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राजस्थान

राजस्थान के न्यूज़ चैनल बहस कार्यक्रमों के प्रतिभागियों को नहीं देते मानदेय

राजस्थान में चलने वाले न्यूज़ चैनल भी दिल्ली के राष्ट्रीय चैनलों की तरह खबरों पर आने वाली लागत को कम करने के लिए घटनाओं-मुद्दों पर बहसों के कार्यक्रम चलाते हैं। लेकिन वे प्रतिभागियों को (जो न केवल वरिष्ठ और सम्माननीय हैं, बल्कि विशेषज्ञ भी हैं) मानदेय का भुगतान नहीं करते। इनमें ईटीवी और ज़ी मरुधरा जैसे प्रतिष्ठित चैनल भी शामिल हैं। समाचार प्लस, फर्स्ट इंडिया न्यूज़ और न्यू़ज़ इंडिया जैसे चैनल इनकी आड़ लेकर मासूम बहाना बनाकर शोषण करते हैं। वे भूल जाते हैं कि डीडी राजस्थान तो अपने कार्यक्रम में प्रतिभागियों को बुलाकर शायद 2500 रुपए का मानदेय देता है और दिल्ली के सारे चैनल शायद 3000 रुपए मानदेय देते हैं। तो भैया सवाल यह है कि घर का पैट्रोल फूंककर ये कथित विशेषज्ञ बहस में जाते ही क्यों हैं।

<p>राजस्थान में चलने वाले न्यूज़ चैनल भी दिल्ली के राष्ट्रीय चैनलों की तरह खबरों पर आने वाली लागत को कम करने के लिए घटनाओं-मुद्दों पर बहसों के कार्यक्रम चलाते हैं। लेकिन वे प्रतिभागियों को (जो न केवल वरिष्ठ और सम्माननीय हैं, बल्कि विशेषज्ञ भी हैं) मानदेय का भुगतान नहीं करते। इनमें ईटीवी और ज़ी मरुधरा जैसे प्रतिष्ठित चैनल भी शामिल हैं। समाचार प्लस, फर्स्ट इंडिया न्यूज़ और न्यू़ज़ इंडिया जैसे चैनल इनकी आड़ लेकर मासूम बहाना बनाकर शोषण करते हैं। वे भूल जाते हैं कि डीडी राजस्थान तो अपने कार्यक्रम में प्रतिभागियों को बुलाकर शायद 2500 रुपए का मानदेय देता है और दिल्ली के सारे चैनल शायद 3000 रुपए मानदेय देते हैं। तो भैया सवाल यह है कि घर का पैट्रोल फूंककर ये कथित विशेषज्ञ बहस में जाते ही क्यों हैं।</p>

राजस्थान में चलने वाले न्यूज़ चैनल भी दिल्ली के राष्ट्रीय चैनलों की तरह खबरों पर आने वाली लागत को कम करने के लिए घटनाओं-मुद्दों पर बहसों के कार्यक्रम चलाते हैं। लेकिन वे प्रतिभागियों को (जो न केवल वरिष्ठ और सम्माननीय हैं, बल्कि विशेषज्ञ भी हैं) मानदेय का भुगतान नहीं करते। इनमें ईटीवी और ज़ी मरुधरा जैसे प्रतिष्ठित चैनल भी शामिल हैं। समाचार प्लस, फर्स्ट इंडिया न्यूज़ और न्यू़ज़ इंडिया जैसे चैनल इनकी आड़ लेकर मासूम बहाना बनाकर शोषण करते हैं। वे भूल जाते हैं कि डीडी राजस्थान तो अपने कार्यक्रम में प्रतिभागियों को बुलाकर शायद 2500 रुपए का मानदेय देता है और दिल्ली के सारे चैनल शायद 3000 रुपए मानदेय देते हैं। तो भैया सवाल यह है कि घर का पैट्रोल फूंककर ये कथित विशेषज्ञ बहस में जाते ही क्यों हैं।

एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित।

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0 Comments

  1. भगवान

    July 20, 2014 at 12:15 pm

    जब वरिष्ठ एवं विशेषज्ञ जनों को मानदेय नहीं मिलता तो जाते ही क्यों हैं। इनमें चैनल की कोई भी गलती नहीं है। चैनलों पर शोषण का आरोप लगाना छोटी मानसिकता है। जब जाने वालों और बुलाने वालों दोनों को ही कोई आपत्ती नहीं है तो बेगानों की शादी में माननीय पत्रकार महोदय जिन्होंने भड़ास पर खबर भेजी है क्यों दुबले हुए जा रहे जबकि अषाढ़ का महिना भी निकल गया। ये बेगानों की शादी में अब्दुला दीवाना जैसी बात हो गई। कई पत्रकार तो शो के लिए टाई लगाकार तैयार बैठे रहते हैं कि कब चैनल से बुलावा आए।

  2. nafees afridy

    January 19, 2015 at 12:44 pm

    बड़े पते की बात है! लेकिन कुछ ऐसे विशेषज्ञ भी है जो केवल पैसे के लिए ही नही टीवी में दिखने का भी चाव रखते है, लगातार चुनावी माहोल से लगी आचार सहिंता ने कुकरमुत्तो की तरह उग आये चेनल्स के लिए वित्तीय समस्या कर दी है

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