: एक कार्यक्रम में आरएसएस ने किया विरोध, मारपीट में आधा दर्जन घायल : कश्मीर मसले पर विवादित बयान देकर चर्चा में बनी लेखिका एवं सामाजिक कार्यकत्री अरूधंति राय ने फिर विवादास्पद बयान दिया है. राष्ट्र द्रोह के मुकदमें का खतरा झेल रही अरूधंति ने भुवनेश्वर के एक कार्यक्रम में इस बार माओवादियों को देशभक्त बताया है.
अरूधंति ने कहा कि माओवादी एक तरह से देशभक्त हैं, लेकिन यहां तो देशभक्ति काफी जटिल है. फिलहाल वे देश को बिखराव से बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री, पुलिस, सीआरपीएफ और बीएसएफ भी संविधान में दिए गए कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं उसे तो़ड रहे हैं. अरूंधति ने केन्द्र में आने वाली एक के बाद एक सरकारों पर जम्मू कश्मीर, पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्यों में अकसर बल प्रयोग करने का आरोप लगाया.
इसी बीच यहां आयोजित अरूधंति के एक कार्यक्रम में संघ के कार्यकर्ताओं और आयोजकों के बीच हुए एक संघर्ष कमें आधा दर्जन लोग घायल हो गए. आरएसएस कार्यकर्ता अरुंधति द्वारा कश्मीर पर दिए गए विवादास्पद बयान के चलते कार्यक्रम में उनकी मौजूदगी को लेकर विरोध कर रहे थे.
पुलिस ने बताया कि जैसे ही अरूधंति बैठक में पहुंचीं वैसे ही आरएसएस और एबीवीपी के कार्यकर्ता प्रवेश द्वार पर प्रदर्शन करने लगे और उनके खिलाफ नारेबाजी करने लगे. कार्यकर्ता उनसे तुरंत वहां से वापस जाने की मांग कर रहे थे. इसी को लेकर कार्यकर्ता तथा आयोजकों में बहस हो गई. इसके बाद संघर्ष शुरू हो गया. जिसमें लाठी-डंडा एवं पत्थरों का प्रयोग किया गया. इसमें आधा दर्जन लोग घायल हो गए.
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इससे पूर्व भी अरूधंति द्वारा कई ऐसे बयान दिए गए है जो भारत की अखण्डता पर सीधा प्रहार करते है किंतु वोट बैंक की राजनीति और अक्षम नेतृत्व के कारण उनके विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई जिससे इसके हौसले बढ़े है। सरकार को ऐसी गैर जिम्मेदाराना बयान देने वाली मार्क्सी बुद्धिजीवी के विरूद्ध कार्यवाही करनी चाहिए।
किसी को भी बोलने से नहीं रोका जाना चाहिए —- सुनील अमर
संघ परिवार वैसे तो अपने स्थापना-काल से ही मार-पीट और खून-खराबे में विश्वास रखता रहा है, लेकिन 06 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस और वहां प्रेस वालों से मार-पीट करने के बाद से संघ ने इसे अपना एक मात्र ट्रेंड ही बना लिया है. अब किसी भी वैचारिक विरोध के स्थान पर संघ के लठैत मार-काट पर ही उतारू हो जाते हैं, ऐसा देखने में आ रहा है. अब क्योंकि कोई भी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल संघ के ऐसे गुंडों पर सख्ती नहीं करता, इसलिए यह गुंडागर्दी बढ़ती ही जा रही है.
इस देश में सुश्री अरुंधती रॉय को किसी भी विषय पर बोलने का उतना ही अधिकार है,जितना देश के किसी भी नागरिक को, और रॉय उतनी ही अपने क्रिया-कलापों के लिए स्वतंत्र हैं, जितना संघ प्रमुख मोहन भागवत अपने को समझते हैं. भागवत की मर्जी , वे चाहें तो अपने को कम स्वतंत्र समझें, लेकिन अरुंधती रॉय या जो कोई भी भारतीय अपने विचार प्रकट करना चाहे, उसे देश के संविधान ने यह आज़ादी दे रखी है, और वह ऐसी आज़ादी के लिए किन्हीं भागवतों का मोहताज नहीं है!
बुद्धि का जवाब बुद्धि से दिया जाना चाहिए, लेकिन जब बुद्धि ख़त्म हो जाती है तो स्वाभाविक ही हाथ-लात और डंडा-गोली चलने लगती है. सुश्री अरुंधती की बहुत सी बातों से बहुत से लोग सहमत नहीं हैं ( मैं खुद भी ) लेकिन संघ या कहीं के गुंडे अपने डंडे के बल पर किसी का बोलना या देश में कहीं आना-जाना रोक दें, यह प्रशासन के मुंह पर तमाचा है,और यह अगर शासन की मर्जी नहीं है तो बार-बार ऐसी वारदातें क्यों हो रही हैं देश भर में? जितना सुश्री अरुंधती बोलती हैं, उसका हज़ार गुना तो स्वयं संघ बोलता रहता है, और ऐसा नहीं है कि संघ को देशवासियों ने कोई अलग से अधिकार दे रखा है! संघ की स्थिति भी देश में वैसी ही है, जैसी कि सुश्री रॉय या देश के अन्य निवासियों की.
संघ को अगर गलत फ़हमी है कि वह एक बड़ा संगठन है, तो उसे जानना चाहिए कि देश और संविधान सबसे बड़े संगठन है. बोलने का हक़ ही तो लोकतंत्र है !
ya arundhati ko ho kya gaya hai.yaddash to nai chali gai kya..
अरुंधती के कश्मीर संबंधित बयान पर एक लेख शोमा चौधरी ने तहलका डाट पर लिखा था। मैने अपनी प्रतिक्रिया भेजी नही छपी । भडास पर भी भेजा नही छपा। मैने अंत में अपने ब्लाग पर उसे डाल दिया । अरुंधती अगर यह कहा है तो मुझे उनकी शिक्षा पर शक है। नक्सलवाद साम्यवाद की विचाराधारा है। नकसलबाडी में चारु मजुमदार और कानु संन्याल ने हिंसक क्रांति की नीव रखी उसके कारण इसका नाम नक्सलवाद पडा। साम्यवाद में देश और देशभक्ति नाम की कोई अवधारणा नही है। अच्छा हो पहले माओ को पढ लें अरुंधती । दास कैपिटल का अध्ययन किये बिना कोई टिप्प्णी सा्म्यावाद पर करना अरुंधती जैसे को शोभा नही देता । और आप में से कोई भी पत्रकार बंधु अरुंधती से पुछना उसने दास कैपिटल नही पढा होगा। नीचे लिंक है मेरे ब्लाग पर अरूंधती के बारे में लिखे मेरे लेख का।
http://madantiwary.blogspot.com/2010/11/blog-post_17.html?spref=bl
सामाजिक, राजनीतिक, संस्कृतिक, आर्थिक सरोकारों के प्रति हरेक सचेत, संवेदनशील, व्यक्ति का अपना दायरा होता है. जरुरी नहीं है कि वह उससे जुड़े सभी लोगो, विचारों, विचारधारा, कामकाज और संगठनों को जाने.पर वह उसी दायरे के लोगों का समर्थन करता है, उसी के लोग उसका भी समर्थन करते है. व्यक्ति भी चाहता है कि कम से कम उअस दायरे के लोग उसका समर्थन करें, विरोध नहीं. यही अपेक्षा दायरे के लोग व्यक्ति से करते हैं. इसी से व्यक्ति और दायरा विशेष की सीमाएं और बाध्यताएं तय हो जाती है. बहुत ज्यादा उदारता की अपेक्षा व्यर्थ है. इन मापदंडों पर अरुंधती को परखे तो शायद न किसी को दुःख होगा, न विरोध और न विवाद. ज्यादा तकलीफ हो तो जंगल का कानून लागू कर दो कि मित्रों निपट लो. जो बचेगें वे कम से कम शांति से रह तो सकेंगे. ओम प्रकाश गौड़ भोपाल, मो- 9926453700
arundhati tuja kya ho gya hai.kyo asi baat kar rahi hai tu.