रंगनाथ सिंह-
अरुण यह मधुमय देश हमारा… तस्वीर में चित्रा रामकृष्णन दिख रही हैं। इन्हें जितनी तवज्जो मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिल रही है। चित्रा नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) रही हैं। पता चला कि चित्रा जी नेशनल स्टॉक एक्सचेंज चलाने के लिए किसी से ईमेल पर सलाह लेती रही हैं। चित्रा के अनुसार वह व्यक्ति ‘हिमालय में रहने वाला योगी’ है।
ऐसे मामलों की नियामक संस्था SEBI चित्रा जी के योगी वाले मार्गदर्शन को पचा नहीं पा रही है। कार्रवाई वगैरह कर रही है। संक्षेप में कहें तो भारत को विश्वगुरु बनने की राह में रोड़े अटका रही है। होना तो यह चाहिए कि सरकार विभिन्न पहाड़ों पर रहने वाले ईमेलधारी योगियों-साधुओं से खुद आगे बढ़कर सम्पर्क करे और पता करे कि वो स्टॉक एक्सचेंज के अलावा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के किन संस्थानों को विश्वगुरु बनने की राह पर ले जा सकते हैं।
मैं कहता हूँ, SEBI जैसी संस्थाएँ हमारे देश की मौलिक प्रतिभाओं को कुन्द करने का काम कर रही हैं। सेबी को चाहिए कि दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में खुले गाय शोध केन्द्र की तर्ज पर नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में गौआर्थिकी का केंद्र शुरू करें। गाय के गोबर से एक्सचेंज जोखिममुक्त होगा। गाय के दूध से सीईओ इत्यादि कर्मचारियों की बुद्धि शुद्ध और देह पुष्ट होगी।
SEBI की बुद्धि अगर सही राह पर होती तो वह NSE के कर्मचारियों के लिए दो-दिवसीय प्रशिक्षण शिविर रखता जिसमें गाय के गोबर से उपले पाथने सिखाये जाते। विशेषज्ञ के तौर पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उन यशस्वी प्रोफेसर को बुलाया जा सकता है जिनकी उपले पाथने की कला अब जगतविख्यात है।
कल ब्रह्म चेलानी ने लिखा कि दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य जमावड़ा चीन ने भारतीय सीमा पर कर रखा है। हमें इस दिशा में भी सोचना चाहिए कि हम अपने प्रिय साण्ड और नीलगाय को चीन सीमा पर छोड़ आएँ। जिस तरह वह हमारे लाखों किसानों के खेत चरके उन्हें बर्बाद कर रहे हैं उसी तरह चीन का खेत चर जाएँ।
कल-परसों कुछ लोग नीति आयोग के आँकड़ों के आधार पर एक नक्शा घुमा रहे थे जिसमें सबसे ज्यादा गरीबी हिन्दी पट्टी में दिख रही थी। उस नक्शे में भी यूपी के लिए एक ही राहत थी कि बिहार की हालत उससे खराब है। इसका साफ मतलब है कि इस इलाके में गाय-गोबर का अभाव हो गया है। इन प्रदेशों को गौआर्थिकी के पहलू पर विचार करना चाहिए। भूपेश बघेल की गोबर खरीद योजना जैसी नई मौलिक गऊवादी आर्थिक नीतियों से सबक लेना चाहिए।
पिछले कुछ दिनों में कुछ लोग बेरोजगारी जैसी वायवीय समस्या से भी हलकान दिखे। हर गऊवादी जानता है कि बेरोजगार वो होता है जिसके पास करने के लिए कोई काम न हो। जिसके पास कोई काम न हो वो सरकार को परेशान करने के लिए रोजगार खोजने लगता है। ऐसे लोगों को गऊलोक तो भेजा जा नहीं जा सकता तो बेरोजगारी दूर करने के लिए गाय चराने के रोजगार पर विचार किया जा सकता है। देसी गाय चराने के लिए ग्रेजुएट और नीलगाय चराने के लिए पोस्टग्रेजुएट को नियुक्त किया जा सकता है। गऊ-सेवक जूनियर और गऊ सेवक सीनियर।
यह साफ कर दूँ कि यूपी की योगी सरकार या बिहार की नीतिश सरकार कालांतर में नई भर्ती निकालने के बजाय गाय चराने के लिए प्राइमरी टीचरों की ड्यूटी लगा देती है तो उसमें मेरी सलाह का कोई हाथ नहीं होगा। यह किसी से छिपा नहीं है कि हमारे देश में अक्सर किसी महान विचार को तोड़मरोड़कर भ्रष्ट तरीके से लागू किया जाता है।
गऊ-सेवक वाले प्रस्ताव का महत्व अभी किसी नेता ने नहीं समझा है तो उसके दुरुपयोग की बात दूर है लेकिन देख लीजिएगा कि अगर यूपी में अखिलेश भैया की सरकार आयी और उनके वादे के अनुरूप साण्ड के मारने पर मुआवजा मिलने लगा तो गली-कूचे में साण्ड और इंसान मुआवजा आधा-आधा करते मिलेंगे। आप ही सोचिए, साण्ड के इंसान को मारने पर आदमी को पैसे मिलेंगे तो आज नहीं तो कल साण्ड यह समझ नहीं जाएगा कि इसमें मेरा भी हिस्सा बनता है। क्या साण्ड गऊपुत्र होते हुए तहसील-कचहरी-थाने के अफसरों-कर्मचारियों जितना भी होशियार नहीं होगा। इस योजना में उसका कितना कट बनता है, वह आज नहीं कल जरूर समझ जाएगा।
देश के विकास के लिए मेरे पास ऐसे कई प्रस्ताव और हैं लेकिन उन्हें पालने-पोसने के लिए किसी मुख्यमंत्री की गोद नहीं मिल रही। हिन्दी पट्टी में मौलिकविचारों की बेकद्री से तंग होकर इधर के विचारक अब पश्चम और दक्षिण के मुख्यमंत्रियों की गोद में अपने मानसपुत्र डालने लगे हैं। उत्तर भारत के मुख्यमंत्रियों की गोद पहले से मौलिक विचारकों से हाउसफुल है। पूर्वोत्तर भारत बचा है, देखता हूँ उधर कोई हिन्दी पढ़ने-सुनने वाला सीएम मिलता है!
ये भी पढ़ें-
Roshan
February 15, 2022 at 4:34 pm
Tu bhi ek harami pagal baba hai Mamta kejri or Papu ki tarah. Bhadahas nikalne ke liye suar ka mutra ka prayod Suru kar for dekh Budhi aati hai ki nahi