श्याम मीरा सिंह-
Newsclick से नाता, इतने ही दिनों का रहा। निजी कारणों से नौकरी से Resignation दे दिया है। नोटिस पीरियड का ये मेरा आख़िरी हफ़्ता है। कई जगह धक्के खाते खाते इस मुक़ाम पर आ पहुँचा हूँ कि खुद की नाँव ही अब मझदार में कुदा दी है। उसका भविष्य क्या है मालूम नहीं। उसकी उम्र कितने दिनों, महीनों, साल की है मालूम नहीं है।
दिल्ली मुश्किल शहर है। पर अब आ गए हैं तो आ ही गए हैं। गुजरात दंगों की सीरीज़ के बाद मेरे एक मित्र ने कहा कि मुझे साल 2006 में हुए लोकल ट्रेन के उन बम धमाकों पर एक सीरीज़ बनानी चाहिए जिसमें बेगुनाह लोगों को जेल में डाल डालकर कह दिया गया था कि केस सॉल्व. बाद में उनमें से कुछ को सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किया। ये वो कहानियाँ हैं जिन्हें कहा जाना चाहिए, लेकिन कहे कौन? ये कहानियाँ श्रम साध्य तो हैं हीं आर्थिक रूप से भी इन्हें करना मुश्किल है।
इस मामले की एक किताब- बेगुनाह क़ैदी, पढ़ने के लिए मैंने इस किताब के प्रकाशक को कॉल की, उनसे कहा कि क्या कृपया आप ये किताब मुझे घर भिजवा सकते हैं, डिलीवरी बॉय और किताब का पैसा मैं आपको भेजता हूँ। उन्होंने कहा- हाँ ज़रूर। मैंने उन्हें अपना नाम बताया और पता बताने लगा। मैंने उनसे पूछा आप अपनी UPI आइडी बताइए। उन्होंने कहा नहीं ये किताबें आपके लिए मुफ़्त हैं। मैंने कहा ऐसा क्यों? उन्होंने कहा मैं आपको जानता हूँ। आप भी इस काम में हैं. हम भी चाहते हैं ये कहानियाँ लोगों तक पहुँचें। मैंने कहा कि मैं किताबें ख़रीदकर ही पढ़ता हूँ, मुफ़्त नहीं लेता, ख़ासकर ऐसी किताबें जिनमें लेखक मेहनत करते हैं। बावजूद इसके वे नहीं माने और मेरे घर एक की जगह तीन किताबें भिजवा दीं। इससे भले ही मेरे 500-600 रुपए बचे लेकिन इसने निजी तौर मेरे मनोबल को बढ़ाने में मदद की।
अभी जज लोया की किताब के लिए लेखक निरंजन टाकले जी से कहा, उनसे कहा कि सर ये किताब चाहिए, उन्होंने स्पीड पोस्ट से अपना खर्च करके किताब भिजवाई, आज वो किताब आ गई, उसे पढ़ रहा हूँ, अपनी अगली सीरीज़ Who killed justice Loya पर ही है। निरंजन जी को मैसेज करता हूँ तो हर बात का जवाब मिलता है, सिवाय इसके कि सर आपका एकाउंट न. क्या है या UPI क्या है? ये दो घटनाएँ इसलिए बताईं, क्योंकि निजी तौर पर इनसे मैं प्रभावित हुआ हूँ। बिना नौकरी, अगले कुछ महीने थोड़े चुनौतीपूर्ण रहेंगे।
न्यूज़क्लिक ने मुश्किल वक्त में साथ दिया, इससे मेरे 10-11 महीने कट गए। मैं बहुत प्रभावशाली काम ना कर सका, जिसका मुझे रिगरेट है। लेकिन वक्त बहुत बढ़ा है, वह आपके अफ़सोस कम करने का पर्याप्त समय और मौक़ा देता है। ये चैनल शायद वो मौका साबित हो जो मेरे पुराने अफ़सोसों, और कुछ ना कर पाने की ग्लानि को शायद कुछ कम करे। दिल्ली UPSC की तैयारी करने आने से लेकर आज ये सफ़र इस नाज़ुक दौर में खुद अपना YouTube चैनल चलाने तक ले आया है। चलेगा तो चलेगा, नहीं चलेगा तब भी चलाएँगे, किसानों के बच्चे हैं खेत तक नदी-नाले का पानी आए तो आए, नहीं तो फावड़े से खुद खेत से पानी निकाल लें, हमारे पास ये विकल्प नहीं होते कि खेत छोड़ दें, फिर ये चैनल कैसे छोड़ दूँ…
न्यूज़क्लिक का शुक्रिया, सुदूर गाँव में बैठे उस अनजान आदमी का भी शुक्रिया जो मेरे जैसी नाचीज़ में अपना विश्वास जताए हुए कि मैं जहां भी होऊँगा कुछ करने की कोशिश ज़रूर कर रहा होऊँगा। शुक्रिया, स्नेह, आभार और खूब सारा प्यार!