”मुलायम और मायावती, दो ऐसे राजनेता हैं जिनके इर्द-गिर्द ही पिछले दो दशकों में उत्तर प्रदेश की राजनीती घूमती रही है. इन दोनों में म अक्षर से थोड़े पुराने किस्म के नाम, ग्रामीण परिवेश के बहुत साधारण घर, राजनीती से पूर्व शिक्षण कार्य जैसी समानता के अलावा यह भी सामान है कि दोनों पिछडों और दलितों की राजनीती से जुड़े रहे हैं, दोनों अपनी-अपनी पार्टी के सुप्रीमो हैं जिनकी पार्टी उनके नाम से चलती है और दोनों सामान्यतया एंटी कांग्रेस माने जाते हैं.” ये बातें एक परिचर्चा में कही गईं.
7 नवम्बर 2010 को विराम खंड, गोमती नगर, लखनऊ में आयोजित परिचर्चा का विषय था- “मायावती और मुलायम सिंह : राजनैतिक और सामजिक सन्दर्भ”. परिचर्चा का उद्देश्य उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति और यहाँ के सामजिक-सांस्कृतिक परिवेश में उत्तर प्रदेश की वर्तमान मुख्यमंत्री मायावती तथा पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के महत्त्व और उनके प्रभाव पर चर्चा करना था. परिचर्चा में मुख्य रूप से सामाजिक कार्यकत्री डॉ नूतन ठाकुर, बीएचयू के समाजशास्त्र विभाग के डॉ ए के पाण्डेय, लखनऊ यूनिवर्सिटी के वीमेन स्टडीज़ के अमित पाण्डेय, पत्रकार संजय शर्मा, अमितेश श्रीवास्तव, योगेश त्रिपाठी योगी, एस पी सिंह एवं सामजिक चिंतन एस के सिंह तथा अनुपम पाण्डेय आदि ने प्रमुख रूप से हिस्सा लिया.
परिचर्चा में कहा गया कि मायावती व मुलायम में कई अंतर भी हैं जैसे मायावती अविवाहित हैं और उनके परिवार के लोगों का उनकी पार्टी और प्रशासन से ज्यादा मतलब नहीं दिखता है जबकि मुलायम का एक लंबा-चौड़ा परिवार है जिसके सदस्य पार्टी में अपना-अपना प्रभामंडल रखते हैं, मायावती अल्प समय में ही 1993 के बाद अचानक से उभरी थीं जबकि मुलायम की प्रगति धीमी रही थी, मायावती को आम तौर पर पहुँच से परे और अपनी मर्जी की मालिक माना जाता है जबकि मुलायम सामान्यतया अपने लोगों के लिए मिलने-जुलने में सहज माने जाते हैं आदि. लेकिन यह बात सभी लोगों ने एक स्वर से स्वीकार किया इन समानताओं और अंतर से परे सत्य यही है कि उत्तर प्रदेश में राजनीती और समाज इन्ही दोनों ताकतों से प्रभावित होता रहा है. दोनों के खातों में कई विवाद भी हैं जिन्हें वे एक सिरे से राजनैतिक षडयंत्र करार देते हुए दरनिकार कर देते हैं.
उपस्थित वक्ताओं का यह मत था कि यही दो ऐसे नेता रहे हैं जिनके प्रभाव राजनीति से बढ़ कर समाज के हर क्षेत्र में भी गहरे से पड़ा है जिसके कारण ये अपने-अपने समाज के रोल-मॉडल के रूप में स्वीकार किये गए हैं. इस परिचर्चा के पृष्ठभूमि में डॉ नूतन ठाकुर द्वारा लिखी जा रही पुस्तकें थीं जो इन दोनों राजनैतिक शूरमाओं पर लिखी जा रही हैं. उपस्थित लोगों का मत था कि ऐसे पुस्तक की आवश्यकता है क्योंकि इन दोनों के विषय में इस तरह के कम ही अध्ययन हुए हैं और जितनी भी पुस्तकें इनके विषय में लिखी गयी हैं वे या तो आत्मकथा (मायावती के मामले में) हैं या फिर उनमे कई स्तुति-वंदन जैसे दिख पड़ते हैं. साथ ही उपस्थित वक्ताओं ने यह भी कहा कि ये पुस्तकें ऐसी हों जो गहरे शोध-कार्य के बाद वस्तुनिष्ठता तथा तथ्यपरकता के आधार पर लिखी जाएँ और इन दोनों राजनितिक व्यक्तियों को इनकी सम्पूर्णता में राजनैतिक, प्रशासनिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से देखने का एक प्रयास करें. प्रेस विज्ञप्ति
Comments on “म से मुलायम, म से मायावती, क से किताब”
इन दोनों नेताओं के विषय में लिखी जा रही पुस्तक की वस्तुनिष्ठता अपने आप में कितनी निरपेक्ष होगी इस सवाल का जवाब तब -तक अन सुलझा रहेगा जब तक किताब पाठकों के समक्ष नहीं आती ,क्योंकि लिखने वाला सामाजिक ,राजनैतिक, वैचारिक रूप से किस हद तक संकीर्णताओं से मुक्त है !
देवेन्द्र पटेल
9415559102