इस देश, इस लोकतंत्र को दलाल चला रहे

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आलोक तोमर: भारत में दलाल मेव जयते! : बरखा दत्त और वीर सांघवी ने भरोसा तोड़ा है : 1965 के भारत पाकिस्तान युद्व के दौरान दिल्ली के हिंदुस्तान टाइम्स के एक युवा रिपोर्टर ने सीमा पर जा कर रिपोर्टिंग करने की अनुमति मांगी। तब तक पत्रकारिता में ऐसे दिन नहीं आए थे कि लड़कियों को खतरनाक या महत्वपूर्ण काम दिए जाएं। रिपोटर प्रभा दत्त जिद पर अड़ी थी। उन्होंने छुट्टी ली, अमृतसर में अपने रिश्तेदारों के घर गई, वहां सैनिक अधिकारियों से अनुरोध कर के सीमा पर चली गई और वहां से अपने आप रिपोर्टिंग कर के खबरे भेजना शुरू कर दी। लौट कर आईं तब तो प्रभा दत्त सितारा बन चुकी थी।

प्रभा दत्त दुनिया से बहुत जल्दी चली गई। ब्रेन हैमरेज से एक दिन अचानक उनकी मृत्यु हो गई। आज कल की युवा पीढ़ी के लिए आदर्श मानी जाने वाली बरखा दत्त जो एनडीटीवी का पर्यायवाची मानी जाती हैं और कम उम्र में ही पद्म श्री प्राप्त कर चुकी हैं, इन्हीं प्रभा दत्त की बेटी हैं। प्रधानमंत्री से लेकर प्रतिपक्ष के नेता तक और देश-विदेश के बडे-बड़े लोगों तक बरखा दत्त की पहुंच है।

मगर बरखा दत्त ने अपने प्रशंसकों और कुल मिला कर भारतीय पत्रकारिता को शर्मिंदा कर दिया है। उन्होंने एक तरह से इस बात की पुष्टि की है कि भारतीय पत्रकारिता में राजनेताओं और कॉरपोरेट घरानों की दलाली करने वाले काफी सफल पत्रकार माने जाते हैं और खुद बरखा दत्त भी उनमें से एक हैं। टीवी और प्रिंट के जाने माने और काफी पढ़े जाने वाले पत्रकार वीर सांघवी का नाम भी इसमें शामिल हैं और सांघवी के बारे में जो टेप मिले हैं उसमें सुपर दलाल नीरा राडिया के कहने पर सांघवी अनिल अंबानी के खिलाफ और मुकेश अंबानी की शान में अपना नियमित कॉलम लिखने के लिए राडिया से नोट्स लेते सुनाई पड़ते है। वीर सांघवी के बारे में पहले भी इस तरह की पाप कथाएं कही जाती रही हैं।

नीरा राडिया और राजा प्रसंग जब आया था तो पहले भी बरखा दत्त का नाम आया था। लेकिन अब तो हमारे पास वे टेप आ गए हैं जिनमें नीरा राडिया और बरखा दत्त मंत्रिमंडल में कौन कौन शामिल हो और उसके लिए कांग्रेस के किस नेता को पटाया जाए, इस पर विस्तार से बात करते नजर आ रहे हैं। बरखा दत्त जिस तरह बहुत डराने वाली आत्मीयता से प्रधानमंत्री से लेकर कांग्रेस के बड़े नेताओं के नाम ले रही हैं और यह भी कह रही हैं कि उनसे काम करवाने के लिए उन्हें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी, उसी से जाहिर होता है कि बरखा और इन नेताओं के रिश्ते पत्रकारिता के लिहाज से संदिग्ध और आपत्तिजनक हैं।

सारा झमेला उस समय का है जब मंत्रिमंडल बन रहा था और खास तौर पर ए राजा और टीआर बालू के बीच में अंदाजे लगाए जा रहे थे कि कौन रहेगा और कौन जाएगा? इन्हीं टेप के अनुसार राडिया ने ही राजा को सूचना दी थी कि आपका मंत्री बनना पक्का हो गया है। बरखा और राडिया इस बातचीत में जम्मू कश्मीर के भूतपूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद को बहुत लाड से या अपनी आत्मीयता दिखाने के लिए ‘गुलाम’ कहती हैं और प्रधानमंत्री के साथ कौन सा नेता किस समय मिलने पहुंचा और किस समय निकला, इसकी पल-पल की जानकारी उनको होती है, यह चकित नहीं करता बल्कि स्तब्ध करता है। आखिर यह देश और इसका लोकतंत्र क्या वाकई सिर्फ दलाल चला रहे हैं। इन दलालों की कहानी में बरखा जैसे ऐसे लोग भी जुड़ गए हैं जिनका नाम अब भी पत्रकारिता के कोर्स में बड़ी इज्जत से दर्ज है।

चालीस साल की हो चुकी बरखा दत्त ने शादी नहीं की। उनके पास एनडीटीवी में शो करने और करवाने के अलावा बहुत वक्त है जिसमें वे राडियाओं और राजाओं की दलाली कर सकती हैं। कनिमोझी को बरखा ‘कनि’ कह सकती हैं और दयानिधि मारन को ‘दया’ कह कर बुला सकती हैं तो जाहिर है कि अंतरंगता के स्तर क्या रहे होंगे। प्रधानमंत्री अगर करुणानिधि की मांगों पर नाराज होते हैं तो यह बात बरखा को सबसे पहले पता लगती है।

करुणानिधि अगर अपने परिवार के तीन सदस्यों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करवाने के प्रति संकोच में पड़ जाते हैं और टीआर बालू के बयानों पर मनमोहन सिंह करुणानिधि से शिकायत करते हैं तो यह भी सबसे पहले बरखा को ही पता लगता है। बरखा तो नीरा राडिया को यह भी बता देती है कि किसको कौन सा मंत्रालय मिलने वाला है। अब या तो बरखा महाबली है या हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत ही कायर और रसिया किस्म के आदमी है जो छम्मक छल्लो की तरह इठलाने वाली बरखा को सबसे पहले अपने राजनैतिक रहस्य बताते हैं। बरखा उन रहस्यों को कैश करवा लेती हैं।

ऐसा नहीं कि भारतीय लोकतंत्र में नेता पत्रकारों का इस्तेमाल नहीं करते रहे। जवाहर लाल नेहरू भी शाम लाल और कुलदीप नायर तक से दूसरों के बारे में सूचनाएं मंगाते थे और दक्षिण भारत की चर्चित पत्रिका तुगलक के संपादक चो रामास्वामी आज भी दक्षिण भारत के लिए चाणक्य से कम नहीं माने जाते। करुणानिधि और जयललिता दोनों उनसे सलाह लेते हैं। बरखा दत्त के बारे में जान कर और सुन कर हैरत इसलिए होती है और शोक सभा मनाने का मन इसलिए करता है कि बरखा को नई पीढ़ी के आदर्श पत्रकारों में से एक माना जाता रहा है और कारगिल युद्व से लेकर बहुत सारी दुर्घटनाओं को बहुत बहादुरी से कवर किए जाते उन्हें देखा गया है। पद्म श्री देने के लिए बरखा ने सुनामी की त्रासदी का जो कवरेज किया था उसी को आधार बनाया गया।

इतने शानदार सामाजिक सरोकारों से जुड़ी बरखा दत्त अगर सीधे सीधे और सबूतों के आधार पर दलाली करती नजर आएंगी तो वे सिर्फ अपने प्रशंसकों को ही नहीं, बल्कि उस पूरे समाज को आहत करती दिखाई पड़ रही हैं जिसे एक बार फिर अपने नायकों और नायिकाओं पर भरोसा हो चला था। बरखा ने और वीर सांघवी ने यह भरोसा तोड़ा है। नीरा राडिया का क्या, वह तो दलाल थी ही और आज भी है और दलालों का कोई चरित्र होता हो, यह कभी नहीं सुना गया। बरखा दत्त की बोलती बंद हो गई है। टेप सरकारी है। अब एक बड़ा तबका राजा और मनमोहन सिंह से निपटने के लिए इन्हें मीडिया तक पहुंचा रहा है। टेप सत्तर घंटे के आस पास के हैं और पता नहीं अभी कितने दलालों के नाम सामने आएंगे।

लेखक आलोक तोमर देश के जाने-माने पत्रकार हैं और सम-सामयिक मुद्दों पर अपनी बेबाकबयानी के लिए जाने जाते हैं.

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Comments on “इस देश, इस लोकतंत्र को दलाल चला रहे

  • rajesh kumar says:

    we never had a doubt about barkha dutt’s dubious credentials. all the sins of barkha dutt can be forgiven but she can not be pardoned for advocating kashmiri separatists. she behaves as if she is a self appointed spokesperson of kashmiri separatists. her links with kashmiri separatists and pakistan need to be investigated. we have serious doubts that she gets money either from pakistan or kashmiri separatists to promote their cause. we don’t know whether pranoy roy in involved in this racket or not but ndtv’s (national disintegration tv) kashmir coverage has been highly anti-national and provocative.

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  • आलोक सर आपने तो हम जैसे नये पत्रकारों की आंखे खोल दी. पत्रकारिता के फील्ड में चलने वाले इस तरह के खेल से तो हम बच्चे बिल्कुल ही अनजान है. अगर पहले मालूम होता कि पत्रकारिता में ऐसी चाटूकार लोग भरे है. तो शायद यहां कभी नहीं आते. बरखा दत्त कभी मेरी भी रोल मॉडल हुआ करती थी. मगर अब नहीं रही. [b][/b]

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  • बेशर्मी की हद हो गयी…क्या राजनेताओं से इस्तीफे की मांग करने वाले मीडिया वाले बरखा को बर्खास्त करने की मांग करेंगे

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  • Hamaare roll model to aap,prasun aur gaon ke vo patrakaar hai jinko salary bhi thik se nahi milti phir bhi patrakaritaa kar rahe…..ye to CORPORATE LOBBY KE dalal hai

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  • Prannav Roy jee , Kya ab bhi Barkha Dutt ko hatane mein der lagayenge ? Dr. Prannav Roy Sahab , Kyon apni vishwasniyata ko katghare mein khada kar rahe hain? Aap media jagat ki ek sammanit hasti hain , par Barkha jaise logon ko panaah dene ke peeche aap ka kya hit hai , use saarwajanik kijiye ! Kya NDTV ko bhi isi tarah ka koi laabh , samay-samay par, milta raha hai ? Kya NDTV, Barkha dutt ko patrakaarita ke alawa bhi, kisi aur kaam ke liye sarankshan deta hai ? NDTV ke commercial benefit mein Barkha Dutt ki bhumika kya hai ? Kya aap nahi maante ki itne saare pramaan hone ke baad , log Barkha ko patrakaarita ka, ek kalankit aut ganda chehra maan ne lage hain ? Aap ke yahan koi karmchaari, gar itni KHALNAAYAKI kare to kya aap use itna protsaahan denge , jitna Aap ne Barkha ko diya ? Dr. Sahab [b]THODA SA HI SAHI, PAR KHULASA TO KIJIYE [/b]. Dr. Sahab , Aap ke yahan zyaadatar wahi log entry paate hain , jo unche kahe jaane waale ya prabhawshaali gharaanon se taaluq rakhte hain. Aap ke yahan ameer gharon ke bachchon ko, jinki padhayee-likhayee videshon mein hui hai, unche ohadon se nawaaza jata hai . Aakhir iske peeche kya raaj hai ? Dr. Sahab , Hindustaan ke chote shahron se padha-likha naujawaan aap ke hisaab se qaabil nahi hota , kyonki wo Barkha ki tarah uski pahunch SATTA KE GALIYAARON mein nahi hoti . Kya Wazah hai , Dr. Sahab ? Jawab dene mein aap ka paseena chutega, kyonki haqeeqat ab zyaadatar patrakaar jaan chuke hain aur aap haqeeqat se ru-baru hote hue bhi Barkha ko lagataar protsaahit karte rahe hain. Waakayee ! Aap ka *dil bahut bada hai* ! Economic Ad visor rah chuke hain aap, lihaaza paison ka ank-gadit achchi tarah jaan te hain . Aap ko khud par naaz hoga ki Aap ko economics ki achchi samajh hai aur Aap ke 24×7 ki managing editor ko Satta ke istemaal ki . Aap ki jay ! Aur *Mahan patrakaar* Barkha ki jay ! Sath mein [b]Aap dono ki jugalbandi ki jay[/b] .

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  • पत्रकारिता में आने वाले नए लोग बरखा को रोल मोडेल मानती हैं ऐसे में उसने जो किया उस पर जितना भी शर्म इया जाये कम है.

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  • Acharya Arun Kanpuri says:

    Vir shindhve aur barkha dutt es yug kee patrikata key kalank haiyen. yahee nahee aur na jane kitane nam haen joo abhee pardey key pichey cheypey huyen hain. Aanye vala vakt unkoo bhii benkab kareyga.

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  • आलोक जी, देश को ही नहीं आज कि पत्रकारिता को भी दलाल ही चला रहे है इसके एक नहीं कई उदाहरण है देश कि राजनीति में सक्रीय दलालों के साथ देश की पत्रकारिता के दलालों पर शिकंजा कसा जाना जरुरी ही नहीं अत्यंत आवश्यक है.

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  • प्रणय रॉय में पत्रकारिता के प्रति जरा भी ईमानदारी बची है, तो बरखा को एन डी बाहर
    का रास्ता दिखा दे, वर्ना एन डी टीवी में अब दलालों की मंडी बनकर रह जायेगा,और एन डी टीवी की विशवसनियता भी समाप्त हो जायेगी.

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  • आशीष कुमार मणिक says:

    पहले तो आलोक सर आपको नमस्‍कार। आज का समय ही ऐसा हो गया है कि जो पत्रकारिता करेगा वो जेल में जाएगा और जो चाटुकारिता करेगा वो तरक्‍की की ओर बढता जाएगा।

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  • Ishwar C Upadhyay says:

    सत्ता प्रतिष्ठान की चाटुकारिता और दलाली के बल पर ही आज नामचीन पत्रकार अपना अस्तित्व बचा के रखे हुवे हैं…..बरखा और वीर कोई पहले नहीं हैं.
    सच की बाते करने वाले इतने दोहरे चरित्र के होंगे ये पता नहीं था, आज भी उन्नत, राष्ट्रवादी और प्रगतिशील पत्रकार सड़कों की धूल फांक रहे है, जाहिर है ये गन्दी कला उन्हें नहीं आती.
    एन डी टी वी की हर खबर बायेस होती है, ऐसा लगता है पूरी की पूरी खबर ही मैनज हो,,,,ये रोग बरखा जी का लगाया हुआ है, इन्ही कुछ तरीकों की वजह से ही बरखा जी सत्ता प्रतिष्ठान की हम राज बन सकी है,
    युवा पत्रकार अपने आप को दुखी न करें क्योंकि जिस रोल आइडल की तलाश आप कर रहे हैं वो गाँव गिराओं का साईकिल से चलने वाला साधारण सा पत्रकार हो सकता है बरखा और वीर नहीं.
    पत्रकारिता का कीड़ा पैसे का भूखा नहीं होता, पत्रकारिता तो वो आग है जो लगाये न लगे और बुझाये न बुझे ………सच में दोस्तों

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  • aaj ke 90 pratishat role model ko role model ka khitaab kuch isi tarah milta hai ……jai ho ek aur dardnaak sach….ham kaha jae mere dost.. ab koi chara nahi…..vo gana to suna hoga kyon paisa paisa karti hai …….chaliye ye bhi khela sun liya dekh liya aur kuch hai kya….

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  • satya prakash says:

    Sir apko ye babak batey likney ke liya mere taraf Namaskar

    Nowdays the journalism has become more corrupt and Barkha and Vir are not alone the entire media industries of the country involved in loot with the name of journalism waise to Delhi mai media mai quaification ke jarurat hai par agar chotey sehro mai akar dekhey to yaha sahar ke jitney fraud aur criminal activity ke log sab ne kisi na kisi media ka i card banwa rakah hai aur news kam liktey hai dalali jayaed akartey hai

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  • 🙁 Bhut dhukh hota jab Adars Ptarkar paisa ke leya rajnatao aur satta ka dalalo sa milkar loktantra ko hani phuchata ha.

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  • लेकिन आलोकजी, कई जगह इस बात का जिक्र है कि बरखा दत्त शादीशुदा है और उसके पति हसीब दारबू हैं जो जम्मू एंड कश्मीर बैंक के पूर्व चेयरमैन और बिजनेस स्टैंडर्ड के पूर्व संपादक रह चुके हैं। पता नहीं वर्तमान में वो शादी काम कर रहा है या नहीं….!!

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  • Ise hi Parde ke piche ki rajniti kehte hai………..
    Baat jabtak chupi thi tabtak hum sab log aaps me baat kate the lekin ujagar hone ke baad sabse baat kar rahe hai..
    Barkaha ya snighvi ji ka mamla to ek esa hi chota udhran hai jo jaane-unjaane me sabhi ke samne aagya hai………

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  • Ise hi parde ke piche ki Rajniti kehte hai………
    Baat jabtak parde ke piche thi tabtak hum aaps me batiya rahe the, Jab se ye ujagar ho gya hai to sabse baat kar rahe hai……
    ye PATKRAKERTA aur RAJNITI ka asiyo purana mal hai, Jo abhitak parde ke piche hi chlta aaraha tha………

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