: विदेश डायरी : आज छड़ी टेकते हुए एक बुजुर्ग से सज्जन मेरे आफिस में घुसे तो मुझे बहुत नई बात नहीं लगी। यहां अनेक लोग रोज आते हैं और इस या उस काम के लिए लोन लेते हैं। यह सज्जन एक दिन पहले भी मेरे पास आ चुके थे और क्योंकि नके पास उस समय कोई सेक्योरिटी जैसी चीज नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें मना कर दिया था। उस समय मेरा बॉस भी आफिस में नहीं था इसलिए मैं अपनी ओर से कोई रिस्क लेना नहीं चाहता था। आज बॉस भी था फिर भी वे पहले मेरे पास ही आए, मुझसे हाथ मिलाया और सीधे बॉस के कमरे में चले गए। थोड़ी देर बाद बॉस ने मुझे बुलाया। वे सज्जन वहीं बैठे थे।
बॉस ने परिचय कराया- ये हमारे पुराने बैंक के सहयोगी हैं, साथ ही पत्रकार भी रहे हैं।
वे चौंके- पत्रकार? यह परिचय तो कल आपने दिया नहीं था। उन्होंने अंग्रेजी में कहा तो मैंने बताया कि पत्रकार होना इन दिनों भारत में कोई अनोखी बात नहीं रह गई है क्योंकि विजुअल मीडिया ने पत्रकारों की ऐसी तैसी कर रखी है।
– पर मैं तो उनकी बड़ी इज्जत करता हूं, वे बोले- मैं भी पत्रकार रह चुका हूं।
– अच्छा, मैं चौंका।
उसके बाद मेरे बॉस ने मुझे बताया कि यह सज्जन किंटु मुसोके हैं और उगांडा के पूर्व प्रधानमंत्री। तब मैं और भी आश्चर्य में आ गया। मेरे सामने एक पूर्व प्रधानमंत्री बैठा है और वह भी उसी देश का, जहां मैं काम करने आया हूं। कोई सेक्योरिटी गार्ड नहीं, कोई तामझाम नहीं। अपने भारत में चार दिन के लिए भी प्रधानमंत्री बन गए तो सरकार उनके लिए रोज लाखों रुपए के लिए सुरक्षा सामग्री उपलब्ध कराने को मजबूर हो जाती है।
– आप कितने दिन पहले प्रधानमंत्री थे, मैंने पूछा तो उन्होंने बताया कि वे इसी मुसोविनी के पिछले शासनकाल में प्रधानमंत्री थे, यानी 1995 से 2005 तक।
– आपसे मिलकर अच्छा लगा, मैंने कहा तो वे बोले- मुझे भी। इस बार मैं ज्यादा चौंका क्योंकि उन्होंने जो भी कहा, हिंदी में कहा।
– आपको हिंदी आती है?
– थोड़ा थोड़ा।
– अच्छा कैसे? आपने सीखी है?
– हां, क्योंकि मैं दो साल इंडिया में रहा हूं, बंबई में। अब उसका कुछ और नाम बदल गया है।
– हां, मुबई।
इस बीच बॉस ने टोका- भई दो पुराने पत्रकार मिले तो मुझे ही भूल गए। हम हंसने लगे। बाद में मुसोके ने बताया कि जब वे मुंबई में थे तो भारत के कुछ अखबारों में लगातार लिखते थे। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस, पैट्रियट और लिंक जैसे नाम लिए। वे ब्लिट्ज में भी लिखते थे और स्व. आर के करंजिया उनके करीबी मित्रों में से एक थे।
मुझे जाने क्यों बहुत अच्छा लगा। यहां क्योडोंडो एक छोटा सा शहर है, गांवनुमा। वहां मुसोके के पास 24 डिस्मिल जमीन है। कल जब मैंने उन्हें वापस कर दिया था तो आज वे उसके कागजात लेकर आए थे। उसे गिरवी रखकर उन्हें केवल 4 मिलियन शिलिंग का लोन लेना था। मेरे बॉस ने कहा- यह मेरा जीएम है और बड़ा कड़क है, इसीलिए इसने कल आपको वापस कर दिया था।
वह हंसने लगे। बोले – मुझे ऐसे लोग पसंद हैं। कल मैंने केवल अपना नाम बताया था, पूरा परिचय दिया भी नहीं था। पर इनके मना करने पर भी मुझे बहुत बुरा नहीं लगा था। दो चार बातें ही वे हिंदी में बोल सके थे। उसके बाद उन्हें परेशानी हुई तो वे फिर अंग्रेजी में ही बातें करने लगे थे।
किंटु मुसोके जैसे पूर्व प्रधानमंत्री क्या अपने देश में कभी संभव हो सकता है। वैसे लाल बहादुर शास्त्री को देश आमतौर पर याद नहीं करता। पर हमलोग उनका उदाहरण कहीं भी दे सकते हैं। क्या वे कांग्रेसी संस्कृति वाले प्रधानमंत्री थे? बिल्कुल नहीं। वे ही अपने देश के असली प्रतिनिधि थे, पर जाने क्यों उनके पुत्र कांग्रेस में रहे। क्या यह वही कांग्रेस है, जिसके प्रतिनिधि शास्त्रीजी थे। अगर नहीं तो क्या सुनील शास्त्री को वहां घुटन नहीं होती होगी? पर वे भी क्या करें। जाने क्यों मेरे मन में किंटु को देखकर यह परिवार सामने घूम गया।
कुछ देर में ही किंटु मुसोके ने सारे कागजातों पर दस्तखत किए और छड़ी टेकते हुए उठे- नमस्कार। मैं भी खड़ा हो गया। उनके मुंह से इस अजनबी देश में अपनी हिंदी सुनकर बड़ा रोमांच सा हुआ।
लेखक अंचल सिन्हा बैंक के अधिकारी रहे, पत्रकार रहे, इन दिनों उगांडा में बैंकिंग से जुड़े कामकाज के सिलसिले में डेरा डाले हुए हैं. अंचल सिन्हा से सम्पर्क उनके फोन नंबर +256759476858 या ई-मेल – anchalsinha2002@yahoo.com के जरिए किया जा सकता है.
अंचल सिन्हा के अन्य लेखों को पढ़ने के लिए नीचे के लिंकों पर क्लिक करें.
फिर तो बाबा कर देंगे नेताओं की छुट्टी!
यहां की पुलिस भी अलग नहीं है भारत की पुलिस से
दिल्ली की सब्जी में भले ही स्वाद न लगे, यहां है
मेरे सामने बैठा पीएम मुझसे लोन मांग रहा
नंगी तस्वीरों के बावजूद महिलाएं इसे खूब पढ़ती हैं
Comments on “इस पूर्व प्रधानमंत्री को लोन चाहिए था”
I have heard about wife of Late Shri Lal Bahadur Shastri Ji, who used to walk along with her servant to ration shop and buy vegetables and come home walking and all this when Shastri Ji were a Minister. Now in 2011, we the citizens of India are only writing obetuary of honest and honesy.
anchal ji bahut acha laga aaj bhi ase loag hai jo sajjanta ki mishal hai hamare desh k netao ko musoke ji se sabak lena chahiay kash aisa hota good wisess
anchal ji bahut badhiya…but ek cheej mujhe khatak rahi hai.. क्योंकि विजुअल मीडिया ने पत्रकारों की ऐसी तैसी कर रखी है।
is line ko aapne vistaar nahi diya hai….jawab ke intjar me..
Abhishek sharma
http://www.exultvision.blogspot.com
abhishek755@gmail.com