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सियासत

मीडिया वाली बाई

1975 से 1977 तक देश में आपात-काल था ! “दबंग” इंदिरा गांधी ने पत्रकारों को झुकने को कहा था , कुछ रेंगने लगे, कुछ झुके और कुछ टूटने के बावजूद झुकने से इंकार कर बैठे ! 2014 का नज़ारा कुछ अलग है ! भाजपा और आर.एस.एस. के नरेंद्र नरेंद्र मोदी और उनकी टीम दबंगई की जगह भय और अर्थ के ज़रिये कूटनीतिक रवैया अपना रही है ! ये टीम धौंस और धंधे की मज़बूरी को बख़ूबी कैश कराना जानती है ! परदे के पीछे की धौंस और पत्रकारिता का लेबल लगाकर धंधा करना, मोदी-राज में यही दो वज़ह है जो पत्रकार की खाल में (द) लाल पैदा कर रही है ! बारीक़ी से नज़र डालें, तो अब पत्रकार की जगह ज़्यादातर मैनेजर्स नियुक्त किये जा रहे हैं ! बड़े चैनल्स की सम्पादकीय कही जाने टीम पर गौर-फ़रमाएंगें तो पायेंगें कि  निम्नतम-स्तर के ज़्यादातर पत्रकार और उम्दा कहे जा सकने वाले ये एजेंट ही सम्पादकीय लीडर बने फिर रहे हैं ! पत्रकारों की क़ौम को ही ख़त्म कर देने पर आमादा मोदी और उनकी टीम ने पत्रकारिता में शेष के नाम पर कुछ अवशेष छोड़ देने का बीड़ा उठाया है और इसे साकार कर के ही छोड़ने पर तुली है ! शर्म आती है ! मोदी और उनकी टीम को भले ही ना आये ! और आयेगी भी क्यों ? यही तो चाहत है !

<p>1975 से 1977 तक देश में आपात-काल था ! "दबंग" इंदिरा गांधी ने पत्रकारों को झुकने को कहा था , कुछ रेंगने लगे, कुछ झुके और कुछ टूटने के बावजूद झुकने से इंकार कर बैठे ! 2014 का नज़ारा कुछ अलग है ! भाजपा और आर.एस.एस. के नरेंद्र नरेंद्र मोदी और उनकी टीम दबंगई की जगह भय और अर्थ के ज़रिये कूटनीतिक रवैया अपना रही है ! ये टीम धौंस और धंधे की मज़बूरी को बख़ूबी कैश कराना जानती है ! परदे के पीछे की धौंस और पत्रकारिता का लेबल लगाकर धंधा करना, मोदी-राज में यही दो वज़ह है जो पत्रकार की खाल में (द) लाल पैदा कर रही है ! बारीक़ी से नज़र डालें, तो अब पत्रकार की जगह ज़्यादातर मैनेजर्स नियुक्त किये जा रहे हैं ! बड़े चैनल्स की सम्पादकीय कही जाने टीम पर गौर-फ़रमाएंगें तो पायेंगें कि  निम्नतम-स्तर के ज़्यादातर पत्रकार और उम्दा कहे जा सकने वाले ये एजेंट ही सम्पादकीय लीडर बने फिर रहे हैं ! पत्रकारों की क़ौम को ही ख़त्म कर देने पर आमादा मोदी और उनकी टीम ने पत्रकारिता में शेष के नाम पर कुछ अवशेष छोड़ देने का बीड़ा उठाया है और इसे साकार कर के ही छोड़ने पर तुली है ! शर्म आती है ! मोदी और उनकी टीम को भले ही ना आये ! और आयेगी भी क्यों ? यही तो चाहत है !</p>

1975 से 1977 तक देश में आपात-काल था ! “दबंग” इंदिरा गांधी ने पत्रकारों को झुकने को कहा था , कुछ रेंगने लगे, कुछ झुके और कुछ टूटने के बावजूद झुकने से इंकार कर बैठे ! 2014 का नज़ारा कुछ अलग है ! भाजपा और आर.एस.एस. के नरेंद्र नरेंद्र मोदी और उनकी टीम दबंगई की जगह भय और अर्थ के ज़रिये कूटनीतिक रवैया अपना रही है ! ये टीम धौंस और धंधे की मज़बूरी को बख़ूबी कैश कराना जानती है ! परदे के पीछे की धौंस और पत्रकारिता का लेबल लगाकर धंधा करना, मोदी-राज में यही दो वज़ह है जो पत्रकार की खाल में (द) लाल पैदा कर रही है ! बारीक़ी से नज़र डालें, तो अब पत्रकार की जगह ज़्यादातर मैनेजर्स नियुक्त किये जा रहे हैं ! बड़े चैनल्स की सम्पादकीय कही जाने टीम पर गौर-फ़रमाएंगें तो पायेंगें कि  निम्नतम-स्तर के ज़्यादातर पत्रकार और उम्दा कहे जा सकने वाले ये एजेंट ही सम्पादकीय लीडर बने फिर रहे हैं ! पत्रकारों की क़ौम को ही ख़त्म कर देने पर आमादा मोदी और उनकी टीम ने पत्रकारिता में शेष के नाम पर कुछ अवशेष छोड़ देने का बीड़ा उठाया है और इसे साकार कर के ही छोड़ने पर तुली है ! शर्म आती है ! मोदी और उनकी टीम को भले ही ना आये ! और आयेगी भी क्यों ? यही तो चाहत है !

कुछ दिनों पहले की बात है , जब, प्रधानमंत्री की पार्टी में सैकड़ों पत्रकार पहुंचे ! पर इनमें से ज़्यादातर पत्रकारों का व्यवहार कुछ ऐसा मानो, चापलूसी-पसंद गुरूजी को उन्हीं के अंदाज़ में दक्षिणा देना ! नरेंद्र मोदी जितनी तेज़ी से सत्ता में छाते जा रहे हैं, उसी तेज़ी से मीडिया का पतन हो रहा है ! मीडिया चौथा-खंबा ना बनकर, धंधा होता जा रहा है ! ख़ास-तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ! मोदी का लगातार गुणगान और उन्हें हीरो बनाने वाले चैनल्स को चलाने वालों की नब्ज़, मोदी और उनकी टीम ने पकड़ लिया है ! “गन्दा है पर धंधा है” वाले दुनिया के सबसे पुराने पेशे और पेशेवर के समानांतर , आज का ज़्यादातर मीडिया और मीडिया-पर्सन आ खड़ा हुआ है ! यही सबसे “गन्दा” काम है, जो नरेंद्र मोदी और उनकी टीम ने कर दिखलाया है ! कम लोगों को मालूम है कि मेन-स्ट्रीम मीडिया और सोशल-मीडिया में जो भी लोग प्रो-मोदी कैम्पेन चला रहे हैं, उन्हें सत्ता की तरफ़ से अघोषित लाभ मिल रहा है ! कई ऐसे छुटभैये चैनल्स हैं, जिनके पास अपने कर्मचारियों को  ठीक-ठाक सैलरी देने की भी औकात नहीं मगर ये चैनल्स करोड़ों रुपये डिस्ट्रिब्यूशन पर लगा रहे हैं ! इन चैनल्स के मालिकों की निजी दौलत में इज़ाफ़ा हो रहा है ! कौन दे रहा है, इन्हें इतनी दौलत ?

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ये सब कैसे हो रहा है , इसे समझा जा सकता है ! गुजरात और महाराष्ट्र के कनेक्शन से कई मीडिया-मालिकों को मोदी या भाजपा के राष्ट्रीय या क्षेत्रीय नेताओं को प्रमुखता से कवरेज देने की एवज़ में बेतहाशा लाभ मिल रहा है ! देखा जाए तो सत्ता भोगने के लिहाज़ से, ये मोदी के अनुकूल है लेकिन चौथे खंबे के (वर्चुअल) ख़ौफ़ को ज़मींदोज़ करने की दिशा में एक खतरनाक कदम !  बड़े कहे जाने वाले न्यूज़ चैनल्स, “आज-तक”–“इंडिया टी.वी”.–“ज़ी-न्यूज़”–“आई.बी.एन7”, “टाइम्स-नाउ”, “ए.बी.पी.न्यूज़” तो अघोषित तौर पर कांग्रेस विरोधी और मोदी व् भाजपा के माउथ-पीस के रूप में उभरे हैं और लगातार प्रो-मोदी बीट पर काम कर रहे हैं !  प्रिंट का बड़ा अख़बार “द टाइम्स ऑफ इंडिया” तो कांग्रेस-विरोधी उसी समय से हो चुका है जब इनके मालिकान पर “इलज़ाम” लगे थे ! 

पत्रकारिता और बाई के कोठे का अंतर धुंधलाता जा रहा है ! इलाके के नए दरोगा की “दहशत” ही कुछ ऐसी है कि, चाहे नयी-नवेली बाई हो या धंधे की पुरानी “मौसी”, हर कोई डरता है ! धंधे में कुछ धौंस का शिकार हैं तो कुछ पैसे में मदहोश! आज-कल इस गली की रौनक एक राजा बढ़ा रहा है ! ऐसा राजा, जिसका वादा  इस मंडी में लगने वाली बोली से कई गुना ज़्यादा ! ज़ाहिर है, मंडी में हुनर दिखलाने वालों के पैरों  में बंधे घुँघरू खनखना रहे है और ज़ुबा एहसानमंद !  दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिये

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नीरज वर्मा के ब्लाग ‘लीक से हटकर’ से साभार. 

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0 Comments

  1. rajkumar

    October 30, 2014 at 12:31 pm

    NIRAJ VERMA JAISE MEDIA PERSON KE KARAN HI MEDIA KI BHADI PITTI H, ESE SECULAR JAT KE CONGRESSI BHAT PICHHALE 10 SALO SE PANI PI PI KAR MODI KO GALI DETE AARAHE H WASE WASE MODI KA KAD BADHTA JARAHA H, PICHHALE 50 SALO SE APNE KO VAMPANTHI V KAMRED BOL NE WALE CONGRESS SE MAL KHATE AARAHE THE AB INKA CHUGA PANI BAND HO JANE SE IN KI KHIJ BHADAS PAR NIKAL RAHI H,

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