सेठ जी के वफादार वे बेचारे ग्यारह साल से अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। कहानी का एक पहलू यह भी है कि आपराधिक किस्म के जिस बिजेंद्र सिंह राठौड़ ने यह मुकदमा दायर किया है, उसी ने भास्कर के मालिकों में से एक गिरीश अग्रवाल पर अपनी बंदूक से फायर किया, गिरीश अग्रवाल जान बचाकर भागे और ऐसे भागे कि जब तक भास्कर पुरानी बिल्डिंग में रहा, अपने दफ्तर तो क्या अजमेर ही आने की हिम्मत नहीं जुटा पाए।
6 अप्रैल 1997 को अजमेर से दैनिक भास्कर शुरू हुआ। राष्ट्रदूत संभाल रहे एसपी मित्तल को इसकी कमान सौंपी गई। पॉश कॉलोनी सिविल लाइंस के एक पुराने बंगले में भास्कर का जमावड़ा जमाया गया। बंगले के एक हिस्से में बिजेंद्र सिंह राठौड़ ने कब्जा जमाया हुआ था। वह पूरे बंगले को हथियाने की जुगत में ही था कि बंगले के आठ-दस मालिकों में से एक ने भास्कर को एक हिस्सा किराए पर दे दिया। एसपी मित्तल की इसमें बड़ी भूमिका रही। बिजेंद्र सिंह राठौड़ और उसके आदमियों से आए दिन तकरार होने लगी। गिरीश अग्रवाल पर उसने गोली चलाई। निशाना चूक गया।
मित्तल, अरविंद गर्ग आदि गिरीश अग्रवाल को भगाते हुए बचाकर ले गए और अजमेर से बाहर छोड़कर आए। भास्कर के कर्मचारियों और बिजेंद्र सिंह राठौड़ के बीच मुकदमेबाजी होने लगी। ऐसा ही एक मुकदमा राठौड़ ने 15 सितंबर 1999 को दर्ज करवाया। सिविल लाइंस पुलिस थाने में 226/99 नंबर पर दर्ज इस मुकदमे में उस समय के ब्रांच मैनेजर अनिल शर्मा, प्रशासनिक अधिकारी कौशल कपूर, एसपी मित्तल, सिटी रिपोर्टर अरविंद गर्ग, सर्क्युलेशन के लक्ष्मण सिंह राठौड़ आदि पर आरोप लगाया गया कि सभी लाठी, चाकुओं, तलवार समेत एक वैन में आए और बिजेंद्र सिंह राठौड़ तथा उसके परिवार पर कातिलाना हमला किया। गाली-गलौज और मारपीट की। शोर-शराबा सुनकर पड़ौसी इकट्ठा हो गए तो सभी भाग गए।
पुलिस ने मुकदमे में अंतिम रिपोर्ट दे दी परंतु बिजेंद्र सिंह राठौड़ ने प्रोटेस्ट पिटीशन लगाकर मुकदमा फिर शुरू करवा दिया। मुकदमा चलता रहा, सभी लोग तारीख पेशियों पर आते रहे। इसी बीच अनिल शर्मा भास्कर छोड़कर अमर उजाला चले गए और अभी नोएडा में हैं। एसपी मित्तल अब पंजाब केसरी में हैं। लक्ष्मण सिंह राठौड़ शिक्षा विभाग के मुलाजिम हो गए और अजमेर से दो सौ किलोमीटर दूर नागौर में तैनात हैं। कौशल कपूर भी भास्कर छोड़ चुके थे, बाद में भगवान को प्यारे हो गए। अरविंद गर्ग एक मात्र हैं जो अभी भी भास्कर में रिपोर्टिंग कर रहे हैं।
कौशल कपूर के भास्कर छोड़ दिए जाने के कारण यह पता नहीं था कि अब कहां रह रहे हैं। इसलिए अदालत ने भास्कर के पते पर ही उनके जमानती वारंट भेजे। भास्कर की महिमा न्यारी। जो पुलिस वाला जमानती वारंट लेकर आया था उसके सामने कौशल कपूर की जगह एक कौशल किशोर नाम के कर्मचारी को आगे कर दिया। वह भास्कर भीलवाड़ा में काम करता है परंतु हर बार अदालत आ रहा है। उसने अदालत से गुहार लगाई हुई है कि उसे बख्शा जाए असली नाम तो कौशल कपूर था जो अब दुनिया में नहीं है और उसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।
पिछले साल अजमेर भास्कर में एक सहायक जनरल मैनेजर थे अनुराग माथुर। उन्होंने वकील से कहा कि यह लिखकर दें कि यह मुकदमा कितने दिन में खत्म हो जाएगा। उन्हें बताया कि भइये यह भारतीय न्याय व्यवस्था है जिसमें दादा मुकदमा करता है और पोता भी उसे लड़ता रहता है, इसमें वकील तो क्या जज भी नहीं बता सकता कि कितने दिन में फैसला हो जाएगा। माथुर की भवें तन गई, ऐसा कोई होता थोड़े ही, मैं तो हर काम का टारगेट लेकर चलता हूं। कुल मिलाकर हुआ यह कि उन्होंने फरमान जारी कर दिया। वकील हटाओ और यह फौजदारी मुकदमा है, भास्कर का इससे क्या लेना-देना, जिसने किया है, उसकी गलती है, भुगते या फिर अपना मुकदमा खुद लड़े।
अनिल शर्मा चूंकि आशीष व्यास के जीजाजी होते हैं, इसलिए जब अनिल शर्मा तारीख पेशी पर आते हैं तो रिश्तेदारी के कारण व्यास आ जाते हैं, उन्होंने अपने जीजाजी की खातिर एक वकील मुकर्रर कर दिया है। लक्ष्मण सिंह नागौर से आते हैं। अरविंद गर्ग और कौशल किशोर दोनों भास्कर में काम करते हैं परंतु भास्कर ने उनसे भी पल्ला झाड़ लिया है। बेचारे कौशल किशोर को तो भीलवाड़ा से अजमेर आने-जाने का ना तो किराया देते हैं और ना ही छुट्टी। सब ऐसे मुकदमा लड़ रहे हैं मानो उन्होंने अपनी जायदाद बचाने के लिए बिजेंद्र सिंह से पंगा लिया हो।
मुकदमा सच्चा है या झूठा, यह फैसला आना बाकी है परंतु इस बीच जरा बिजेंद्र सिंह राठौड़ से भी परिचय कर लिया जाए। बिजेंद्र सिंह राठौड़ ने इसी जायदाद को लेकर एक दीवानी दावा भी किया जिसका फैसला 2003 में भास्कर के पक्ष में हो गया। बिजेंद्र सिंह राठौड़ के खिलाफ सन् 1982 से 1997 तक सात मुकदमे क्रिश्चियन गंज, अलवर गेट और सिविल लाइंस पुलिस थानों में दर्ज थे। इनमें जानलेवा हमले, घर में घुसकर लोगों पर हमला, दलितों से मारपीट, गाली-गलौज, लोगों को धमकाने आदि के आरोप थे।
अजमेर के पुलिस अधीक्षक ने इन मुकदमों का हवाला देते हुए 15 अप्रैल 1997 और 24 अप्रैल 1997 को जिला मजिस्ट्रेट एवं कलेक्टर को पत्र भेजे, जिसमें उन्होंने लिखा- ”अपने तीन लाइसेंसशुदा हथियारों रिवाल्वर 32 बोर, डीबीबीएल गन 12 बोर और राइफल 22 बोर के दम पर बिजेंद्र सिंह राठौड़ खाली पड़े भूखंडों पर कब्जे का धंधा करता है। लोगों को आतंकित करता है। उसकी छह बसें शास्त्री नगर-लोहाखान-चौरसियावास रोड पर चलती है, वह अन्य किसी के वाहन इस रोड पर चलने नहीं देता। लोगों से मारपीट करता है। उसके परिवार में संपत्ति का विवाद है। परिवार के लोग भी उससे आतंकित हैं। उसने गुंडागर्दी का माहौल बना रखा है। बहुत ही शराबी है। वह हथियार का प्रयोग कर किसी की जान ले सकता है, लिहाजा उसका लाइसेंस नंबर-6/88 रद्द कर हथियार जब्त किए जाएं।” पुलिस की इस रिपोर्ट पर जिला मजिस्ट्रेट ने 18 सितंबर 1997, 26 मार्च 1998 को उसका लाइसेंस रद्द कर दिया। संभागीय आयुक्त ने भी 8 दिसंबर 2006 को उसकी अपील खारिज कर दी।
दिलचस्प पहलू यह है कि भास्कर के इसी मुकदमे में शिकायतकर्ता की हैसियत से जब अदालत ने बिजेंद्र सिंह राठौड़ को गवाही के लिए बुलाया तो उसके वारंटों पर लंबे समय तक पुलिस की रिपोर्ट आती रही कि वह एक गुंडा है, अदालतों से उसके खिलाफ गिरफतारी वारंट जारी हो रखे हैं, गिरफतारी से बचने के लिए वह लंबे समय से फरार है। इसी साल वह तब गवाही देने आया जब हाईकोर्ट ने गिरफतारी वाले मुकदमे में उसकी जमानत मंजूर कर ली। भास्कर द्वारा मुकदमे की पैरवी से हाथ खींच लिए जाने की जानकारी ई-मेल के जरिए प्रबंध संचालक सुधीर अग्रवाल को भेजी गई परंतु कोई जवाब नहीं आया। मुकदमे की सुनवाई जारी है।
लेखक राजेंद्र हाड़ा भास्कर द्वारा हाथ खींच लिए जाने के बावजूद पत्रकार साथियों के हित और उनसे संबंधों के चलते अजमेर में इस मुकदमे की पैरवी कर रहे हैं. इसी कारण उन्हें हर पहलू की पुख्ता जानकारी है. दीवानी मुकदमा भी राजेंद्र हाड़ा ने ही अपने प्रयासों से जिताया था. राजेंद्र करीब दो दशक तक पत्रकारिता करने के बाद अब पूर्णकालिक वकील के रूप में अजमेर में कार्यरत हैं. 1980 में बीए अध्ययन के दौरान ही पत्रकारिता से जुड़े. दैनिक लोकमत, दैनिक नवज्योति, दैनिक भास्कर आदि अखबारों में विभिन्न पदों पर कार्य किया. साप्ताहिक हिंदुस्तान, आकाशवाणी, जनसत्ता, नवभारत टाइम्स, राष्ट्रदूत आदि में भी रचनाएं, खबरें, लेख प्रकाशित-प्रसारित. 1986 से वकालत भी शुरू कर दी और 2008 तक वकालत – प़त्रकारिता दोनों काम करते रहे. अब सिर्फ वकालत और यदा-कदा लेखन. पिछले सोलह साल से एलएलबी और पत्रकारिता के विद्यार्थियों को पढ़ा भी रहे हैं.
Comments on “भास्कर की नीति- ‘इस्तेमाल करो और फेंक दो’”
aisa koi pehli baar nhi ho rha hai. Mere sath bhi aisa ho chuka hai. Lala ki dukan me kisi ki bhawnao ki kadar nahi rhi. Ek sache Patarkar ko Apni ldai kud hi ladni padti hai, lihaja Lala ji se insaf or madad ki aas mat kijiyega.
ye sahi hai wo to ????? karte hai aur apne app ko no 1 bolte hai ?? Bhagwan sab dekh raha Aaj nahi to Kal insaf hoha ? Jai hind
sir ab yakin ho gaya hoga.ki is jamana main koi kisi ka saga nai hai.
bhaskar ke sabhi malik badmash hain