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न्यूज पोर्टल या डिजिटल न्यूज चैनल का संचालन अवैध कैसे?

आरएनआई या पीआईबी द्वारा जब किसी वेबसाइट या डिजिटल चैनल को मान्यता देने का अब तक कोई प्रावधान ही नहीं है तो फिर वैध या अवैध का सवाल कैसे खड़ा किया जा रहा है

पटना। पुलिस उप महानिरीक्षक (मानवाधिकार) बिहार के वायरल हो रहे एक पत्र से वेबसाइट संचालकों में भ्रम और रोष का माहौल है। दरअसल पुलिस उपमहानिरीक्षक ने बिहार के सभी वरीय पुलिस अधीक्षक को संबोधित करते हुए 5 अगस्त 20 को एक पत्र लिखा है, जिसमें राज्य में चलने वाले कथित अवैध न्यूज़ पोर्टल यू ट्यूब चैनल ( बिना आर एन आई और पी आई बी के) को बंद करने का अनुरोध किया है।

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उन्होंने यह पत्र नेशनल प्रेस यूनियन बिहार के प्रदेश अध्यक्ष शैलेश कुमार पांडे के पत्र के आलोक में लिखा है। इस पत्र में उप महानिरीक्षक ने बताया है कि इस विषयक प्रासंगिक पत्र की मूल प्रति संलग्न है और शैलेश कुमार पांडे से प्राप्त पत्र में बिहार राज्य में न्यूज़ चैनल के नाम पर चल रहे अवैध रूप से (बिना आर एन आई और पीआईबी ) के न्यूज़ पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। इसी अनुरोध के आधार पर पुलिस उपमहानिरीक्षक (मानवाधिकार) ने पुलिस अधीक्षकों से अनुरोध किया है कि वर्णित बिंदुओं के आलोक में मामले की जांच कर नियमानुसार आवश्यक कार्रवाई की जाए तथा कृत कार्रवाई से पुलिस मुख्यालय को अवगत कराया जाए।

लेकिन बड़ा सवाल यहां यह है कि अवैध वेबसाइट का कोई अर्थ नहीं, क्योंकि पी आई बी या आरएनआई के किसी प्रावधानों में अब तक किसी वेब साइट या यूट्यूब चैनल को मान्यता देना नहीं है, ऐसे में उसके हवाले से किसी पोर्टल या यूट्यूब चैनल के अवैध होने का सवाल कहां से आता है?

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कहें तो, बिना आरएनआई या पीआईबी के पोर्टल अवैध कैसे होंगे, जब केंद्र सरकार के इन विभागों को किसी साइट को मान्यता देने का अब तक कोई प्रावधान ही नहीं है ? इस तरह का कोई दिशा- निर्देश मंत्रालय के किसी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।

यह जानकारी पुलिस उप महानिरीक्षक (मानवाधिकार) को नहीं है या फिर उस पत्रकार संगठन को नहीं पता! हैरत की बात है कि राष्ट्रीय पत्रकार संघ का दावा करने वाले प्रदेश अध्यक्ष शैलेश पांडे को इतनी भी जानकारी नहीं है। महोदय ने नासमझी में पुलिस प्रशासन को पत्र लिख डाला कि ये अवैध है। अधूरी जानकारी के आधार पर आखिर क्यों पत्र जारी कर दहशत पैदा किया गया है?

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यहां यह बता दें कि कोई भी वेबसाइट बिहार सरकार या केंद्र सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होता। जो भी बड़े अखबारों के या मीडिया हाउस के वेबसाइट ई पत्रों साथ साथ चलते हैं वह भी अलग से आरएनआई या पीआईबी के द्वारा मान्यता लिए हुए नहीं होते हैं। लेकिन कोई भी न्यूज़ पोर्टल जो चल रहे हैं, चाहे वह यूट्यूब हो या वेबसाइट, उन सभी पर वह सभी नियम कायदे लागू होते हैं जो किसी प्रिंट मीडिया या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर हो सकते हैं। यानी अगर कुछ गलत खबर चलाई जा रही है तो यहां भी अवमानना का या अपराधिक केस दर्ज किया जा सकता है, साथ ही न्यूज़ पोर्टल पर साइबर एक्ट के तहत भी मामले लागू होते हैं। ऐसा ही पिछले दिनों ही पीआईबी द्वारा आयोजित वेबिनार में ही अपर महानिदेशक आर्थिक अपराध इकाई , बिहार पुलिस जी एस गंगावर ने कहा था। ऐसे में अगर कोई न्यूज़ पोर्टल या यूट्यूब चैनल कोई गलत खबर चलाता है तो उसी एक खास पोर्टल पर कोई कार्यवाही की जा सकती है, वैसे ही जैसे किसी खास अखबार या किसी खास चैनल पर कोई कार्रवाई की जा सकती है। ऐसे में सभी (बिना आरएनआई और पीआईबी के ) वेबसाइट्स को अवैध कहना ही अपने आप में आधारहीन है और इस आधार पर किसी कार्रवाई की अनुशंसा आखिर कैसे की जा सकती है?

दूसरा सवाल यह भी है कि इस तरह की किसी कार्रवाई का अनुरोध करने से पहले पुलिस उप महानिरीक्षक (मानवाधिकार) ने उक्त पत्रकार संगठन और उसके अनुरोध के बाबत सत्यता की जांच की भी है या नहीं ? क्योंकि बिना आरएनआई और पीआईबी के पोर्टलों को अवैध कहना ही आधारहीन है। यह भी गौरतलब है कि भले ही किसी वेबसाइट को मान्यता प्रदान करने का प्रावधान बिहार सरकार या केंद्र ने नहीं किया हो, इसके बावजूद कोई वेबसाइट, यू ट्यूब चैनल अवैध नहीं होते। क्योंकि वेबसाइट जिस भी सर्वर प्रोवाइडर से लिये / ख़रीदे जाते हैं, वहां संचालकों का पूरा विवरण लिया जाता है और वे वहीं पंजीकृत होते हैं। यू ट्यूब चैनल भी यू ट्यूब पर रजिस्टर्ड होते हैं।

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ऐसे में प्रतीत होता है कि पत्रकार संघ ने किसी खुंदक या आपसी रंजिश में ऐसा कदम उठाया है। क्योंकि आज के दौर में सिद्धार्थ वरदराजन, विनोद दुआ, पुण्यप्रसुन वाजपेयी, कन्हैया भेलारी, यशवंत जैसे कई वरिष्ठ पत्रकार चर्चित वेबपोर्टलों या यूट्यूब चैनल का संचालन कर रहे हैं ।

नोट- पुलिस उप महानिरीक्षक (मानवाधिकार) के पत्र के सत्यता की पुष्टि अब तक नहीं की जा सकी है।

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लेखिका लीना ‘मीडियामोरचा’ की सम्पादक हैं.

https://youtu.be/rM1tVLifETc
2 Comments

2 Comments

  1. घीरज

    August 7, 2020 at 11:00 pm

    यह पत्र किसी वेब न्यूज या यूट्यूब चैनल को अवैध नहीं ठहराता। दरअसल किसी पत्रकार युनियन के पदाधिकारी शैलेश जी ने पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखा है और उसके उत्तर में महानिदेशक महोदय ने सभी एसपी और एसएसपी लोगों को जांच करने के निर्देश दिये हैं।
    वास्तव में आरएनआई न्यूजपेपर्स का रजिस्ट्रार होता है, और पीआईबी राजधानी दिल्ली में मौजूद केंद्र सरकार के कार्यालयों से प्रेस विज्ञप्ति जारी करने तथा उनमें रिपोर्टिंग के लिए अनुमति पत्र जारी करने का ब्युरो।
    इन दोनों का वेब या यूट्यूब चैनलों से कोई संबंध नहीं है।

  2. मिशन कुमार

    August 18, 2020 at 2:00 pm

    बिहार में एक आईएएस अधिकारी (पुलिस महानिदेशक, मानवाधिकार) को एक पत्रकार यूनियन द्वारा दिये गए आवेदन पर बारीकी से नियम कानून पर गौर फरमाना चाहिए था। वेब पत्रकारिता और यूट्यूब चैनल चलाने को लेकर नियम कानून को जानने के लिए RNI, MIB और PIB और राज्य सरकार की सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से जानकारियां जुटानी चाहिए। बिना कोई जानकारी के समझे-बुझे डिजिटल पत्रकार पर कोई कानूनी हथकंडा प्रशासन द्वारा उठाना अनुचित है। साथ ही पत्रकार युनियन के पदाधिकारी शैलेश जी को भी RNI, MIB और PIB और राज्य सरकार के अधिकृत सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से जानकारियां जुटाना चाहिए था, तब यूनियन की ओर से डिजिटल पत्रकार और वेब पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल पर कोई करवाई करने की चेष्टा करते। हमे तो पत्रकार युनियन के पदाधिकारी शैलेश जी ऐसी रवैया से पत्रकार जगत को काफी हास पहुंचा और डिजिटल पत्रकार को मान सम्मान को ठेस पहुंचाया है।

    माफ कीजियेगा, मैं किसी पर उंगली नही उठा रहा हूं, परन्तु जब डिजिटल पत्रकार और वेब पोर्टल एवं यूट्यूब चैनल की बात आती है तो एक बात गौर करने वाली ये है कि बिहार में कुछ वेब पोर्टल के पत्रकारो को सरकारी पत्रकारों की सूची में नाम दर्ज किया गया हैं। जिसका विवरण सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बिहार सरकार के वेबसाइट पर मौजूद हैं। अगर पत्रकारों की सूची में कुछ वेब जॉर्नलिस्ट का नाम दर्ज है तो वेब पोर्टल अवैध कैसे हो सकता है। सरकार द्वारा प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, मैगज़ीन के साथ साथ वेब पोर्टल को भी सरकारी विज्ञापन देने की बात कहा गया है, तो वेब पोर्टल अवैध कैसे हो सकता हैं।

    वही दूसरी ओर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बिहार सरकार द्वारा भी एक यूट्यूब चैनल का संचालन किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार के संबंधित खबरों का प्रसारण होता है। जिसका मै यूट्यूब चैनल का लिंक https://youtu.be/W-0oj3SNyPU पर देखा जा सकता है, तो ऐसी परिस्थिति में यूट्यूब चैनल और वेब पोर्टल को किसी भी पत्रकार यूनियन द्वारा अवैध कैसे घोषित कर सकते है।

    हालांकि इस संबंध में अगर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से कोई नियम बनाए गए है तो मैं यूनियन के पदाधिकारियों को ही भड़ास4मीडिया के माध्यम से अनुरोध करूँगा की वे वेब पोर्टल, यूट्यूब चैनल एवं डिजिटल पत्रकार को मार्गदर्शन कराए ताकि वे खुद को वैध घोषित कर सके। वैसे इस संबंध में यूनियन के पास कोई अधिकार नह है कि वे वेब पोर्टल वैध और अवैध घोषित कर सके। उन्हें इनसे संबंधित जानकारी का अभाव है। इसलिए नेशनल प्रेस यूनियन बिहार के प्रदेश अध्यक्ष शैलेश कुमार पांडे जी RNI, PIB और MIB एवं सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बिहार से वेब पोर्टल को वैध और अवैध से संबंधित सूचना एकत्रित करें, तब किसी की छवि धूमिल करें।

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