़ ) बेचने लगे ।
अब आलम यह है कि इस धन्धे का हर नया entrant निश्चित अपराधी है । सहारा श्री,मतंग सिंह,श्रद्धा चिटफ़ंड तो विभिन्न जेलों में साक्षात विराज रहे हैं बाक़ी कुछ मीडिया हाउसों को छोड़ या तो बिल्डर या चिटफ़ंडी चैनलों के मालिक हैं । ये सब हज़ारों करोड पब्लिक मनी हड़पे बैठे हैं और तन्त्र को डरवाने के लिये (कार्रवाई से बचने के लिये ) मीडिया बन गये हैं।
लगभग सब सवर्ण हिन्दू हैं सो सारा एडीटोरियल नितांत जातिवादी सांप्रदायिक पहले दर्जे के घटिया पाजी लोगों से अटा पड़ा है । सारी कंटेंट अवैज्ञानिक कुतरकी गढंत और बिकी हुई होती है ।
तो मित्रों देश के बहुमत समाज गाँव ग़रीब दलित पिछड़े अकलियत एवेंई इनके द्वारा उपेक्षित नहीं हैं ये इनके डी एन ए की प्राबलम है , ग़रीब कहलाने वाले नेपाल ने अकारण ही इन्हे सनद नहीं दी है , ये उसके पात्र हैं ये कुपात्र हैं !
शीतल पी सिंह के एफबी वॉल से
Nikunj Trivedi
May 5, 2015 at 7:09 pm
Bhadas4media is running by one brave heart people. Mr. Prasoon Shukla of News Express is Great Editor. Salute him.