: सरकार ने की थी वसूली की कार्रवाई, पर दर्ज नहीं कराया कोई मामला : न्यायाधीश, मंत्री, सांसद, आईएएस और आईपीएस पदाधिकारियों के भ्रष्टाचार में शामिल होने और जेल जाने की खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती है। परन्तु अखबार भी भ्रष्टाचार में लिप्त रहता है, यह सुनना पाठकों को अटपटा सा लगेगा। पर यह सच्चाई है। सरकार की जांच एजेंसियां मामलों को सामने लाती हैं, परन्तु सरकार शक्तिशाली अखबार मालिकों के विरुद्ध केवल राशि-वसूली की काररवाई कर संतोष कर लेती है।
अब तक देखा यह गया है कि सरकार अखबार मालिकों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने में हमेशा से कतराती रही है। प्रश्न उठता है कि ‘आखिर क्यों?’ देश में एक जैसा कानून है और एक जैसी न्यायपालिका है, फिर सरकार कानूनी कार्रवाई में दोहरी नीति क्यों अपनायी जा रही है? देश के माननीय केन्द्रीय और राज्य के मंत्रियों के साथ-साथ माननीय सांसदों, राज्यों के विधायकों और देश की आम जनता को इस मुद्दे पर गोलबंद होना पड़ेगा और सरकार को दोषियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने को विवश कर देना पड़ेगा।
यूं अभी बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में भ्रष्टाचारियों के विरूद्ध सरकारी मुहिम चल रही है। मुख्यमंत्री ने बड़े-बड़े शक्तिशाली आईएएस अधिकारियों के आलीशान बंगलों को जब्त कर दिखा दिया है कि सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त किसी भी व्यक्ति को छोड़ने नहीं जा रही है, ऐसी उम्मीदर की जाती है कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार इस मामले में दोषियों के विरुद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करेंगे।
मामला क्या है : वित्तीय वर्ष 2002-2003 और 2003-2004 का मामला है। उस समय मेसर्स दी हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड, जो देश का शक्तिशाली मीडिया हाउस है, बिहार में हिन्दी दैनिक ‘हिन्दुस्तान’ और अंग्रेजी दैनिक ‘द हिन्दुस्तान टाइम्स’ प्रकाशित कर रहा था। यह अखबार अब भी छपता है परन्तु कंपनी मेसर्स हिन्दुस्तान वेन्चर्स लिमिटेड है। उन दिनों अखबारों के मालिकों ने अचानक अखबार का आकार छोटा कर दिया। अखबार के मालिकों ने घोषणा की कि अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप बिहार में हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तान टाइम्स का आकार छोटा कर दिया गया है। परन्तु, दोनों अखबारों ने बिहार सरकर के विज्ञापनों के प्रकाशन के भुगतान में जालसाजी की और कम आकार में विज्ञापन छापकर बड़े आकार के विज्ञापन की राशि वसूल ली।
इस प्रकार आपराधिक तरीकों से दोनों अखबारों ने कुल 23 लाख 63 हजार 974 रुपया और 83 पैसा का अधिक भुगतान पटना स्थित बिहार सरकर के सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय से निदेशालय के वरीय पदाधिकारियों की मिली भगत से प्राप्त कर लिया। इन दोनों अखबारों का फर्जीवाड़ा तब उजागर हुआ जब बिहार सरकार के वित्त (अंकेक्षण) विभाग के मुख्य लेखा नियंत्रक के निर्देशन में अंकेक्षकों के दल ने बिहार सरकार के पटना स्थित सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय में वित्तीय वर्ष 2002-2003 और 2003-2004 के अंकेक्षण में यह फर्जीवाड़ा पकड़ा।
राशि-वसूली का फैसला : अंकेक्षक दल ने अपने प्रतिवेदन में लिखा कि – ‘‘अन्तर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप बिहर से प्रकाशित समाचार-पत्रों ने समाचार-पत्रों का आकार छोटा कर दिया। परन्तु समाचार-पत्रों ने अपने-अपने मानक आकार पर विज्ञापन-विपत्रों का भुगतान प्राप्त किया है। फलतः मानक आकार से कम आकार में विज्ञापन प्रकाशन के कारण अखबारों ने अधिक भुगतान प्राप्त कर लिया है। अतः अखबारों से अधिक भुगतान की राशि की वसूली की जानी है।’’
अंकेक्षण दल ने आगे लिखा है कि- ‘‘दी हिन्दुस्तान टाइम्स के हिन्दी दैनिक हिन्दुस्तन और अंग्रेजी दैनिक द हिन्दुस्तान टाइम्स ने मानक आकार से कम आकार में सरकारी विज्ञापन छापकर कुल 23 लाख 63 हजार 974 रुपया और 83 पैसे का अधिक भुगतान प्राप्त कर लिया है। इस राशि की तुरंत वसूली होनी है।’’
सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशालय, पटना के सहायक निदेश्क ने अंकेक्षण रिपोर्ट के आलोक में अधिक भुगतान की राशि 23 लाख 63 हजार 974 रुपया और 83 पैसा की वसूली वर्णित दोनों अखबारों से एक मुश्त में करने का फैसला लिया। परन्तु, विभाग ने गलत और जालसाजी तरीकों से 23 लाख 63 हजार 974 रुपया और 83 पैसा अधिक भुगतान पाने वाले अखबार समूह दी हिन्दुस्तान टाइम्स लिमिटेड के विरुद्ध कोई भी कानूनी कार्रवाई आज तक नहीं की।
श्रीकृष्ण प्रसाद
अधिवक्ता एवं आरटीआई कार्यकर्ता
मुंगेर
anish
September 19, 2011 at 10:01 am
adhiwkta rti karykrta aur journalist.ek aadmi ka kitna.
rajeev prasad
September 19, 2011 at 10:34 am
bibheeshan ke khandan me hi to ravan bhi tha na ….waise nitish kumar ki assi fisadi chamak chor aur paid patrkarita ke dam par hi to tiki hai ….wo koi sadhu hain kya ?