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कानाफूसी

कैसे होता है काम…सीखें 24 घंटों वालों से

ये प्रसंग काल्पनिक है परंतु सत्य घटना पर आधारित है। इस चैनल के सभी पात्र काल्पनिक हैं… परंतु सभी के चरित्र यथार्थपर हैं। इस चैनल में बहुत सारे (माफी चाहता हूं)… नहीं एक मात्र विद्वान हैं। जो सरकारी काम करते हैं। मतलब मालिक के वफादार हैं। मालिक जी को कहीं भाषण देना हो… तो इनकी लेखनी काम आती है।

<p style="text-align: justify;">ये प्रसंग काल्पनिक है परंतु सत्य घटना पर आधारित है। इस चैनल के सभी पात्र काल्पनिक हैं... परंतु सभी के चरित्र यथार्थपर हैं। इस चैनल में बहुत सारे (माफी चाहता हूं)... नहीं एक मात्र विद्वान हैं। जो सरकारी काम करते हैं। मतलब मालिक के वफादार हैं। मालिक जी को कहीं भाषण देना हो... तो इनकी लेखनी काम आती है।</p>

ये प्रसंग काल्पनिक है परंतु सत्य घटना पर आधारित है। इस चैनल के सभी पात्र काल्पनिक हैं… परंतु सभी के चरित्र यथार्थपर हैं। इस चैनल में बहुत सारे (माफी चाहता हूं)… नहीं एक मात्र विद्वान हैं। जो सरकारी काम करते हैं। मतलब मालिक के वफादार हैं। मालिक जी को कहीं भाषण देना हो… तो इनकी लेखनी काम आती है।

महज ढाई साल पहले पेपर में कलम घीसते थे… लेकिन अब वो महज हेडर बदलते हैं। और चुपके-चुपके उनकी दमड़ी बढ़ती ही जा रही है… और बेचारा उनका पड़ोसी उनसे जलता रहता है। पड़ोसी की भी बात है निराली। कहने को तो निकालते हैं टीआरपी न. – एक का प्रोग्राम… परंतु अब वो कार्यक्रम भी नहीं रहा टॉप का प्रोग्राम।

पुरानी कहानी में बस समय, काल और आवाज बदल देते हैं। बेचारा दर्शक कब तक पुरानी शराब को नए बोतल में पीता रहेगा। रह रह कर अफवाह उड़ती रहती है कि ये अब गए.. या तब गए। लेकिन जाएं तो कैसे… भइया सरकारी नौकरी की जिसे आदत लग जाए.. वो भला नौकरी छोड़ने की बात कर भी कैसे सकते हैं। इंटरनेट जिंदाबाद… स्थनीय अखबार जिंदाबाद… बस प्रिंट लो और छाप दो…बन गया पैकेज।

निचले स्तर के मीडियाकर्मी ने इधर-उधर से विजुयल इंजेस्ट करवा दी। एडिटर ने मेहनत कर दी। वाहवाही लूट ली प्रोग्राम के प्रोड्यूसर ने। बडे़ साहब आए… और बोले.. वाह वो वाला अच्छा था… और चल दिए। बड़े साहब की न्यूज लाने वालों से खूब पटती है। जस साहब तस रिपोर्टर। प्रेस नोट ले आए.. और टीप मारा… और बन गई स्टोरी। लेकिन जैसे ही उन्हें याद आता है कि ये इलेक्ट्रॉनिक मीडिया है भाई… लिखने से काम नहीं चलता है.. दिखाना भी पड़ता है… तो दौड़ पड़े लाइब्रेरी की तरफ… न्यूज डेस्क भी कम नहीं… शब्द वही.. कहानी अलग… और लिख दी स्टोरी। दिनभर और फटाफट की बात है निराली।

कोई प्रोड्यूसर नहीं… छोटे दर्ज के मीडियाकर्मी के भरोसे बड़े आराम से निकलते हैं प्रोग्राम। इनकी सुनने वाला कोई नहीं… इंजेस्ट भी तुम करो। लिख भी तुम लो। आवाज भी तुम ही दे दो। लेकिन सैलरी बढ़ाने की बात मत कहो। प्रमोशन की बात मत बोलो। कुछ बोले तो… बाहर का रास्ता खुला है… कल और मीडिया मजदूर आ जाएंगे। सुना नहीं जाता… अरे ये तो सुन लो… खुद को कलम के सिपाही और दिमाग के उस्ताद कहने वाले इन वेतनभोगी पत्रकार… पर हुकूमत चलता है तो सिर्फ बाजार वालों को। वो आइडिया देते हैं… तो ये सर झुका कर काम करते हैं। वो बताते हैं कि ऐसे कर लो… वैसे कर लो… और वो मुस्कुराते हुए कर लेते हैं। हाय रे…24 घंटे वालों।

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0 Comments

  1. shiv

    April 5, 2011 at 3:43 pm

    acha h.. lekin janab apki bhasha ne bata diya ki aap bihari h.. phle bhasha sudhariye fir bhashan dijiye…

  2. Pratima Pandey

    April 5, 2011 at 4:03 pm

    waah!! kya khoob likha hai sahi mein 24 ghante walo ki yahi asliyat hai…8)

  3. abcd

    April 6, 2011 at 1:06 pm

    वाह भई क्या खूब लिखा है…सही नब्ज पकड़ी…वैसे ये सारा कियाधरा ब्रांडिंग के नाम पर चैनल को चूना लगाने वालों का है….बेचारे बीपी क्या करें….जब उनके सामने बॉसेस का भी सर झुका रहता है….एक तो बिचारा आउटपुट हेड वैसे ही ऑफिस में सोता रहता है…पता नही घर में क्या करता है….और मिस्टर ब्रांड न्यूज रुम में हंटर फटकारते घुमते रहते हैं न्यूज वालों पर….मालिक को उल्लू बनाते….और उनका पैसा लुटाते….

  4. media house

    April 7, 2011 at 11:12 am

    vaise bhi yah channel sarkari channel hai. mujhe yad hai ek bar dhaan par 24 ghante ki ek patrkar ne spl pkg banaya to c.m. ne us patrkar ko mere samne hi itni khari khoti sunaya fir bhi patrkar chupchap sir jhukakar khadi rahi kuchh bol n payi . c.m. ne sidha kaha vo loha ka vyapari hame sikhayega dhan kharidi kaise karte hain. bas fir kya tha loha vyapari dono hath jode dusre din c.m. darbar me pahunch gaya aur mafi mangkar apne naye saude ke liye raste taiyyar kiya ye hal hai z 24 ghante ka.

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