प्रभाषजी के जन्मदिन पर इंदौर में उड़ाया गया उन्हीं का मजाक!

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यह शुद्ध शुद्ध प्रभाष जोशी का मजाक उड़ाने जैसा है. और मजाक उड़ाने का बंदोबस्त किया प्रभाष जोशी पर बने न्यास ने. इंदौर प्रेस क्लब और प्रभाष परंपरा न्यास के तत्वावधान में दो दिनी आयोजन प्रभाष जोशी के जन्मदिन के बहाने और भाषाई पत्रकारिता महोत्सव के नाम पर इंदौर में चल रहा है. इस आयोजन में जो लोग मंच पर बिठाए गए उनमें राजीव शुक्ला भी हैं.

मंच पर राहुल देव भी थे, जो आजकल एक कांग्रेसी नेता के अखबार के प्रधान संपादक हैं. इस नेता के बेटे मनु शर्मा ने जेसिका लाल का मर्डर कर दिया था और इसी अपराध में जेल की सजा काट रहा है. मीडिया ने जेसिका लाल को न्याय दिलाने का बीड़ा उठाया तो मनु शर्मा के पिता ने अखबार खोल दिया, चैनल खोल दिया, मैग्जीन लांच कर दिया ताकि मीडिया को मीडिया के जरिए सबक सिखाया जा सके. इसी ग्रुप के अखबार में राहुल देव प्रधान संपादक हैं. प्रभाष जोशी सिर्फ जनसत्ता में रहे या फिर जनसत्ता से दूर हटकर देश भर में घूमते रहे, मिलते रहे, जुड़ते रहे, औघड़ बन गए, मीडिया व देश की बुराइयों के खिलाफ बोलने-लड़ने वाले नायक बन गए.

लेकिन राहुल देव जैसे लोग हमेशा कुर्सी पकड़े रहने की मजबूरी में जीते हैं और इसी मजबूरी के चलते ढेर सारी नैतिकताओं का गला घोंट देते हैं. इसी कारण राहुल देव जब मंचों से बोलते हैं तो वे पेड न्यूज, करप्शन पर नहीं बोलते, सिर्फ हिंदी बचाने पर बोलते हैं. इंदौर में भी वे हिंदी का रोना रोते रहे. पर यह वह खुद भी बताते हैं कि उनके बेटे कानवेंट स्कूल में पढ़ते हैं और हिंदी नहीं पढ़ते हैं.

राहुल देव को फिर भी माफ किया जा सकता है कि वे चाहे जिस भी ग्रुप से जुड़े हों, लिखने-पढ़ने वाले पेश से जुड़े हुए हैं और ईमानदार व नैतिक होने का एक अच्छा खासा आडंबर बनाए रख पाने में सफल हैं. पर मंच पर राजीव शुक्ला भी विराजमान थे. वही राजीव शुक्ला जो कांग्रेस के नेता हैं, और हाल में ही मंत्री बने हैं. राजीव शुक्ला को प्रभाष जोशी ने जनसत्ता में पसंद नहीं किया था क्योंकि राजीव शुक्ला पर आरोप लगते रहते थे कि वे पैसे लेकर खबरें छापते हैं. इसी कारण प्रभाष जोशी ने राजीव शुक्ला को रिपोर्टिंग से हटाकर डेस्क पर कर दिया था.

बाद में राजीव शुक्ला ने दलाली व लायजनिंग के बल पर काफी तरक्की की और आजकल खुद वे एक मीडिया हाउस के मालिक हो चुके हैं. तो इन राजीव शुक्ला को मंच पर बिठाकर क्या संकेत दिया गया… कि मंच पर बैठने लायक बनने के लिए दलाल होना जरूरी है… कि मंच पर बैठने के लिए आपका बस प्रधान संपादक बने रहना जरूरी है चाहे जिस भी खूनी या रंडी की दुकान के प्रधान संपादक हों… यही कारण है कि प्रभाष जोशी हमेशा नए लोगों को लेकर प्रयोग करते थे, नए लोगों से दोस्ती करते थे. वे बनी बनाई लीक पर चलने वाले और सिस्टम के अंग हो गए लोगों से बहुत उम्मीद नहीं करते थे. प्रभाष जी जिन्हें आखिरी दिनों में भाव नहीं देते थे, वही लोग अब उनके न रहने पर उनके प्रधान शिष्य बन गए हैं. और, ऐसा किया-कराया है रामबहादुर राय ने. एक अच्छे खासे न्यास का सत्यानाश कर दिया रामबहादुर राय ने.

प्रभाष जोशी बेहद सादा जीवन जीते थे. भजन सुनते थे. देसी खाना खाते थे. आम जन से जुड़ने और शहर शहर घूमकर अलख जगाने में विश्वास रखते थे. पर उनके न रहने पर उनके जन्मदिन का आयोजन ऐसा किया गया कि प्रभाष जोशी की आत्मा शरमा जाए. इस कदर भव्य आयोजन, बड़े बड़े लोगों से भरा पड़ा आयोजन… इस आयोजन में सब कुछ था, बस नहीं था तो प्राण नहीं था. नहीं था तो बस प्रभाष जोशी की आत्मा नहीं थी. ऐसे फूहड़ और घटिया आयोजन के लिए प्रभाष परंपरा न्यास से जुड़े और प्रभाष जोशी के करीबी रहे रामबहादुर राय काफी हद तक जिम्मेदार हैं.

खुद सादगी का दिखावा करने वाले रामबहादुर राय ने प्रभाष जोशी जैसे संत आदमी के लिए ऐसे फूहड़ आयोजन को मंजूरी दी जिसमें मंच पर दलाल और अवसरवादियों की पूरी जमात बैठी थी. कुछ एक नाम जैसे हरिवंश, नामवर सिंह, प्रांजय गुहा ठाकुरता, रामबहादुर राय, रामशरण जोशी आदि को छोड़कर ज्यादातर लोग इस आयोजन के लिए मुफीद नहीं थे. अगर प्रभाष परंपरा न्यास प्रभाष जी का जन्मदिन बेहद सादगी के साथ किसी गांव में आम लोगों के बीच मनाता, देश के चिंतकों, एक्टिविस्टों को गांव में ले जाकर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बड़ी बहस और बड़ा मार्च आयोजित कराता तो शायद प्रभाष जी की स्टाइल में उनका जन्मदिन मनाया जाता. लेकिन रामबहादुर राय को जाने क्या सूझी कि उन्होंने प्रभाष परंपरा न्यास को इंदौर प्रेस क्लब के हाथों गिरवी रख दिया.

रामबहादुर राय को प्रभाष जोशी के चाहने वाले इस घटिया आयोजन के लिए कभी माफ नहीं करेंगे. इस आयोजन में दुविधा शुरू से ही जुड़ी रही. रामबहादुर राय समेत कथित दिग्गज कई पत्रकार खुद तो जहाज से इंदौर पहुंचे लेकिन करीब दो दर्जन से ज्यादा पत्रकारों को ट्रेन के स्लीपर डब्बे में ठुंसकर जाने को मजबूर कर दिया. ज्यादा अच्छा होता खुद रामबहादुर राय भी उसी स्लीपर डिब्बे में लोगों के साथ गए होते ताकि संदेश बराबरी व भाईचारे का जाता. इंदौर में हुए आयोजन का पहले दिन संचालन हृदयेश दीक्षित ने किया. ये वही हृदयेश दीक्षित हैं जो मध्य प्रदेश में नेताओं, अफसरों, उद्यमियों को ब्लैकमेल करने के लिए कुख्यात हैं.

हृदयेश दीक्षित कभी राज एक्सप्रेस के मालिक अरुण सहलोत के लिए दलाली का काम भरपूर करते थे. बाद में उन्हें हटा दिया गया तो काफी दिनों तक बेरोजगार रहने के बाद वे प्रदेश टुडे नामक एक अखबार एक उद्यमी के साथ मिलकर लाए हैं. हालांकि हृदयेश दीक्षित खुद अब ठीकठाक पैसे वाले बन चुके हैं लेकिन पैसे वाला पत्रकार बनने के कारण ही उन्हें प्रभाष परंपरा के आयोजन का संचालक बनाना ठीक नहीं.

इस आयोजन की उपलब्धि क्या रही. अगर इस सवाल का जवाब खोजा जाए तो यही कहा जा सकता है कि देश के दलालों, बेईमान नेताओं, भ्रष्ट पत्रकारों आदि ने मिलकर प्रभाष जोशी के नाम का दो दिनों तक जाप किया और कोई वैचारिक ताप दे पाने में नाकाम रहे. जो काम प्रभाष जोशी खुद अकेले कर दिया करते थे, वह दर्जनों कथित बड़े बड़े लोग एक जगह इकट्ठे होकर भी नहीं कर पाए. हां, उपलब्धि यह रही कि राजेंद्र माथुर, राहुल बारपुते की तरह अब इंदौर में एक सड़का का नाम प्रभाष जोशी के नाम से हो जाएगा और प्रभाष जोशी के नाम से एक लाख रुपये का एक सालाना खेल पुरस्कार दिया जाएगा.

यह घोषणा मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की. इन घोषणाओं में कितनी राजनीति है, इसे स्पष्ट कर दिया नामवर सिंह ने. प्रभाष जोशी के बेहद करीबी नामवर सिंह ने मंच से इस बात के लिए शिवराज सिंह चौहान की आलोचना की कि वे यहां घोषणाएं करके राजनीति कर रहे हैं. नामवर ने मुख्यमंत्री पर खुलकर आरोप लगाया कि उन्होंने कार्यक्रम का राजनीतिकरण कर दिया है. ऐसा करने से शिवराज को बचना चाहिए था. दरअसल नेताओं की आदत होती है कि मौका देखकर राजनीति कर दो और यही शिवराज सिंह चौहान ने किया.

इसी से जुड़ी खबर– खुद की आलोचना के समय खामोश हो जाता है मीडिया उद्योग

इंदौर से कई पत्रकारों द्वारा भेजी गई रिपोर्टों का संपादित अंश. अगर कोई उपरोक्त बातों से असहमत हो तो अपनी बात नीचे कमेंट बाक्स के जरिए कह सकता है या फिर bhadas4media@gmail.com पर मेल कर सकता है.

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Comments on “प्रभाषजी के जन्मदिन पर इंदौर में उड़ाया गया उन्हीं का मजाक!

  • Is poori bakchodi me khabar para number 8 me hai. Tathakathit Sarvodayi patrakar plane me gaye, aur chirkuton ko sleeper me bheja.
    Donon khemon ke mahanubhavon se mera karbadh nivedan hai ki Prabhashji ki aatma ko shanti se rahne den. Agle saal Shah Rukh Khan, Katrina ko Indore bulwa lena aur naach-gaana ke saath event management karwana. Bajay iske ki log baithe baithe netaon, dallon ki bakchodi wale bhashan sunte rahen. Hona-hawana kuch hai nahin, Lage Raho Munnabhaiyon. Ya phir, iske poori tarah ulat, Bastar ke junglon me chale jaaana, aur bandook wale bhaiyon ke beech baithkar Jan Natya Manch wale geet gaana. Bhashayi patrakarita 40 saal me mar jayegi, kahte hain Rahul Dev, shaayad unhone Meerut Ghaziabad ilakon me deewaron par lage Learn English ke vigyapan kaafi dekh liye honge. Lekin worry not! Jab tak Hindi zinda hai, koi maai ka laal bhashayi patrakarita ko khatm nahin kar sakta, bhale hi ye saare dalle khatan ho jayen, ek-ek kar.

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  • प्रातः स्मरणीय ,वन्दनीय श्री श्री राम बहादुर राय के दूसरे ऐसे आयोजन पर फिर बधाई .प्रभाष जोशी ने तो पत्रकार बनाए और कईयों को निपटाया भी .पर प्रातः स्मरणीय आपने तो सिर्फ चेले बनाए है आप कुंठित पत्रकारों की परवाह क्यों करते है जो चिरकुट होगा वह सेकण्ड क्लास नहीं तो क्या हवाई जहाज में उड़ेगा .पिछली बार जब पत्रकारों को लेकर आप इंदोर गए थे प्रभाष जोशी का साठ साल का समारोह बनाने तब भी आप सेकंड ऐसी में थे और बाकी पत्रकार स्लीपर में जो सारी रात जागते हुए गए थे क्या क्या किया सब आप तो जानते ही है .

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  • प्रभाष जी के नाम पर दुकान चलाने वालों के बारे में शायद आपको मालूम नहीं है, इस कार्यक्रम के आयोजक इंदौर प्रेस क्लाब के अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल की पत्नी इंदौर में कार्पोरेटर का चुनाव लड़ चुकी है वह भी कांग्रेस के टिकीट पर। इस चुनाव के लिए इंदौर प्रेस क्लाब का नाम लेकर इसने 1.25 करोड़ रुपए इंदौर के व्यापारियों और बड़े लोगों से चंदे के तौर पर उगाए थे। उसमें से खर्चा केवल 20 लाख ही किए थे। दिग्विजयिसंह के तलुए चाटने वाले इस आदमी ने खुद कांग्रेस से एमएलए का टिकीट मांगा था। इसके लिए वह दिग्िवजयसिंह के बहुत आगे-पीछे बहुत घूमा था मगर दिग्गी ने उस समय भी इसे इसकी औकात दिखा दी थी।
    हाल ही में इसने प्रेस क्लब का सौदा कर दिया है। इसके लिए उसकी राह में रोड़ा बन रहे प्रेस क्लब के महासचिव अन्ना दुराई को इसने पद पर रहते ही उनकी सदस्यता समाप्त करवा दी।
    एक बात और इंदौर प्रेस क्लब के सदस्यों की सूची में इंदौर से बाहर जाकर पत्रकारिता कर रहे लोगों के नाम हटा दिए गए हैं लेकिन इसके उन दोस्तों के नाम उसमें बरकरार हैं जिन्होंने इंदौर के पत्रकारों को भूला दिया है।
    प्रेस क्लब की सूची में तो महज 1000 नाम है, लेकिन प्रेस क्लब सदस्यों के कार्ड बने हैं 2500 से भी ज्यादा। पत्रकारों के अलावा जिनके कार्ड बने थे उनमें जुआं-सट्टा चलाने वाले शामिल हैं।
    इसका एक साथी सोनू इसरानी मर गया है। इस घोषित सटोरिए ने दो साल पहले भारत के एक मैच पर करोड़ों का सट्टा लगाया था, जो ये हार गया था। बाद में पैसे चुकाने के लिए उसने प्रेस क्लब के सामने के दुकानदारों से भी उधार ले लिया था।

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  • is samaroh ke ayojak indore press club ke adhyaksh ke bare me bata du..
    unki patni indore me corporater ka chunav ladi thi vo bhi congress se. khud adhyaksh digvijay singh ki chamchagiri karte huye MLA ka ticket mang rahe the.
    isse bhi badi bat ye rahi he ki adhyaksh pravin kharival ne Apni biwi ke chunav ke samay indore press club ke nam par 1.25 crore ka chanda ugaya tha jisme kharcha mahaj 20 lakh hi kiya tha. press club par monopoly banane ke alawa bhai sahab ne in dino indore press club ko bechne ki taiyari kar rakhi he. isiliye press club ke general secreatry Anna Durai ko pad par rahte hue unki sadasyata khatam kar di gai. or karname janne ho to indore ki sansad sum,itra mahajan se bat kar len

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  • एक पुरानी कहावत है- “पाप से घृणा करो पापी से नहीं”: अच्छा होता यदि आप राजीव शुक्ल और राहुल देव का नया संस्करण न बनते।

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