जीवन और मौत के फासलों के बीच खड़ी युवा लोक गायिका अंशुमाला के कद्रदान कहां नहीं है। उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है। पति और ससुराल के लोगों ने उससे अपना दामन छुड़ा लिया है, ऐसे में समाज और सरकार की क्या कोई जिम्मेदारी नहीं बनती? ज्य़ादा दिन नहीं हुए, महज दो साल पहले जिसकी लोक गायिकी के कद्रदान पटना से लेकर दिल्ली तक मौजूद थे, वह आवाज अब कहां है?
इसी आवाज पर पटना विश्वविद्यालय से लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय का मिरांडा हाउस अपनी प्रतिष्ठा कायम रखता था, बिहार सरकार उसकी कला पर इतराती थी और दिल्ली में जब भी कभी बिहार की अस्मिता की बात आती तो इसे बचाने के लिए उसकी आवाज ही काफी थी। मैथिली और भोजपुरी के नए कलाकारों की बात होती तो सबकी जुबां पर नाम होता- अंशुमाला। जिंदगी और मौत का जो फासला है, उसी फासले के बीच आज युवा लोक गायिका अंशुमाला खड़ी है, क्योंकि उसकी दोनों किडनी खराब हो चुकी है। महज 27 वर्ष की आयु में उसके सपने टूट चुके हैं। डिप्रेशन में जी रही है।
जिंदगी का राग ही जब दांव पर हो तो संगीत का राग कहां से गा सकेगी वह? पैसे की कमी के कारण इलाज नहीं हो पा रहा है। वेल्लूर से लेकर लखनऊ, दिल्ली तक इलाज के लिए दौड़ी लेकिन पैसा न होने के कारण मायके यानी पटना वापस आने को मजबूर हो गई। शास्त्रीनगर का मकान उसके सिपाही पिता का सरकारी आवास है, जहां वह मां के साथ रहती है। यहां उसकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। घर में कोई और सदस्य नहीं जो उसके लिए बाहर से दवाइयां ला सके या फिर कोई ऐसा सदस्य नहीं जो दो साल के उसके बच्चे की देखभाल कर सके। बिहार पुलिस जैसे महकमे में एक सिपाही की आर्थिक हैसियत किसी से छुपी नहीं है। फिलहाल पिता जहानाबाद जिले में तैनात हैं और बिहार सरकार से बेटी के इलाज के लिए पटना तबादले की दरख्वास्त की है।
आकाशवाणी की ‘बी” ग्रेड कलाकार, पटना विश्वविद्यालय से संगीत में स्नातक, दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए और एमफिल करने वाली अंशु करियर में मुकाम हासिल करने की ओर अग्रसर थी लेकिन उसके एक कदम ने जिंदगी के ऐसे मोड़ पर उसे ला पटका है, शायद उसे इस नियति का अहसास नहीं। मिरांडा हाउस का पूरे देश में नाम है लेकिन आज वहां किसे सुध है कि जिन कक्षाओं, सेमिनारों, समारोहों में उसकी आवाज गूंजती थी, वह कहां है? दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, श्रीराम सेंटर और बाल भवन के खुले प्रांगण में जिसके गाये गीतों के कद्रदान थे, तालियां बजाकर हौंसलाअफजाई करते थे, वे कहां हैं?
वे संस्थाएं और वे लोग कहां हैं जो अपनी महफिल में अंशु से गवाकर गौरवान्वित होती थी? फिर जमशेदपुर में आयोजित ऑल इंडिया यूथ फेस्टिवल को भी याद करें, जिसमें नाना पाटेकर ने भी शिरकत की थी। इस छोटी-सी जिंदगी में अंशु ने वह दौर भी देखा, जब उनकी गायकी की तारीफ करने वालों में बिहार के राज्यपाल से लेकर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की पत्नी गुरुशरण कौर और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम तक थे। सिंधु दर्शन के दौरान लद्दाख में लालकृष्ण आडवाणी के सामने उसने अपनी लोक गायिकी प्रस्तुत की थी, यह किसे याद है?
दूसरी लड़कियों की तरह अपने परिवार की बात मानी। मां-बाप की मर्जी से शादी की। दिल्ली, पटना को छोड़ रांची में बसने का फैसला लिया लेकिन किस्मत को यह मंजूर नहीं था। ससुराल में रियाज का माहौल नहीं था। प्रेगनेंट हो गई। डिप्रेशन में आ गई। बच्चा पैदा होने के साथ किडनी में प्रॉब्लम आ गई। फिर भी जिंदगी काटती रही, घुट-घुटकर जीती रही। माता-पिता को भी नहीं बताया। लेकिन एक दिन उसकी हिम्मत जवाब दे गई। पिछली जनवरी-फरवरी में दोबारा प्रेगनेंट हो गई। पति ने अबॉर्शन कराने के लिए दवाई की हार्ड डोज दे दी, जिससे उसकी किडनी खराब हो गयी। आखिरकार अपने हालात बयां करने के लिए मजबूर हो गई वह। अब जब शरीर ही साथ नहीं दे रहा, तो फिर ससुरालवालों ने भी पल्लू झाड़ लिया। जो पति तीन साल पहले अग्नि के सामने सात जन्मों तक जीने-मरने की कसमें खाकर ले आया था, वह भी सबकुछ भूल गया, उसने अंतत: उससे मुंह मोड़ लिया।
अंशु का मैथिली में ‘गंगा कैसेट्स” की ओर से ‘प्रिय पाहुन” नामक कैसेट भी निकल चुका है। उसने बिहार उत्सव में भी भाग लिया था। एनसीसी की 23वें बटालियन में भी रह चुकी है। मानव संसाधन मंत्रालय से 2009-2011 में स्कॉलरशिप मिल चुकी है। सैकड़ों स्टेज शो कर चुकी है वह। न जाने किस-किस शहर में कितने कद्रदान है उसके। जैसे ही स्टेज पर आती, तालियों की गड़गड़ाहट शुरू हो जाती और फिर जो समां बंधता, उसकी मिसाल नहीं। अब सवाल है कि अपने-अपने शहरों से निकलकर दुनिया के सामने अलग पहचान कायम करने वाली दूसरी अंशु के अरमानों का क्या होगा? दिल्ली शहर में पढ़ने-कमाने का अरमान हर किसी को होता है लेकिन कितने अपनी पहचान बना पाते हैं?
फिर ऐसे में यदि कोई अपनी जमीन को ओर लौटता है तो क्या उसका हश्र अंशु की तरह ही होगा? कहा जाता है कि गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की तबीयत खराब होने के बाद उनकी पत्नी ने उनका साथ छोड़ दिया और अब अंशु का साथ उसके पति ने छोड़ दिया है? काश वह अपने नाम को साकार कर पाते? क्या एक स्त्री ऐसे ही अपने अरमानों की बलि देती रहेगी, क्या उसके लिए ससुराल ही सब कुछ होता है? क्या इस लड़की के हालात और उसे जिंदगी से मरहूम करने वालों को सजा नहीं मिलनी चाहिए? इस हालात के जिम्मेदार कौन हैं और उनको सजा कौन देगा? उसका इलाज कैसे होगा? क्या उसकी आवाज फिर देश और दुनिया के मंचों पर गूंजेगी। अहम सवाल है? साभार : राष्ट्रीय सहारा
Comments on “अंशुमाला की दोनों किडनी खराब, आपकी मदद चाहिए”
anshu baihen mere paas tumhe dene ko god se prayer karne ke alava kuch nahi hai
GOD apko JALDE THEEK KARE
Kash! Yah khabar nitish babu bhi padh le. Nitish babu aapke bihar ki ek beti yachna kar rahi hai. un par raham kijiye. Aapki daya ki jarurat hai. Mayank raj, gaya.
up aur delhi ke cm se nivedan hai ki anshu ki madatkare hum pahal karne ko taiyar hai .vinod pathak mumbai