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किसान नहीं, विपक्षी एकजुटता की खबर अखबारों में पहले पन्ने पर पहुंची

किसानों के मंच पर विपक्षी नेताओं के जुटने से ही सही, उनकी खबर अंग्रेजी अखबारों में तो पहले पन्ने पर आ गई। लेकिन हिन्दी अखबारों में कई अभी भी इसे दिल्ली की स्थानीय खबर ही मान रहे हैं। किसानों की मांग और किसान नेता पहले पन्ने पर नहीं के बराबर है। कुल मिलाकर, किसानों का चौथी बार दिल्ली आना भी एक ऐसी खबर की तरह परोसा गया जिससे दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था खराब हो जाती है। रैली या मार्च के मुद्दों से ज्यादा जोर ट्रैफिक और ट्रैफिक संभालने के लिए की गई तैयारियों पर दिखा। दैनिक भास्कर में यह खबर आज भी दिल्ली की स्थानीय खबरों के पेज पर है। दो-दो फ्रंट पेज होने के बावजूद भास्कर ने किसान रैली की खबर अपने दिल्ली फ्रंट पेज यानी पांचवें पन्ने पर छापी है। मुख्य शीर्षक, “माफ कीजिएगा हमारे मार्च से आपको परेशानी हुई होगी” और दूसरा प्रमुख शीर्षक, “दिल्ली में इस साल चौथी बार जुटे किसान” – पुराना है। और किसानों का दुख या उनकी मांग नही बताता है।

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दैनिक जागरण में पहले पेज पर दो कॉलम में है जिसका शीर्षक है, “किसानों के मंच से राहुल व केजरीवाल ने भरी हुंकार”। फोटो भी विपक्षी नेताओं की है। कैप्शन है, “संसद मार्ग पर मार्च के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल, भाकपा नेता सीताराम येचुरी, जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्य मंत्री फारुक अब्दुल्ला और शरद यादव”। इसमें किसान, उनकी मांग और तस्वीर सब पीछे रह गए। जागरण ने अंदर के पूरे पेज पर किसान मुक्ति मार्च की खबरों को लगभग आधी जगह दी है। इसमें एक बड़ी सी तस्वीर और छिटपुट खबरों के साथ जो खबर सबसे बड़ी है उसका शीर्षक है, “जाम से निपटने को बनी थी विशेष रणनीति”। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसी खबरें पुलिस प्रशासन की ‘सेवा’ में छपती हैं। इसके बदले हत्या-बलात्कार दुर्घटना की एफआईआर वाली ‘ खबरें’ बताई जाती हैं।

नवभारत टाइम्स में पहले पेज पर लीड है, “किसानों के मंच पर विपक्ष ने बोए एकता के बीज”। नभाटा में भी किसानों की खबर दिल्ली की स्थानीय खबरों के पेज पर है। सबसे बड़ी खबर का शीर्षक है, “अलग अंदाज में दिखे किसान”। और उपशीर्षक है, “खोपड़ी में भीख मांग रहे थे तमिलनाडु के किसान”। कहने की जरूरत नहीं है कि ये सब खबर छपवाने के टोटके हैं और इसीलिए किए जाते हैं और अखबार उसी को प्रमुखता दे रहा है। अखबार में इस खबर के नीचे छपी दो खबरों का शीर्षक किसानों पर केंद्रित है पर मुख्य खबर “स्थानीय” है।

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दैनिक हिन्दुस्तान ने भी, “किसानों के पक्ष में 21 दल एकजुट” शीर्षक खबर को लीड बनाया है। इसके साथ पहले पन्ने पर कई खबरों में एक खबर, “घंटो जाम लगा रहा भी है”। इसमें बताया गया है संसद की ओर जा रहे किसानों को पुलिस ने सुरक्षा कारणों से पहले ही रोक लिया। इसके बाद किसान संसद मार्ग पर ही सभा करने लगे। प्रदर्शन की वजह से कनाट प्लेस और रामलीला मैदान की ओर जा रही सड़कों पर घंटों जाम लगा रहा। दैनिक हिन्दुस्तान में किसान मुक्ति मार्च का पेज बढ़िया है और मुख्य खबर का शीर्षक भी। फ्लैग शीर्षक में दो बातें हैं – राजनैतिक दलों से अपील की, संसद में दोनों विधेयक जल्द पास कराएं और, मांग नहीं माने जाने पर बड़ा आंदोलन करने की चेतावनी। मुख्य शीर्षक है, “कर्ज से राहत और सही कीमत की गारंटी मांगी।”

अमर उजाला में किसानों की खबर उसी रूप में लीड है। शीर्षक है, “हक चाहिए, खैरात नहीं”। उप शीर्षक है, “सरकार को चेतावनी- वादे पूरे नहीं किए तो छीनकर लेंगे अधिकार”। अखबार ने विपक्षी एकजुटता की खबर मुख्य खबर के साथ पर अलग शीर्षक से छापी है। शीर्षक है, “विपक्ष को मिला एकजुटता का मौका, सरकार को जमकर कोसा”। विपक्षी नेताओं की फोटो के कैप्शन में नाम बताने के साथ यह भी लिखा है, “राहुल गांधी और अरविन्द केजरीवाल पहली बार एक मंच पर”। अखबार ने कई दूसरी छोटी बड़ी खबरो को इसी पेज पर एक साथ रखा है। इनमें भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा का सवाल भी है। भाजपा ने पूछा – 70 साल क्या किया? इसे पढ़कर याद आया कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज अपनी लीड के साथ कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का ऐसा ही सवाल प्रमुखता से छापा है। कांग्रेस पार्टी को जवाब देना चाहिए कि उसकी सरकार वर्षों तक किसानों के प्रति उदासीन क्यों थी।

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राजस्थान पत्रिका ने भी, “साढ़े चार साल में चौथा मार्च : कर्ज माफी और सही दाम, संसद तक पहुंचे किसान” फ्लैग शीर्षक और मुख्य शीर्षक,”किसानों के मंच पर विपक्ष एकजुट” के साथ इस खबर को पहले पेज पर रखा है। इसके साथ कई खबरों में एक का शीर्षक है,17 विपक्षी दलों के नेता एक साथ और दूसरे का, ड्रामा और कनफ्यूजन एक ही मंच पर।

इंदौर से नए शुरू हुए हिन्दी अखबार प्रजातंत्र ने किसानों के मार्च की बड़ी सी फोटो पहले पेज पर छापी है। खबर अंदर के पेज पर है लेकिन मुख्य शीर्षक के साथ जो लिखा है वह किसी भी अखबार में इतनी प्रमुखता से नहीं दिखा। मुख्य शीर्षक है, एक लाख से ज्यादा किसानों ने अपने हक के लिए दिल्ली में किया मार्च और उपशीर्षक है, …. इधर मंत्रियों ने साधी चुप्पी। किसानों से मिलने केंद्र सरकार का कोई भी मंत्री नहीं गया। हर छोटी बड़ी घटना पर ट्वीट करने वाले मंत्रियों ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर ट्वीट से भी दूरी बनाई। यह एक दिलचस्प सूचना है जो ट्वीट से खबर बनाने वाले अखबारों में नहीं है।

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मैंने जो अखबार देखे उनमें पहले पेज पर किसानों को सबसे ज्यादा जगह नवोदय टाइम्स ने दी है। मार्च की बड़ी सी फोटो पर साड्डा हक ऐत्थे रख जैसे ‘जुमले’ के साथ मुख्य खबर का शीर्षक है, “आंदोलन पर किसान, सरकार को चेताया दिखी विपक्ष की एकजुटता, मोदी निशाने पर”। अखबार ने अन्य खबरों के साथ अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समितिके संयोजक योगेन्द्र यादव का कोट भी पहले पेज पर प्रमुखता से छापा है, “अब स्पष्ट है कि मौजूदा सरकार अब तक की सबसे अधिक किसान विरोधी साबित हुई है। किसान विरोधी सरकार को हराना है और जो किसान हितैषी होने का दावा कर रहे हैं उनको डराना है जिससे वे बाद में वादे से मुकर न जाएं।”

अंग्रेजी अखबारों में इंडियन एक्सप्रेस ने शीर्षक में वही लिखा है जो किसान या किसान नेता चाहते हैं। फ्लैग शीर्षक है, खेती का संकट दिल्ली पहुंचा। मुख्य शीर्षक है, किसानों के विरोध में विपक्ष ने प्रधानमंत्री को निशाना बनाया। कर्ज माफी रोजगार पर जवाब मांगे। द टेलीग्राफ का शीर्षक सबसे अलग और अनूठा है। एक अकेले किसान की तीन कॉलम की फोटो और सात कॉलम का शीर्षक, इस चेहरे के आगे 56 ईंची सीना सिकुड़ जाता है। मुख्य खबर का शीर्षक है, किसान दिवस (फार्मर्स डे) पर विकास के आंकड़ों से ग्रामीण परेशानी की पोल खुली। टाइम्स ऑफ इंडिया ने दिल्ली में तो पहले पेज पर किसानों की खबर रखी है पर मुंबई इसकी जगह कोयला सचिव कोसजा वाली खबर है। इससे आप अखबारों, खबरों की प्राथमिकता पर अटकल लगा सकते हैं।

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वरिष्ठ पत्रकार और अनुवादक संजय कुमार सिंह की रिपोर्ट। संपर्क : [email protected]

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