Connect with us

Hi, what are you looking for?

उत्तर प्रदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ‘न्याय योजना’ पर कांग्रेस और चुनाव आयोग से जवाब तलब किया

जेपी सिंह

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा है कि क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई अधिकार है कि चुनाव आयोग ऐसे चुनाव घोषणा पत्र को जारी करने से किसी राजनितिक दल या प्रत्याशी को रोक सके जो जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के प्रावधानों का उल्लंघन करता हो?

Advertisement. Scroll to continue reading.

कांग्रेस के घोषणा पत्र में गरीबों को 72 हजार रुपये सालाना की आर्थिक मदद (न्याकय योजना) देने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कांग्रेस और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया है और दो हफ्ते में जवाब देने को कहा है। हाईकोर्ट ने पूछा है कि इस तरह की घोषणा वोटरों को रिश्वत देने की कैटगरी में क्यों नहीं है। यह भी कहा है कि क्यों न पार्टी के खिलाफ पाबंदी या दूसरी कोई कार्रवाई की जाए। यह आदेश जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर दिया है। याचिका पर अगली सुनवाई 13 मई को होगी।

न्यायालय ने सवाल उठाया है कि क्या यदि चुनाव घोषणापत्र में कुछ वादे ऐसे हैं जो धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण की परिभाषा के अंतर्गत आते हैं, जैसा कि वर्तमान मामले में, मतदाताओं को रिश्वत,है तो क्या चुनाव आयोग को तत्काल इस प्रकार के चुनाव घोषणा पत्र का संज्ञान लेकर इस तरह की की पार्टी अथवा प्रत्याशी के चुनाव प्रचार पर रोक नहीं लगानी चाहिए अथवा चुनाव के लिए अयोग्य नहीं घोषित करना चाहिए। क्या इस तरह के चुनाव घोषणापत्र का लाभ उठाने से उस पार्टी के प्रत्याशियों को रोका नहीं जाना चाहिए।न्यायालय ने कहा है कि प्रावधान है कि चुनाव घोषणापत्र में ऐसा कोई वादा नहीं शामिल किया जायेगा जो भ्रष्ट आचरण की श्रेणी में आता हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

न्यायालय ने यह भी पूछा है कि यदि उपरोक्त जैसे वादे किसी राजनितिक दल अथवा प्रत्याशी द्वारा चुनाव घोषणापत्र में किया गया है तो क्या चुनाव आयोग के पास ऐसा कोई अधिकार है कि आयोग इस तरह के चुनाव घोषणा पत्र को जारी करने से उन्हें रोक सके जो जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 के प्रावधानों का उल्लंघन करता हो, जैसा कि कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में किया गया है।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि इस तरह की घोषणा रिश्वतखोरी और वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश के समान है। मतदाता को प्रलोभन देना निष्पक्ष मतदान के खिलाफ है। इससे मतदान की प्रक्रिया प्रभावित होती है। कांग्रेस ने घोषणा पत्र में गरीबों को 72 हजार सालाना देने का वायदा कर मतदाताओं को प्रलोभन दिया है। यह आचार संहिता का उल्लंघन है।याचिका में कांग्रेस के विरुद्ध कार्यवाई करने की मांग की गई है। हाईकोर्ट के वकील मोहित कुमार ने कांग्रेस के घोषणा पत्र में गरीबों को 72 हज़ार रुपये सालाना की आर्थिक मदद देने के आश्वासन (न्याय योजना) मामले में जनहित याचिका दाखिल की है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि, देश में कांग्रेस की सरकार बनने पर न्याय योजना लांच होगी। इसके जरिए देश के 25 फीसदी गरीब परिवारों को हर साल 72 हजार रुपए दिया जाएगा। याची का कहना है कि इस घोषणा को घोषणा पत्र से हटाया जाए। यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है। याचिका में कांग्रेस पार्टी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई। साथ ही याचियों के 3 अप्रैल 2019 को चुनाव आयोग को भेजे गये प्रत्यावेदन को निर्णीत किया जाए।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 25 मार्च को ऐलान किया था कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी तो देश के 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों को सालाना 72,000 रुपये दिए जाएंगे। कांग्रेस ने इस स्कीम को न्याय योजना का नाम दिया है। इस हिसाब से हर परिवार को 6 हजार रुपए हर महीने दिए जाएंगे।इस योजना के लाभार्थियों के खाते में सीधे तौर पर रुपए ट्रांसफर किए जाएंगे. कांग्रेस की न्यूनतम आय योजना (न्याय) का फायदा लगभग 25 करोड़ परिवारों को मिलेगा.कांग्रेस की इस योजना का विरोधी पार्टियों ने खूब आलोचना की है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कांग्रेस अध्यक्ष सहित पार्टी के तमाम नेता अपने चुनाव प्रचार के दौरान इसका जमकर प्रसार कर रहे हैं. कांग्रेस का मानना है कि यह स्कीम लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए गेम चेंजर साबित होगी। स्कीम के तहत कांग्रेस देश के 20 करोड़ गरीबों के खाते में 6 हजार रुपये देकर उन्हें गरीबी रेखा से बाहर निकालने का दावा कर रही है। उसके मुताबिक हर उस परिवार की न्यूनतम आय 6 हजार सुनिश्चित की जाएगी जो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं।

चुनावी घोषणापत्र के बारे में कोई कानून नहीं

Advertisement. Scroll to continue reading.

उच्चतम न्यायालय ने 5जुलाई 2013 को दिए गये एक महत्वपूर्ण आदेश में स्वीकार किया था कि अभी चुनावी घोषणापत्र के बारे में कोई कानून नहीं है। वैसे भी ये चुनाव की तारीख का ऐलान होने से पहले जारी कर दिए जाते हैं, ऐसे में चुनाव आयोग को इन्हें नियंत्रित करने का अधिकार नहीं होता। फिर भी अपवाद के तौर पर इन्हें चुनाव आचार संहिता के दायरे में लाया जा सकता है क्योंकि ये चुनाव प्रक्रिया से सीधे जुड़े होते हैं। उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की ओर से जारी किए जाने वाले घोषणापत्रों के बारे में दिशानिर्देश तैयार करे। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि विधायिका को इस बारे में अलग से कानून बनाना चाहिए, ताकि लोकतांत्रिक समाज में राजनीतिक दलों को नियंत्रित किया जा सके।उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि चुनावी घोषणापत्र में वादे करना मौजूदा कानून के मुताबिक गलत नहीं है लेकिन इस सचाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनावी वादे करके मुफ्त उपहार बांटने का लोगों पर असर पड़ता है। इससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की नींव हिल जाती है।इस निर्देश के बावजूद न चुनाव आयोग ने कोई दिशा निर्देश तैयार किया न संसद ने कोई कानून बनाया ।

कर्ज माफी के वादे को सुप्रीमकोर्ट में चुनौती

Advertisement. Scroll to continue reading.

बुधवार को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई, जिसमें मांग की गई है कि राजनीतिक दलों को अपने चुनावी घोषणापत्र में कर्ज माफी योजना या किसी अन्य आर्थिक योजनाओं को शामिल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकार को कर्ज को कम करने या माफ करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ये याचिका वकील रीना सिंह की ओर से दायर की गई है।

इलाहाबाद के वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

Advertisement. Scroll to continue reading.
https://www.facebook.com/bhadasmedia/videos/337422470311468/
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement