: बूढ़ा और रोबोटिक प्रधानमंत्री जनता की भाषा नहीं, लुटेरे उद्योगपतियों की भाषा बोल रहा है : इस बदले समय में असली पारदर्शिता तभी लाई जा सकती है जब जिम्मेदार पदों पर बैठे सभी लोगों के फोन चौबीसों घंटे टेप किए जाएं और उन्हें सार्वजनिक करते रहने का कानून बनाया जाए : अगर टेप लीक न हुए होते तो क्या राडिया के यहां छापे पड़ सकते थे : नक्कीरन के पत्रकार के घर छापा पड़ सकता है तो दिल्ली के स्वनामधन्य पत्रकारों के यहां छापा क्यों नहीं पड़ा जिनकी एक बड़े खेल में संलिप्तता टेपों के जरिए जगजाहिर हो चुकी है :
टेपों की रिकार्डिंग बहुत पहले हुई. सीबीआई के पास टेप भी बहुत पहले पहुंच गए. लेकिन छापे अब पड़ रहे हैं. जब टेप लीक हुए और मीडिया में धीरे धीरे ही सही, छा गए. सरकार की किरकिरी होने लगी. तब सरकार ने अपने सरकारी घोड़े सीबीआई को सक्रिय कर दिया. छापे पड़ने लगे ताकि जनता को लगे कि न्याय जारी है. न्याय का यह दिखावा, न्याय का यह नाटक कांग्रेसी सरकार उर्फ मनमोहिनी सरकार उर्फ माते सोनिया की सरकार के चेहरे से नकाब उतारने लगा है. जिस सीबीआई ने कल 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के हिस्से के रूप में वरिष्ठ तमिल पत्रकार के आवास पर छापा मारा, उस सीबीआई को प्रभु चावला, वीर सांघवी और बरखा दत्त के घरों पर छापे मारने की सुध क्यों नहीं पड़ी. शायद इसलिए सीबीआई की हिम्मत नहीं पड़ी क्योंकि ये तीनों बड़े पत्रकार दिल्ली में रहते हैं और बेहद प्रभावशाली हैं, और इनकी पहुंच दस जनपथ तक है.
हम क्यों न मान लें कि ये तीनों लोग जिस तरह से सरकार के सर्वेसर्वा लोगों तक अपनी पहुंच का बयान-बखान टेपों में नीरा राडिया से करते हैं, वो पूरी तरह, हंड्रेड परसेंट, सौ फीसदी सच है. कल सुबह जब नीरा राडिया के कई ठिकानों पर छापे पड़ने की सूचना देश भर के मीडिया माध्यमों के जरिए देश की जनता के सम्मुख पहुंची तो उसी वक्त यह खबर भी आई कि दिल्ली से एक सीबीआई टीम चेन्नई पहुंची और तमिल मैगजीन ‘नक्कीरन’ के एसोसिएट एडिटर कामराज के घर पर धावा बोल दिया. टीम ने तलाशी अभियान चलाया. कामराज को डीएमके का काफी नजदीकी माना जाता है. यह छापा ऐसे समय पर मारा गया है जब सीबीआई के अधिकारियों ने एक सप्ताह पहले पूर्व टेलीकाम मंत्री ए. राजा और उनके सहयोगियों के नई दिल्ली और तमिलनाडु स्थित कार्यालयों पर छापा मारा था. राजा के मुख्य सहयोगी सादिक बाशा और एक रिअल स्टेट व्यवसायी को सीबीआई पूछताछ के लिए पकड़ा है. सीबीआई के अधिकारियों ने राजा के भाई और बहन के तिरूचिरापल्ली जिले के श्रीरंगम स्थित आवासों पर भी छापे मारे. उनके आवासों पर भी पिछले सप्ताह छापे मारे गए थे.
लेकिन क्या राजा को मंत्री बनवाने जैसे बड़े खेल में बरखा दत्त, वीर सांघवी और प्रभु चावला जैसे बड़े पत्रकार शामिल नहीं थे? अगर इनकी अप्रत्यक्ष मिलीभगत की सूचना देश की जनता को हो चुकी है तो क्या सीबीआई और सरकार, दोनों बहरी हैं जो इन पत्रकारों के ठिकाने पर छापेमारी नहीं कर रहे. अगर इनके घरों पर छापे मारे जाएं, इनके फार्म हाउसों पर छापे पड़ें, इनके लैपटाप व डाक्युमेंट्स को खंगाला जाए, इनके फोन काल डिटेल निकलवाए जाएं तो पता चल सकेगा कि इनके तार और कहां कहां जुड़े हैं और इनके पास कितनी संपत्ति है. लेकिन इस देश में कभी बड़ी मछलियां शिकंजे में नहीं आतीं. न्याय का नाटक करने के लिए हमेशा छोटों को बलि का बकरा बनाया जाता है. देखिए, सीबीआई के छापेमारी के नाटक से क्या निकलता है लेकिन एक दूसरी कहानी यह भी है कि कांग्रेसी सरकार डीएमकी व राजा को निशाने पर लेकर देश को ये भरोसा दिलाने में लगी है कि हम भ्रष्टाचार से किसी कीमत पर समझौता नहीं करते. चलो, करुणानिधि रूठ जाएंगे तो जयललिता कांग्रेस के पाले में आ जाएंगी.
सो, इस छापेमारी से कांग्रेसी सरकार की राजनीतिक सेहत पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, उलटे भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने जैसा नाटक कर वह विपक्षी पार्टियों व देश की जनता के प्रश्नवाचक खुले मुंह को बंद कर देना चाहती है. पर हम सभी जानते हैं कि सीबीआई का केंद्रीय कांग्रेसी सरकार ने बेहद शर्मनाक व पक्षपातपूर्ण दुरुपयोग हमेशा किया है. इसी कारण सीबीआई को सुप्रीम कोर्ट से समय समय पर डांट भी खानी पड़ती है. मायावती को सीबीआई के जरिए डराकर कांग्रेस अपना काम निकालती रही है तो कभी मुलायम को सीबीआई का भय दिखाकर कांग्रेसी सरकार अपना राजनीतिक भविष्य संवारती रही है. जैसे राज्य सरकारें पुलिस का भय दिखाकर नेताओं को अपने पाले में करने का काम करती है उसी तरह केंद्र सरकार सीबीआई का भय दिखाकर बड़े नेताओं को अपने खिलाफ न जाने की हिदायत देती है.
भ्रष्टाचार में लिप्त केंद्र की कांग्रेस सरकार की दिखावेबाजी को सब जानते हैं. ऐसे समय में जब सोनिया गांधी अपने पुत्र राहुल को भावी पीएम के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं, भ्रष्टाचार के सागर में सीबीआई जैसी छोटी मछली को जांच करने के लिए घुसेड़ कर देश की जनता को कुछ नहीं समझाया जा सकता. जनता को पता चल गया है कि 99 फीसदी नेता चोर हैं. छापे और सीबीआई जैसा नाटक दिखावे को हो रहा है. अगर कहें कि असल भ्रष्टाचारियों के हाथों में ही सीबीआई की लगाम है तो गलत नहीं होगा. अपना रोबोट टाइप प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हमेशा की तरह आज भी लुटेरे उद्योगपतियों के साथ खड़ा है. वह टेप लीक होने पर चिंता जाहिर करता है और भविष्य में टेप लीक न किए जाने का आश्वासन देता है. पर देश की जनता चाहती है कि इस देश के सभी बड़े नेताओं के टेप हर वक्त टैप हों और उन्हें जनता के सामने प्रकट कर दिया जाए ताकि इस देश की जनता जान सके कि नेता परदे के पीछे क्या-क्या बातें कर रहे थे. इस बदले समय में जरूरी है कि ऐसे कानून बनाए जाएं जिससे पारदर्शिता बढ़े और जिम्मेदार पदों पर बैठे नेताओं और अफसरों की कार्यप्रणाली व जीवनचर्या को जनता जान-समझ सके.
अंत में अपनी बात उस कमेंट को यहां देकर करूंगा जिसे किन्हीं कुमार गौरव नामक साथी ने भड़ास4मीडिया पर प्रकाशित खबर ‘फंस गई राडिया, पड़ गए छापे‘ के नीचे लिखा है- ”इतने दिनों के बाद क्या इस छापे का कोई औचित्य रह जाता है? राजा के यहां भी छपा तब पड़ा जब शायद सी.बी.आई. को यह सिग्नल दे दिया गया कि अब वहां कुछ मिलेगा नहीं, आराम से छापा मारो. नीरा राडिया को क्या ये अंदेशा नहीं रहा होगा कि सीबीआई रेड पड़ने वाली है? और वह सभी दस्तावेज को सीबीआई के लिए छोड़ दी होगी?”
और, इस रचना को भी पढ़ें. बुद्धा नामक एक हिंदी ब्लाग में 15 दिसंबर को यह रचना प्रकाशित की गई है. देखिए- कितना आक्रोश है लोगों के मन में, सिस्टम के प्रति और मीडिया के प्रति भी…
राडिया की मीडिया, मीडिया की राडिया
राडिया की मीडिया, मीडिया की राडिया
सच्ची कहानी मीडिया, मनोहर कहानी राडिया
राडिया है या मीडिया, ये मीडिया की राडिया
सब हरामखोर एक हैं, मीडिया हो या राडिया
हमको नशा सा हो गया ये मीडिया है मीडिया
मीडिया की राडिया या राडिया की मीडिया
शेर की खाल ओढ़कर, आ गए हैं सियार
लग चुका है दरबार, आ गए सारे सियार
शेर दिख रहा मीडिया, अंदर छुपा है भेड़िया
ये भेड़िया है या मीडिया, या फिर वही राडिया
बच्चे चुराएगा भेड़िया, बड़ों से डरेगा भेड़िया
ये मीडिया के भेड़िए, ये कायरों की मीडिया
लेखक यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया के संस्थापक और संपादक हैं.
Comments on “बरखा, वीर और प्रभु के घर छापे क्यों नहीं पड़े”
Itni imaandari se likhne ke liye saadhuvaad….ati sunder…
पहले लोग समझते थे की मनमोहन सिंह की सरकार दस जनपथ से चलती है. लकिन अब यह बात साबित हो गयी है. ऊपर से नीचे तक सब सरीके जुर्म हैं. मनमोहन सिंह के सब जानने के बाद भी खामोश रहना और मुजरिमों को सबूत मिटने का वक़्त देना. यह साबित करता है की अब वो भी अपनी पार्टी के उस उद्देश्य को पूरा करने मैं जुट गए हैं जिसके लिए उन्हें प्रधान मंत्री बनाया गया था. देश की मासूम जनता ने सोचा था की अर्थशास्त्र का विशेसग्य हमारा प्रधान मंत्री हमारी आर्थिक स्तिथि सुधारेगा लेकिन. सपने चूर चूर हो गए. और जनता का पैसा उन्होंने गलत हाथों से लुटवा दिया. बहुत शर्मनाक.
Yashwant Bhai ,
Badhiya lekh .:)
मुझे तो शर्म आने लगी है अपने इन नेताओं पर,,,,कांग्रेस ने तो देश बर्बाद करके रख दिया है जहां देखों वहीं घोटाला…..इन नेतोओं का बस चले तो ये अपने परिवार के अलावा पूरे देश को स्विस बैंक स्थित अपने खातों में जमा करवा दे..हमारे दिए हुए टैक्स के पैसों से ये लोग अपने घर भरने में लगे हैं…हम सभी को सोचना पड़ेगा कि हम लोग टैक्स देश की तरक्की के लिए देते हैं ना कि इन भ्रष्ट नेताओं के घर भरने के लिए मैने भी सोचा है कि मैं टैक्स जमा नहीं करूंगा लेकिन क्या करें….प्रत्यक्ष रूप से ना सही लेकिन परोक्ष रूप से मैं भी टैक्स जमा करने को मजबूर हूं…..बंद करो टैक्स जमा करना…………….
यशवंत जी अभी २जी स्पेक्ट्रम घोटाला , निरा राडिया , कुछ दिनों तक और मार्केट में चलेगा , कुछ अख़बार इस से सम्बंधित समाचार को प्रमुखता भी देंगे (हर अख़बार इसे सुर्खी नही बनाएगा, आप जानते हैं ) इसके बाद इस मामले को भी हर मामले की तरह ठंडा कर दिया जायेगा , कसी को पता भी नहीं चलेगा.
[i][b]किसी लम्बी लकीर को छोटा करने का एक आसन उपाय है , उस लकीर के बगल में उससे बड़ी लकीर खींच दो . पहले वाला लकीर छोटा हो जायेगा .[/b][/i]
इसी प्रकार कुछ दिनों के बाद इस २ जी से बड़ा मामला आयेगा और लोग इसे भूल जायेंगे. सुखराम के सरकारी आवास से २.४५ करोड़ बरामद हुआ था . फिर क्या हुआ किसी को याद है ? वैसे ही इस मामले में भी कुछ नहीं होगा ..
मधु कोड़ा काण्ड को अच्छे से देखिये , सब समझ में आ जायेगा . किसी मामले को ठंडा कैसे किया जाता है वो झारखण्ड घोटाला से समझिये , वहां मामले को निपटा दिया गया है .. सिर्फ खानापूर्ति चल रहा है, शायद कुछ दिनों के बाद कोड़ा जी को बेल भी मिल जायेगा , उसके बाद वो फिर राजनीति में ..सब कुछ पहले जैसा . कोड़ा जी के वारिस तो हैं ही सत्ता में .
इन पत्रकारों के अलावे दिल्ली और सभी प्रदेशों में ऐसे “दलाल” पत्रकारों की एक जमघट है, चाहे वे शेक्स्पेअर की भाषा अंग्रेजी में लिखते हों या हिंदी में, जब उस जमाने के सारे पत्रकार आज के समय में मालिक बन बैठे हैं तो आप इन से क्या उम्मीद कर सकते हैं.दुर्भाग्य यह है की जो भी पत्रकार बंधू (जो सही में पत्रकारिता करते है, दलाली नहीं ) अगर अपनी आवाज तेज की या कलम की गति तेज की तो उन्हे दरवाजे का रास्ता दिखा दिया जाता है. आज कल तो इस पेशे में ऐसे भी “मुजरिम” आ गए हैं जो खुलेआम सरकार और सभी सरकारी केंद्रीय और राज्य के सार्वजानिक प्रतिष्ठानों के बीच दलाली करने के लिए कम समाचार पत्र और website खोल रखे हैं……हम सिर्फ मनमोहन सिंह को या नेतागण को दोषी क्यों कहेंगे ? दोषी तो हम सभी हैं..जनता पत्रकारों पर विस्वास करती है..लेकिन हम क्या करते है.?
अगर सभी पत्रकार बंधू, चाहे वे क़स्बा में पदस्थापित हों या INS भवन में, पंचायत की खबर लिखते हों या प्रधान मंत्री की, क़स्बा के जीर्णोद्धार की बात करते हों या भारत-पाकिस्तान या अन्य देशो के साथ संबंधो की मजबूती कारण का, सिर्फ एक बार अपने-अपने गरेवान में झांक कर देखें वे कितने “पाक” है और अपने पेशे के प्रति कितने वफादार है…अब जो “सही पत्रकार” बचे हैं (इनकी संख्या बहुत कम होती जा रही है) उनके “कमर” में उतनी “सामर्थ” अब नहीं है जो इन “दलाल पत्रकारों” का सामना कर सकें. यह तो सुकर है परमात्मा का की तब भी लोग इस पेशे पर भडोषा करते है. वीर साहिब, प्रभुजी या वरखा तो महज इस “समुद्र” के एक हिस्से है…जिस व्यक्ति ने (वह भी पत्रकार ही है, वकालत भी करता है और कोरिडोर ऑफ़ पावर में अपना महत्वा बताता है) इस टेप का खुलासा किया उसे कितना पैसा मिला है ? किसी ने जानने की कोशिश नहीं की..वह भी अपना अखबार और टीवी चैनल ला रहा है…
में ऐसे कई कॉरपोरेट हाउस के Media Communication Heads को जनता हूँ और देखा हूँ जिनके पास दिल्ली और अन्य प्रान्तों में कार्यरत संवाद दाताओं, संपादकों, और इनसे जुड़े विभिन्न PRO agencies की सूचि है जिन्हें प्रत्येक समाचार के लिए पैसा दिया जाता है और यह सभी उसे “प्रसाद” की तरह ग्रहण करते है. उन्हे तो “अपना सामान बेचना है” अब अगर ग्राहक (पत्रकार बंधू) जागृत नहीं है तो क्या करें? “प्रसाद” की यह राशि इस बात पर भी निर्भर करती है की उनके समाचार को किस पन्ने पर छापा गया है? कितना शब्द लिखा गया है? किता कोलम दिया गया है? वह समाचार अगर प्रधान मंत्री या संबध मंत्रालय के मंत्री के समाचार के आस- पास छापा है तो “उनकी” तो चंडी है! सभी समाचार पत्रों और TV चैनल के वरिष्ट पत्रकारों/प्रमुखों की एक अलग सूचि है, संसथान के मालिकों से कौन-कौन मिल सकता है ? इसकी भी सूचि है? यह प्रत्येक माह की शुरुआत में पैसे तो ऐसे बांटे है जैसे “टमाटर, आलू और प्याज” बाँट रहे हों ! अरे पत्रकार भाई, पहले अपने-अपने “कच्छा, कच्छी, और अंडर गारमेंट ” को धोएं, महिलाएं भी इस से वर्जित नहीं हैं, फिर नए समाज को बनाने की बात करेंगे (यशवंत भाई को बहुत बहुत धन्यवाद जिन्होने यह मुहीम चलाया है)
good job dear sir