स्वर्गीय निशांत शर्मा
Pran Chadha : जान की बाजी लगा कर पत्रकारिता! दैनिक भास्कर के ग्रुप एडिटर कल्पेश याग्निक की मृत्यु की खबर के दो दिन बाद आज नवभारत बिलासपुर के सम्पादक निशान्त शर्मा की हार्ट अटैक से मौत हो गयी।वो 59साल के थे। उनको नर्मदा नगर में उनके निवास पर आज दोपहर दिल का दौरा पड़ा उनको करीब अस्पताल पहुंचाया गया, परन्तु जीवन व मौत से जूझते कुछ घण्टों में वह जान की बाजी हार गए।
क्या जान की बाजी लगाकर पत्रकार कारपोरेट अखबारों में काम कर रहे हैं। यह आम चिन्तन का विषय हो गया है, सुबह की बैठक से ले कर देर रात अखबार के प्रकाशन तक सम्पादक और पत्रकारों की इस प्रतियोगिता और तनाव की ड्यूटी लगता है जानलेवा बनी हुई है।
कई पत्रकार उच्च रक्तचाप, शुगर के शिकार चल रहे हैं, कुछ को लकवा मार गया,और असमय बूढ़े हो रहे है,हार्ट सर्जरी के बाद नाइट ड्यूटी। दैनिक भास्कर बिलासपुर में मेरे साथ काम किये होनहार युवा पत्रकार केशव शर्मा, एक कस्बे बाराद्वार के रहने वाले थे पर योग्यता की वजह पहले पेज के लेआउट औऱ खबर चयन देखते हुए जयपुर बुलाया जाता रहा, फिर किन्ही कारण रायपुर तबादला कर दिया गया। उन्होंने दो दिन बाद रायपुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के सामने कूद कर खुदकुशी कर ली।
मामला पुराना है। पर सवाल उठता है कि दूसरों के लिए कलम उठाने वाले, दिल के दौरे या खुदकुशी कर रुखसत क्यों हो रहे है? पत्रकारों के लिए कल्याण समिति बनाई जाती है, प्रेस क्लब है, वेतनमान है। पर क्या किसी ने खबर ली कि उनको कितना वेतन मिल रहा है? चैनल वाले मीडिया के पत्रकारों की माली दशा बुरी है। पर अर्ध बेरोजगारी, कुछ शौक़ में आम पत्रकार बुरी दशा में जीवन की गाड़ी खींच रहा है।
गहन शोक की इस घड़ी में शासन का फर्ज है कि,श्रमजीवी पत्रकारों की जटिल हो रही समस्याओं को गम्भीरता से समझे, चौथे स्तंभ के ये सिपाही विवश हैं गर, सरकार तक अपनी समस्या लिख कर दे तो नौकरी गवां दें। अब हल सरकार को ही निकालना है। मालिकों की सेवा झोली भर विज्ञापन देने वाली सरकार, मुट्ठी भर काम मेहनतकशों के लिये भी करें।
वरिष्ठ पत्रकार प्राण चड्ढा की एफबी वॉल से.
https://www.youtube.com/watch?v=55NezS4H4_4
उपरोक्त स्टेटस पर आए ढेरों कमेंट्स में से कुछ प्रमुख यूं हैं…
Devpriya Awasthi कल्पेश जी के मामले मेंं आर्थिक पहलू तो नहीं ही था। वे देश के सर्वाधिक वेतन वाले हिंदी संपादकों में एक थे। सही कारण तो जांच के बाद ही सामने आएंगे। वह तनाव कितना लेते थे यह तो नहीं पता, लेकिन यह सच है कि वह अपने मातहतों को तनाव देने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे.
Pran Chadha तनाव की प्रतिक्रिया खुशी कदापि नही होती, तनाव ही होता है, वर्कलोड।जिसे जितना वेतन मिलता है, उससे अधिक वसूला जाता है। घोर व्यावसायिकता के दौर में नौकरी बचना मुश्किल होता है।मनमार के समझौते भीतर से तोड़ देते है और कोई हमदर्द भी नहीं रहता। उनको श्रद्धांजलि दें,पर अधिक जरूरी है, उनकी समस्याओं को जाने और कोई राह निकले।
Niranjan Sharma अतिदुखद खबर ! निशांत शर्मा सतना देशबंधु में सन 85-89 के बीच मेरे साथ काम कर चुके थे ! कई वर्षों बाद अभी 2-3 वर्ष पूर्व फेसबुक में वे दिखाई दिए तो सोचा था कि आगे उनसे फिर मुलाक़ात होगी लेकिन यह खबर आ गई ! अत्यंत शोकजनक ! ओह !
Shri Krishna Prasad Time to file criminal cases against media owners.
Arvindkumar Sharma आपने समसामयिक घटनाओं के मद्देनज़र ज्वलंत प्रश्न खड़ा किया है।यदि मुझसे आप पूछें तो में यही कहूँगा कि इस सब के लिये पत्रकार/संपादक स्वयं ही ज़िम्मेदार हैं।निजी संस्थानों में पदों और हैसियतों को लेकर जो गला काट प्रतियोगिता होती है उनमें ज़्यादातर लोग अपने शरीर का भान भी भूल जाते हैं।महत्वाकांक्षा की यह कभी न ख़त्म होने वाली रेस यहाँ आकर समाप्त हो जाती है।मेरा मानना है काम कीजिये लेकिन पूरे संयमित होकर अपना ध्यान रखते हुये अपनी क्षमताओं के अनुसार तब शायद ऐसे हादसे न हों।
Pran Chadha बेरोजगारी के दौर में बढ़ते अख़बार रोजगार की आस है । पर,बाद काम बढ़ता जाता है और साथ नौकरी जाने की आशंका। उधर पत्रकारों के हितों के लिए सभी संस्थायें मालिक के खौफ से पत्रकारों के हितों पर ध्यान नहीं देती । नतीजा सामने है।
Keshav Shukla कल्पेश जी और निशांत जी को विनम्र श्रध्दांजलि।पत्रकार जगत के लिए यह क्षति अपूरणीय है।पत्रकारों की दशा सोचनीय है।अखबारों की व्यवसायिकता बढ़ गई है पर साधन,सुविधाएं और वेतन उस हिसाब से ऊंट के मुंह में जीरा तुल्य है।प्रेस गन्ने की मशीन की भांति काम करने लगे हों तो कर्मचारी गन्ने की तरह उपयोग किये जाते हैं। पत्रकार सबका, पर उसका कोई नहीं।
Deependra Dhar Diwan विनम्र श्रद्धांजलि उपाय योग जिम दौड़ना भागना सायकल चलना बीच बीच मे ब्रेक टूर ट्रेवल जंगल नेचर के पास जाना संयमित दिनचर्या संयमित भोजन तथा डॉ नियमित शाररिक, मानसिक परीक्षण इत्यादि
Pran Chadha पत्रकार को समय नहीं मिलता,घर के लिए,बच्चों के लिए। आप ने जो लिखा वह ठीक है।पर पत्रकार की रोज परीक्षा होती है और रोज नतीजा, बड़ी बेबसी की दशा है, नहीं तो बाहर।।
Mahendra Pratap Singh दुःखद मित्र, निशांत आप हर मुलाकात में यही कहते थे, तनाव हम पर नहीं हम तनाव पर हावी हैं। फिर ऐसा क्या हुआ, अचानक साथ छोड़ गए। अभी अभी तो जन्मदिन मनाया था। एक जिंदादिल इंसान का यूं चले जाना रुला गया। अश्रुपूरित श्रंद्धांजलि।
Ashok Moti अत्यन्त दुखद । विनम्र श्रधांजलि । देश में कई मौतें अब संदेह के घेरे में है ।जो अपनी मौज में न लिख सके उन्हें पत्रकार नहीं कोरपोरेट रिलेशन कहिए ।
रीमा दीवान चड्ढा बहुत दुखद है ।आत्महत्या और दिल का दौरा दोनों की ही वजह तनाव ही है ।समस्याओं के साथ उनके निदान पर बात होनी चाहिए ।लोगों को समाचार पहुँचाने के साथ स्वयं दुखद समाचार बनना तो कतई सही नहीं है ।मन व्यथित होता है ऐसे दौर में ।सादर नमन ।
महेश पांडेय कल्पेश याग्निक ने शायद आत्महत्या की है फिर भी इसका कारण कॉर्पोरेट पत्रकारिता की संस्कृति से उपजा तनाव या द्वंद ही है
बी.आर. कौशिक कलमकारों के विगत दिनों लगातार कालकवलित होने की घटना ने वास्तव में विचलित किया है, आपके द्वारा उल्लेखित कारण में दम है औल निराकरण के प्रयास होने चाहिए। विनम्र श्रद्धांजलि।
Suresh Mishra दुःखद पत्रकारिता जगत में दो संपादक एक हृदयाघात से जीवन लीला : एक हृदयस्पर्श कर मौत के मुंह में कूद गए चिंतनीय श्रद्धांजलि।
Ratan Jaiswani केशव शर्मा जी की मदर टेरेसा पर लिखी गई हेडिंग पूरे भास्कर ग्रुप में सराही गई थी। मुझे याद है, तब हम पत्रकारिता का ककहरा सीखना शुरू ही किए थे। यह बात मुझे एक साथी पत्रकार ने बताई थी।
Ashok Mishra हस्तियों का अवसान दुखद हैं। पत्रकारों की टेंशन को लेकर आपकी चिंता जायज है सर…कामना है कि इसका शीघ्र हल निकले….नमन